Thursday, April 30, 2009

जादू की छडी (गद्यात्मक कहानी )

नमस्कार बच्चो ,
आज मै सुनाऊंगी आपको एक गुडिया की कहानी ।

एक बहुत प्यारी सी छोटी सी गुडिया थी । एक बार जब वह सो रही थी तो उसने एक बडा प्यारा सा सुन्दर सा सपना देखा । सपने में वह अपने घर की छत पर पहुंच गई और उसने देखा कि धरती पर आसमान से फ़ूल गिर रहे हैं , टिम-टिमाते तारे उसे देखकर खिल-खिलाकर हंस रहे हैं और उसने अपनी तरफ़ आती हुई एक उडन-तशतरी भी देखी । उस उडन तशतरी मे एक सुन्दर सुन्दर पंखों वाली परी को भी देखा ।
परी ने गुडिया को अपने पास बुलाया ,अपनी गोदि में बैठाकर उडन-तशतरी से सारा आकाश घुमाया । उसको चन्दा मामा से भी मिलवाया और ढेर सारे खिलौने दिए । गुडिया ने नभ में बडे मनमोहक नजारे देखे । परी ने अपनी छडी घुमाई और देखते ही देखते परी लोक में पहुंच गई । सुन्दर सुन्दर पंखों वाली उडती हुई परियां देखकर तो गुडिया हैरान रह गई और मन ही मन सोचने लगी कि काश ! वह भी परी बन जाए ,तो कितना मजा आए ।
गुडिया के मन की बात परी ने झट से समझ ली और गुडिया को समझाया :-
देखो तुम भी तो एक परी हो धरा लोक की । तुम्हारे पास भी तो अदभुत शक्ति है-तुम्हारी बुद्धि । तुम अपनी बुद्धि से जीवन मे हर कार्य संभव कर सकती हो । भले ही हम परियां हैं पर हमारे मन में भी तो अरमान हैं । हम भी तुम्हारी तरह मां का प्यार चाहती हैं । हमारा भी मन करता है कि हमारे पापा हमें सुन्दर से उपहार लाकर दें , पर वो सब तो तुम्हें ही मिल सकता है । अब तुम धरती पर जाओ और अपनी बुद्धि से हर कार्य करो तो तुम्हें जिन्दगी में हर कदम पे सफ़लता मिलेगी । तुम्हारे पास बुद्दि रूपी जादु की छडी है ।
गुडिया को परी की सारी बातें समझ में आ गई ,और मन ही मन मुस्काने लगी । इतने में गुडिया को मां ने आवाज़ लगाई और उसे जगा दिया । गुडिया ने मां को परी वाला सारा सपना बताया और मां ने भी गुडिया को अपनी नन्ही परी कहकर प्यार से गले लगा लिया ।
बच्चो इस कहानी से आप भी समझना कि हमारे पास बुद्धि बल है और यही वो जादु की छडी है , जिससे हम हर सफ़लता हासिल कर सकते हैं ।
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यह कहानी आपने कल काव्य शैली मे पढी आज गद्यात्मक रूप मे । निर्णय आपके हाथ कि कौन सा तरीका अच्छा है । मुझे आपके सुझावों का इन्तजार रहेगा ।
आपकी
सीमा सचदेव


Wednesday, April 29, 2009

जादु की छडी

गुड़िया रानी जब सो गई
मीठे सपनों में खो गई
देखा उसने सपना सुन्दर
खुश हो गई अन्दर ही अन्दर
सपने में जा पहुंची छत पर
देखा चमक रहा था अम्बर
बरस रहे थे फ़ूल धरा पर
खेल रहे तारे हँस हँस कर
देखी उडन तशतरी एक
भरे थे जिसमे रंग अनेक
आके रुकी गुडिया के पास
भरे खिलौने उसमे खास
सुन्दर एक परी भी आई
गुडिया की आंखें भरमाई
परी ने उसको पास बुलाया
अपनी गोदि में बैठाया
उडन तशतरी में बैठाकर
गुडिया को आकाश घुमाकर
दिए खिलौने रंग-रंगीले
सुन्दर सुन्दर और चमकीले
टिम टिम करते दिए सितारे
चमक रहे सारे के सारे
परी ने अपनी छडी घुमाई
सारी दुनिया उसे दिखाई
चन्दा मामा से मिलवाया
परी लोक में भी घुमाया
सुन्दर सुन्दर पंखों वाली
उडती परियां प्यारी-प्यारी
देख के इतना अजब नजारा
गुडिया ने भी मन में विचारा
क्यों न वह भी परी बन जाए
परी लोक में ही रह जाए
पर गुडिया के मन की बात
समझी परी उसके जजबात
प्यार से गुडिया को समझाया
परी लोक का राज बताया
देखों! हम परियां हैं नभ की
इच्छाएं भी हैं हम सबकी
हम भी स्कूल में जाना चाहें
तेरी तरह ही पढना चाहें
हम भी चाहें मां का प्यार
पापा से सुन्दर उपहार
मस्ती हम भी करें सब मिलकर
हंसें खूब हम भी खिल खिलकर
तुम धरती की सुन्दर बाला
तुम भी कर सकती हो उजाला
पढ लिखकर तुम बनो महान
धरा को परी लोक ही जान
अब तुम धरा लोक में जाओ
मेहनत से सब कुछ पा जाओ
बुद्धि ही जादु की छडी है
जिसके बल पर दुनिया खडी है
जो तुम बुद्धि से लो काम
होगा तेरा ऊंचा नाम
बात गुडिया की समझ में आई
परी लोक से ली विदाई
हंस रही गुडिया मन ही मन
पास मेँ है बुद्धि का धन
इतने में माँ ने आ बुलाया
गुडिया को निद्रा से जगाया
माँ को उसने सपना सुनाया
परी लोक का राज बताया
माँ ने प्यार से गले लगाया
नन्ही परी गुडिया को बताया
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बच्चो तुमने जाना राज
बुद्धि से होते सब काज
बुद्धि ही जादु की छडी है
बुद्धि ही हर धन से बडी है

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Tuesday, April 28, 2009

सच्चा सेवक



एक राजा था|वह बहुत बुद्धिमान था|विद्वानों का वह खूब आदर करता था| उसके दरबार में अनेक कलाकार थे|वहाँ अक्सर गंभीर विषयों पर चर्चाएँ होती रहती थी| राजा उन्हें बड़े ध्यान से सुनता था| एक दिन राजा ने अपने दरबारी विद्वानों के सामने प्रश्न रखा,"एक सच्चे सेवक की क्या पहचान होनी चाहिए?"

