Thursday, May 21, 2009

छाया का भ्रम

भोर हुई तो लोमडी आँखें मलती हुई उठी|पूँछ उसकी उगते हुए सूरज की और थी |छाया सामने पड़ रही थी |उसकी लम्बाई और चौडाई देखकर लोमडी को अपने असली स्वरुप का आभास मानो पहली बार हुआ|

सोचने लगी -वह बहुत बड़ी है|इतनी बड़ी कि समूचे हाथी के बिना उसका पेट भरेगा नही| सो हाथी का शिकार करने वह घने जंगल में घुसती चली गई|भूख जोरों से लग रही थी ,पर छोटी खुराक से क्या काम चलता !उसे हाथी पकड़ने की सनक चढी थी|

भूखी लोमडी भाग दौड़ से थक कर चूर-चूर हो गई| तब तक दोपहर भी हो गई|सुस्ताने के लिए वह जमीन पर बैठी, तो सारा नजारा ही बदल चुका था|छाया सिमटकर पेड़ के नीचे जा छिपी थी|

इस नई असलियत को देखकर लोमडी का चिंतन बदल गया|वह सोचने लगी- इतने छोटे आकार के लिए तो एक छोटी मेढकी भी बहुत है|मै बेकार ही छाया के भ्रम में इतने समय भटकी|

मनुष्य भी इसी तरह अपनी इच्छाओं को देखकर अपनी आवश्यकताएं आसमान के बराबर मानने लगता है|विवेक के आधार पर जब सत्य का आभास होता है, तो उसका दृष्टीकोण बदल जाता है|

साभार- बाल बोध कथाएं

संकलन- नीलम मिश्रा


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4 पाठकों का कहना है :

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

नीलम जी,

कहानी के लिये धन्यवाद।
अभी कुश (बाल-उद्यान में सभी प्रणव गौड़ के नाम से जानते हैं) के साथ बैठा हुआ हूँ। उसको ये कहानी सुनाई। उसका एक मासूम सा सवाल है। लोमड़ी तो बहुत चालाक होती है, समझदार होती है तो इस बहकावे में कैसे आ गई.. :-)
बतायें.. :-)

manu का कहना है कि -

तपन जी,
बहकावे में नहीं आयी,,,,
बस खुद को इतना बड़ा देख कर खुद पे इतरा गयी होगी,,,
:::)))
अक्सर होता है...

neeti sagar का कहना है कि -

आपने बहुत अच्छी कहानी सुनाई,हमें हमेशा सच्चाई को स्वीकार कर जीना चाहिए, भ्रम बहुत ही जल्दी दूर हो जाते है....

neelam का कहना है कि -

तपन ,
लोमडी के लिए हिंदी में एक शब्द प्रयोग होता है ,धूर्त ,शायद कुछ ज्यादा चालाक और समझदार बनने वाले को ही कहा जाता है ,लोमी बच्चों की कहानी का प्रिय पात्र होता है ,वैसे कहानी छाया (shadow)को जीवन से जोड़ने पर है ,लोमडी की जगह आप उसे किसी और जानवर का उदाहरण दे सकते हैं |
कहानी कैसी लगी कुश बेटा खुद कमेन्ट में लिखो ,सिर्फ "अच्छी "या "बुरी" लिखने से भी हमे पता चल जाएगा

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