Friday, June 27, 2008

कान्हा बना दे

माँ मुझको कान्हा बना दे,
गोरी सी राधा दिला दे ।
बाँसुरी मुझको सिखला दे
तीर यमुना का दिखला दे ।

लुक छुप मैं बाग में खेलूँ,
गोपियों संग रास छेड़ूँ ।
बारंबार उन्हे सताऊँ,
छेड़ उनको मैं छुप जाऊँ ।

वह शिकायत करने आएँ,
पूछने तू मुझसे आए ।
देखता जब तुमको आता,
पेड़ पर चढ़ मैं छुप जाता ।

मुझे पास न जब तुम पाती,
सोच कर कुछ घबरा जाती ।
मुझे डांटना भूल जाती,
दे आवाज मुझे बुलाती ।

हंस हंस जब मैं पास आता,
विकल हृदय सहज हो जाता ।
प्यार से तू पास बुलाती,
गले लगा सब भूल जाती ।

माखन मिसरी फिर मंगाती,
गोद में ले मुझे खिलाती ।
गोपियां जब याद दिलाती,
उन्हें डांटकर तुम भगाती ।

अपने प्यार का सदका दे,
काजल का टीका लगा दे ।
माँ मुझको कान्हा बना दे,
अपने आँचल में छिपा दे ।

कवि कुलवंत सिंह


Wednesday, June 25, 2008

चिड़िया रानी

चिड़िया रानी चिड़िया रानी
छोटी हो पर बड़ी सयानी
लघु रेशमी गात तुम्हारा
गजब का साहस तुमने धारा
डाली डाली उड़ती हो
मेरा मन ललचाती हो
अँगना में जब मेरे आती
फुदक फुदक के खेल दिखाती
हाथ कभी ना मेरे आती
यहाँ वहाँ फुर से उड़ जाती
चीं चीं करके शोर मचाती
अपनी भाषा में बतलाती
आलस को तुम दूर भगाओ
उठो सवेरा पढ़ने जाओ
दूध पियो और फल खाओ
कक्षा में तुम अव्वल आओ


सुषमा गर्ग
24.06.08


Tuesday, June 24, 2008

बटन की कहानी दीदी की पाती

बबलू कल अपनी दिदिया से फ़िर डांट खा रहा था क्यूंकि उसकी कमीज के बटन फ़िर से टूटे हुए थे और उसकी दीदी को फ़िर से उन्हें रोज़ रोज़ कमीज पर टांकना अच्छा नही लगता था . दीदी ने बबलू से कहा आओ मैं तुम्हे ही बटन लगाना सीखा देती हूँ ताकि रोज़ तुम मुझे परेशान मत करो ...
अच्छा दिदिया वह मैं सीख लूँगा पर पहले मुझे यह बताओ कि यह बटन बने कैसे ? .
.उसकी दीदी ने उसको बताया कि बटन आज से तीन हजार साल पहले बनने शुरू हुए थे ..पहले इन बटनों को सिर्फ़ अमीर लोग ही अपने कपडों पर लगाते थे महारानी एलिजाबेथ प्रथम को तो बटनों का इतना शौक था की वह सोने के गहने गलवा कर अपने लिए सोने के बटन बनवाया करती थी स्काटलैंड की रानी मेरी के पास ऐसे ४०० बटन थे जिन पर हीरे जवाहरात जड़े हुए थे हर बटन के बीच में एक लाल था
ड्यूक आफ बकिघ्म के बटन हीरों के होते थे और सम्राट लुई चोद्हवें ने छः बटन के सेट की कीमत २२ हजार पाउंड चुकाई थी

अमरीका में बटन इकट्ठे करने का शौक तीसरा समझा जाता है महिलाओं में यह बहुत लोकप्रिय है विक्टोरिया युग में लड़कियों की एक आम सोच थी कि यदि वह १ हजार बटन जमा कर के रख लेगी तो उसको उसका मनपसन्द जीवन साथी जरुर मिलेगा इसलिए उनके दोस्त और रिश्तेदार अपने उपयोग किए हुए बटन लड़कियों को दे दिया करते थे ताकि जल्दी से उनके पास एक हजार बटन हो जाए
कुछ समय पहले एक फ्रांसीसी सामंत के मरने पर उसके बटन नीलाम किए गए जिनका मूल्य ६,६७३ पौंड था एक अमरीकी फर्म ने इन्हे दुगने मूल्य पर खरीद लिया था

