Friday, October 31, 2008

भारत की प्रथम महिला प्रधानमन्त्री प्रियदर्शनी श्रीमती इन्दिरा गाँधी

नमस्कार बच्चो
आपको पता है आज भारत की एक महान नारी एवम् प्रथम महिला प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी की पुण्यतिथि है। भारत का इतिहास गवाह है कि श्रीमती गाँधी अभी तक एक ही महिला प्रधान मंत्री रही है। आओ आज मैं आपको उनके जीवन के बारे में सँक्षिप्त में बताती हूँ -


श्रीमती इन्दिरा गाँधी स्व. पण्डित जवाहर लाल नेहरु (भारत के प्रथम प्रधान मन्त्री) की सुपुत्री थी। उनकी जादुई मुस्कान, होशियारी और समझदारी ने उन्हें सबमें प्रिय बना दिया। उनका जन्म १९ नवम्बर १९१७ को इलाहबाद में हुआ। उनको अपने परिवार से भरपूर प्यार मिला। आपको प्यार से प्रियदर्शनी कहा जाता था। जब आपके पिता ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया तब आप केवल ३- वर्ष की । उनका घर राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। उनके सम्पर्क में आने वाले नेताओं में से इन्दिरा जी सबसे ज्यादा प्रभावित थी -महात्मा गाँधी जी से। उनका सादा जीवन उच्च-विचार और देश-भक्ति की भावना ने श्रीमती गाँधी जी को बहुत प्रभावित किया। आपने अपनी दसवीं तक की शिक्षा पुणे विश्वविद्यालय से पास की और फिर शान्ति-निकेतन चली गईं। यहाँ पर सख्त अनुशासन में रहते हुए शिक्षा ग्रहण की, फिर उच्च शिक्षा के लिए स्वीटज़र लैंण्ड और फिर ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी, लन्दन गई ।
वापिस आने पर आपका विवाह श्री फिरोज़-गाँधी के संग हुआ। उस समय लोगों के विरोध का सामना भी करना पड़ा क्योंकि आप ब्राह्मण परिवार से थी तो फिरोज़ जी पारसी । लेकिन आपने जाति-पाति के भेद-भाव को मिटाते हुए उस विरोध का भी सामना किया ।
आपके पिता जेल में थे तो आपको वही से प्यार भरे पत्र लिखते और राजनीतिक गतिविधियो की जानकारी भी देते इससे इन्दिरा जी को राजनीति सीखने मे बहुत सहायता मिली ।
१९४२ में आपने भारत छोड़ो आन्दोलन में अपने पति के साथ भाग लिया और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। आपको जेल भी जाना पड़ा। आपने अपनी सहनशीलता और देश के प्रति भक्ति-भावना का सबूत देते हुए कठिन कारावास भी काटा ।
भारत की आज़ादी के बाद आपके पिता भारत के पहले प्रधान-मन्त्री बने उनकी मृत्यु पश्चात १९६४ मे भारत के दूसरे प्रधान-मन्त्री बने श्री लाल बहादुर शास्त्री जी १९६६ में श्रीमती इन्दिरा गाँधी जी ने कांग्रेस पार्टी के प्रधान पद की कमान संभाली।
आपके नेतृत्व में विज्ञान, कृषि, बैंकिंग क्षेत्रों में अत्याधिक उन्नति हुई और विकास के नए द्वार खुले। आपको असाम, पंजाब, पूर्वी बंगाल आदि राज्यों में बहुत समस्याओं का सामना भी करना पड़ा। १९७१ में भारत-पाकिस्तान युद्ध भी देखना पड़ा और बंगला-देश के रूप में एक और विभाजन भी करना पड़ा। २६ जून १९७५ में आपको देश के नाजुक हालतों को देखते हुए एमरजन्सी भी लगानी पड़ी और जनता दल के नेता जे.पी.नारायण को गिरफ्तार भी करना पड़ा १९७७ ई. में चुनावों में आपको हार का सामना भी करना पड़ा लेकिन १९८० में आप फिर उसी उत्साह और शक्ति के साथ सत्ता में आई और फिर से प्रधान-मन्त्री पद की कमान संभाली। उस समय पंजाब में खालिस्तान बनाने की माँग बढ़ती जा रही थी और इन्दिरा जी ने इस माँग को न मान पंजाब के हालात सुधारने पर बल दिया ।

३१ अक्तूबर १९८४ दिन बुधवार को जब आप अपने कार्यालय के लिए घर से निकल रही थी तो आपके ही सुरक्षा-कर्मी द्वारा आपको गोली मार कर हत्या कर दी । इस दिन को उस महान नारी की याद में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इन्दिरा जी का नाम भारतीय इतिहास मे सदा अमर रहेगा
जय-हिन्द


इस्मित

इस्मित की याद में नवी मुंबई लिटिल चैंप्स प्रतियोगिता का आयोजन हुआ । अतिथि के रूप में उपस्थिति के साथ एक कविता इस्मित की याद में कार्यक्रम में समर्पित की -

इस्मित

स्टार अमूल आवाज बनी
इस्मित की पहचान बनी ।
हवा में घुल गये उसके सुर
घर घर बस गये उसके सुर ।

मोह लिया मन उसने सबका
मधुर मृदुल था कण्ठ उसका ।
अदा निराली उसकी थी
सादगी कितनी महकी थी ।

जग में बसा हुआ है भारत
देश देश में रहता भारत ।
बन आवाज सुरीली पहुंचा
देश देश में इस्मित पहुंचा ।

जग विस्मित था सुन दुर्घटना
कैसी थी अनहोनी घटना ।
सबके दिल में उपजी पीर
सबके नयनों में था नीर ।

मरा नही वह अमर बना है
रब के घर संगीत बना है ।
ध्रुव जैसा वह चमक रहा है
तारा बन कर दमक रहा है ।

याद संजोकर उसकी दिल में
आये हैं 'लिटिल चैंप्स' कितने ।
नाम रोशन कर जाएंगे
आवाज देश की बन जायेंगे ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, October 30, 2008

भैया दूज

नमस्कार बच्चो , कल खूब अच्छे पकवान खाए ,अब हमारे पावन सम्बन्धों की बात भी की । आज है दीवाली का पाँचवाँ दिन और आज का दिन "भैया दूज" के नाम से जाना जाता है। इसको यम द्वितीया भी कहते है। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्यार का प्रतीक है इस दिन बहने भाई को टीका लगाती है और उसकी लम्बी आयु की कामना करती है इस दिन के साथ भी बहुत सी कथाएँ जुडी हैं। चलो मैं आपको बताती हूँ कि इस त्योहार के साथ कौन-कौन सी कथाएँ जुडी हैं :-


१.यमराज-यमुना :-यमराज और यमुना दोनों सूर्यदेव की जुडवाँ सन्तान थे। यमुना जो कि एक पावन नदी में बदल गई और यमराज जिसको मृत्यु के देवता के नाम से जाना जाता है। कहते हैं एक बार यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर बुलाया और उसकी आरती उतारी। यमराज ने खुश होकर अपनी बहन को उपहार दिए और वरदान दिया कि इस दिन जो भाई बहन के घर जाकर उसे उपहार देगा और बहन भाई का स्वागत करेगी तो उन्हें कभी यमराज ( मृत्यु ) का भय नहीं सताएगा। उस दिन क्योंकि कार्तिक मास की द्वितीय तिथि थी इस लिए इसको यम-द्वितीया भी कहा जाता है।

२.महाबलि-लक्ष्मी:- बच्चो, मैंने आपको "ओणम" की कहानी सुनाई थी कि कैसे विष्णु भगवान ने वामन रूप बना कर महाबलि राजा को पराजित किया था और उसे पाताल लोक भेज दिया था, बाद में उसे वर्ष में एक बार वापिस आने का वरदान भी दिया था। महाबलि ने एक वरदान और भी भगवान विष्णु से माँगा था कि वह पाताल लोक में जाकर हर घर में पहरेदार के रूप में हमेशा विराजमान रहे। भगवान विष्णु क्योंकि महाबलि को वरदान दे चुके थे, इस लिए उन्हें पाताल लोक में जाकर रहना पडा। यह बात श्री विष्णु पत्नी लक्ष्मी जी भला कैसे सह जाती? उन्होंने अपने पति को आज़ाद कराने का उपाय सोचा। श्रीलक्ष्मी जी एक गरीब औरत के रूप में महाबलि के पास गई और उसे अपना भाई बनाने का आग्रह किया। महाबलि ने उसे बहन स्वीकार कर लिया। लक्ष्मी जी ने महाबलि को टीका लगा कर एक बहन की तरह पूजा की और फिर जब महाबलि ने उनसे कुछ माँगने के लिए कहा तो लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु जी को आज़ाद करने का वरदान माँग लिया

३.श्री कृष्ण-सुभद्रा:- बच्चो, अभी मैंने दो दिन पहले आपको नरकासुर वध की कहानी भी सुनाई थी कि कैसे श्री-कृष्ण जी ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। नरकासुर का वध करने के पश्चात श्री-कृष्ण जी सीधे अपनी बहन सुभद्रा के घर गए थे और उनकी बहन ने भाई को टीका लगाकर मिठाई और फूलों से खूब स्वागत किया था तब से यह त्योहार भैया दूज के रूप में मनाया जाता है.