प्रश्न वैसे तो सरल लगता था|अनेक विद्वानों ने अपनी ओर से उत्तर भी दिए,किंतु उन उत्तरों से राजा संतुष्ट न हुआ|धीरे-धीरे यह बात सारे राज्य में फैल गयी| लोगों को सुनकर अचरज हुआ कि राजा के दरबार में तो एक से बढ़कर एक विद्वान हैं,फिर भला राजा उनमे से किसी के भी उत्तर से संतुष्ट क्यों नही हुआ|

राजा ने राज्य भर में ढिंढोरा पिटवाया कि जो भी इस प्रश्न का संतोषजनक उत्तर देगा, उसे पुरुस्कृत किया जायेगा|

समय बीतता गया| कई लोग आए| मगर राजा को किसी का भी जवाब जंचा नही| इससे राजा को बड़ी निराशा हुई| तभी अचानक एक दिन एक किसान राजा के दरबार में हाजिर हुआ और बोला-"आपके सवाल का जवाब मै दूँगा| जल्दी से गाँव के घरों में जलने वाली एक ढिबरी का प्रबंध कीजिये| तुंरत एक ढिबरी हाजिर की गयी|

किसान ने उसे जलाकर पूछा -"बताईये इस ढिबरी में प्रमुख वस्तु क्या है?"

"प्रकाश" राजा का उत्तर था|

"आख़िर यह प्रकाश आता कहाँ से है?", किसान ने फिर पूछा

"बत्ती के जलने से"

"क्या बत्ती अपने आप जलती है?"

" नही, उसका कारण तेल है|"

" तेल कहाँ है?"

" ढिबरी के अन्दर|"

अबकी बार किसान मुस्कुराया| बोला- "राजा जी, आपके सवाल का जवाब मिल गया| सच्चे सेवक को इस ढिबरी के तेल की तरह होना चाहिए जो चुप चाप जलकर सारे घर में रौशनी फैलाता रहे| मौन रहकर अपना कर्तव्य पूरा करता रहे और अपने काम का कभी विज्ञापन न करे|"

किसान के उत्तर से राजा इतना प्रसन्नं हुआ कि उसने किसान को गले से लगा लिया| पुरुस्कृत किसान खुश था, पर दरवार में कोरी बहस करने वाले विद्वानों के चेहरे देखने लायक थे|


योग मंजरी से साभार


Monday, April 27, 2009

स्वप्नदर्शी जी सर्वश्रेष्ठ पहलवान

स्वप्नदर्शी जी सर्वश्रेष्ठ पहलवान (दिमागी कुश्ती के )
घोषित किए जाते हैं


उसके पश्चात् नीति जी दूसरे नम्बर पर ,


शन्नो जी को (खाद्यान मंत्रालय ) दिया जायेगा क्यूंकि उनका मन पहेलियों में कम ,खाने में ज्यादा लगने लगा है

हमारे नए अतिथि गगन जी का स्वागत है ,किन चक्करों में फस गए आप यहाँ पहेलियाँ कम खाने की बातें ज्यादा होने लगी हैं ,इतना अवश्य है की शन्नो जी आपकी खातिरदारी में कोई कमी नही रखेंगी

मनु जी को उनके हाल पर छोड़ना ही होगा ,क्यूंकि वो सबसे अधिक मनमौजी विधार्थी हैं
दूसरा कक्षा मॉनिटर चुने का समय आ गया है ,सुमित ही एक अच्छा बच्चा है ,जो पूरी कक्षा पर निगरानी रखने के साथ साथ ,मनु और शन्नो जी को संभाल सकता है सुमित तुंरत अपनी उपस्तिथि दर्ज कराओ
सही उत्तर है -
१)लट्टू
२)नाडी
३)परवाना
४)बांसुरी
५)छींक

नीलम मिश्रा -अब आपसे इजाजत लेती है ,फिर मिलेंगे शनिवार को पहेलियों के साथ


Saturday, April 25, 2009

पहेलियाँ ---- फिर से हो जाइए तैयार दिमागी कुश्ती के लिए

पहेलियाँ ---- फिर से हो जाइए तैयार दिमागी कुश्ती के लिए ,तो १ ,२ ,३ ,४ ,५,पहेलियों के जवाब देने पर देखेमिलता है किसको क्या इनाम ????तो हो जाइए तैयार

१)अपनी देह पर सूत लपेट

उस बन्दे को नाचत देखा ,
पाँव अजूबा है ,लोहे का ,
बदन पर रहती पांच - छ रेखा

२)कर बोले ,करहि सुने ,

श्रवण सुने नही ताहि
कहे पहेली बीरबल
की बूझे अकबर साहि

३)सोचो कोई प्यार की ,
ऐसी सजा भी भरेगा ,
करम ऐसा की रहे नाम ,
पर वा ना करेगा

४)देह काठ मुहँ आठ ,
सूरत जानी पहचानी
जीभ ना राखे मुहँ में
पर बोले मीठी वो मीठी बानी

५)आते ही आधा नाम बताऊँ ,
कभी अशुभ में समझी जाऊं

जल्दी से अपने उत्तर बता ही दीजिये ,इस बार कोई राजनीति की पहेली नही हैं ,शन्नो बेटा अपना काम शुरू कर दो ,