दुसरे महायुद्ध में ऐसे बटनों का आविष्कार किया गया था जो ब्लैक आउट होने पर चमकते थे पर न जाने क्यूँ वह बहुत लोगो को पसंद नही आए

हड्डी से ले कर लकड़ी तक अनेक चीजों के बटन बनाए जाते हैं इन दोनों ज्यादा प्लास्टिक के बटन बनते हैं ..सो देखा यह थी बटन की कहानी और तुम रोज़ जो बटन तोड़ कर आ जाते हो बबलू जानते हो एक बटन विशेषग्य का कहना है कि एक ओसत आदमी अपने जीवन काल में एक गुर्स बटन तोड़ता है ..पर अब तुम तोडेगे तो तुम्ही इसको लगाओगे समझे कह कर दिदिया ने बबलू को प्यार से एक चपत लगाई

वाह दिदिया यह तो बहुत अच्छी बातें बतायी तुमने ..बटन के बारे में
चलो अब मैं खेल कर आता हूँ ..अपना टूटा बटन मैं ख़ुद हो जोड़ लूँगा

जाओ खेलो ..कह कर दीदी मुस्करा दी

तो आप सबको कैसी लगी यह जानकारी बताये जरुर मुझे

आपकी दीदी

रंजू


Monday, June 23, 2008

बरसात

आई बरसात बरसे मच्छर
भैंस बराबर काला अच्छर

पढ़ें-लिखें वो होयें खराब
खेलें- कूदें वे बनें नवाब

नवाबों की गई नवाबी
सैंतालिस में आई आजादी

आजादी है मगर अधूरी
बचपन जब तक करे मजूरी

--डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम'


Saturday, June 21, 2008

मम्मी-पापा

मेरी मम्मी सबसे अच्छी
मुझे खूब प्यार वो करती
पापा मेरे और भी अच्छे
संग मेरे वो रोज खेलते
सुबह-सवेरे उठ कर आते
प्यार से मुझको दोनों जगाते
मम्मी मेरी खाना बनाती
पापा मुझे तैयार कराते
खुशी-खुशी मैं बस्ता लेता
पापा मुझको छोड़ कर आते
स्कूल से जब मैं पढ़ कर आता
मम्मी से फिर मैं खाना खाता
होम-वर्क मैं अपना करके
गोदी में मम्मी की सो जाता
शाम को जब पापा हैं आते
पार्क में मुझको खेल खिलाते
रात को सोने से पहले मैं
अगले दिन का बैग लगाता
तुम भी मुझ जैसे बन जाओ
पापा-मम्मी के प्यारे बन जाओ
दोनों जब मुझे प्यार हैं करते
दुनिया से न्यारे हैं लगते

-डॉ॰ अनिल चड्डा


Friday, June 20, 2008

अभिलाषा

बन दीपक मैं ज्योति जगाऊँ
अंधेरों को दूर भगाऊँ,
दे दो दाता मुझको शक्ति
शैतानों को मार गिराऊँ ।

बन पराग-कण फूल खिलाऊँ
सबके जीवन को महकाऊँ,
दे दो दाता मुझको भक्ति
तेरे नाम का रस बरसाऊँ ।

बन मुस्कान हंसी सजाऊँ
सबके अधरों पर बस जाऊँ,
दे दो दाता मुझको करुणा
पाषाण हृदय मैं पिघलाऊँ ।

बन कंपन मैं उर धड़काऊँ
जीवन सबका मधुर बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको प्रीति
जग में अपनापन बिखराऊँ ।

बन चेतन मैं जड़ता मिटाऊँ
मानव मन मैं मृदुल बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको दीप्ति
जगमग जगमग जग हर्षाऊँ ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, June 19, 2008

ट्रैफ़िक लाइट



पापा यहाँ तो चार रास्ते
फिर क्यूँ भीड़ जमा है,
चलता ट्रैफिक एक तरफ का
बाकी सभी थमा है ।
क्यूँ बाकी सभी थमा है ???

बेटा ट्रैफ़िक लाइट ने सबको
रुकने को है बोला है
तीन तरफ से रोककर ट्रैफिक
एक तरफ खोला है ।
बस एक तरफ खोला है..