४. बच्चो, इसको केवल हिन्दु धर्म में ही नहीं बल्कि जैन धर्म में भी मनाया जाता है दीवाली की जानकारी देते हुए मैंने आपको महावीर स्वामी जी के बारे में भी बताया था जब महावीर स्वामी घर-बार त्याग निर्वाण प्राप्ति हेतु निकल पड़े तो उनके भाई राजा नन्दीवर्धन जो कि अपने भाई महावीर स्वामी से बेहद प्यार करते थी, बहुत उदास हो उठे और अपने प्यारे भाई की कमी उनको खलने लगी तब उनकी बहन सुदर्शना ने अपने भाई को सहारा दिया था ।


बच्चो, यह कुछ कहानियाँ जो मैंने आपको बताई, बहन भाई के प्यार का प्रतीक है और हमें मिलजुल कर प्यार से रहने का सन्देश देते ये त्योहार या मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि उनके पीछे छिपे सन्देशों को हमें अपने वास्तविक जीवन में अपनाना होगा तभी हम इस धरती पर स्वर्ग को भी बसा सकते है।

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भैया दूज की हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएँ सभी पाठकों को धन्यवाद......सीमा सचदेव


Wednesday, October 29, 2008

गोवर्धन पूजा (काव्यात्मक-कहानी)

नमस्कार बच्चो ,
मजे तो खूब किए न दिवाली पर ,घर मे पूजा भी की ,चलो अब कुछ पेट-पूजा भी हो जाए अगर अच्छे पकवान खाना चाहो तो चलो मेरे संग. वृन्दावन सोच कर ही मेरे मुँह मे पानी भर आया आपको पता है न कल मैने बताया था आपको कि हर वर्ष दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है और भगवान को छप्पन भोग (५६ प्रकार के पकवान ) लगाया जाता है उत्तरी भारत मे इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है और यह दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप मे भी मनाया जाता है विश्वकर्मा ने बहुत सारे नगर बनाए थे ,इस लिए आज का दिन उस की याद मे मनाया जाता है हम बात कर रहे थे गोवर्धन पूजा की तो चलो आज मै आपको वो कहानी सुनाती हूँ जिसके लिए हर वर्ष गोवर्धन पर्वत की पूजा बडी धूम-धाम से की जाती है:-


गोवर्धन पूजा


बच्चो कल तो थी दिवाली
हुई थी रौशन रात भी काली
फहराया राम-लखन का ध्वज
चलो आज मेरे संग ब्रज
चलेंगें अब हम वृन्दावन
पूजा जाएगा गोवर्धन
छप्पन भोग बनेगा वहाँ पर
खाएँगे हम कान्हा संग मिलकर
आओ बताऊँ इसका राज
क्योँ पूजे जाते गिरिराज
..................
..................
पहले तो ब्रजवासी सारे
भोले-भाले थे बेचारे
करते देवराज की पूजा
ताकि खुश हो करे वो वर्षा
इन्द्र देव को होगा हर्ष
तो होगी वर्षा पूरा वर्ष
होगी चहुँ ओर हरियाली
नही रहेगी कोई कंगाली
धन -धान्य होगा अपार
छाएगी ब्रज मे भी बहार
इन्द्र देव को हुआ अभिमान
मै तो हूँ सदृश्य भगवान
देता हूँ वर्षा का धन
पलता जिस पर जन-जीवन
एक बार न हुई बरसात
ब्रज वालो को लगा आघात
सूख गए सारे ही वन
अस्त-व्यस्त हो गया जीवन
सोचा सबने एक उपाय
क्यों न वो कोई यज्ञ करवाएँ
होंगें इन्द्रदेव प्रसन्न
मिलेगा फिर वर्षा का धन
मिलके खूब पकवान बनाएँ
सुन्दर थालो मे सजाएँ
देख के कान्हा था हैरान
नही है इन्द्रदेव भगवान
न तो वो देता है धन
न दे सकता है जन-जीवन
फिर उसकी ही क्यों हो पूजा
सोचो कोई उपाय तो दूजा
फिर ब्रज वालो को समझाया
और गायों को धन बताया
इन्द्र से बडा तो है गोवर्धन
देता जो गायों को भोजन
गायों को मिलता है चारा
चलता हम सब का गुजारा
फिर हम क्यों पूजे देवराज
आओ मिलकर सारा समाज
पूजेंगें हम आज गोवर्धन
जिस पर निर्भर है यह जीवन
ब्रज वालो की समझ मे आया
गिरिराज को भोग लगाया
खुद ही कान्हा भोग लगावें
खुद गिरिराज रूप मे खावें
न जाने वो भोले ग्वाले
कान्हा हैं उनके रखवाले
आया देवराज को क्रोध
भर गया था मन मे प्रतिशोध
लगा वो खूब जल बरसाने
ब्रज को पानी मे डुबाने
जल से सारा ब्रज गया भर
देख के ब्रजवासी गए डर
कान्हा ने गिरिराज उठाया
नीचे ब्रज वालो को छुपाया
सात दिन तक हुई बरसात
पर न थका कान्हा का हाथ
मानी इन्द्र देव ने हार
आया वो कान्हा के द्वार
छोड़ दिया उसने अभिमान
बोला कान्हा है भगवान
खुद गिरिराज के रूप मे आए
खुद ही गोवर्धन को उठाए
तब से मनता है यह दिन
पूजा जाता है गोवर्धन

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गोवर्धन पूजा की हार्दिक बधाई एवम् शुभ-कामनाएँ.......सीमा सचदेव


Tuesday, October 28, 2008

गोवर्धन पूजा

बच्चो,
आज आप खूब मिठाई खा रहे है और दीवाली की खुशियाँ मना रहे है न ? पूजा की तैयारी हो रही होगी ? आप को पता है न कल दीपावली का चौथा दिन है और इस दिन को गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है? गोवर्धन पूजा की कहानी सुनाने से पहले मै आपको गोवर्धन के बारे मे कुछ बताती हूँ ।




गोवर्धन एक पर्वत का नाम है जो श्री कृष्ण की पावन भूमि ब्रज के साथ लगभग २२ किलोमीटर के क्षेत्र मे फैला हुआ है। बच्चो आपने लक्ष्मण मूर्छा की कहानी तो अवश्य सुनी होगी कि रावण के साथ युद्ध करते-करते एक बार लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे और उनको बचाने के लिए हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने गए थे और पूरा पर्वत ही उठा लाए थे। दन्त-कथा



के अनुसार कहते है जब राम-रावण का युद्ध समाप्त हो गया और सब जब अपने-अपने घर को जा रहे थे तो उस पर्वत ने श्री राम से कहा-आपने सब कार्य अच्छे से निपटा लिए ,सब अपने-अपने घर ज रहे है पर मै कहाँ जाऊँ ? मेरा भी उद्धार करो तब श्री राम ने उसको वचन दिया था कि जब वो श्री कृष्ण रूप मे आएँगे तो उसका अवश्य उद्धार करेंगें और हनुमान जी को उस पर्वत को वृन्दावन (ब्रज क्षेत्र ) मे छोड आने को कहा श्री कृष्ण अवतार मे श्री कृष्ण जी ने उस पर्वत को अपनी तर्जनी पर उठा कर उसका उद्धार किया ।