मिलते हैं ,रविवार या फिर सोमबार की सुबह ,शन्नो से अपनी कक्षा का हाल पूछने के लिए

नीलम मिश्रा






Friday, April 24, 2009

ले त्रिशूल अब अपने हाथ

याद करो तुम पशुपति नाथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ

भारता माता रही पुकार
बहुत हो चुका भ्रष्टाचार
भूल गये हैं सब भगवान
पूज रहे हैं सब शैतान
साथ तुम्हारे दीनानाथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ

मानव जीवन को धिक्कार
सहता कितने अत्याचार
दुख से भरा हुआ संसार
फिर भी चुप सारा संसार
मानव मानव का दे साथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ

दानव मिलकर देते त्रास
कर दो इनका सत्यानाश
सहन न होते इनके काज
खत्म करो अब दानव राज
इनसे करना दो दो हाथ
ले त्रिशूल अब अपने हाथ

याद करो तुम निज अभिमान
भारत माँ का गौरव गान
प्राणों का तू मत धर ध्यान
जीवन को दो न्याय महान
हमें मिटानी काली रात
ले त्रिशूल अब अपने हाथ

कवि कुलवंत सिंह


कितने अंधे?



एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा,-"संसार में आंखों वाले ज्यादा हैं या अंधे?"

बीरबल ने कहा - "हुजूर अंधे ज्यादा हैं।"

"कैसे?"

"किसी दिन आपको दिखा दूँगा।"- बीरबल ने कहा।

तीसरे दिन बीरबल मोचियों वाला एक बक्सा और एक व्यक्ति को एक साथ लेकर चौराहे पर जा बैठे और जूते गांठने लगे। जो भी वहां से गुजरता, वही बीरबल को देखकर आशर्यचकित हो उठता था और पूछता -"अरे बीरबल, क्या कर रहे हो?"

बीरबल मुस्कुरा के रह जाते और उनके पास बैठा व्यक्ति का नाम पूछ कर अपनी पुस्तिका में लिख लेता।

करीब घंटे भर बाद बादशाह की सवारी उधर से गुजरी।
बीरबल को जूते गाँठते देखकर उन्होंने पूछा, -"बीरबल यह तुम क्या कर रहे हो?"

बीरबल के आदेश पर उनका नाम भी लिख लिया गया।

दूसरे दिन बीरबल दरबार में पहुँचे तो बादशाह ने पूछा, -"बीरबल कल क्या कर रहे थे?"

"अंधों की सूची बना रहा था जहाँपनाह।"

"क्या? अंधों की सूची?" बादशाह चौंके।

"जी, मैंने आपसे कहा था कि अंधे ज्यादा हैं और आपने कहा था सिद्ध करो।"

"तो दिखाओ सूची"

बीरबल ने अकबर बादशाह को सूची दिखाई।

अकबर बादशाह ने जब अंधों की सूची में सबसे ऊपर अपना नाम देखा तो पूछा, -"अंधों की सूची में हमारा नाम?"

ये क्या हिमाकत है बीरबल?"

बीरबल ने कहा -"जिस समय आपकी सवारी मेरे सामने से होकर गुजरी्, आपने मुझे जूते गांठते हुए देखकर भी अंधों-सा सवाल किया कि बीरबल क्या कर रहे हो? इसलिए आपका नाम भी भी अंधों की सूची में सबसे ऊपर लिखा गया है और आपकी तरह जिन्होंने यह सवाल किया है, उनसभी का नाम इस सूची में लिख दिया गया है, जिन्होंने जूते गांठने का कारण पूछा, उनका नाम आँख वालो की सूची में है और ये बहुत कम है। "

बादशाह अकबर शर्म से पानी-पानी हो गए क्योंकि उन्होंने भी यह बेबकूफी भरा सवाल किया था।

"इस कहानी से आपको क्या शिक्षा मिलती है? सबसे अनूठे अंदाज में बताने वाले को हम बीरबल के खिताब से नवाज सकते हैं तो देर किस बात की जल्दी बताइये की आपने इस कहानी से क्या सीखा"


Wednesday, April 22, 2009

क्या आप जानते हैं ?

मधुमक्खियाँ भिनभिनाती क्योँ हैं?



मधुमक्खी जब बैठी रहती है अथवा धीरे-धीरे रेंगती है तो किसी तरह की भिनभिनाहट नहीं होती जब उड़ती है, तभी भिनभिनाहट की आवाज सुनाई पड़ती है। मधुमक्खी स्वयं किसी तरह की आवाज नहीं करती परन्तु जब वह उड़ती है तो उसके पंख तेजी से घूमते हैं जिससे हवा में कम्पन होता है जो हमे भिनभिनाहट के रूप में हमे सुनाई पड़ता है।


समय का महत्व



कुण्डलिनी

सदा समय पर जो करे, काम और आराम।
मिले सफलता उसी को, वह पाता धन-नाम।
वह पाता धन-नाम, न थक कर सो जाता है।
और नहीं पा हार, बाद में पछताता है।
कहे 'सलिल' कविराय, न खोना बच्चों अवसर।
आलस छोडो, करो काम सब सदा समय पर।

-संजीव 'सलिल'




