Friday, May 29, 2009

पहेलियाँ हमारी, जवाब आपके

एक बला ने मुश्किल डाली ,
घर-घर में बजवाये ताली |
कान पे भिन्न -भिन्न करता ,
दानी से बाहर वो फिरता |










शान से राजा घर में बैठे ,
वैसे कभी न मुँह को खोले |
तनिक उमेठो उसके कान ,
तुंरत जागे ,झटपट बोले |






जब पैरों का संग पा जाती ,
मीलों तक सवार पहुंचती
ख़ुद चलने की बात करो तो ,
एक ठौर ही खड़ी रह जाती









न हूँ कैमरा ,नाही प्रेस ,
ज्यों का त्यों रूप धर देस |
फिर भी नहीं सजा नकल की,
खेल है पैसा और अकल की |





कपडा हो या माला हो ,
रिश्ता बड़ा निराला हो |




आज की आज की पहेलियाँ भी बहुत ही सरल हैं ,हाँ नीति बेटा एक बात ध्यान से कान खोलकर सुनलो ,सिर्फ ,सिर्फ शाबासी और तालियाँ मिलेगी सही प्रतिभागियों को इसके अलावा और कुछ नहीं ,ज्यादा चॉकलेट खाने से दांत खराब होंगे ही होंगे चाहे टूथपेस्ट कोई सा भी हो |इसलिए आज से नो चॉकलेट ,नो पिज्जा ,नो बर्गर is it ok. पहेलियों के सही जवाब देने वाले प्रतिभागी को शन्नो जी के गाँव की सैर करवाने ले चलेंगे हम ,तो फिर देर किस बात की जल्दी लिखिए जवाब आपके और पहेलियाँ हमेशा की तरह हमारी ही |



नीलम मिश्रा


धरती का श्रंगार

भूल गया पेड़ों का दान
मानव क्या इतना नादान

काट काट कर जंगल नाश
खुद अपना कर रहा विनाश

स्वार्थ बना है इसका मूल
गुड़ पेड़ के गया है भूल

यही हैं देते प्राण वायु
इनसे मिलती लंबी आयु

करते अपना यह उपचार
करते हम पर यह उपकार

तरह तरह के देते फूल
कम करते यह मिट्टी धूल

औषधि का देते सामान
हम भूले इनकी पहचान

कैसा है अधुना इनसान
रखें याद न सृष्टि विधान

मानवता से कैसा वैर
काट रहा खुद अपने पैर

साध रहा बस अपने स्वार्थ
भूल गया है यह परमार्थ

पेड़ों की हम सुनें पुकार
बंद करें अब अत्याचार

यह हैं धरती का श्रॄंगार
इनसे ही जीवन साकार

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 28, 2009

सबसे भला बेटा

तीन औरतें पनघट पर मिलीं। उनमें से दो अपने-अपने बेटों की प्रशंसा करने लगीं। एक ने कहा, "मेरे बेटे जैसा
बलवान तो आस-पास के गांवों में कोई भी नहीं वह तो चालीस-चालीस किलो वजन उठा लेता है"

दूसरी औरत बोली -"मेरे बेटे की तेज चाल देखकर तो हरिन भी जाते हैं। वह बात की बात में कई किलोमीटर दूर चला जाता है।"

तीसरी औरत ने कहा- "मेरा बेटा तो साधारण है। उसमें कोई विशेषता नही है।"

इतनी में पहली औरत का बेटा झूमता हुआ आया और माँ की ओर देखे बिना निकल गया। दूसरी औरत का बेटा भी
तेज चाल से चलता हुआ उधर से गुजर गया। उसने भी अपनी माँ की ओर नहीं देखा। इतने में तीसरी औरत का बेटा
आकर बोला -"माँ तुम क्यों आई? मैं ही पानी ले आता।" यह कहकर उसने माँ के हाथ से घड़ा अपने सिर पर रखवा लिया और घर की ओर चल दिया।

यह देख कर दोनों औरतें उस तीसरी औरत से बोलीं -"बहिन, हम तो अपने बेटों की प्रशंसा कर रही थीं, पर सबसे भला बेटा तो तेरा है, जो माँ के काम आता है।"