समझो -
अगर सामने लाल हो बत्ती
'रुकना' इसका मतलव
हरे रंग की बत्ती पर ही
'निकलेंगे' फिर हम सब
लाल से पहले पीली बत्ती
हमें 'सावधान' करती है
चौराहे की ट्रैफिक लाईट
बहुत काम करती है
नहीं किया जो हमने इन
ट्रैफिक नियमों का पालन
बाधित हो जायेगा बेटा
सब यातायात संचालन
ना ही समय से स्कूल जाना
ना घर आना होगा
इसलिये नियमों में ट्रैफिक के
वाहन चलाना होगा
अगर नियम से नहीं चले तो
फिर जुर्मना होगा
जुर्माना जो नहीं दिया तो
जेल में जाना होगा
हाँ जेल में जाना होगा

हाँ हाँ पापा कितनी अच्छी
ट्रैफिक लाइट हमारी
मदद सभी की करती रहती
धूप में खड़ी बेचारी
आप भी इसकी बात मानकर
गाड़ी ठीक चलाना
नहीं कभी जुर्माना भरना
नहीं जेल में जाना

बस..
पापा जल्दी घर आना...
बस पापा जल्दी घर आना....

19-06-2008


Wednesday, June 18, 2008

भोला बचपन... आओ साइकिल चलाएँ















Tuesday, June 17, 2008

रूप हजार

हे जग के स्वामी, प्रभु अंतर्यामी
तेरे चरणों में नमन हजार

सूरज चमके, रैना को बरजे
धरा पे फैलाए किरणें हजार

हुआ सवेरा, मिटा अँधेरा
चहक उठा ये सारा संसार

गोल गोल चंदा, नीला आसमाँ
झिलमिल करते तारे हजार

ऊँचे ऊँचे पर्वत, कहीँ गहरी घाटी
धरती पे बिखरे रूप हजार

गहरी गहरी नदिया, छोटी बड़ी नैया
पानी में उठती लहरें हजार

हरी भरी बगिया, रँग रँगीले फुलवा
फुलवा को चूमे तितली बार बार

खट्टे मीठे अमुवा, डाली पे झूमे
गरमी है लाई आम की बहार

सावन महीना, कारे कारे बदरा
रिमझिम बरसे बूँदें हजार

छोटे से घर में, मम्मी पापा संग में
बच्चों को करते प्यार अपार

बड़ी सी ये दुनिया, निराली तेरी माया
बच्चों को देना प्रभु आशीष हजार

सुषमा गर्ग
17.06.2008


दीदी की पाती रोचक आविष्कार क्लोरोफार्म

हाजिर हूँ आज फ़िर एक नई जानकारी के साथ ...हमारे आस पास बहुत सी चीजे हैं जब हम उन्हें देखते हैं तो जानने की उत्सुकता जाग जाती है मन में कि आखिर कैसे हुए होगा ...यह आविष्कार किसने की होगी यह खोज । ..ऐसा ही एक अदभुत और रोचक आविष्कार है क्लोरोफार्म ..जी हाँ इसका इस्तेमाल अस्पताल में जब कोई कठिन आपरेशन करना हो तो किया जाता है .। .इसकी खोज एडनबरा के एक डाक्टर ने की थी । हुआ यूं कि एक बार वहाँ उनके अस्पताल में एक रोगी के हाथ पांव रस्सी से बाँध दिए गए क्यूंकि उसकी खराब टांग का आपरेशन करना था उसकी टांग में एक घाव हो गया था जो सड़ चुका था उसकी टांग काटने के अलावा कोई चारा नही था और जब उसकी टांग काटी गई तो वह मरीज तो दर्द के मारे बेहोश हुआ ही साथ ही डाक्टर सेम्प्सन जो उस वक्त पढ़ाई कर रहे थे वह भी बेहोश हो गए और जब वह होश में आए तो उन्होंने मन ही मन प्रतिज्ञा कि वह कोई ऐसा आविष्कार करेंगे जिस से मरीज को तकलीफ न हो जब उन्होंने इस के बारे में अपने साथ पढने वाले मित्रों से बात करी तब सब ने उनका मजाक बनाया पर उन्होंने हिम्मत नही हारी ।
सेम्प्सन का जन्म ७ जून १८११ को एडनबरा से २३ किलोमीटर दूर बाथगेट नामक स्थान पर हुआ था उनके पिता बहुत मामूली से इंसान थे । बहुत कम आमदन थी उनकी । सेम्पसन पढने लिखने में बहुत ही होशियार थे हर बात कि लगन थी उन में सिर्फ़ १४ साल कि उम्र में उन्होंने एडनबरा विश्वविधालय में दाखिला ले लिए था और महज १८ साल कि उम्र में अपनी डाक्टरी कि पढाई पुरी कर ली थी वह डाक्टर बन जाने के बाद भी अपनी प्रतिज्ञा भूले नही उन्होंने इस दवाई कि खोज जारी रखे जिस से आपरेशन के वक्त कोई मरीज को तकलीफ न हो और आपरेशन भी हो जाए।