Tuesday, April 21, 2009

बेटी भी होती है खास

एक था भाई एक थी बहना
था उनकी मां का यह कहना
बेटा वंश चलाएगा
काम हमारे आएगा
जब हम बूढे हो जाएंगे
वही कमाकर लाएगा
वही चलाएगा घर-बार
होगा सुखी मेरा संसार
पर बेटी तो है पराई
होगी उसकी घर से विदाई
अपने काम न उसने आना
फ़िर भला उसे क्यों पढाना
दें बेटे को एशो-इशरत
पर बेटी को मिलती नफ़रत
बेटी करती घर का काम
पर बेटा करता आराम
मजे से रहता,मजे से खाता
ऊपर से गुस्सा भी दिखाता
मिलती मुंह मांगी सब चीज़
भूल गया वो सारी तमीज़
नहीं माने वो मां का कहना
पर स्यानी थी उसकी बहना
सारा घर का काम वो करती
और फ़िर रात को बैठ के पढती
इक दिन मां हो गई बीमार
चलने फ़िरने को लाचार
पर बेटा था लाप्रवाह
सुने न अपनी मां की कराह
बेटी मां की करे संभाल
उस्को बस मां ही का ख्याल
मां की उसने खूब की सेवा
सेवा का उसे मिल गया मेवा
बेटी की सेवा रंग लाई
मां ने बीमारी से मुक्ति पाई
अब हुआ मां को अहसास
टूट गया वो अंध-विश्वास
कि बेटा ही घर को चलाए
और बेटी न काम में आए
मां ने अपनी गलती मानी
सच्ची बात यह उसने जानी
बेटी नहीं बेटे से कम
हो गईं मां की आंखें नम
हो गया मां को यह विश्वास
बेटी भी होती है खास
प्यार से बेटी को गले लगाया
और फ़िर उसको खूब पढाया ।
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-------------------------------
बच्चो तुम भी लो यह जान
लडका-लडकी एक समान
एक से दोनों को अधिकार
त्यागो भेद-भाव का विचार

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प्रेषक व लेखिका- सीमा सचदेव


Sunday, April 19, 2009

आपके मंत्रालय

शाबाश ,सभी के जवाब सही हैं ,तो मंत्रालय भी बाँट ही दिए जाय

प्रधान मंत्री -डी.एस चौहान जी

उप प्रधानमन्त्री- DREAMER (अगर आप साबित कर दे कि आप भारत के नागरिक हैं ,आपका तारुफ्फ़ कुछ ग़लतफ़हमी बढ़ा रहा है ),अगर आप विदेशी निकले तो आपको विदेश का रास्ता दिखाया जा सकता है कुछ हिन्दी नाम रख लो भाई हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा

गृह मंत्रालय -तपन

सूचना एवं प्रसारण - राघव

शिक्षा मंत्रालय -आचार्य सलिल

मानव संसाधन मंत्रालय -शन्नो

वस्त्र एवं खाद्द्याँ मंत्रालय -मनु

पर्यटन मंत्रालय -नीति (शन्नो जी कि शिकायत के आधार पर कि आप फुर्र से उड़ जाती हैं )

बाल कल्याण मंत्रालय -सीमा सचदेव

तो सभी प्रतिभागी शपथ लेते हैं की जो मंत्रालय उन्हें दिए गए हैं ,उन्हें सहर्ष स्वीकार करेंगे ,एक जिम्मेदार नागरिक बनेंगे ,अपने आस -पास होने वाले किसी बुराई या अन्याय को नही सहन करेंगे ,मिलजुल कर रहेंगे और हाँ शन्नो जी की बात हमेशा मानेंगे ,
जय हिंद ,जय भारत


सुनिए महादेवी वर्मा का रेखाचित्र 'सोना'

महादेवी वर्मा ने हिन्दी साहित्य को जो निधि सौंपी है, वो अनमोल है। महादेवी वर्मा ने कविता, निबंध, संस्मरण तथा रेखाचित्र आदि विधाओं में काम किया। इन्हें हिन्दी कविता के छायावादी युग का एक स्तम्भ भी कहा जाता है। ये बहुत अच्छी रेखाचित्रकार भी थीं। आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य में रेखाचित्र विधा का महत्वपूर्ण स्थान है। महादेवी वर्मा के ही शब्दों में- "चित्रकार अपने सामने रखी वस्तु या व्यक्ति या रंगीन चित्र जब कुछ रेखाओं के इस प्रकार आंक देता है कि उसकी मुद्रा पहचानी जा सके तब उसे हम रेखाचित्र की संज्ञा देते है। साहित्य में भी साहित्यकार कुछ शब्दों में ऐसा चित्र अंकित कर देता है जो उस व्यक्ति या वस्तु का परिचय दे सके, परन्तु दानों में अन्तर होता है।"

महादेवी वर्मा के नीलकंठ मोर, घीसा, सोना, गौरा आदि रेखाचित्र काफी प्रसिद्ध है। आज नीलम मिश्रा अपनी आवाज़ में महादेवी वर्मा का एक रेखाचित्र 'सोना' लेकर आई हैं। सुनिए और बताइए अपने अनुभव-





चित्र साभार- राधिका


Saturday, April 18, 2009

चुनावी पहेलियाँ

चुनावी पहेलियाँ

चुनाव की सरगर्मियों को देखते हुए आज हम लाये हैं ,बहुत ही सरल व् रोचक पहेलियाँ हमने सोचा कि जवाब के
आधार पर आप सभी को बाल उद्यान के मंत्री बना सकते हैं , सबसे ज्यादा सही जवाब देने पर प्रधान मंत्री,
रेलमंत्री ,सूचना मंत्री ,पर्यटन मंत्री ,वगैरा मंत्रालय मिलेंगे
तो बस पलक झपकायिये और जवाब दे डालिए ,आपके मंत्रालय और शपथ ग्रहण समारोह तो सोमबार को ही होगा

१)गोल भवन में खंभे कई ,
दिल्ली में है ,बोलो भई|


२)
सभी जाति ,धर्म औ पंथ
सबके कानूनों का ग्रन्थ |

३)पद से राजा सा वो कहलाता ,
पर मन से न कुछ कर पाता |

४)नाम में एक राज्य है शामिल ,
माने जाते वो नेक औ काबिल|
ीरे -धीरे चढ़े शिखर पर ,
सबके प्रियवर ,पर नही बने वर ,

