Thursday, July 22, 2010

गुड़िया की चिड़िया

चिड़िया आये, फुर्र से जाये,
नन्हे-नन्हे पंख फैलाये,
छोटी-सी गुड़िया को मेरी,
दूर-दूर से वो तरसाये।

पापा से वो जिद कर बैठी,
मुझको भी इक चिड़िया ला दो,
खेलूँगी उसके संग मैं भी,
उसको मेरा दोस्त बना दो।

चिड़िया वाले से था पूछा,
इतनी चिड़िया कैसे पाई,
तो चिड़िया वाले ने बच्चो,
अपनी थी इक चाल बताई।

पास बुलाने को जब अपने,
थोड़ा सा हम दाना डालें,
लालच में दाने के आ कर,
जाल में खुद को वो फँसवा ले ।

थोड़े से लालच में आ कर,
उसने थी आजादी गँवाई,
बाद में कोई भी चालाकी,
उसके किसी काम न आई।

कैद में पिंजड़े की रह कर के,
जब थी चिड़िया फड़फड़ाई,
छोटी सी गुड़िया के मन में,
उसे देख तब दया थी आई।

अपने पप्पा को कह कर के,
उसने उसकी जान बचाई,
बड़े प्यार से पैसे दे कर,
उसको अपने घर ले आई।

थोड़ा सा दाना था डाला,
बड़े प्यार से उसे खिलाया,
दोनो की जब हुई दोस्ती,
आसमान में उसे उड़ाया।

अगले दिन फिर चूँ-चूँ करती,
चिड़िया दाना खाने आई,
गोदी में वो बैठी आ कर ,
दोस्ती उसने थी जतलाई।

चिड़िया की भाँति तुम बच्चो,
भूल से कभी न लालच करना,
छोटी सी गुड़िया से सीखो,
बेजुबान पर दया तुम करना।

--डॉ. अनिल चड्डा