गोवर्धन पर्वत की पूजा के साथ-साथ लोग श्रद्धा से इसकी परिक्रमा भी करते है ।

मुझे भी एक बार गोवर्धन परिक्रमा पर जाने का सुअवसर मिला था ,जब मै भी आप जैसी बच्ची थी हम लोग सपरिवार हर वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर वृन्दावन जाते और कुछ दिन वहाँ रह कर खूब घूमते-फिरते ,मस्ती करते हमारे मन मे पूरा उत्साह भरा रहता वृन्दावन मे तो हम खूब मस्ती करते लेकिन गोवर्धन कभी न गए थे ,केवल उसके लिए सुना था चूँकि हम लोग छोटे थे और किसी परेशानी से बचने के लिए मेरे मम्मी-पापा वहाँ नही जाते थे एक बार हमने खूब जिद्द की गोवर्धन-पर्वत देखने की। बच्चोँ की जिद्द के आगे शायद माँ-बाप को झुकना ही पडता है। हमारी जिद्द के आगे भी मम्मी-पापा की एक न चली और वहाँ जाने को तैयार हो गए लेकिन यह भी तय हुआ कि केवल हम वहाँ दर्शनार्थ ही जाएँगे ,परिक्रमा पर नही। हम भी खुश थे भला बच्चो को घूमने-फिरने का अवसर मिले तो और क्या चाहिए? हम निकल पडे और एक बस से गोवर्धन पहुँचे। गोवर्धन के मुख्य मन्दिर के दर्शन कर हम जब वापिस आने लगे तो संयोगवश मेरे पापा के एक मित्र मिले। वो भी सपरिवार घूमने के लिए आए थे। उनके कहने पर पापा का भी मन बदला और चलने को तैयार हुए।-गोवर्धन परिक्रमा पर हमे तो जैसे अन्धे को दो आँखे मिलने वाली बात थी। मम्मी को चिन्ता थी तो हमारी २१-२२ किलोमीटर की पैदल यात्रा ,वो भी बिना किसी पूर्व योजना के लेकिन हम लोग इस सब से बेफिक्र मन मे उत्साह इतना कि कुछ खाने को भी मन नही माना ,यह भी लग रहा था कि अगर खाना खाने लगे तो कही परिक्रमा पर जाने के लिए मम्मी का मन बदल न जाए जितनी जल्दी निकला जाए....उतना ही अच्छा। खाना मम्मी ने साथ ही ले लिया कि रास्ते मे कही बैठ कर खाएँगे ।
खैर, थोडी ही देर मे हम नंगे पाँव बढ रहे थे - श्री गोवर्धन राज की परिक्रमा मार्ग पर जब चले तो -दोपहर का समय ,धूप सर पर थी ,सूर्य अपने पूरे जोश मे किरणे हमारे सर पर छोड रहा था। हमारे मन मे बैठा डर और गहराता जा रहा था कि कही धूप के कारण हम नही जा पाए तो......? और शायद इसी डर से या फिर बाल-स्वभाव-वश हम लोग ( कुल मिलाकर हम छ: बच्चे थे) भाग कर काफी आगे निकल जाते और आगे पेड़ की छाया मे बैठ इन्तजार करने लगते। इतने मे एक तो वापिस जाने का डर खत्म हो जाता और दूसरा हमे थोडा आराम भी मिल जाता।
अभी थोडी दूर ही पहुँचे थे कि हमारा स्वागत किया वानरों ने। जाने कहाँ से आँधी की तरह आए और खाने वाला थैला झपट कर तूफान की तरह पेड़ पर चढ । जब तक हम कुछ समझ पाते तब तक तो वानर राज हमारे भोजन को अपना भोजन बना चुके थे और हम लोग खाली पेट हँसने पर मजबूर । हम आगे निकले तो मेहरबान हुई हम पर वर्षा - देवी। इतनी तेज धूप के बाद अचानक से बादल का घिरना बहुत सुहाना । (कहते है न सावन मे बिन बादल भी बरसात हो जाती है )वैसे भी सावन के महीने मे पर्वत की तलहटी मे जहाँ पर कुदरत अपने सौन्दर्य की पूरी छटा बिखेर रहे हो , चारो तरफ हरे-भरे पेड़ लहलहा रहे हो और वहाँ पर वर्षा की बूँदा-बाँदी किसी के भी मन को रोमांचित कर ही देती है। वर्षा मे हम पूरी तरह भीग चुके थे। ऐसी सुहानी बरसात मे भीगने का यह पहला अवसर था जब हमे किसी ने भीगने से रोका नही और हमने उस मौके का भरपूर आनन्द उठाया था और करते भी क्या ?
पर्वत की छोटी-छोटी पहाडियोँ पर चरती गायें और वर्षा ऋतु मे नाचता मोर कही दूर से किसी ग्वाले की बाँसुरी की धुन पेड़ों की सनसनाहट,हवा के झोँको के साथ फैलती खुशबू जैसे हमे स्वयं कान्हा के आस-पास होने का अहसास करा रही थी कुदरत का ऐसा सुन्दर और मनमोहक रूप जहाँ हर कण कृष्णमय हो, देख कर तो हमे जैसे कोई खजाना ही मिल गया हो। तन पर भीगे कपडे पहने हम लोग बढते जा रहे थे। परिक्रमा मार्ग पर कभी उस सन्नाटे को चीरती पीछे से श्री कृष्ण नाम की ध्वनि सुनाई देती तो दूसरे ही क्षण उस के जवाब मे कही दूसरी तरफ से और जोश से श्री कृष्ण की जय-जयकार से वातावरण गूँज उठता। कभी हम अपनी प्रतिध्वनि सुनने के लिए एक दूसरे को जोर से आवाज लगाते। वर्षा थम चुकी थी और हमारे पेट मे शुरु हो गया था-चूहोँ का नर्तन। भूख थी कि बढती जा रही थी। चलते-चलते हम एक गाँव मे पहुँचे। गाँव बहुत छोटा था लेकिन शायद उस दिन कोई विशेष दिन था जो गाँव वाले मिलकर परिक्रमा मार्ग पर खूब पकवान बना लंगर लगा रहे थे। हम लोग भूखे तो थे लेकिन जाने मे झिझक रहे थे। गाँव वालो के बुलाने पर हम बिना कुछ सोचे भूखे शेरो की तरह टूट पडे खाने । भर-पेट खाना खाया और जाते-जाते न जाने गाँव वालो के मन मे क्या आया कि हमे साथ मे भी खाना दे दिया। थोडी और आगे जाने पर हम वहाँ पहुँचे जहाँ श्री गिरिराज जी की जीभ है। कहते है यही पर गिरिराज ने प्रकट होकर ब्रजवासियोँ का भोजन ग्रहण किया था। हमने वहाँ चाय पी और फिर आगे की यात्रा पर निकल पडे और एक परिक्रमा पूरी कर हम तैयार थे दूसरी परिक्रमा पर। ( गिरिराज की दो परिक्रमा है और कुल मिला कर लगभग २२ कि.मी., मुख्य रूप से दो कुण्ड है श्री कृष्ण कुण्ड और श्री राध कुण्ड ,जिसके इर्द-गिर्द परिक्रमा मार्ग है ) अब तक हमे कोई थकावट न महसूस हुई इतना जोश हममे कहाँ से आया कि हम बिना थके आगे बढते जा रहे थे। शायद इसे बचपन का जोश कहते है अब तक हमारी थकावट पर हमारा जोश भारी था हमारे गीले कपडे अब तक सूख चुके थे रास्ते मे हम ने कुछ ऐसे लोगो को भी देखा जो लेट कर परिक्रमा कर रहे थे वो एक बार लेटते ,श्री कृष्ण की जय बोलते ,लेट कर पत्थर से आगे निशान लगाते ,फिर खडे होते और यही क्रम बार-बार दोहरा कर उन्होने पूरी परिक्रमा करनी थी हम उन की श्रधा के आगे नतमस्तक थे मार्ग मे हमने बहुत सारे छोटे-छोटे मन्दिर भी देखे और एक महात्मा जी को भी देखा जो एक ही पैर पर खडे भक्ति मे लीन थे उनके पैर अत्याधिक सूज चुके थे जैसे-जैसे हम आगे बढते गए हमारे उत्साह पर थकावट भारी पडने लगी अभी तक हम लगभग १५ कि.मी. चल चुके थे और अभी ६-७ कि.मी. का रास्ता और तय करना था साथ-साथ मे हम कही-कही बैठ कर थोडी देर आराम करते और फिर आगे चल पडते। शाम ढलती जा रही थी अन्धेरा गहराता जा रहा था आकाश मे तारे चमकने लगे थे और चाँद अपनी चाँदनी बिखेरने लगा था सुनसान मार्ग पर चलते-चलते हम लोग डर भी रहे थे लेकिन परिक्रमा मार्ग पर और भी बहुत से लोग हमारे आगे-पीछे है यह सोच कर चलते जा रहे थे। हाँ अब हमे-मम्मी-पापा ने अकेले आगे निकलने से मना कर दिया था और अपने ही साथ रहने को कहा वैसे भी अब तक तो हमारी सारी हिम्मत जवाब दे चुकी थी ,बस किसी तरह से रास्ता नापना था न जाने हम कैसे चल रहे थे हम सब के पैरो मे छाले पड़ चुके थे अपना ही पैर उठाने मे लगता था मनो भार जैसेउठा कर रख रहे । किसी तरह रात के लगभग साढे दस बजे तक हमने श्री गोवर्धन जी की परिक्रमा पूरी कर ली और मानसी गन्गा (जिसको गन्गमा भी कहते है )पर पहुँचे ,हाथ-मुँह धोया और एक धर्मशाला मे रात काटने के लिए गए गए क्या जाते ही औन्धे मुँह ऐसे गिरे कि सोए-सोए ही मम्मी ने खाना खिलाया और अगले दिन कोई दस बजे तक बिना हिले-डुले सोए ही रहे जब सो कर उठे तो बहुत तरो-ताज़ा लगा इस थोडी सी मुश्किल किन्तु बहुत सुहानी सी पैदल यात्रा को लगभग १७-१८ वर्ष बीत चुके है लेकिन उसकी याद अभी तक दिलो-दिमाग मे तरो-ताज़ा है

गोवर्धन पूजा की कहानी मै आपको कल सुनाऊँगी कि इसको क्योँ पूजा जाता है आज आप सबको दीवाली की मङ्गल-कामनाएँ


दीपावली पर एक प्यारा संदेश

प्यारे बच्चो,

दीपावली की शुभकामनाएं इन पंक्तियों के माध्यम से भेज रही हूँ |

दीवाली !

अमावास भरी रात !
जगमग - जगमग !रोशन करते दुनिया को -
तारे हों या दीप |
एक माला में गुथे हुए
देते हैं संदेश
मुस्कुराते रहो -जीवन के अंधियारों में ,
जलाओ आशाओं के दीप !

(जसप्रीत कौर )




दीपावली पर संदेश

सब करते हैं, ये उम्मीद, आयें लक्ष्मी द्वार पे उनके, तो हमें यह कुछ पल मिलते हैं, अपने रोजगार से अलग अपने चेहरों पर एक मुस्कान लाने के लिए और हम सोचते हैं कि इस बार की तरह ही अगले वर्ष भी यह धूम फिर मचेगी, फिर मचेगी, हाँ फिर मचेगी |
--पाखी मिश्रा


दीपावली -त्योहार रोशनी का

दीपावली के शुभ अवसर पर सबसे पहले सबको बहुत सा प्यार और शुभकामनाएं, तो इस बार मेरे मन में कुछ विचार हैं, उनको एक कविता के द्बारा प्रस्तुत करना चाहूंगी |
शुभ कामनाएं एवं बधाईयाँ
सुने हम सब राम की कहानियां,
हर तरफ़ खुशियों के भण्डार
जाएँ हम एक दूसरे के द्वार
लेकर हाथ में बहुत से उपहार ,
खुशी और उल्लास की लहर छा जाए ,
मिलकर हम सब ऐसे गीत गायें ,
सजाएं अपने घर को दीयों और मोमबत्तियों से |
जो फैलाएं रोशनी दूर दूर तक ,
नए नए कपड़े पहन कर ,
लिए हाथ में ढेर से फल ,
चढाएं हम लक्ष्मी और गणेश को ,
करें पूजा उनकी हम शाम को
इस दिन को हम कर लेते हैं अपने यादगार पलों में शामिल ,
क्यूँकि साल में एक ही बार तो आता है यह त्योहार
--पाखी मिश्रा
(लेखिका बाल भारती विद्यालय में 6वीं कक्षा की छात्रा हैं)


Monday, October 27, 2008

दिवाली पर एक बच्चे द्वारा बना चित्र


दीवाली रोशनी का त्यौहार है। यह पूरे भारत का त्यौहार है। लोग लक्ष्मी जी और गणेश जी की पूजा करते हैं। लोग घरों और मंदिरों में दीपक जलाते हैं। लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ देते हैं।

-प्रणव गौड़ (कुश) [प्रथम कक्षा, कुलाची हंसराज मॉडेल स्कूल, अशोक विहार (दिल्ली)]



दीवाली


मनाएँ हम मिलकर दीवाली

ना हो प्रकाश से कोई जगह खाली

अन्धकार से प्रकाश में जाना है

जीवन में प्रकाश लाना है

दीवाली के दीपक से यही सीख लेना हैं

सारे जग से अंधकार मिटाना है

दुनियाँ में प्रकाश फैलाना है

हरेक जगह प्रकाश फैलाना है॥


महेश कुमार वर्मा


Sunday, October 26, 2008

आओ इक दीप जलाते हैं



आओ इक दीप जलाते हैं।
अँधेरों को दूर भगाते हैं।
बम और पटाखों से डरी
दुनिया को सुखी बनाते हैं।
आओ इक दीप जलाते हैं।