एक दिन उनकी मेहनत रंग लायी एक शाम कोई प्रयोग करते वक्त उनकी निगाह अपने सहयोगी डाक्टर पर गई जो उनकी बनायी एक दवा सूंघ रहे थे और देखते ही देखते वह बेहोश हो गए अब सेम्प्सन ने उसको ख़ुद सूंघ के देखा उनकी भी वही हालत हुई जो उनके सहयोगी डाक्टर की हुई थी तभी उनकी पत्नी वहाँ आई और यह देख कर चीख उठी सब लोग वहाँ जमा हो गए किसी और डाक्टर ने डाक्टर सेम्प्सन की नाडी देखी वह ठीक चल रही थी उसी वक्त डाक्टर सेम्प्सन ने आँखे खोल दी और होश में आते ही वह चिल्लाए कि मिल गया मिल गया लोगो ने हैरानी से पूछा कि क्या मिल गया डाक्टर साहब ...
डाक्टर ने जवाब दिया कि बेहोश कर के दुबारा होश में आने का नुस्खा ४ नवम्बर १८४७ को डाक्टर ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर के दिखा दी और उन्होंने इस दवा का आविष्कार कर के ही दिखाया । बाद में इस में कई परिवर्तन किए गए और यही दवा रोगियों के लिए एक वरदान साबित हुई । आज इसी के कारण बड़े से बड़ा आपरेशन भी उस वक्त बिना दर्द के आसानी से कर लिया जाता है

यह थी आज की एक और रोचक जानकारी ।

बारिश के मजे ले और बीमार न पड़े जल्द ही स्कूल खुलने वाले हैं ।

आपकी दीदी
रंजू


Monday, June 16, 2008

पितृ-दिवस पर कुछ विशेष जानकारी

नमस्कार बच्चो,
कैसे है आप सब ? सर्व-प्रथम तो आप सबको पितृ-दिवस की बहुत-बहुत बधाई |आज पितृ-दिवस है और आप सब अपने पापा से प्यार करते है ना |तो चलो आज मै आपको कुछ ऐसे लोगो की बाते बताती हूँ जो अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते थे |

१. आपने श्रवण कुमार का नाम तो सुना ही होगा ,वह अपने माता-पिता का एकलौता सुपुत्र था |श्रवण कुमार के माता-पिता दोनो अन्धे थे |वो श्रवण कुमार से बहुत प्यार करते थे और श्रवण कुमार भी अपने माता-पिता की हर आज्ञा का खुशी-खुशी पालन करता था | एक बार श्रवण कुमार से उसके माता-पिता ने कहा कि हमारी सभी तीर्थ-स्थानो की यात्रा करने की तमन्ना है |तब आवाजाई के साधन तो थे नही और माता-पिता दोनो ही देख नही सकते थे |लेकिन श्रवण कुमार तो अपने माता-पिता की इच्छा को पूरा करना चाहता था तो उसने एक वन्झली बनाई और उसमे एक तरफ अपनी माता और दूसरी तरफ अपने पिता को बिठा कर निकल पडा तीर्थ-स्थानो की यात्रा पर |उसने अपने माता-पिता को कन्धो पर उठा कर बहुत सारे तीर्थ-स्थानो की यात्रा कराई और एक दिन जब चलते-चलते उसके माता-पिता को प्यास लगी तो वह माता पिता को उनको एक जगह पर बिठा कर पास मे बहती नदी से पानी लेने चला गया |जब वह नदी से पानी भर रहा था तो राजा दशरथ ने दूर से आवाज सुनी और कोई जन्गली जानवर समझ कर तीर चला दिया और वह तीर श्रवण कुमार को लगा |उसने वही दम तोड दिया और जब उसकी मृत्यु का उसके माता-पिता को पता चला तो वह अपने पुत्र का वियोग नही सह पाए और उन्होने भी वही अपने प्राण त्याग दिए | यह था उनका आपस का प्यार |

