सबसे भला बेटा
तीन औरतें पनघट पर मिलीं। उनमें से दो अपने-अपने बेटों की प्रशंसा करने लगीं। एक ने कहा, "मेरे बेटे जैसा
बलवान तो आस-पास के गांवों में कोई भी नहीं वह तो चालीस-चालीस किलो वजन उठा लेता है"
दूसरी औरत बोली -"मेरे बेटे की तेज चाल देखकर तो हरिन भी जाते हैं। वह बात की बात में कई किलोमीटर दूर चला जाता है।"
तीसरी औरत ने कहा- "मेरा बेटा तो साधारण है। उसमें कोई विशेषता नही है।"
इतनी में पहली औरत का बेटा झूमता हुआ आया और माँ की ओर देखे बिना निकल गया। दूसरी औरत का बेटा भी
तेज चाल से चलता हुआ उधर से गुजर गया। उसने भी अपनी माँ की ओर नहीं देखा। इतने में तीसरी औरत का बेटा
आकर बोला -"माँ तुम क्यों आई? मैं ही पानी ले आता।" यह कहकर उसने माँ के हाथ से घड़ा अपने सिर पर रखवा लिया और घर की ओर चल दिया।
यह देख कर दोनों औरतें उस तीसरी औरत से बोलीं -"बहिन, हम तो अपने बेटों की प्रशंसा कर रही थीं, पर सबसे भला बेटा तो तेरा है, जो माँ के काम आता है।"
संकलन
नीलम मिश्रा
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8 पाठकों का कहना है :
सुंदर एवं प्रेरक कहानी। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
प्रेरक कहानी
सुमित भारद्वाज
क्या बात है,
वो साधारण बेटा भी क्या असाधारण है...
ऐसे ही बनना बच्चो..
सुंदर प्रस्तुति!
बहुत अच्छी सीख
ऐसी प्रेरक कथाये ही बाल उद्यान का श्रृंगार है | बच्चे सीख लेते है और बड़े प्रेरणा |
आभार |
सादर,
विनय के जोशी
बेहद प्रेरणा दाई है कहानी | यदपि कहानी कभी पढ़ी हुई है पर फिर सी ताज़ा कर गयी मुझे
बेहद प्रेरणा दाई है कहानी | यदपि कहानी कभी पढ़ी हुई है पर फिर सी ताज़ा कर गयी मुझे
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