साम्प्रदायिकता का राक्षस
आतंक फैला रहा है
कुत्सित विचारों का ज़हर
बढ़ता ही जा रहा है
इसे प्रभाव हीन बनाते हैं।
सद् भावनाएँ जगाते हैं

आओ इक दीप जलाते हैं
दुनिया को सुखी बनाते हैं।


मँहगाई रूपी सुरसा
बढ़ती ही जाती है
जन सामान्य की बुद्धि
भ्रमित हो जाती है
आओ इसका आकार घटाते हैं
अपनी शक्ति से इसे डराते हैं

आओ इक दीप जलाते हैं
दुनिया को सुखी बनाते हैं।


Saturday, October 25, 2008

नन्हा दीया



जल रहा था
नन्हा दीया
रौशनी फैलाने को ,
दे रहा था प्रेरणा हम सभी को
अन्धेरे से लड़ जाने को
घर के इस छोटे आँगन में
चन्द खुशबू बिखराने को,
जल रहा था, नन्हा दीया
तभी उस बड़े घर में
बिजली की झालर जगमगा उठी
प्रकाश से उसके
गली तो मानो खिल उठी
गर्व से भरी वो
इतराने लगी
उसके नन्हे बल्ब
जुगनुओं से
जल बुझ जल बुझ करने लगे
जो देखता
प्रशंसा उसकी करता
उसकी रंगीनियों को
नैनों में अपने भरता
ख़ुद को समझ श्रेष्ठ
देखा उसने दिए को
हिकारत की नज़र से
तू कहाँ मै कहाँ
दंभ से कहने लगी
पर दीया मंद मंद मुस्कुरता हुआ
हवाओं से अठखेलियाँ करता रहा
झालर के तानो से
तनिक भी विचलित न हुआ
तभी गई बत्ती अचानक
बुझ गई सारी झालर
खो गई वो सुन्दरता
जिस पे इतर रही थी झालर
पर वो नन्हा दीया
अंधियारे को भागता रहा
उस गली के लोगों को
उम्मीद की किरण दिखलाता रहा


रचना श्रीवास्तव


दीवाली /बन्दी छोड़ दिवस

नमस्कार बच्चो,
अभी दीवाली की तैयारी तो खूब धूम-धाम से चल रही होगी। आप लोग भी खूब मजे ले रहे होंगे, तो चलो आज मैं आपको वो बाते बताऊँगी जिसके लिए यह त्योहार पूरे भारतवर्ष में विभिन्न धर्मों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लक्ष्मी ,गणेश जी की पूजा की जाती है,पूरे घर में दीपक जलाए जाते हैं, सजावट की जाती है, रंगोली बनाई जाती है और खूब मिठाइयाँ और उपहार बाँटे जाते हैं

१. श्री राम जी की कहानी तो आप सब लोगों ने सुन रखी होगी कि इस दिन प्रभु श्री राम चौदह वर्ष का वनवास काट कर लक्ष्मण और सीता जी के साथ अयोध्या वापिस आए थे इस खुशी में अवधवासियों ने दीपमाला की थी तभी से यह त्योहार हिन्दू धर्म में बड़े उत्साह/उल्लास से मनाया जाता है

आपको पता है इसको जैन धर्म और सिक्ख धर्म में भी उतने धूम-धाम से मनाया जाता है

२. सिक्ख धर्म में इस दिन को "बन्दी छोड़ दिवस" भी कहा जाता है. इस दिन सिक्खों के छठें गुरु "श्री गुरु हरगोबिन्द" जी १६१९ ई. में ग्वालियर के किले से मुगल बादशाह जहाँगीर की कैद से अपने ५२ शिष्यों के साथ रिहा हो कर अमृतसर "श्री हरमन्दिर साहिब" पहुँचे थे. उनकी रिहाई की खुशी में उनके शिष्यों द्वारा धूम-धाम से खुशी मनाई गई. तभी से यह दिन सिक्ख इतिहास में "बन्दी छोड़ दिवस" के रूप में मनाया जाता है.

३. जैन धर्म में यह दिन खास महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन "महावीर स्वामी "जी को निर्वाण प्रप्ति हुई थी

४. एक और बात आपको पता है पाण्डवों को भी १२ वर्ष का वनवास काटना पड़ा था और कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि को वो अपना वनवास पूरा कर वापिस आए थे

५.कुछ जगहों पर इसे बिजाई के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है

इस दिन लोगों द्वारा खूब पटाखे/फुलझड़ियाँ भी चलाए जाते है। त्योहार खुशी से मनाना चहिए। लेकिन साथ में यह ध्यान भी रहे कि कोई नुक्सान न हो। अब लोगो द्वारा कितने पटाखे चलाए जाते है और उनसे निकलने वाला जहरीला धुआँ नभ में फैलता है और वायु को दूषित कर देता है। उसी वायु में हम सब साँस लेते हैं और वही जहर हमारे अन्दर कई बीमारियों का कारण बनता है जाने-अनजाने हम अपने वातावरण को दूषित करते हैं। तो बच्चो आप दीवाली खूब धूमधाम से मनाना लेकिन अपने पर्यावरण का भी ध्यान रखना। क्यों न हम दीवाली को नए अन्दाज मे मनाएँ कुछ ऐसा सोचे कि चहुँओर खुशहाली छा जाए। आपने दीवाली कैसे मनाई मुझे बताना जरूर। यह त्योहार अधर्म पर धर्म की, अन्धेरे पर प्रकाश की विजय का त्योहार है। इस दिन सब भेद-भाव तथा नफरत को मिटा कर ही हम त्योहार का असली आनन्द ले सकते है। तो आएँ हम सब मिलकर नफरत की दीवारो को मिटा सद्-व्यवहार और सद्-विचारो का प्रकाश फैलाएँ


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दीपावली की आप सब को हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं- सीमा सचदेव


Friday, October 24, 2008

दुनिया खूब है भाती

जब भी देखूँ मै दुनिया, यह दुनिया खूब है भाती ।
मन में मेरे प्यार जगाती, दुनिया खूब है भाती ॥

हंस हंस कर जब खिले फूल मुझे अपने पास बुलाते ।
कोमल सा अहसास दिलाती, दुनिया खूब है भाती ॥

सुबह सवेरे आसमान में दिखता लाल सा गोला |
मन में फिर विश्वास जगाती दुनिया खूब है भाती ॥

ऋतुएं नियम से आती जातीं, खुशियां देकर जातीं ।
खुशियां बांटो जीना सीखो, दुनिया खूब है भाती ॥

प्रकृति सदा देती है हमको, जीवन के साधन सभी ।
देना हर पल हमें सिखाती, दुनिया खूब है भाती ॥

कुहुक कुहुक कर मीठी बोली, बोल के कोयल मोहे ।
बोलो मीठे बोल सुनाती दुनिया खूब है भाती ॥

घट कर चंदा गायब होता, फिर बढ़ कर होता बड़ा ।
न घबराना दुख में बताती, दुनिया खूब है भाती ॥

टिम टिम करते लाखों तारे चमक रहे जुगनू गगन ।
जग आलोक बिखेरो कहती दुनिया खूब है भाती ॥

सांझ सवेरे चहक चहक कर चिड़ियां खूब हैं गातीं ।
हंसो हंसाओ जग में हर पल, दुनिया खूब है भाती ॥

फल से जितना लद जाता, उतना ही झुक जाता पेड़ ।
मधुर मृदुल हम भी बन जाएं, दुनिया खूब है भाती ॥

तरह तरह के प्राणी, पक्षी, जीव, जंतु और जलचर ।
कण-कण में है बसा हुआ प्रभु, दुनिया खूब है भाती ॥

कवि कुलवंत सिंह


नरक चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी / छोटी दीवाली

नमस्कार बच्चो ,
आज मैं फिर आई हूँ आपके सम्मुख एक नई कहानी और जानकारी के साथ।
आप तो जानते ही है कि दीवाली पाँच दिन का उत्सव है। कल मैंने आपको
पहले दिन "धनतेरस"की कहानी सुनाई थी आज बताऊँगी दीवाली के दूसरे
दिन का रहस्य, जिसको छोटी दीवाली भी कहा जाता है। इसके साथ बहुत सी
बाते जुड़ी है मुख्य कथा है-नरकासुर वध की इस लिए इस त्योहार को
नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन भी लोगों द्वारा दीपक जला कर घरों
को रोशन किया जाता है, इस लिए इसे "छोटी दीवाली" भी कहते हैं।

तो यह सुनो छोटी दीवाली की कहानी:-

छोटी दीवाली की कहानी
सुनाती थी मुझे मेरी नानी
आज मैं तुम सबको सुनाऊँ
एक नया इतिहास बताऊँ
दानव था इक नरकासुर
था वो बड़ा ही ताकतवर
राज्य उसका था विशाल
पर देवों के लिए था काल
देवों पर पा ली विजय
बन गया नरकासुर अजय
देव-माता का किया अपमान
खाली कर दिए उसके कान
अदिती माँ के कुण्डल लिए छीन
किए कार्य उसने हीन
पुत्री उसकी सोलह हजार
रखा उनको अपने दरबार
उनको अपना गुलाम बनाया
साधु सन्तों को सताया
पर बच्चो यह रखना ध्यान
ज्यादा नहीं चलता अभिमान
इक दिन टूट गया अहंकार
हो गया श्री कृष्ण अवतार
नरकासुर को मार गिराया
देव-कन्याओं को बचाया
सबके संग में ब्याह रचाया
सबको अपनी रानी बनाया
देव-माता के ले लिए कुण्डल
स्वर्ग में फिर से हो गया मंगल
सबने मिलकर खुशी मनाई
छोटी दीवाली यह कहलाई

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नरकासुर प्रज्योतिश्पुर जो आजकल दक्षिण नेपाल में है का राजा था
देवों की माता का नाम अदिती था

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२. बच्चो, इस दिन के साथ और भी कथाएँ जुड़ी है आपको याद है ना
कुछ दिन पहले मैंने आपको "ओणम" की कहानी सुनाई थी