२. बच्चो श्री राम के बारे मे तो आपने सबने ही सुन रखा होगा |वो भी अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते थे |जब उनके पिता राजा दशरथ से उनकी छोटी माँ कैकई ने राम को वन भेजने का वचन माँगा तो श्री राम ने अपने पिता का माँ कैकई को दिया हुआ वचन पूरा करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास सहर्ष स्वीकार कर लिया क्योन्कि वो नही चाहते थे कि उनके पिता पर वचन ना पूरा करने का कलन्क लग जाए और खुशी खुशी चौदह वर्ष के लिए वन को चले गए और उनके पिता राजा दशरथ भी अपने सुपुत्र श्री राम से इतना प्यार करते थे कि वह राम के वन जाने की बात सह ना पाए और वही पर अपने प्राण त्याग दिए | यह उनका अथाह प्यार ही था |


३. अब मै आपको श्री कृष्ण के बारे मे बताती हूँ |श्री कृष्ण का जब जन्म हुआ तो उसके माता-पिता जेल मे थे क्योंकि श्री कृष्ण के मामा कंस जानते थे कि उनका बेटा उसको मारने वाला होगा |कन्स चाह्ता था कि जैसे ही श्री-कृष्ण का जन्म होगा वह उसे मार देगा |इस तरह श्री-कृष्ण उसे कभी भी मार नही सकेगा ,लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मन्जूर था |जैसे ही उनका जन्म हुआ जेल अपने आप खुल गई और श्री कृष्ण के पिता रात के अन्धेरे मे सबसे छुप-छुपा कर गोकुल नन्द और यशोदा के घर छोड आए और अपने पुत्र की रक्षा की और श्री कृष्ण को बडे होकर जैसे ही अपने माता-पिता के बारे मे पता चला तो उनको कन्स की कैद से मुक्त करवाने के लिए उन्होने केवल ग्यारह वर्ष की आयु मे ही कन्स का वध करके अपने माता-पिता वासुदेव और देवकी को आजाद करवाया |यह माता-पिता का अपने बेटे के लिए प्यार ही था कि वह बहुत वर्षो तक जेल मे रहे लेकिन फिर भी अपने पुत्र की रक्षा की और श्री-कृष्ण का अपने माता-पिता से सच्च प्यार ही था जो उन्होने कन्स का वध करके उनको आजाद करवाया |

देखा आपने बच्चो माता-पिता अपने बच्चो से और अच्छे बच्चे अपने माता-पिता से कितना प्यार करते है | माता-पिता से बढकर दुनिया मे कोई नही है |तो आप भी वादा करो कि आप अपने माता-पिता से हमेशा प्यार करोगे और उनकी हर बात मानोगे |
पितृ-दिवस की आप सबको हार्दिक बधाई | सीमा सचदेव


Saturday, June 14, 2008

स्कॉटलैंड के बच्चे

अवनीश एस॰ तिवारी इन दिनों स्कॉटलैंड में हैं। इन्हें बच्चों से बहुत प्यार है। बच्चे किसी देश की सीमा या परिधि से विभाजित नहीं होते | वे इस सब से अछूते रहते है और सभी को अच्छे लगते है | अवनीश जी ने स्कॉटलैंड के ग्लासगो शहर के खूबसूरत बच्चों के कुछ छाया चित्र खींची है और उनपर कुछ पंक्तियाँ लिख भेजी है।

ये विदेशी बच्चे गोरे चिट्टे, गोल-मटोल,
कभी चिल्लाते कभी धीरे से देते बोल,

भूरे-भूरे बाल सर पर बिखरे ,
देखो कैसा भोलापन इनका निखरे,

लप-लुप करती मटकती आँखे नीली,
गुलाबी गालों के बीच मुस्कान भी खिली,

डेविड, जोन और है स्वीटी,
रोजी, ट्विंकल के संग खेलती किटी,

मासूम, भोले इन बचपन को मैं निहारुँ,
क्लेशमुक्त इस जीवन पर अपना जीवन वारुँ|

-- अवनीश तिवारी
०९-०५-२००८










Friday, June 13, 2008

अगड़म बगड़म

अगड़म बगड़म जय बम बोला,
तेरे सर पे गरी का गोला,
बनिये ने जब आटा तोला,
हाथी ने तब बटुआ खोला ।