५)दूर देश से मैना आई ,
राजा की रानी कहलाई |
एक बाग़ की बनी प्रधान ,
जो बूझे, सो बने सुजान

६)जिसकी नाव पर था सवार ,
कर बैठा उस नाविक पर वार ,
बिना मुकुट वो राजा कहलाया ,
मान अपमान दोनों ही पाया |

७)सौम्य सुदर्शन ,बुजुर्ग काया
कृष्ण हैं वो इस काल के |
खूब सवारीरथ पर की ,
देखो नसीब इस लाल की

८)सुंदर था औ गोरा था ,
बड़े घर का छोरा था |
पाया पद विरासतमें ,
अंत दे गया सांसत में

९)मेहनत की थी गाढी,
पहचान बनी थी दाढी |
खींची गाड़ी चार माह,
पूरी कर ली अपनी चाह

१०)जब मुहँ खोले अडबड बोले
सबै डूलाय ख़ुद भी डोले
रबरी -मलाई खाए खूब
कुर्सी को वो माने महबूब

इस बार चाहे तो दोनों आखें बंद करके भी जवाब दिए जा सकते हैं ,शन्नो बेटा कक्षा का ध्यान रखना पहेलियाँ
सरल है इसलिए class में हुड दंग न होने पाये ,मिलते है सोमवार को सिर्फ़ यह देखने के लिए की किसकीतारीफ़
करती है हमारी मॉनिटर और किससे नाराज है वो और क्यूँ |







Thursday, April 16, 2009

क्या आप जानते हैं ?

जम्हाई क्योँ आती है ?

थक जाने पर जब हमे आलस्यवश नींद आने लगतीहै ,तो हम जम्हाई लेते हैं |दूसरे शब्दों में जम्हाई तभी आती है
जब हम गहरी साँस नही ले पाते हैं और हमारे खून में आक्सीजन की कमी हो जाती है |
हमारे मष्तिस्क में एक छोटा सा ज्ञान- तंतु होता है जिसका संबंध हमारी श्वास -क्रिया से है |खून में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होते हीइसे सूचना मिल जाती है |जब इस
ज्ञान- तंतु को यह पता चलता है कि खून में अक्सीजन की कमी हो गई है तो यह हमे गहरी साँस खीचने के लिए मजबूर करता है |गहरी साँस खीचतेही खून में ओक्सीजन की कमी पूरी हो जाती है |यही कारण है कि हम जम्हाई लेते है |


जम्हाई लेना एक प्रकार से गहरी साँस खीचना ही है



Tuesday, April 14, 2009

हितोपदेश-१७ -किसान और सर्प

एक समय था एक किसान
थी उसकी आत्मा महान
करके एक बार सब काम
खेत में करने लगा आराम
नाग वहां इक देखा काला
किसान ने उसे दूध दे डाला
दूध कटोरा वहीं रख कर
गया किसान अपने घर पर
अगले दिन जब खेत में आया left
कंगन सोने का इक पाया
दूध कटोरे में था कंगन
हर्षित था किसान का मन
हर दिन दूध वो रख कर जाता
अगले दिन इक कंगन पाता
मिला किसान को बहुत सा धन
बदल गया अब उसका जीवन
फिर भी उसके उच्च विचार
नहीं छोडा था सद-व्यवहार
पर था एक किसान का जाया
उसका मन तो था ललचाया
समझाता था उसे किसान
लालच करते हैं नादान
उतने अपने पैर फैलाओ
जितनी लम्बी चादर पाओ
पर बेटे को समझ न आए
पिता की बातें झूठ बताए
गया कहीं एक बार किसान
दे गया बेटे को फरमान
जाकर सांप को दूध पिलाना
उल्टे पाँव घर वापिस आना
बेटे को मिल गया बहाना
सोचा लेगा सारा खजाना
खेत में आया करके विचार
देगा अब वो सांप को मार
बिल से सर्प जब बाहर आया
तो बेटे ने लठ चलाया
किया सांप ने भी प्रहार
दिया किसान का बेटा मार
जब किसान घर वापिस आया
मरा हुआ बेटे को पाया
गया सर्प के पास किसान
बोला तुम तो हो महान
एक ही बेटा मेरा धन
बख्श दो तुम उसको जीवन
सुनकर सांप को आई दया
आकर सारा ज़हर पिया
मिल गया बेटे को नव-जीवन
पर अब नहीं मिलेगा धन
बोला सांप अब यहां से जाना
नहीं मिलेगा कोई खज़ाना
यह किसान की थी अच्छाई
जो मेरे मन में दया आई
उसने मुझको दूध पिलाया
कर्ज़ा मैने भी चुकाया
पर बेटे के बुरे विचार
जो मुझ पर ही किया प्रहार
लालच भरा है उसका मन
नहीं मिलेगा अब कोई धन
कह के सांप बिल में समाया
और फिर वापिस कभी न आया
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---------------------
बच्चो तुम भी रखना ध्यान
न बनना इतने नादान
अपने सारे फर्ज़ निभाना
मन मे लालच कभी न लाना

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चित्रकार:- मनु बेत्खलुस जी


Monday, April 13, 2009

अथः श्री पहेली पुराणे पंचमोध्याय प्रसाद वितरण

अथः श्री पहेली पुराणे पंचमोध्याय प्रसाद वितरण
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*

सी.सी.टी.वी से मिली देखीं सभी फुटेज
फर्रे अपने ढाँप रहे, टेड़ी कर कर मेज
टेड़ी कर कर मेज, उचक कर कोई झाँकता
हाथों पर धर हाथ, बगल में कोई ताकता
पुरी साल किताब छुई ना हथ कभी भी
उडे तीतुरी चेहरा देखें सी.सी.टी.वी.