वह कहानी भी इसी दिन के साथ जुड़ी है। मैं जानती हूँ आपके मन में बहुत
से प्रश्न उठ रहे होंगे कि ओणम का त्योहार तो बहुत दिन पहले था और
"छोटी दीवाली" अब आ रही है, तो यह कहानी उससे सबंधित कैसे?
यही सोच रहे है न आप। चलो मैं आपको बताती हूँ।
इस दिन विष्णु भगवान ने वामन अवतार लेकर " राजा बलि "
का वध किया था कहानी तो आप जानते ही है लेकिन फिर दया
करके "राजा बलि " को वर्ष में एक बार वापिस आने का वरदान भी
दिया था। उसी वरदान के कारण राजा बलि वर्ष में एक बार जब
वापिस आते हैं तो "ओणम " का त्योहार मनाया जाता है
और राजा बलि का वध क्योंकि कार्तिक मास की चौदहवी तिथि को
हुआ था, इस लिए यह त्योहार दीपावली से एक दिन पहले
छोटी दीवाली के रूप में मनाया जाता है।
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३. इस दिन के साथ एक और कथा भी सम्बन्धित है। आपने श्री राम
की कहानी तो सुनी ही होगी कि दीपावली के दिन वह चौदह वर्ष का वनवास
काट कर अयोध्या वापिस आए थे। पर क्या आपको पता है श्री राम जी ने
अपने वापिस आने से पहले हनुमान को अयोध्या अपने वापिस आने
का समचार देने हेतु भेजा था और इस दिन हनुमान ने अयोध्या
वासियों को राम के वापिस आने का समचार सुनाया था और लोगों
ने खुशी में घरों में दीपमाला की थी तभी इसको छोटी दीवाली कहा जाता है
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४. एक और बात इस दिन हनुमान जी का जन्मोत्सव
( श्री हनुमान ज्यन्ती) भी मनाया जाता है
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५॰ बंगाल में इसको " काली चौदस " कहा जाता है और
देवी माँ काली का जन्मोत्सव मनाया जाता है बड़े से पण्डाल
में माँ काली की मूर्ति प्रतिष्ठित कर धूमधाम से पूजा की जाती है

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तो बच्चो, कैसी लगी आपको यह जानकारी, बताना जरूर
आप सबको छोटी दीवाली की हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएँ ......सीमा सचदेव


Thursday, October 23, 2008

धन तेरस

नमस्कार बच्चो ,
अभी त्यौहारों का मौसम चल रहा है दुर्गा पूजा, दशहरा, करवा चौथ, धनतेरस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज.....खूब मजे ले रहे है आप लोग। क्यों न ले आखिर हम भारत वासी हैं और हर त्योहार को उत्साह-उल्लास से मनाना तो हमारी परम्परा है। दीपावली के लिए तो आप सब ने सुन रखा होगा कि हम क्यों मनाने है?
दीपावली से दो दिन पहले "धनतेरस " का त्यौहार भी मनाया जाता है धन का अर्थ है लक्ष्मी और तेरस का अर्थ है तेरहवाँ दिन अर्थात् यह त्योहार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि को मनाया जाता है इसको धन-त्रयोदशी भी कहा जाता है आपको पता है इस दिन लोग कुछ न कुछ खरीददारी अवश्य करते हैं। मुख्य रूप से बर्तन। आजकल तो सोने और चाँदी के गहने /बर्तन खरीदने का प्रचलन बढ़ रहा है और लोग इस दिन एक-दूसरे को उपहार भी बाँटने लगे हैं। चलो आज मैं आपको वो कहानी सुनाती हूँ जिसके साथ यह त्योहार जुड़ा है :-


समुद्र मंथन
धन तेरस की सुनो कहानी
कथा बड़ी ही जानी-मानी
इन्द्र था देवलोक का भूप
अति-सुन्दर था उसका रूप
धन-धान्य था अति अपार
स्वर्ग में सजता था दरबार
हो गया उसको बहुत अभिमान
भूल गया सबका सम्मान
अहम ने उसको कर दिया अन्धा
भूल गया वो सब मर्यादा
आए इक दिन ऋषि दुर्वासा
इन्द्र से मिलने की थी आशा
पर न इन्द्र ने दिया सम्मान
हुआ ऋषि का घोर अपमान
दे दिया देवराज को श्राप
जाओ लगेगा तुमको पाप
कुछ न रहेगा तेरे पास
यह मेरा है अटल अभिशाप
अब तो इन्द्र लगा पछताने
भूल पे अपनी आँसू बहाने
दानवों को अब मिल गया मौका
दे दिया देवराज को धोखा
लिया उन्होंने स्वर्ग को जीत
इन्द्र का सुख बन गया अतीत
हो गया उसका चेहरा मलीन
बन गया वो राजा से दीन
धनवंतरि
गए यूँ बीत बहुत से साल
आया वृहस्पति को ख्याल
क्यों न वह कोई करे उपाय
देवराज का कष्ट मिटाए
गया ब्रह्म विष्णु के पास
बोला मैं हूँ बहुत उदास
दुखी बड़ा है मेरा शिष्य
उज्ज्वल कर दो उसका भविष्य
सोचा उन्होंने एक उपाय
जो सागर मन्थन किया जाए
अमृत उसमें से निकलेगा
जो कोई उसका पान करेगा
हो जाएगा वह अमर
नहीं रहेगा फिर कोई डर
फिर से इन्द्र को मिलेगा राज
पर अति कठिन है यह सब काज
जो असुरों का मिल जाए साथ
तो बन जाए बिगड़ी बात
वृहस्पति ने दानवों को बुलाया
और अमृत का राज बताया
लालच में दानव आ गए
देवों के संग में मिल गए
मन्दराचल पर्वत को लाए
वासुकि नाग को रस्सी बनाए
मन्दराचल की बनी मथानी
मथने लगे सागर का पानी
सर्व-प्रथम निकला कालकुट
पी गए उसको जटा जुट
गले में अपने विष को दबाए
तभी शिव नील-कण्ठ कहलाए
उच्चश्रवा घोड़ा फिर आया
कल्पवृक्ष देवों ने पाया
कामधेनु गाय भी आई
उनके साथ फिर लक्ष्मी आई
आखिर में धनवन्तरि आया
अमृत कलश हाथों में उठाया
देव-दानवों का मन ललचाया
विष्णु ने मोहोनी रूप बनाया
अमृत देवों को पिलाया
स्वर्ग उन्हें वापिस दिलवाया
तेज इन्द्र ने फिर से पाया
दुर्वासा का श्राप मिटाया
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प्यारे बच्चो, "धनवन्तरि " को देवों का वैद्य भी कहा जाता है क्योंकि उसी के दिए अमृत
से देवो को अमरता और इन्द्र को अपना खोया तेज़ वापिस मिला था

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धनतेरस की सभी को हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएँ---सीमा सचदेव


मुर्गा-मुर्गी



मुर्गा-मुर्गी चले बाज़ार.
वहाँ ख़रीदा एक अनार.
सोचा आधा-आधा खाएं,
तनिक न कम या ज्यादा पायें.
कालू कुत्ता झपटा उन पर.
दोनों भागे नीची दुम कर.
याद नहीं आयी यारी.
भूले कुकडू-कूँ सारी.
गिरा अनार उछलकर दूर.
दाने फैल गए भरपूर.
चौराहे पर फिसल गए.
स्कूटर से कुचल गए.
मुर्गा-मुर्गी पछताए.
क्यों अनार घर न लाये.
बैठ चैन से खा पाते.
गप्प मारते-मस्ताते.

-आचार्य संजीव 'सलिल'


Wednesday, October 22, 2008

दीपावली की शुभकामनाएँ


आई दिवाली आई दिवाली
ढेरों खुशियाँ लाई दिवाली
मिलकर खाएँगे मिठाई

सजेंगें घर मे वन्दनवार
मिलेंगें ढेरों उपहार
महालक्ष्मी का होगा पूजन
लड्डू खाएँगे गजनन्दन
नए-नए कपड़े हम पहनेगे
घूम-घाम कर मजे करेंगें

जगमग-जगमग दीप जलेंगें
फुलझडियाँ और पटाखे चलेंगें
होगी रौशन काली रात
तम मे भी होगा प्रकाश
महालक्ष्मी घर मे आएगी
ढेरों खुशियाँ दे जाएगी
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भोला का सपना

आया दीपों का त्योहार
सज रहा था सारा घर-बार
देख रहा था सबकुछ भोला
जाकर वो पापा से बोला
क्यों हो रहे सब इतने तैयार
सज रहा क्यों सबका घर-बार
खूब पटाखे और मिठाई
क्यों बाज़ार मे सबने सजाई
भोले भोला की भोली बात
पापा को जैसे मिली सौगात
प्यार से फिर उसको समझाया
साज-सज्जा का राज बताया
बताई राम-लखन की कहानी
कथा बडी है जानी मानी
चौदह वर्ष काटा वनवास
फिर आया था दिन यह खास
जिस दिन वो घर वापिस आए
लोगों ने घर-बार सजाए
खुशी मे इसकी दीप जलाए
तो यह दीपावली कहलाए
करते महालक्ष्मी का पूजन
ताकि हो जाए माँ प्रसन्न
हो धन -धान्य की बरसात
मिट जाए अँधियारी रात
चलाएँगे फुलझडियाँ और पटाखे
सोएँगे खूब मिठाई खा के
आएगी लक्ष्मी अपने घर
देगी हमे मन चाहा वर
खुश था भोला सुन के बात
दीपावली की आएगी रात
महालक्ष्मी को वो देखेगा
जो चाहेगा वो माँगेगा
सोचते ही भोला सो गया
सुन्दर सपनो मे खो गया
देखा उसने सपना अजीब
हो गए सारे लोग गरीब
लक्ष्मी नही कहीं भी आई
न ही देखी कोई मिठाई
रोने लगा यह देख के भोला
लक्ष्मी ने आ दरवाजा खोला
पूछा भोला ने क्यों नही आई ?
न ही हमको मिली मिठाई
बोली लक्ष्मी,कैसे आऊँ ?
क्या-क्या मै तुमको बतलाऊँ ?
करते सब मेरा अपमान
कितना करते है नुकसान
देती हूँ मै इसलिए धन
ताकि सुखमय हो सबका जीवन
पर न करे अच्छा उपयोग
फैलाएँ कितने ही रोग
छोडे सब इतने पटाखे
फैले धुआँ सब नभ मे जा के
दूषित हो जाए शुद्ध वायु
हो जाए कम जीवो की आयु
ऐसी वायु मे ले जो साँस
बिमारियाँ उसमे पनपे खास
होता है कितना ही शोर
सुनने मे भी लगता जोर
व्यर्थ मे लक्ष्मी को जलाएँ
फिर घर मे पूजा करवाएँ
मै तो बसती हूँ कण-कण मे
खुश होती शुद्ध पर्यावरण मे
पर्यावरण जो न हो शुद्ध
तो मै हो जाती हूँ क्रुद्ध
वहाँ पे मै फिर नही रह पाऊँ
कभी भी फिर वापिस न आऊँ
जो मुझे बुलाना चाहते हो घर
करो सदा लक्ष्मी का आदर
न फैलाओ कोई प्रदूषण
शुद्ध रखो अपना पर्यावरण
जो सब मिलकर वृक्ष लगाओ
तो मुझे अपने घर पर पाओ
होगी जो चहुँ ओर हरियाली
तो होगी हर दिन दिवाली