काली बिल्ली, लंगड़ा शेर,
काना बंदर खाए बेर,
खरगोश बना बड़ा दिलेर,
कहता मैं हूँ सवा सेर ।

कुत्ता भौंचक दुम हिलाए,
कौआ बैठा रोटी खाए,
लोमड़ जोर से गाना गाए,
गाना गाकर मुझे रुलाए ।

कनखजूरा उसको काट खाए,
दुनिया को जो रंग दिखाए,
मेढ़क टर्र टर्र हार्न बजाए,
गली गली में शोर मचाए।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, June 12, 2008

बाल उद्यान के प्राणी उद्यान की सैर - 2

बच्चो कैसे हो ? मजे आ रहे है ना छुट्टियों में.. पिछ्ली बार गये थे ना प्राणी उद्यान में
मज़ा आया था ना बन्दर, तोता, बकरी, गिलहरी, से मिलकर, चलिये आज फिर चलते है
और मिलते है कुछ और प्राणी उद्यान के सदस्यों से :




लम्बी पूँछ सुनहरे बाल
बैठा है देखो उस डाल
हमको कैसा रहा है घूर
काले मुहुँ का ये लंगूर





फन फैलाकर बैठा साँप
शायद हमको गया है भांप
लपलप-लपलप करे जुबान
इनकी त्वचा ही इनके कान





बगुला भगत लगाकर ध्यान
भोजन ढूँढ रहे श्रीमान
ज्यूँ कोई मछली पायेंगे
उसको चट कर जायेंगे





देखो इस झाड़ी के भीतर
छुप-छुप घूम रहे हैं तीतर
शोर नही,सब रहना शांत
इनको पसन्द बहुत एकांत





बच्चो हो जाओ सावधान
गौर से सुनो लगाकर कान
भागो! झाड़ी से आवाज
हा हा हा हा - गर्दभ राज


12-06-2008


भोला बचपन... पिता की छाँव में

नन्हें-नन्हें कदम हैं मेरे
पापा मुझको थाम के रखना;
मैं तो नन्हीं गुड़िया हूँ
मुझको प्यार और लाड़ से रखना








तस्वीरें - सीमा कुमार


Tuesday, June 10, 2008

आम

आम फलों का राजा है
सबके मन को भाता है
इसका मीठा स्वाद अनोखा
सबका मन ललचाता है


हरे लाल और पीले पीले
प्यारे प्यारे खूब रसीले
कुछ छोटे कुछ मोटे मोटे
कुछ खट्टे कुछ मीठे मीठे


आओ गुड़िया तुम भी खाओ
यूँ ना दूर खड़ी ललचाओ
देखो गुठली फेंक ना देना
जा बगिया में इसको बोना


पाओगी फिर आम का पौधा
बगिया में जो बढ़ता जाता
आम के आम गुठली के दाम
क्यूँ कहते ये समझ में आता


अचार चटनी मुरब्बे खाओ
जी भर मैंगो शेक बनाओ
एक नहीं जी भर के खाओ
सबको इसका स्वाद बताओ

मीठे मीठे खाओ आम
कड़वी बोली तजो तमाम
इससे कितना सुख पाओगे
सबके प्यारे बन जाओगे


सुषमा गर्ग
10.06.2008


दीदी की पाती --नन्हें आविष्कार है यह कमाल

नमस्ते ,शुभ प्रभात .सलाम .