संकलन
नीलम मिश्रा


Wednesday, May 27, 2009

सफल बनना है तो

प्यारे बच्चो,
बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम हमेशा सुनते हैं अपने से बड़ों से, पर अमल नहीं करते। हम सिर्फ़ इतना कहेंगे कि ये अमूल्य बातें हैं, जिन्हें आप हमेशा याद रखेंगे तो आप अवश्य ही सफल होंगे अपने जीवन में -

1) जीवन का लक्ष्य निर्धारित करें, इससे जीवन में सफलता जल्दी मिलती है।

2) अपनी डायरी में जीवन की महत्त्वपूर्ण बातें लिखें, इसके कभी-कभी चिंतन से उत्साह बना रहेगा।

3) चेहरे पर मुस्कान रखें। आप सभी के आकर्षण के केन्द्र-बिन्दु बन जायेंगे।

4) दूसरों की मदद करें, प्रसन्नता प्राप्त होगी।

5) दूसरों को ऐसा व्यवहार दे जिसे हम अपने लिए पसंद करते हैं।

6) गुणों से व्यक्ति महान बनता है, अतः गुण ग्रहण करें।

7) सेवा ही धर्म है।

8) कर्तव्य पालन से ही शान्ति मिलती है।

9) बहुत से विचारों वाला नहीं, एक निश्चय वाला व्यक्ति महान बनता है।

10) आचरण वह दर्पण है, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपना चित्र प्रर्दशित करता है।

संकलन-
नीलम मिश्रा


Tuesday, May 26, 2009

चमगादड़


चूहे सा होता चमगादड़
लगे पीठ से होते डैने,
चोंच न होती उसके मुहँ में
दाँत बड़े होते हैं पैने।

उसके डैने ऐसे होते
जैसे आधा छोटा छाता,
उसकी टांगें ऐसी होतीं
जिन पर बैठ नहीं वह पाता

टांगों में कटिया सी होती
अटका जिन्हें लटक वह जाता,
उड़ते-उड़ते, उड़ते कीड़ों
और मकोड़ों को वह खाता

रात अँधेरी जब कट जाती
जब उजियाला सब पर छाता,
किसी अँधेरी जगह लटक कर
उल्टा चमगादड़ सो जाता

--हरिवंश राय बच्चन


Monday, May 25, 2009

नीति जी सबसे बुद्धिमान बालिका

पहेलियाँ हमारी जवाब आपके ,

नीति जी सबसे बुद्धिमान बालिका घोषित की गई हैं ,उसके पश्चात् दूसरे नम्बर पर हमारे नए खिलाडी संजय जी है ,तीसरे नम्बर पर हमेशा की तरह लेट लतीफ़ चौहान साहब हैं ,मनु जी अपनी धुन में ही मस्त कुछ उत्तरों की नक़ल करके चलते बने

अब बात करते हैं ,इन महाशय की जो सीधे मंगल ग्रह से पहेलियाँ बताते हैं ,जनाब आपके जवाब बहुत ही असंतुष्ट

करते हैं ,पहली पहेली में सारे विकल्प दे दिए इन्होने ,अब इन्हे कौन समझाय की हमारे देश में पानी की कमी

बढती ही जा रही है ,इसलिए सर से पानी सिर्फ़ और सिर्फ़ स्नानघर में ही गिरता है,

चौथी पहेली में समय या वक्त को वरयीता दी जायेगी पर शब्द भी ग़लत नही होगा

१ स्नानागार,

२ टाई

३ दरवाजे

४ समय

५ मक्का-मदीना (सउदी अरब)

इस बार काफ़ी कम लोग आए ,इस बार काफी कम लोग आये ,लगता है सब बहुत उदास हैं ,शन्नो को बहुत मिस कर रहें हैं ,पर ऐसी कोई बात नहीं है ,वो भारत आ गयी हैं और बहुत जल्दी मनु और स्वप्नदर्शी जैसे मनमौजी तथा चौहान जैसे लेट लतीफ़ को ठीक करने आ रही हैं


Saturday, May 23, 2009

शनिवार का दिन और आपकी पहेलियाँ

आज हमारी कक्षा को एक नए मॉनिटर की तलाश है ,शन्नो जी की गैर हाजिरी है कुछ समय के लिए ,तो सर्वसम्मति से हम मनु जी को मॉनिटर बना देते हैं इस उम्मीद के साथ कि वो अपना काम बखूबी करेंगे