मानोगे जो मेरी बात
तो मै आऊँगी हर रात
कुछ बच्चे ऐसे भी यहाँ पर
कपडे नही है जिनके तन पर
जिनको नही मिलता है खाना
उनके साथ त्योहार मनाना
एक बात का रखना ध्यान
खतरे मे न हो किसी की जान
नही लेना कोई सस्ती मिठाई
जिसमे घटिया चीजे मिलाई
खाकर जिसको हो बीमार
करना पडेगा फिर उपचार
फिर मै आऊँगी घर पर
दूँगी तुम्हे मन चाहा वर
कह कर लक्ष्मी माँ हुई ओझल
भोला की आँखे गई खुल
जाकर उसने सबको बताया
लक्ष्मी का सन्देश सुनाया
सबकी बात समझ मे आई
मिलकर इक योजना बनाई
खूब लगाए पौधे मिलकर
फिर सबने अपने घर जाकर
कई सारे पकवान बनाए
भूखे बच्चों को खिलाए
दिए उनको कपड़े उपहार
मनाया दिवाली का त्योहार
.................
.................
बच्चो तुम भी रखना ध्यान
पर्यावरण न हो नुकसान
खुशी-खुशी त्योहार मनाना
अपना वातावरण बचाना

******************************


दीपावली के पावन अवसर पर हिन्द युग्म परिवार तथा
सभी हिन्दवासियोँ को हार्दिक बधाई एवम् ढेरोँ शुभ-कामनाएँ........सीमा सचदेव


नन्हीं कलाकार .. भोला बचपन














Tuesday, October 21, 2008

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब


नमस्कार बच्चो ,
आप जानते है कि इन दिनो पावन ग्रन्थ "श्री गुरु ग्रन्थ साहिब " जी के गुरु रूप मे ३०० सौ साल पूरे होने का जश्न पूरे धूम-धाम से मनाया जा रहा है चलो मै आपको सँक्षिप्त मे जानकारी देती हूँ " श्री गुरु ग्रन्थ साहिब" जी के बारे मे...........

" श्री गुरु ग्रन्थ साहिब " जी को ग्यारहवेँ गुरु के रूप मे पूज्य माना जाता है सिक्ख धर्म मे १० गुरु हुए :- (१)श्री गुरु नानक देव जी (२) श्री गुरु अन्गद देव जी (३) श्री गुरु अमर दास जी (४) श्री गुरु राम दास जी (५) श्री गुरु अर्जुन देव जी (६)श्री गुरु हरगोबिन्द जी(७)श्री गुरु हर राय जी(८)श्री गुरु हरकृष्ण जी (९)श्री गुरु तेग बहादुर जी (१०)श्री गुरु गोबिन्द सिँह जी

दशम गुरु "श्री गुरु गोबिन्द "जी ने आगे के अपने शिष्योँ को "श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी " को गुरु रूप मानने का आदेश देते हुए कहा :-
"सब सिक्खन् को हुक्म है
गुरु मानयो ग्रन्थ "
"श्री गुरु गोबिन्द सिँह" जी ने १७०८ ई. मे देह त्यागी और उनके बाद ग्यारहवेँ गुरु के रूप मे "श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी " विराजमान है

"श्री गुरु ग्रन्थ साहिब" मे १२वी से १७वी सदी के मध्य हुए विभिन्न गुरुओ ,सन्तो ,भक्तोँ ,कवियो की वाणी दर्ज है यह सब विभिन्न मतोँ धर्मो और जातियोँ से सम्बन्धित थे
"श्री गुरु ग्रन्थ साहिब" को "आदि ग्रन्थ "भी कहा जाता है आदि का अर्थ है पुरातन और ग्रन्थ का अर्थ है धार्मिक पुस्तक
पाँचवे गुरु "श्री गुरु अर्जुन देव जी" ने १६०४ ई. मे अमृतसर(पन्जाब ) मे" आदि ग्रन्थ" मे सँकलित विभिन्न भक्तोँ ,कवियो ,गुरुओँ ,स्न्तो की वाणी का सँग्रह कर इसका मूल रूप तैयार किया इसका मुख्य उद्देश्य लोगो तक एक ईश्वर का सन्देश पहुँचाना था "श्री गुरु अर्जुन देव" जी की देख-रेख मे इसे "भाई गुरदास" जी द्वारा लिखा गया तथा "भाई बानो" जी द्वारा इसका मूल रूप तैयार किया गया और १६०४ ई. मे इसे "श्री गुरु अर्जुन देव जी" द्वारा इसे

"श्री हरमन्दिर साहिब " मृतसर मे स्थापित किया गया "बाबा बुड्ढा" जी को पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया
दशम गुरु श्री "गुरु गोबिन्द सिँह" जी द्वारा दोबारा से "भाई मनी सिँह" जी की सहायता से इसका पुन: नव-निर्माण "श्री दमदमा साहिब गुरुद्वारा" मे किया गया तथा इसमे नवम गुरु

श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी को भी शामिल किया गया 'आदि ग्रन्थ" को "श्री गुरु ग्रन्थ साहिब"का नाम दिया गया गुरु का अर्थ है अध्यापक ग्रन्थ का अर्थ है "धार्मिक पुस्तक " श्री तथा साहिब शब्द इस धार्मिक ग्रन्थ को आदर देने हेतु जोडे गए
इसमे
छ: गुरुओँ:- श्री गुरु नानक देव जी ,गुरु अन्गद देव जी ,गुरु अमर दास जी ,गुरु राम दास जी , गुरु अर्जुन देव जी तथा श्री गुरु तेग बहादुर जी
सत्रह सन्तोँ/भक्तोँ :-कबीर ,फरीद ,नामदेव, बानी ,त्रिलोचन ,जयदेव,सुन्दर ,परमानन्द ,सदना ,रामानन्द ,धन्ना,पीपा ,सैन,सूरदास ,भीखन ,मरदाना
दो कवियोँ:-बलवण्ड तथा सत्ता
तथा
ग्यारह भाटोँ/सिख गुरुओँ के कवियोँ:- मथरा दास , हरबन्स ,जलप ,ताल्या ,साल्या ,भाल , कुलह सहर ,नल ,किरत ,गैयन्द तथा सदरन्ग
की वाणी दर्ज है
इस सबको श्री "गुरु गोबिन्द सिँह "जी ने

"प्रक्ट गुराँ की देह "
कहकर साक्षात गुरु की उपाधि दी

इस पावन अवसर पर सभी हिन्दवासियोँ को हार्दिक बधाई एवम् शुभ-कामनाएँ -SEEMA SACHDEV


बंदर मामा

बंदर मामा देख आइना काढ़ रहे थे बाल,
मामी बोली, छीन आइना- 'काटो यह जंजाल'.
मामी परी समझकर ख़ुद को, करने लगीं सिंगार.
मामा बोले- 'ख़ुद को छलना है बेग़म बेकार.
हुईं साठ की अब सोलह का व्यर्थ न देखो सपना'.
मामी झुंझलायीं-' बाहर हो, मुंह न दिखाओ अपना.
छीन-झपट में गिरा आइना, गया हाथ से छूट,
दोनों पछताते, कर मलते, गया आइना टूट.
गर न लडाई करते तो दोनों होते तैयार,
सैर-सपाटा कर लेते, दोनों जाकर बाज़ार.
मेल-जोल से हो जाते हैं 'सलिल' काम सब पूरे,
अगर न होगा मेल, रहेंगे सारे काम अधूरे.

-आचार्य संजीव 'सलिल'


Monday, October 20, 2008

रुमाल

प्रत्येक शनिवार को सभी बच्चों को सफेद गणवेश पहन कर आना होता है। सभी सफेद कपडे़ पहन कर ही आते परन्तु कई बच्चे रुमाल गन्दा लेकर आते।

एक बार उन्हें सु्धारने के लिये टीचर ने कहा "जिस बच्चे का रुमाल सबसे सफेद होगा उसे पुरस्कृत किया जायेगा"।

रघु के कपड़े सबसे साफ होते। रघु विद्यालय का सबसे स्वच्छ छात्र था। अगले शनिवार सभी बच्चे साफ धुला रुमाल लेकर आये। प्रार्थना सभा में सबसे सफेद रुमाल का चयन किया गया। रघु के पास रुमाल न था। टीचर ने पूछा तो वह चुप रहा। टीचर को गुस्सा आ गया। रघु की नन्ही हथेली पर हल्का सा डंडा मारा। भोजनावकाश में टीचर ने देखा रघु की गोद में रुमाल बिछा था और वह अपना कलेवा कर रहा था। रुमाल गन्दा था और उस पर कुछ धब्बे भी लगे थे। टीचर उसके पास गई और पूछा ´अब रुमाल कहां से आ गया´ ?
रघु गरदन झुकाये चुप रहा।
उसके पास बैठे बच्चे ने बताया ´´दीदी असलम गिर गया था, उसके घुटने से खून निकलने लगा तो इसने अपना रुमाल वहाँ बांध दिया था´´। टीचर के आँसू छलक पड़े । जहाँ डंडा मारा था उसे हथेली को चूम लिया। खून के धब्बों के मध्य रघु के रुमाल की सफेदी जगमगा रही थी।
दूसरे दिन सुबह प्रार्थना सभा में, एक और पुरस्कार दिया गया ´´सबसे उज्ज्वल रुमाल´´ ।

॰॰॰विनय के जोशी


Sunday, October 19, 2008

साधु और चूहा

नमस्कार प्यारे बच्चो ,
आपके लिए हमने एक अति लघु प्रयास किया है " हितोपदेश " की
कुछ कहानियोँ को अत्यन्त सहज -सरल भाषा मे कथा-काव्य शैली मे
लिखने का यह कहानियाँ शायद आपने पहले भी पढी-सुनी होँगी
काव्य-कथा के रूप मे पढ कर आपको कैसा लगा ,बताना जरूर
आपके अच्छे सुझावोँ का भी इन्तजार रहेगा तो यह सुनो पहली कहानी...........