कैसे हैं आप सब ..? खूब मजे से ....बिता रहे हैं न अपनी छुट्टियाँ .आज आपको और एक नई रोचक जानकारी की यात्रा पर ले चलती हूँ ..जब भी खोजों या अविष्कारों की बात होती है तो हमारे ध्यान में हवाई जहाज ,साइकिल कार और कई बड़ी बड़ी चीजों के नाम ध्यान में आते हैं ..पर जरा नज़र डाले अपने आस पास कितनी छोटी छोटी चीजे हैं न जैसे माचिस .आपके जूते के फीते .मम्मी या दीदी के बालों में लगने वाला हेयरपिन आदि आदि .अब यह छोटी छोटी चीजे भी तो आखिर किसी की खोज होंगी न तभी तो आज हम इन्हे इस्तेमाल कर पाते हैं ..आज मैं तुम्हे कुछ चीजों के बारे में बताती हूँ कि कैसे बनी यह ..
सबसे पहले हम बात करते हैं हेयर पिन की ..पहले पहले जब इसको बनाया गया तो यह एक दम सीधी और सपाट थी जिस से यह बालों पर लगाते ही फिसल जाती थी ..इसकी फिसलन रोकने के लिए सालोमन गोल्डबर्ग ने लहरदार घुमाव वाली हायर पिन बनायी और एक कम्पनी को यह विधि बहुत पसंद आई उसने उस से यह विधि ४० लाख में खरीद ली और उसके बाद बनानी शुरू हुई बालों पर न फिसलने वाली हेयरपिन ..अब तो बाज़ार कई नए नए तरह के हेयर पिन से भरा हुआ है ..
अब बात करते जूते के फीतों की ..सिर से सीधा पांव :) आपने देखा है कि जूते के फीतों पर आखिर में दोनों तरफ़ धातु की पतली पट्टी सी लगी होती है और जब कभी यह पट्टी निकला जाए तो जूते के फीतो को जूतों में डालना थोड़ा सा मुश्किल काम होता है .पर पहले फीतों में यह नही होती थी सिर्फ़ एक डोरी सी लगी होती थी इसको बनाने का विचार आया इंग्लैंड में एक जूते की फेक्टरी में काम करने वाले कर्मचारी को ..उसने उसको बनाया और जूते के फीते बंधना आसान हो गया

टायर कैसे बने जानते हैं ..१८८८ की एक शाम थी सुहानी सी... स्काटलैंड में एक शरारती सा बच्चा जिद पर अड़ गया और अपने पापा से जिद करने लगा कि उसको अपनी तीन पहियों वाली साईकिल के लिए ऐसे पहिये चाहिए जो ऊँचे नीचे सब जगह चल सके अब बच्चा जिद करे और पापा कोई जुगत न लगाए ऐसा कैसे हो सकता है उन्होंने सोचना शुरू किया और कई विधियाँ सोची और आख़िर में बन गया टायर उसके पापा का नाम था जान डनलप जिसके कारण आज सब कारें बसे बड़ी बड़ी मोटर और अन्य वाहन आराम से सड़क पर उबड़ खाबड़ रास्तों पर भी सरपट भागते हैं

आपको खेलते खेलते जब चोट लग जाती है तो मम्मी क्या लगाती है याद आया ? जी हाँ छोटी से चिपकने वाली पट्टी जिसको बैंड एड कहते हैं इसकी कहानी यह है कि जॉन्सन एंड जॉन्सन कम्पनी में एक काम करने वाले कर्मचारी कि पत्नी जब भी सब्जी काटने लगती अपना हाथ काट लेती और वह अपनी पत्नी को कभी पट्टी बंधाते कभी कुछ और उपाय मरहम लगाते लगाते करते करते थक जाते जब कारखाने के मालिक को यह परेशानी पता चली तो उन्होंने सोचा कि ऐसी पट्टी बनायी जाए जो चिपक भी जाए औ र्साथ ही दवा लग कर खून भी बहना बंद हो जाए और फ़िर इस पट्टी का अविष्कार हुआ जो आज तक इस्तेमाल होता है चोट लगने पर

ब्रेल लिपि के बारे में सुना है आपने यह एक ऐसी लिपि है जिस कि सहायता से न देखने वाले लोग भी उभरे हुए अक्षरों की मदद से पढ़ लिख सकते हैं इसका आविष्कार तब हुआ जब तीन साल का एक बच्चा लुई ब्रेल एक दुर्घटना में अँधा हो गया तब यह उभरे हुए अक्षर मोटी किताब में होते थे तब उसने सोचा कि यदि यह अक्सर एक छोटी सी जगह में आ जाए तो अंधे लोग उसको आसानी से पढ़ सकेंगे यही सोच कर उस १५ साल के बच्चे ने यह आविष्कार किया इसी के जरिये आज भी कई न देखने वाले भी आसानी से पढ़ लेते हैं इस आविष्कार का नाम ब्रेल रखा जिसके जरिये आज भी कई न देखने वाले भी आसानी से पढ़ लिख सकते हैं तो पढ़ा आपने किस तरह या नन्हें नन्हें अविष्कार भी कितने काम के हैं ..सोचिये आप भी कुछ ऐसा ..मैं फ़िर मिलूंगी आपसे नई पाती के साथ

अपना ध्यान रखे

आपकी दीदी

रंज