बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- अंतिम भाग
चौदहवें भाग से आगे....
15. इतने में बंदरिया आई
खरी खोटी बंदर को सुनाई
बोली तुझमें नहीं अक्ल
पानी में जा देख शक्ल
रहा वही बंदर का बंदर
क्यों दुकान जंगल के अंदर
पास में था जो सब गँवाया
दुश्मन अपना सबको बनाया
हुई न एक टका भी कमाई
सारी धन संपदा गँवाई
बैठा रह तू यहाँ अकेला
मैं तो चली देखने मेला
सुनकर शेर ने सारी बात
बंदर को इक मारी लात
भागा अपनी बचा के जान
बंद हुई बंदर की दुकान
15. इतने में बंदरिया आकर बंदर को खरी खोटी सुनानी लगी। अरे तुझमें जरा सी भी अक्ल नहीं है, जंगल में दुकान क्यों खोली। कमाई तो एक पैसा भी नहीं हुई बल्कि सबको अपना दुश्मन बना लिया और पास में जितना था वो भी सब गँवा दिया है तुमने। तुम वही बंदर के बंदर हो, जरा पानी में जाकर अपनी शक्ल तो देखो। अब तुम अकेले यहाँ बैठे रहो मैं तो मेला देखने जा रही हूँ।
शेर ने बंदरिया की सारी बातें सुनकर बंदर को एक लात मारी। बंदर अपनी जान बचा कर वहां से किसी तरह से भाग गया और बंदर की दुकान बंद हो गई।
~~ समाप्त ~~
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6 पाठकों का कहना है :
हा हा हा हा हा ,
सीमा जी आपको बहुत बहुत धन्यवाद बन्दर को बंदरिया से पिटवाने का भी बहुत बहुत शुक्रिया ,एक पुरानी रंजिश थी ,
आज जा के दिमाग को सुकून मिला आपके उपन्यास ने तो हाल बेहाल ही कर दिया था कि कहीं दोखे से भी इस बन्दर की दुकान चल न जाए कहीं |
इतने में बंदरिया आई
खरी खोटी बंदर को सुनाई
बोली तुझमें नहीं अक्ल
पानी में जा देख शक्ल
रहा वही बंदर का बंदर
Ant bhala to sab bhala.
Mujhe tomaja aa gayaaur bacho ne bhi maja liya hoga.
अहाहा,,
क्या तृप्ति मिली है नीलम जी को ,,
बताइये ,,लोगों को भोले-भाले बंदरों से भी रंजिश होने लगी,,
:(
वाह! मज़ा आ गया.. लग तो रहा था कि बन्दर जी कि दुकान बंद होगी,पर ऐसे होगी...हा हा हा ..ये पता न था!
इतने में बंदरिया आई
खरी खोटी बंदर को सुनाई
बोली तुझमें नहीं अक्ल
पानी में जा देख शक्ल
रहा वही बंदर का बंदर
क्यों दुकान जंगल के अंदर
पास में था जो सब गँवाया
दुश्मन अपना सबको बनाया
हुई न एक टका भी कमाई
सारी धन संपदा गँवाई
बैठा रह तू यहाँ अकेला
मैं तो चली देखने मेला
सुनकर शेर ने सारी बात
बंदर को इक मारी लात
भागा अपनी बचा के जान
बंद हुई बंदर की दुकान
मजा का गया
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