साधु और चूहा

इक जञ्गल मे था इक साधु
जानता था वह पूरा जादु
करता रहता प्रभु की भक्ति
आ गई उसमे अदभुत शक्ति
इक दिन उसने लगाई समाधि
गिरा एक चूहा आ गोदि
साधु को आई बहुत दया
चूहे को उसने पाल लिया
पर इक दिन इक बिल्ली आई
देख के चूहे को ललचाई
चूहा तो मन मे गया डर
साधु का हृदय गया भर
उसने अपना जादु चलाया
और चूहे को बिल्ली बनाया
ता कि बिल्ली न खा पाए
और चूहा आजाद हो जाए
कुछ समय तो सुख से बिताया
इक दिन वहाँ पे कुत्ता आया
बिल्ली के पीछे वह भागा
फिर साधु का जादु जागा
बिल्ली से कुत्ता बन जाओ
और कुत्तो से न घबराओ
खुश था चूहा कुत्ता बनकर
घूमे वह जञ्गल मे जाकर
फिर इक दिन इक चीता आया
कुत्ते को उसने खूब भगाया
भागा कुत्ता साधु के पास
बोला मेरा करो विश्वास
खा जाएगा मुझको चीता
फिर कैसे मै रहुँगा जीता
साधु को आ गया रहम
बोला !न पालो यह वहम
जाओ तुम चीता बन जाओ
सुख से अपना जीवन बिताओ
कुत्ते से चीता बन गया
नव-जीवन उसको मिल गया
भले ही वो बन गया था चीता
पर दिल तो चूहे का ही था
चूहे से बढ कर नही कुछ अच्छा
यह साधु नही बिल्कुल सच्चा
लोगो की बातो मे आया
चूहे को चीता क्योँ बनाया
सोचे ! मेरी खोई पहचान
माना न साधु का अहसान
गुस्से से गया वह भर
झपट पडा वह साधु पर
साधु को अब हुआ अहसास
नही करो किसी पर विश्वास
फिर से उसको चूहा बनाया
और फिर उसको यह समझाया
दुष्ट नही बदले स्वभाव
अच्छो को देगा वह घाव
बाते करना लोगोँ का काम
केवल बिगडे अपना दाम
....................
....................
बच्चो तुम भी रखना ध्यान
बडोँ का न करना अपमान
लोगोँ की बातोँ मे न आना
अपनी समझदारी अपनाना


दादी जी की चिड़िया

रोज सवेरे उठकर दादी
हैं, छितराती दानों के कन,
दानों के कन छितराने पर
कर देती घंटी से टन-टन ...

घंटी की टन -टन सुनकर के
पहले काला कौआ आता ,
काँव-काँव कर जोर -जोर से
सब चिड़ियों को न्योता बुलाता |

तीन-चार गौरयाँ आतीं
पाँच-सात आते हैं तोते ,
और कबूतर के दो जोड़े
जिनके पर चितकबरे होते |

पीली आँख किल्ह्नता आता
तीतर आता, तीतरी आती
भूरे पर की सात बहिनिया
जो कच -कच कर शोर मचाती |

रह -रह इधर-उधर तक-तक कर
सब पंछी दाना खाते हैं,
जहां किसी की आहट पाई
झट सब-के-सब उड़ जाते हैं |

स्रोत -नीली चिड़िया (हरिवंश राय बच्चन )
प्रेषक -नीलम मिश्रा


Saturday, October 18, 2008

बूझो तो जाने

बूझो तो जाने

१.
बीच चौराहे करे कमाल
रँग है इसका लाल-लाल
जब यह अपना रूप दिखाए
तो चलते वाहन थम जाएँ


२.
बीच चौराहे खडी पुकारे
देखो मुझे सारे के सारे
पीली परी है बीच बाज़ार
हो जाओ चलने को तैयार



३.
हरे रँग की मै हू रानी
मै तो हूँ तुम सबकी नानी
जब भी मै कोई करूँ इशारे
भाग पडे सारे के सारे


४.
देखो इधर-उधर फिर चल दो
आजु-बाजु देखो पल दो
देखो काला और सफैद
बोलो मेरा क्या है भेद


Friday, October 17, 2008

तीन घोड़े

नमस्कार प्यारे बच्चो ,
कैसे है आप सब लोग ? आज मै फिर से आई हूँ आपके लिए एक
नई कथा-काव्य के साथ |पढना और बताना जरूर ,कैसी लगी यह कहानी आपको |

तीन घोडे



इक मालिक के तीन थे घोडे
मोटे ,तगडे,लम्बे चौडे
स्फेद्,भूरा और एक था काला
तीनो का ही एक तबेला
पर तीनो नही मिलकर रहते
बुरा एक दूजे को कहते
राम , शाम,कालु थे नाम
मालिक ने दी थी पहचान
सफेद राम और भूरा शाम
कालु काले की पहचान
राम तो स्वयम को समझे सुन्दर
उन दोनो को बोले बन्दर
तुम दोनो भद्दे दिखते हो
और मुझसे समता करते हो
शाम तो गुस्से से भर जाता
पर कालु उसको समझाता
केवल दिखने मे वह सुन्दर
पर दिल काला उसके अन्दर
राम का गर्व तो बढता जाता
दोनो को गाली भी सुनाता
इक दिन गाँव मे लगा था मेला
मेले मे गया सारा तबेला
होनी थी घुडदौड वहाँ पर
मेले मे पहुँचे वे जहाँ पर
मालिक ने तीनो को बुलाया
और दौडने का हुक्म सुनाया
दौडे तीनो जोर लगाकर
गिरा राम कुछ दूर ही जाकर
कालु,शाम तो ऐसे भागे
पहुँच गए वो सबसे आगे
राम का टूट गया अहँकार
हुआ उसका दूसरा अवतार
उन दोनो से कर ली यारी
छोडी अहम की बाते सारी

तुम भी भेद भाव नही करना
छोटा नही किसी को समझना
जाति-पाति न कोई रँग भेद
दोसती मे न करना छेद


राज दुलारे

राज दुलारे जग के प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥

किलकारी से जब घर चहके,
हंसी खुशी से तब घर महके,
देख देख उनको दिल बहके,
मुसकाते जब वह रह रह के,

कोमल फूलों से हैं प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥

भोली सूरत जब दिखलाते,
सबके मन में बस हैं जाते,
प्यार से जो भी पास आते,
इनके ही बन कर रह जाते,

हर बुराई से दूर प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥

जब यह अपनी हठ दिखलाते,
बड़े बड़े भी झुक हैं जाते,
लड़ना भिड़ना सब कर जाते,
भूल पलों में लेकिन जाते,

सच्चा प्रेम जगाते प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥

धार प्रेम की यह बरसाते,
घर घर में खुशहाली लाते,
भगवन इनके दिल बस जाते,
पावन निर्मल प्यार जगाते,

सब के मन को भाते प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, October 16, 2008

ग्लोबल वार्मिंग - ग्लोबल वार्निंग....

कच्ची रोटी पक जायेगी
चकले पर बिलते बिलते
और पजामा स्त्री होगा
दर्जी के सिलते सिलते
तीन दिनो के बासी होंगें
फिर भी गरम पकौड़े जी
छाता लेकर चला करेंगे
बन्दर हाथी घोड़े जी
मक्की के खेतों मे जाकर
पॉपकॉर्न भर लायेंगे
और मुर्गियों के पेटों से
उबले अण्डे आयेंगे
रुई की जगह रजाई में
तब वर्फ भराई जायेगी
चार चार कपड़े पहनाकर
सजा दिलाई जायेगी
हो जाओ तैयार कि भैया
ऐसी ग्लोबल वार्मिंग हैं
ज्यादा मत मुस्काओ यारो
इसके पीछे वार्निग है

नहीं मिलेगी तब फिर बच्चों
आइसक्रीम भी खाने को
कुछ दिन में सूखेगा पानी
तरस जायेंगे नहाने को
एक तो इतनी गर्मी होगी
उस पर सर में जूँ होंगी
गयी भाड में बोटिंग सोटिंग
नदी झील भी क्यूँ होंगी
सब कुछ ऐसा हो जायेगा
पैर जलेंगे चलने में
थोडा वक्त भी नहीं लगेगा
सब कुछ राख बदलने में
ऐसी हो अनहोनी बच्चो
उससे पहले यत्न करें
ग्लोबल वार्मिंग आ ना पाये
आओ कुछ प्रयत्न करें
पेड लगायें अधिकाधिक
और प्रकृति का संरक्षण हो
दोहन रुके अनावश्यक का
जीवों का ना भक्षण हो
प्रकृति देवी कूल रही तो
सब कूल कूल हो जायेगा
राक्षसी ग्लोबल वार्मिंग का
भय फिर नहीं सतायेगा


16-10-2008


Wednesday, October 15, 2008

भोला बचपन




Monday, October 13, 2008

सच्चा कर्म

उसका नाम फकीरचंद था परन्तु धन का उसके पास कोई अभाव नहीं था। धन के साथ उसका मन भी निर्मल था। वह अपने धन का कुछ अंश हमेशा ही लोगों की सहायतार्थ खर्च करता रहता था। किसी संत ने उससे एक बार कहा था -"सेठ! सबकी सहायता किया करो, प्रभु तेरी सहायता करेंगे" तभी से वह दानी हो गया था, परोपकारी बन गया था। संत की बात भी मिथ्या नहीं हुई। वह जितना देता, उससे अधिक पाने लगा। यह क्रम बरसों तक चलता रहा। सेठानी भी उनके कार्य में हाथ बँटाते थी। सुखपूर्वक समय व्यतीत हो रहा था।

