धरती का श्रंगार
भूल गया पेड़ों का दान
मानव क्या इतना नादान
काट काट कर जंगल नाश
खुद अपना कर रहा विनाश
स्वार्थ बना है इसका मूल
गुड़ पेड़ के गया है भूल
यही हैं देते प्राण वायु
इनसे मिलती लंबी आयु
करते अपना यह उपचार
करते हम पर यह उपकार
तरह तरह के देते फूल
कम करते यह मिट्टी धूल
औषधि का देते सामान
हम भूले इनकी पहचान
कैसा है अधुना इनसान
रखें याद न सृष्टि विधान
मानवता से कैसा वैर
काट रहा खुद अपने पैर
साध रहा बस अपने स्वार्थ
भूल गया है यह परमार्थ
पेड़ों की हम सुनें पुकार
बंद करें अब अत्याचार
यह हैं धरती का श्रॄंगार
इनसे ही जीवन साकार
कवि कुलवंत सिंह

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
सर्दी का मौसम शुरू होने वाला है। इस मौसम में हम क्या भूत भी ठिठुरने लगते हैं।
क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम के बारे में रोचक बातें जानना चाहेंगे? बहुत आसान है। क्लिक कीजिए।
तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
आपने बंदर और मगरमच्छ की कहानी सुनी होगी? क्या बोला! आपकी मम्मी ने नहीं सुनाई। कोई प्रॉब्लम नहीं। सीमा आंटी सुना रही हैं, वो भी कविता के रूप में।
एक बार क्या हुआ कि जंगल में एक बंदर ने दुकान खोली। क्या सोच रहे हैं? यही ना कि बंदर ने क्या-क्या बेचा होगा, कैसे-कैसे ग्राहक आये होंगे! हम भी यही सोच रहे हैं।
पहेलियों के साथ दिमागी कसरत करने का मन है? अरे वाह! आप तो बहुत बहुत बहादुर बच्चे निकले। ठीक है फिर बूझिए हमारी पहेलियाँ।
बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
4 पाठकों का कहना है :
वाकई वृक्ष (पेड़ )हमारी धरती का श्रृंगार है ,कुलवंत जी की कविता शिक्षा प्रद है |
Bahut hi sundar shikshaprad kavita.
प्रेरक..
पेडों से धरती सजती है ये सही है .धरती जो सजाये रखना है
सादर
रचना
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)