Tuesday, September 18, 2007

फ़िर से आई दीदी की पाती ...नई मजेदार बात सुनाती :)

दीदी की पाती


कैसे हैं आप सब ?.
इस बार दीदी की पाती आपके लिए ले के आई है और नयी रोचक जानकारी
आप के पास साईकिल है ना ? ख़ूब चलाते होंगे आप..कितना मज़ा आता है
इसको चलाते हुए जब यह हवा से बातें करती है .बहुत अच्छा लगता है न..पर कभी आपने
सोचा है की यह साईकिल बनाई किसने ? चलो आज आपको इसके बनाने की मज़ेदार
कहानी सुनाते हैं ..

फ़्राँसे में मोशिए दे सिवरांक नाम का एक बालक था उसको चार पहियों वाला
घोड़े का खिलौना बहुत पसंद था,,उस दिन उसका जन्म दिन था उसके पापा ने उसको
शाम को एक डिब्बा दिया उसने झटपट उसको खोला तो वही घोड़े का खिलौना निकाला
उस में चार पहिए लगे थे वह इसको पा कर इतना ख़ुश हुआ की जैसे उसके अपने
पैरों में मानो पहिए लग गये हो

कुछ ही दिनों में वह घोड़ा उसका सबसे प्यारा खिलोना बन गया वो उसके साथ तरह तरह के खेल खेलता और अपनी कल्पना में ही उस में बैठ के सवारी करता लेकिन वह घोड़ा इतना छोटा था की वो उस पर बैठ नही सकता था

जब उसके पापा ने उस को इस तरह उसको उस खिलौने के साथ खुश देखा तो उन्होने सोचा की
वो उसको एक ऐसा लकड़ी का घोड़ा बना के देंगे जिस पर वो बैठ भी सके और एक दिन उन्होने उस को लकड़ी का घोड़ा बनवा के दिया उसको देख के तो मोशिये खुशी से झूम उठा और उस पर बैठ के उस के लगे पहियों के सहारे लुढकने लगा उस को यह खेल बहुत मजेदार लगा

अब मोशिए धीरे धीरे बड़ा होने लगा, वो उस खिलौने से खेलने की उम्र पार कर चुका था पर वह बड़ा हो कर भी अक्सर सोचता की कोई ऐसी सवारी बने जो घोड़े जैसी हो क्यों कि वो अब उस घोड़े की सवारी का मज़ा नही भुला था

आख़िर एक दिन मोशिए का यह सपना सच हो गया उसने उस घोड़े के खिलौने के आधार पर ही एक सवारी बनाई उस में केवल दो पहिए लगाए उस पर लकड़ी की एक सीट बनाई और अपने
पैरों से उसको लुढकाता हुआ चल पड़ा जिसने भी देखा उसका दिल किया उस पर बैठने का !


कुछ ही दिनों में यह लोगो के मनोरंजन का खेल बन गयी इसका नाम रखा गया "वेलासिफे रोज" कुछ दिनों में यह कई वैज्ञानिकों की नज़र में आई जर्मन इंजीनियर '"बेनवान ड्रेस "'ने मोशिए के खिलोने के आधार पर एक ऐसी मशीन बनाई जिस में दो पहिए थे ,यह पहिए आज कल की साईकिल के बराबर थे डंडे पर एक छोटी सी गद्दी लगी थी यही साईकिल का पहला शुरूआती रूप था

चालीस साल बाद इंग्लेंड के मैकमिलन नामक एक लुहार ने" ड्रेस "जैसी साईकिल बनाई पर उस में उसने पैडल लगाए इन पैडल को डंडे के सहारे पिछले चाके के धुरे[पहिए] से मिला दिया ,इन्हे पैरों से चलना पड़ता इस साईकिल का अगला पहिया छोटा था और पीछे का बड़ा ,इस में बैठने के लिए एक गद्दी लगी थी



फिर धीरे धीरे साईकिल के सभी पुरजों में सुधार होता गया "रुशो "नामक एक आदमी ने इस में पतले पतले स्पोक यानी सलाइयां भी लगाई सबसे अधिक सुधार किया इस में ''जे. बी .डनलप"' ने उन्होने इसमें हवा वाले पहिए लगाए

..अब तो कई तरह की साईकिल बनने लगी सर्कस की साईकिल ..रेस की साईकिल , मोटर साइकल आदि आदि

आज तो साईकिल सब जगह है क्या गांव ,क्या शहर यह सब जगह आसानी से चल जाती है बहुत से साहसी लोग तो इस पर पूरी दुनिया घूमने भी निकल पड़ते हैं

लेकिन आज की साईकिल देख के भला कौन सोच सकता है की यह एक बच्चे की खिलौने की कल्पना का फल है ..यदि उसने ना सोचा होता तो साईकिल इतनी जल्दी ना बनती ..है तो यह थी साईकिल बनने की मजेदार कहानी :) सोचो सोचो !!आप भी कुछ सोचो ,क्या पता कल आप भी मोशिए की तरह तरह कोई नया आविष्कार करें .और वह आविष्कार आपको महान बना दे