एक बार सेठ जी वापरिक कार्य से बाहर गए थे। वह जहाँ गए, उस गाँव के निवासी उनको अच्छी तरह जानते थे। उनकी सहायता प्राप्त करने में वहाँ के लोग किसी भी तरह पीछे नहीं रहते थे। उन क्षणों में सेठ जी यात्रा की थकान से परेशान थे, भूख भी उन्हें व्याकुल कर रही थी। पर वे अपने मुँह से कुछ नहीं कह पा रहे थे और गाँव वालों ने भी उनसे कुछ नहीं पूछा। सेठ जी को आशा थी कि गाँव वाले उनकी आवभगत में पलकें बिछा देंगे। परन्तु वे लोग ऐसा नहीं कर सके। सेठ जी घर पहुँचे तो इस बार वे काफ़ी परेशान थे। बार-बार यह प्रश्न उनके दिमाग को मथता रहा कि मैं तो सदा उनकी सहायता करता हूँ और वे सहायता प्राप्त करने वाले थोड़ा-सा भी अहसान नहीं मानते। यह कैसी स्थिति है? उनका अशांत मन उत्तरोत्तर छटपटाने लगा।
दैव योग से वही संत उस गाँव से गुजरे। गाँव से बाहर तालाब के किनारे वटवृक्ष के नीचे उन्होंने डेरा डाला। उनके शिष्य भी साथ थे। सेठ जीसेठ जी को भी ख़बर मिली की वही संत गाँव पधारे हैं, जिन्होंने उन्हें दूसरों की सहायता करने के लिए कहा था। सेठ जी अपने मन की बेचैनी दूर करने हेतु संत के दर्शनार्थ पहुंचे। संत शांत मुद्रा में बैठे थे। वातावरण भी शांत था। सेठजी भी नमस्कार करके खिन्न मन से एक तरफ़ बैठ गए। "कैसे हो सेठजी'? संत ने पूछा | आपकी कृपा है महाराज !' फिर आपका चेहरा मलिन क्यों है? कोई कष्ट है क्या'?
'नही महाराज।' इसी के साथ-साथ सेठजी ने सहायता करने से लेकर अहसान न मानने तक की पूरी कथा सुना दी और बोले कि 'इस दुनिया में लोग अहसान फरामोश क्यों हैं ?' संत मुस्कुरा दिए और बोले -सेठजी! एक बगीचे में बहुत सी अंगूर की बेले लगी हुई थी, उनमें मीठे-मीठे अंगूर भी लगते थे। लोग उन्हें तोड़ लेते और खा कर चले जाते। यही क्रम सालों तक चलता रहा। एक दिन एक बेल दूसरी बेल से बोली -कई बरसों से हम अंगूर बाँट रही हैं। लोग स्वाद से खाते हैं और चले जाते हैं, परन्तु कोई अहसान तक नहीं मानता, न ही कोई धन्यवाद देता? ऐसा क्यों है?
यह वार्ता एक बुद्धिमान व्यक्ति सुन रहा था। उसने पास से गुजर रहे संत से यही प्रश्न दुहराया, संत बेलों के पास जाकर बोले, "अंगूर पैदा करना तुम्हारी मजबूरी है और इसका फायदा उठाना लोगों की आदत है। इसमे अहसान मानने की क्या बात है ?
इतना सुनकर सेठजी का हृदय पिघल गया। वह सारी बात समझ गए, उनके नयन बरस पड़े। वह कुछ भी बोल नहीं पा रहे थे। संत आगे बोले- गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने भी यही कहा है -

सच्चा कर्म वही है जिसमे, नहीं छिपी हो फल की चाह
सच्चा धर्मं वही है जिसमे, रहे निरंतर एक प्रवाह ||


अतएव तुम भी अपने पथ पर अग्रसर रहो। यह चिंता क्यों करते हो कि लोग तुम्हारे इस कार्य को महत्त्व देते हैं या नहीं संत कि बात सुनकर सेठ जी का मन अब स्वस्थ, प्रसन्न एवं निर्मल बन गया था। उनके अंतस में निष्काम-कर्म एवं परोपकार कि महत्ता बैठ गई थी |

साभार -(बाल बोध कथांएँ,भारतीय योग संस्थान )

नीलम मिश्रा


Saturday, October 11, 2008

हँसी का गुल्ला..

पोते ने दादा जी को एक खिलौना दिखाया, दाम पूछने पर पोते ने बताया ५००रुपये का |
दादाजी (पोते से) : पता है, हमारे जमाने में हम ५०० रुपये में घर का सारा राशन, कपड़े, पुस्तकें, खिलौने सभी कुछ ले आते थे|
पोता (दादा जी से बड़ी मासूमियत से) बोला: दादा जी आप ऐसा इसलिए कर पाते थे क्योंकि आप के जमाने में तब C.C.T.V (Close Circuit TV) नही हुआ करते थे |

(रीडर्स डाइजेस्ट से साभार)

--नीलम मिश्रा


Friday, October 10, 2008

बच्चों की दुनिया

बच्चों की है दुनिया प्यारी
लगती ज्यों फूलों की क्यारी
रंग रंग के फूल खिले हैं
महके यह बगिया फुलवारी ।

गूंज उठे जब घर किलकारी
सद के जाए माँ बलिहारी
भोली सूरत मोहित करते
वारी जाए दुनिया सारी ।

लड़ना, भिड़ना और झगड़ना
लेकिन फिर से घुल मिल रहना
पल भर में सब भूल भुला कर
मिलजुल कर फिर संग खेलना ।

पल में रूठें, पल में मानें
नहीं किसी को दुश्मन जानें
अजनबी हो कोई भले ही
खेल - खेल में अपना मानें ।

कोमल मन है, निर्मल बातें
हृदय खोल अपना दिखलाते
संग बिता कर कुछ पल देखो
प्रभु के दर्शन हम पा जाते ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, October 9, 2008

विजयदशमी


प्यारे बच्चों!

आज दशहरा है। इसे हम विजयादशमी के रूप में भी मनाते हैं। दशहरा आश्विन मास की दसवीं तिथि को मनाया जाने वाला उत्सव है। इसके आने से पहले ही शक्ति की उपासना शुरू हो जाती है। भगवान राम ने भी इन दिनों माँ शक्ति की आराधना की थी और दशहरे के शुभ दिन रावण का नाश किया था। आज के दिन जगह-जगह रावण का पुतला जलाया जाता है।

प्यारे बच्चों! दुनिया में बुराइयों और बुरी शक्तियों से लड़ना बहुत आवश्यक होता है। कुछ पल के लिए अच्छाई भले ही विलीन हो जाए किन्तु अन्त में विजय अच्छाई की ही होती है। अगर संसार में सुख से रहना है तो स्वयं को शक्तिशाली बनाना होगा। यदि हम कमजोर हैं तो कुछ भी नहीं कर सकते। आज देश में बहादुरों की आवश्यकता है। बुराई पर विजय पाने का यह पर्व हम सबमें बुराई से लड़ने की शक्ति पैदा करे यही कामना है। जय श्री राम।


Wednesday, October 8, 2008

नवमं सिद्धीदात्री


मेरे देश की आशाओं!
आज राम नवमी है। आज सिद्धिदात्री रूप में माँ भगवती की पूजा करते हैं। आज इनकी पूजा करने से आठ सिद्धियाँ- अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति,प्राकाम्य, ईशित्व और वाशित्व प्राप्त होती हैं। पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने भी इनकी ही कृपा से इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी कृपा से प्रभु का आधा शरीर देवी का हुआ था और वे अर्धनारीश्वर नाम से जाने गए।
हम सबका कर्तव्य है कि माँ सिद्धिदात्री की कृपा पाने के लिए प्रयत्न करें। इनकी उपासना पूर्ण होने पर सभी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। माँ सरल स्वभाव की हैं। अतः उनकी उपासना भी सरल मन से करनी चाहिए। तन की ही नहीं मन की भी सरलता अपेक्षित है। आओ हम सब मिलकर एक साथ माँ की जय-जय कार करें और कहें-
शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे। सर्व स्यातिहरे देवि नारायणी नमोस्तुते।


Tuesday, October 7, 2008

बूझो तो जानें - सही उत्तर

बड़े ही बुझे मन से हम बूझो तो जानें पहेलियों के हल प्रकाशित कर रहे हैं। किसी ने भी इसमे भाग नही लिया| रंजन जी, भाग लेने के लिये आपका शुक्रिया|

१)मिटटी के बर्तन

२)उल्लू

३)सुई

४)पहेली

५)मगर


अष्टम् महागौरी


नन्हें सितारों!
आप बस कहानी ही सुन रहे हैं या पढ़ाई भी कर रहे हैं? गृह कार्य किया या नहीं? गृहकार्य अवश्य कर लेना वरना माँ नाराज़ हो जाएगी फिर आप कहानी कैसे सुनेंगें ? समझ गए ना ? बहुत अच्छे ।
आज अष्टमी है। आज के दिन महागौरी का पूजन होता है। ये गौरवर्णा और चार भुजा धारी हैं। इनका वाहन शेर है। इनकी मुद्रा एकदम शान्त है। अपने पार्वती रूप में इन्होने महान तप किया था जिसके कारण इनका शरीर काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर पर गंगाजल छिड़का था जिससे वह पुनः कान्तिमान हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ गया।
दुर्गा पूजा के आठवें दिन इनकी पूजा होती है। ये अमोघ फल को देने वाली हैं। इनका ध्यान बहुत कल्याणकारी है। इस दिन कन्या पूजन भी होता है। घरों में छोले-पूरी और हलवे का प्रसाद बनता है। तो प्रणाम करो महागौरी को और आनन्द लो प्रसाद का। जय माँ गौरी।