बहादुर भी डरपोक भी
एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा -"जाकर शहर के बहादुर और डरपोक दूंढ लाओ "
बीरबल उसी वक्त बाजार की तरफ़ चले गए और एक औरत को कुछ समझा बुझा कर बादशाह के पास ले आए |
बादशाह ने अकेली औरत को देखकर बीरबल से कहा -"बीरबल तुम इन दिनों बहरे तो नही होते जा रहे हो |मैंने दो मनुष्य को लाने को कहा था ,तुम केवल एक ही लेकर लौट आए "
बीरबल बोले -"गरीब परवर !इस स्त्री में दोनों प्रकार के गुन विद्यमान हैं |यह अकेली बहादुर और डरपोक दोनों का काम करती है "|
"कैसे "?बादशाह ने पूछा |
"जहाँ पनाह ! जब इसके बच्चे पर कोई संकट आता है तो ये शेरनी बन जाती है | उस समय अपने
बच्चे की रक्षा करने के लिए यह मौत से भी टकरा जाती है | वैसे तो अपने घर में ये चूहे से भी
डरती है "|
"वाह बहुत खूब"| बादशाह अकबर खुश हुए और उस औरत को बहुत सा इनाम देकर विदा कर दिया "|
--नीलम मिश्रा
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6 पाठकों का कहना है :
नीलम जी सुन्दर सीरीज शुरु की है आपने...
बहुत ही रोचक व ज्ञानवर्धक होते हैं अकबर-बीरबल के किस्से... आप बधाई के पात्र हैं..
नीलम जी,
बचपन में अकबर बीरबल के किस्से बहुत सुने थे। इनसे सीखने को बहुत कुछ मिलता है।
बाल-उद्यान पर यदि हितोपदेश / पंचतंत्र आदि से भी कहानियाँ प्रकाशित हो तो अच्छा रहे।
aapne bahut acchi kahani suna kar hame manoranjan diya! aap aisi hi kucch kahaniya hame sunati rahiye .
baaki sab accha tha!
apki laghukatha bahut achi hai sonal
Bal Udyan me sabhi tarah ke paudhe to mile kintu tulsi nahi mili jabki tulsi kisi bhi ghar-angan-upwan ka sabse impartent unge hai, Alka Mishra
Apki Stori "Bahadur Bhi Darpok bhi" bahut achi hai, bus app ase hi poem likhte rahiye
Durga
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