और इस पाती से शुरू करेंगे हम एक नई रोचक जानकारी :)...क्या आप जानते हैं की संसार की सबसे छोटी मोटर साइकिल किसने बनायी ,,? वो थे क्लाइव विलियम और साइमन टिम्परले यह दोनों इंजीन्यर थे इस मोटर साइकिल की सीट १०.१९ सेंटीमीटर और सीट के साथ ऊंचाई ४९ सेंटीमीटर है इसकी विशेष बात यह है की इस को बडे और बच्चे दोनों चला सकते हैं ..है न मजेदार बात :)




चलो अब चलती हूँ लेकिन अपनी दीदी को बताना ना भूलना की यह जानकारी आपको कैसी लगी
फिर मिलूंगी आपसे अपनी अगली पाती में एक और नयी रोचक जानकारी के साथ
बस आप इंतज़ार करें मेरी अगली पाती का और ध्यान रखें अपना ..अच्छा पढें और ऊँचा सोचें:)

बहुत बहुत शुभकामना और ढेर सारे प्यार के साथ आपकी दीदी
रंजना[ रंजू ]


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15 पाठकों का कहना है :

loke का कहना है कि -

esa laga ki mein hindustan times ki kadambni ya sarita pad raha hun jis mein ache ache writer aapni apni kahaniya ya laghu katayae likhte hai . i realy like that
ranjana ji aab aap apni stories kadambni or sarita jese books mein dena shuru kar de waha par jab aapko padenge to aap se jayda hamein apne aap par acha lagega ki hum bhi kisi ek ache writer ko jaante hai :)

GOD BLESS YOU

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

रंजना जी,

बाल-उद्यान पर आपका स्तंभ आदर्श है। जानकारी का रोचकता से प्रस्तुतिकरण। बहुत दुर्लभ चित्रों से आपने अपनी जानकारी को सजाया है..

आप धन्यवाद की पात्र हैं।

*** राजीव रंजन प्रसाद

अभिषेक सागर का कहना है कि -

रंजना जी।
पुन: दीदी की पाती की ईक और रोचक और सुंदर कडी के लिये बधाई।
बच्चे आपकी इस दी हुए जानकारी का अच्छा फायदा उठायेगें।

Anupama का कहना है कि -

Aapne bahut hi saral tarike se bahut badi jaankaari de di...bacchon ko bahut seekhne ko milegaa isse....good job...i really liked it

Sanjeet Tripathi का कहना है कि -

काफ़ी रोचक अंदाज़ में लिखा है आपने!!

अगर सचमुच बाल-उद्यान बाल-गोपालों तक पहुंचता है तो निश्चित ही उन्हे इस से फ़ायदा होगा!

Unknown का कहना है कि -

"फ़िर से आई दीदी की पाती ...नई मजेदार बात सुनाती

didi this is very nice.

muje aapka logo tak baat pahochane ka ye prayas (or andaz) bahot acha laga.
pls aap u hi likhte rahena......

or ek baat aap ne muje jo riplay diya voh bhi muje achaa laga , varana srtenger se koi etni baat nahi karta, u r very spciyal for me & my group.

u r such a nice prsn.

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

आपकी पाती रोचक और ज्ञानवर्द्धक है। बधाई।

SahityaShilpi का कहना है कि -

ज्ञानवर्धक स्तम्भ और रोचक अंदाज़ के लिये बधाई!

Udan Tashtari का कहना है कि -

रोचक और सुंदर जानकारी.बधाई.

Mohinder56 का कहना है कि -

साईकल बहुत चलाई मगर कहानी आज ही पता चली....सुन्दर कथा के रूप में रोचक जानकारी दी है आपने.
धन्यवाद.

गीता पंडित का कहना है कि -

रंजना जी,

"फ़िर से आई दीदी की पाती ...
नई मजेदार बात सुनाती ...

रोचक और सुंदर
दुर्लभ चित्र ..

धन्यवाद
बधाई।

Unknown का कहना है कि -

रंजू दीदी !
प्रणाम
दीदी आपकी पाती पिछली बार की तरह इस बार भी बड़ी रोचक जानकारी लायी है साईकिल के बारे में। हमें तो साईकिल के बारे में इतना सब कुछ नहीं पता था। अच्छे भैया बहनों को इतनी अच्छी जानकारी के लिये धन्यवाद। आप की अगली पाती का इन्तजार रहेगा।

Sajeev का कहना है कि -

रंजना जी बहुत ही रोचक जानकारी और बहुत ही सुंदर प्रस्तुति भी, बाल उधान मे आकर मेरा अन्दर का बालक फ़िर से जाग जाता है

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रंजना जी,

आप सभी को बच्चा बनाकर ही छोड़ेंगी। बताने की शैली इतनी बढ़िया है कि बस पढ़ते जाओ, पढ़ते जाओ।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

पाती नहीं पिटारा कहिये..
या सौभाग्य हमारा कहिये..
साइकिल की वृहद साइकिल
कैसे बनी समझ गया दिल..
नित नित ऐसी नई नई बातें
आप रहें यूँ ही समझाते
"रंजन" करती सुशब्दों से
लिखती रहें बस हँसते गाते..
दिल में जितनी है गहराई
वहाँ से देता मित्र बधाई..

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