नीती,ड्रीमर को मिले, अंक अढ़ाई आज
मनु सीमा शन्नो हँसें लिये डेढ़ का ताज
लिये डेढ़ का ताज, एक रचना ने पाया
उपर वाले वाह ! निराली तेरी माया
किसी की अटकी साँस किसी पर भारी बीती
पर इक्षा से होय परीक्षा, यही है नीती

कोरी कॉपी रख गये, कुछ बच्चे शैतान
अंक सफाई के मिलें ऐसा था कुछ भान
ऐसा था कुछ भान जान ली सब चालाकी
ज़ीरो नम्बर देकर के काटे सब बाकी
नहीं चलेगा एक्सक्यूज कोई ना ही सौरी
बडे मजे से रखकर गये थे कॉपी कोरी

1.
उत्तर इस प्रकार हैं सुनो लगाकर कान
"रेलगाडी" से क्या बचा है कोई अंजान
डब्बे मानो सांप के गंडे लगें जनाब
सीटी देकर जब चले, तुरत घुसो हो आप
2.
"दवात" में से त हाटाओ बीमारी को दूर करो
वायु में बन जाऊँगी यदि द को चकनाचूर करो
( वात --> वायु )
3.
मैं हूँ भैया "बीमारी", जो सबको खूब डराती हूँ
री को तोड़ ताड़ कर फेंको बीमा मैं बन जाती हूँ
4.
सीधी सरल मेरी पहिचान "धूआँ" दो अक्षर का नाम
सबको नानी याद दिलाऊँ जों मै आखों में लग जाऊँ
5.
म को काटो तो मैं जार, मुझमें भर लो खूब अचार
मजा मिलेगा तब भरपूर, "मजार" से र जो रखो दूर
( जार --- > इमर्तवान )
6.
भरी हुई "गुल्लक" को देखो सबके मन को भाती है
आधी उपर गुल बन बैठी, नीचे लक कहलाती है
7.
"समौसा" से स अगर हटाया मौसा बन गया भाई
पेट काटकर (मौ) उल्टा कर दो, देखो सास है आई
8.
हवा ( हू हैज सीन द विंड नाइदर आई नोर यू )

9.
"गाजर" के हलवे का स्वाद, भूल गये जो नाम न याद
देखा बच्चू कितनी घिसली, र को हटाया तो मैं बिजली
(गाज --- > बिजली )
10.
"हवा" हवा की बात है हवा हवा हर राह
उलटा पढकर देख लो , वाह ! वाह ! मैं वाह
11.
खुट खुट खुट खुट करती करती जाती गली मोहल्ले
जिसकी "लाठी" उसकी भैंस, हो गई बल्ले-बल्ले

इतने सरल सवाल थे तिस पर मचा बवाल
आगे आगे देखिये होता है क्या हाल......



* क्या होगा इस देश का... ग्रेस मार्क्स लगाकर भी न्यूनतम उत्तीर्ण अंक नहीं मिल पा रहे हैं.....


Monday, April 6, 2009

काम की बातें शृंखला- कडी १



अंतर्मन की शुद्धि से मिट जाते सब पाप
अपनी भूलों पर करें, दिल से पश्चाताप
दिल से पश्चाताप,करें संताप मिटायें.
त्रुटि का करें सुधार , क्षमा का संबल पाएं
कह सीमा कर स्नेह सभी से जो हों सज्जन
द्वेष न किंचित करें , शुद्ध रखें अंतर्मन

महावीर ज्यंती की आप सबको हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएं

इसमें सुधार कर विशेष सहयोग के देने लिए आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी की आभारी हूँ


सच बोलो पर मीठा

सच बोलो पर मीठा
देवताओं के राजा ब्रह्स्पति का विवाह होने वाला था |उन्होंने इसके उपलक्ष में एक प्रीतिभोज
देने का निर्णय किया |अत: सभी जलचरों तथा स्थल चरों कों निमंत्रन भेजे गए |सभी पशु -पक्षी
प्रीतिभोज में भाग लेने आये परन्तु कछुआ नही आया | ब्रह्स्पति कछुए की अनुपस्तिथि पर बड़े हैरान हुए |
कुछ दिनों के पश्चात् ब्रह्स्पति देव की कछुए से अचानक भेंट हो गयी |उन्होंने कछुए से पूछा

," महोदय ! आप मेरे विवाह के उपलक्ष्य में दिए गए प्रीतिभोज में नही -क्या बात थी ?"
"मै घर में रहना पसंद करता हूँ और छोटी -छोटी बातों में रूचि नही रखता |घर से अधिक सुखदाई कोई स्थान नही है "| कछुए ने जवाब दिया |

निसंदेह कछुए ने कोई गलत बात नही कही थी परन्तु उसके कहने का ढंग अप्रिय अवस्य था |
अतः: ब्रह्स्पतिदेव चिढ गए तथा उन्होंने कछुए कों शाप दे दिया ,"अच्छा यह बात है ,तो फिर
तुम अपने घर कों सदा अपनी पीठ पर उठाये फिरोगे और यह भार तुम्हारी पीठ पर लदा ही रहेगा "
आज तक हर कछुआ अपने घर कों पीठ पर उठाये घूम रहा है ,घूम रहा है न ,

संकलन
नीलम मिश्रा


Saturday, April 4, 2009

अथ: श्री पहेली पुराणे, पंचम अध्याय - प्रारम्भ

पहेलियाँ !

पंचो राम राम ! मासटर्र जी, मॉनीटर्र जी .. ओ हो अब जब जबसे
हमको टर्र टर्र करने वाला नाम से जानेजाना .... ओहो जाने जाना
मत्लव पहिचाने जाना... कभी कुछ और ही सोचो जी.. हाँ तो हम
कह रहे थे की आज : -

आओ रे मेरे सखा सहेली
लाया हूँ कुछ नयी पहेली
जोर खोपड़ी पर अब डालो
अक्ल के घोडे सब दौड़ालो
ठीक ठीक जो दिये जबाव
नीलम जी से मिले खिताब
टीपम टापी नहीं चलेगी
पेस्ट व कॉपी नहीं चलेगी
कुच पर्यवेक्षक जगे हुए हैं
सी.सी.टी.वी लगे हुए हैं
पकड़े गये तो समझो आप
जेल में होगा भरत मिलाप
शब्दों का कुछ खेल यहाँ
शुरू पहेली रेल यहाँ......

