श्री गुरु नानक देव जी - जीवन कथा काव्य
श्री गुरु नानक देव जी
नमस्कार बच्चो,
आप जानते है न आज कौन-सा दिन है? आज कार्तिक मास की पूर्णिमा है और आज का इन सिक्ख धर्म के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी के जन्मदिवस ( गुर-पूरव ) के रूप मे मनाया जाता है। आओ आज मैं आप सब को श्री गुरु नानक देव जी के जीवन की संक्षेप मे महत्वपूर्ण जानकरी देती हूँ। आप का जन्म १४६९ ई. में तलवण्डी साबो ( ननकाना साहिब आजकल पाकिस्तान में है) में हुआ और १५३९ ई. में लगभग ७० साल की जीवन यात्रा पूरी कर आप ईश्वर में विलीन हो गये। श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर नामक एक नगर भी बसाया जो आजकल पाकिस्तान में है। आओ सुनो उनकी जीवन कहानी:-
आओ बच्चो मेरे पास
रखना मन में अटल विश्वास
सच्चे गुरु और सन्त महान
सिक्खों के पहले गुरु जान
कार्तिक मास की आई पूनम
तलवण्डी में हुआ जन्म
पिता थे उनके कालू मेहता
और माता उनकी थी तृप्ता
एक थी उनकी बहन प्यारी
नानकी नानक की दुलारी
बचपन में जब पढ़ने जाते
तो पांधे को पढ़ा कर आते
बच्चो संग खेलने जाते
सत्तनाम उनको जपाते
नहीं लगता था घर में मन
सोचे घर के सारे जन
पिता ने उनको सौपा काम
भैंस चराकर बाँटो ध्यान
भैंसों को जंगल ले जाते
स्वयं प्रभु का ध्यान लगाते
जहाँ पे जाकर भैंसें चरतीं
हरी-भरी हो जाती धरती
इक बार प्रभु का ध्यान लगाया
सूरज उनके मुँह पर आया
नाग ने अपना फन फैलाया
उनके मुख पर करदी छाया
दिए पिता ने बीस रुपए
करने को व्यापार वो गए
देख के भूखे साधु जन
गुरु नानक का भर गया मन
भूखो को खाना खिलाया
सच्चा सौदा वह कहलाया
हुए जवान तो बीबी सुलखनी
बन गई उनकी जीवन सन्गिनी
श्री चन्द और लखमी दास
दो पुत्रों की मिली सौगात
पर मन फिर भी न भरमाया
न गृहस्थ जीवन अपनाया
लेकर संग बाला मरदाना
देश-विदेश को हुए रवाना
पूरब-पश्चिम उत्तर-दक्षिण
देश-विदेश का किया भ्रमण
तोड़े कई अन्ध-विश्वास
किया कुरीतियों का विनाश
पहुँचे जब वह गंगा तीर
दे रहे ब्राह्मण सूर्य को नीर
उलटी दिशा मे जल चढ़ाया
और ब्राह्मणों को बताया
दे रहे है खेतों को जल
सूखी धरा पे चले न हल
जो यह जल सूर्य को जाय
तो न क्यों फसलों को नहाए
किया दूर सबका ही भ्रम
बातों में उनकी था दम
घूमते-घूमते पहुँचे मक्का
देखा वहाँ का नियम पक्का
मक्का की तरफ करे जो पैर
नहीं रहेगी उसकी खैर
मक्का की दिशा में करके पाँव
लेट गए गुरु पेड़ की छाँव
जब लोगों ने उन्हें समझाया
तो गुरु जी ने यह बतलाया
हो गया हूँ मैं पूरा वृद्ध
नहीं रही मुझको कोई सुध
नहीं मुझमे उठने की शक्ति
जो है तुम्हारी सच्ची भक्ति
मेरे पैर उधर को घुमाओ
मुझे इस पाप से बचाओ
लोगों ने जब उनको उठाया
घूमता मक्का साथ में पाया
घूम गया सारा ही मक्का
देख के हर कोई हक्का-बक्का
हर जगह ईश्वर का बसेरा
नहीं मेरा है सब कुछ तेरा
तेरा तेरा गाते रहते
प्रभु का नाम सुनाते रहते
भाई लालो के घर में जाकर
खुश थे रूखा सूखा-खाकर
भागो मलिक ने उनको बुलाया
अच्छा सा पकवान सजाया
पर न गुरु ने उसको खाया
खाने में ही खून दिखाया
इसमें है गरीबो का रक्त
लालो प्रभु का सच्चा भक्त
दिया बाबर ने कारावस
पर बन गया खुद गुरु का दास
करन करावन आपे आप
करते रहो प्रभ का जाप
वेई नदी में गए इक बार
छोड़ दिया अब सब घर बार
तीन दिन बाहर न आए
रहे प्रभु का ध्यान लगाए
आकर दिया सच्चा उपदेश
यह था उनका दूसरा वेष
पन्द्रह सौ उन्न्तालीस सन्
गुरु ने त्याग दिया था जीवन
किए थे पूरे सत्तर साल
सत पुरख वो एक अकाल
बच्चो कार्तिक मास की पूर्णिमा के साथ और भी कथाएँ जुड़ी है, जैसे इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर दानव का वध किया था और प्रलय काल में सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था विस्तार से फिर कभी बताऊँगी
श्री गुरु नानक देव जी के पावन दिवस " गुरु पूरव की आप सब को हार्दिक बधाई .....
सीमा सचदेव
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4 पाठकों का कहना है :
वाह ! नानक जी का जीवन वृतांत और वो भी काव्य रूप में..
बहुत ही अच्छा परिचय दिया आपने नानक जी का और अपनी काव्यकुशलता का .. हम तो कायल हैं आपके इस काव्यकौशल के
बहुत बहुत बधाई सीमा जी
कविता में नानक देव जी की पूरी कहानी!!!
बधाई सीमा जी...
बहुत सुंदर लिखा है आपने सीमा जी
अद्भुत ,अनुपम वृतांत नानक जी का ,गुरु नानक को नमन और आपकी लेखनी को भी सीमा जी
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