सूचना : अगले हफ्ते छुट्टी होने की सम्भावना है इसलिये इस हफ्ते
एक्स्ट्रा क्लास है, 5 की जगह 11 पहेलिया हैं :-
उत्तर प्राप्त करने के लिये निन्नलिखित पते पर अपनी इक्षानुसार रुपये. ...
का डिमांड ड्राफ्ट जो टर्र टर्र एंड कम्पनी, हिन्द युग्म,बाल उद्यान,
दिल्ली के नाम देय हो भेज सकते हैं :-


1.
मैं हूँ गंडे वाला सांप
दूर दूर तक जाता हूँ
बच्चे पेट में घुस जाते हैं
जब मैं शोर मचाता हूँ
2.
बीमारी को दूर भगाती
तज कर अपने पैर;
मुंडी कलम कराकर बहती
सुबह शाम दोपहर.
3.
मुझसे सब डरते हैं भैया;
जबकि मुझमें छुपा रुपैया
काटों घुटने आज हमारे
पाओगे तो वारे - न्यारे
4.
दो अक्षर का मेरा नाम
सबकी आखें करूँ हराम
पकड़ों तो मैं हाथ ना आऊँ
धीरे से गायब हो जाऊँ
5.
मैं हूँ पूजा का स्थान
मसक टैंटिया इमर्तवान
मुझमे रक्खो खूब अचार
और मज़ा लो मेरे यार
6.
ऊपर आधा भाग फूल है
नीची आधा भाग है भाग
जब में फुल्लम फुल हो जाऊँ
दिल हो जाता बाग -बाग
7.
साली बने तेरी महतारी
अगर काट दो मेरा शीश
पेट काटकर उल्टी लटकूँ
बहूँ को दुंगीं तब आशीश
9.
अगर पैर पर गिरी कुल्हाडी
बिजली मैं बन जाऊँगी
प्यार से चाहे घिस लो कितना
हलवा तुम्हें खिलाऊँगी
10.
मैं ऐसी एक कलाकार
घूमूँ बिन रस्सी बिन तार
जब मैं उल्टी लटक जाती हूँ
वाह वाह सबसे पाती हूँ
11.
खुट खुट खुट खुट गली मौहल्ले
घूंम घूंम कर आती हूँ
ना चरवाहा ना मैं ग्वारिया
फिर भी भैंस ले जाती हूँ

इति

अथ: श्री पहेली पुराणे पंचमोध्याय समाप्त..
बोलो बुद्धिमाता खोपडी-कसरत टेंशनदेयनी परीक्षा रानी की जय


04-04-2009


Friday, April 3, 2009

श्री राम कथा-काव्य

आया बच्चो चैत्र मास
नवमी का दिन इसमे खास
प्रभु श्री राम का हुआ जन्म
माने इसको हिन्दु धर्म
अवध नगर के राजा दशरथ
चार हुए उनके प्यारे सुत
राम लखन और भरत शत्रुघ्न
चारों ही अनमोल रत्न
चारों पिता के आज्ञाकारी
खुश थी उनसे परजा सारी
गुरु आश्रम मे शिक्षा पूरी
आशा न थी कोई अधूरी
कई राक्षसों का किया संहार
मिटाया भू पर अत्याचार
तभी तो राम आदर्श कहाए
स्वयं प्रभु धरती पर आए
तारी पाहन बनी अहिल्या
धन्य थी माता कौशल्या
शिव धनु तोड के ब्याह रचाया
जनक दुलारी को अपनाया
सजना था जब अवध का ताज
माता कैकेयी हुई नाराज
मांग लिए उसने दो वचन
भूप भरत और राम को वन
हँस कर माँ का रक्खा मान
पिता के पूरे इए वरदान
सिया लखन को संग लिवाय
वन मे चौदह वर्ष बिताए
हर ली जब रावण ने सीता
तो जाकर लंका को जीता
फिर से अवध जब वापस आए
तो फिर राजा राम कहाए
कुछ समय तो सुख से बिताया
इक धोबी ने कह सुनाया
रक्षा करो राजा के मान की
तज दो अपनी पत्नी जानकी
रावण कैद मे रहकर आई
नहीं बन सकती वो राजमाई
दुविधा हुई राजा को खास
दे दिया पत्नी को वनवास
दो पुत्रों के बने पिता
लव-कुश की माता थी सीता
वाल्मीकि आश्रम में रहकर
जीवन में कष्टों को सहकर
बडेहुए थे दोनों सुत
शक्ति उनमें थी अदभुत
एक बार राम से भी टकराए
पर कोई भी हार न पाए
तब श्री राम ने राज यह जाना
अपने पुत्रों को पहचाना
पत्नी त्याग पर पश्चाताप
राम तो करने लगे विलाप
पर सीता धरती माँ जाई
माँ की गोदि में ई समाई
लव-कुश को दे अवध का राज
त्याग दिया प्रभु ने सब काज
जाकर स्वयं वो जल में समाए
महामानव वो जग मे कहाए
मर्यादा पुरुषोत्तम राम
सदा रहेगा जग में नाम

राम नवमी की आप सबको ढेरों शुभ-कामनाएं एवम हार्दिक बधाई


Thursday, April 2, 2009

समय की पुकार

बीती रात
हुई प्रभात
नींद को दो
अब तो मात

कर्म महान
जन उत्थान
परहित सुनो
धर्म महान

जब भी बोल
मीठा बोल
मधु रस शब्द
अमृत घोल

सबको मान
अपना जान
दीन को भी
दो कुछ दान

सिंह दहाड़
तोड़ पहाड़
सीना चीर
धरती फाड़

रक्खो होश
भरकर जोश
दूसरों को
मत दो दोष

मिटा विकार
खिला बहार
बड़ों का तूं
कर सत्कार

बन कर यार
करना प्यार
सुंदर बने
यह संसार

सदव्यवहार
सदा बहार
काल की है
यही पुकार

कवि कुलवंत सिंह



ॐ ही भक्ति ॐ ही शक्ति
ॐ ही भव-सागर से मुक्ति
ॐ ही पूर्ण ब्रह्म विचार
ॐ मे बस रहिया संसार
ॐ नाम अदभुत आधार
ॐ से मिट जाएं कष्ट अपार
ॐ ही बाहर ॐ ही अंदर
ॐ से बन जाए मन मन्दिर
ॐ शब्द और ॐ विधाता
ॐ ही सृष्टि का उपजाता
ॐ ही पूर्ण ब्रह्म दिखावे
ॐ ही राम को रमण करावे
ॐ ही है कण-कण मे समाया
ॐ नाम का मर्म न पाया


बन्दर मामा और चुनाव



बन्दर मामा पहन पजामा, लड़ने चले चुनाव.
कुरता जाकेट टोपी जूता, पहना पड़े प्रभाव.
चेले-चमचे चंद जुटाए, पर्चे भी बँटवाये,
चौराहों पर बैनर बांधे, भाषण खूब सुनाये.
'मैं सब के सुख-दुःख का साथी, सब का सच्चा मीत.
भारी बहुमत से जितवायें सही बनायें रीत.'
भालू बोला- 'तूने बगिया से फल खूब चुराए.'
हिरनी पूछे- 'शेर देख क्यों भागे पूंछ दबाये?'
पत्रकार थी बाया, कैमरा लिए खींचती चित्र.
मुंह बाए मामा जागते थे जोकर बहुत विचित्र.
चिंकी चुहिया चीं-चीं करती आयी, फिर चिल्लाई.
'दांत तुम्हारे पीले-गंदे, करते क्यों न सफाई?'
उल्लू था बन्दर का साथी, बोला- 'चुप हो सुनिए.
इस समाजसेवी को अपना नेता सब मिल चुनिए.
स्वर्ग बनेगा हिंद युग्म यदि इनको आप चुनेंगे.'
हाथी बोला हमें न जाना स्वर्ग, न आप मरेंगे.
मैना चीखी- ''लूट खायेगा सबको बन्दर राम.
ठाठ गधों का होगा, बाकी सबका काम तमाम.'
'सलिल' निकट से शेर दहाड़ा, भागे बन्दर मामा.
चढ़े झाड़ पर लपक, फट गया, खिसका-खुला पजामा.

--आचार्य संजीव 'सलिल'


Wednesday, April 1, 2009

राष्ट्रीय फूल

इक बार फूलो मे हुई लड़ाई
सबने मिलकर सभा बुलाई
गेंदा, गुलाब, कनेर के फूल
बैठे इक तालाब के कूल
सदाबहार और रात की रानी
सबने अपनी बात बखानी
हर कोई खुद को समझे सुन्दर
जल रहे अन्दर ही अन्दर
देखो मेरा सुन्दर रूप
बोला गेंदा मैं हूँ भूप
मैं अपनी खुशबू फैलाऊँ
जहाँ पे चाहो फल-फुल जाऊँ
दिया मुझे कुदरत ने रंग
देख के मोहित हो अनन्ग
तुम क्या मैं तो हूँ लाजवाब
बीच में बोलने लगा गुलाब
मैं राजाओं का भी राजा
रहता कितना ताज़ा-ताज़ा
हर कोई चाहे मुझसा रूप
खिला रहूँ चाहे हो धूप
चुप रही थी बहुत सी देर
पर अब बोलने लगी कनेर
देखो मेरे पुष्प प्यारे
घर का द्वार तो यही सँवारे
चढ़ जाऊँ ऊपर दीवार
ला दूँ फूलों की बहार
चार चाँद घर को लगा दूँ
मैं सुन्दर हूँ सबको बता दूँ
सदाबहार की आई बारी
कहदी उसने बाते सारी
हर मौसम में खिला रहता हूँ
गर्मी-सर्दी को सहता हूँ
देता हूँ फिर भी बहार
जाने न कोई मेरा उपकार
बोली अब यूँ रात की रानी
मैं तो हूँ तुम सबसे स्यानी
रात को अपना रूप दिखाऊँ
देखने वालों को रिझाऊँ
मन्द-मन्द खुशबू देती हूँ
सबके मन को हर लेती हूँ
अब फिर से गुलाब यूँ बोला
गुस्से से अपना मुँह खोला
जब हम है सारे गुणवान
तो क्यों कमल बना धनवान
कीचड़ में फलता-फुलता है
गन्दे पानी में रहता है
फिर भी बना है राष्ट्रीय फूल
हमसे हुई कौन सी भूल
क्यों मिला उसको सम्मान
हो रहा हम सब का अपमान
सुनकर यह सब भँवरा आया
आकर फूलों को समझाया
बेशक तुम सारे हो सुन्दर
पर न भ्रम कोई पालो अन्दर
मन में जरा सा करो विचार
कमल ही है असली हकदार
बेशक कीचड़ में रहता है
गन्दगी को हरदम सहता है
पर न उस पर हो प्रभाव
गन्दगी में भी हो न खराब
अपना रूप सँवारे रहता
नहीं किसी को बुरा वो कहता
कीचड़ में रहता है ऐसे
जीभ रहे दाँतो में जैसे
क्यों न उसको मिले सम्मान
वो तो है गुणों की खान
अब तो सबकी समझ में आया
हँस कर कमल को भी अपनाया

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बच्चों, जिस तरह कमल कीचड़ में रहकर भी साफ-स्वच्छ रहता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन में सदगुणों का पालन करना होगा