१)एक कोठरी तो हर घर में,

काहू न बिस्तर पाय

पानी सिर से गुजरत है ,

चेतत है केहू नाहि


२)मै फांसी का फंदा,

मुझसे लगती फांसी नहीं,मगर

तुम भी कहलाओगे साहब,
मुझे गले में कसो अगर


३)हम आये तू हट ,

जाएँ तो दोनों सट


४) जो जाकर न वापस आये,

रोके से कोई रोक न पाए,

सारे जग में उसकी चर्चा ,

वो काफी बलवान कहाए


५)देश कौन सा है,वो जहां,

बहती नहीं नदी कोई ,

लाखों जाते तीरथ हर साल,

उसकी ख्याति जग में होई

आज कि पहेलियाँ बहुत सरल हैं ,जल्दी आइये और जल्दी खिताब पाईये




Friday, May 22, 2009

रुपया

रुपया बड़ा महान
सब करते गुणगान
रुपया है जहान
इससे मिलता मान .

भूल गये सम्मान
ताऊ अब्बा जान
रुपया है वरदान
सभी गुणों की खान .

रुपया दे अभिमान
दुर्बल को दे जान
रुपयों से है शान
इसे कमाना ठान .

सबका है अरमान
रुपयों की हो खान
इसको पा शैतान
लगता है इंसान .

जो पाये अनजान
दुनिया कहे महान
जीवन लगता तान
दे मान संतान .

रुपया कर परवान
बदले राज विधान
बिकता है ईमान
मोल लगाना जान .

रुपया बड़ा महान
सब करते गुणगान .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 21, 2009

छाया का भ्रम

भोर हुई तो लोमडी आँखें मलती हुई उठी|पूँछ उसकी उगते हुए सूरज की और थी |छाया सामने पड़ रही थी |उसकी लम्बाई और चौडाई देखकर लोमडी को अपने असली स्वरुप का आभास मानो पहली बार हुआ|

सोचने लगी -वह बहुत बड़ी है|इतनी बड़ी कि समूचे हाथी के बिना उसका पेट भरेगा नही| सो हाथी का शिकार करने वह घने जंगल में घुसती चली गई|भूख जोरों से लग रही थी ,पर छोटी खुराक से क्या काम चलता !उसे हाथी पकड़ने की सनक चढी थी|

भूखी लोमडी भाग दौड़ से थक कर चूर-चूर हो गई| तब तक दोपहर भी हो गई|सुस्ताने के लिए वह जमीन पर बैठी, तो सारा नजारा ही बदल चुका था|छाया सिमटकर पेड़ के नीचे जा छिपी थी|

इस नई असलियत को देखकर लोमडी का चिंतन बदल गया|वह सोचने लगी- इतने छोटे आकार के लिए तो एक छोटी मेढकी भी बहुत है|मै बेकार ही छाया के भ्रम में इतने समय भटकी|

मनुष्य भी इसी तरह अपनी इच्छाओं को देखकर अपनी आवश्यकताएं आसमान के बराबर मानने लगता है|विवेक के आधार पर जब सत्य का आभास होता है, तो उसका दृष्टीकोण बदल जाता है|

साभार- बाल बोध कथाएं

संकलन- नीलम मिश्रा


Tuesday, May 19, 2009

क्या आप जानते हैं????????

सुराही में पानी ठंडा क्योँ रहता है ?



बच्चो,

तुमने कभी मिटटी की सुराही या घड़े को ध्यान से देखा है? उसे गौर से देखो, तुम देखोगे कि उसमें नन्हे-नन्हे से अनगिनत छिद्र (छेद ) होते हैं। इन छिद्रों (छेदों ) के कारण ही सुराही और घड़े का पानी हर समय ठंडा रहता है।
जानते हो कैसे? इन छेदों से सुराही का पानी भाप के रूप में बहार निकलता रहता है। भाप बनते रहने के कारण
पानी की गर्मी कम हो जाती है और वह ठंडा हो जाता है। है न मजेदार जानकारी!अब जाकर अपने दोस्तों को बताओ और वाह वाही लूटो।
आज के लिए इतना ही फिर मिलते हैं एक और रोचक व ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के साथ।

--नीलम आंटी


Monday, May 18, 2009

पहेलियों के उत्तर- इस दिमागी कुश्ती का man of the match

पहेलियों के उत्तर के साथ हमे यह बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि इस बार नीति और स्वपनदर्शी को सबसे ईमानदार प्रतिभागी घोषित किया गया है ,और मनु जी को सबसे कठिन पहेली का जवाब देने पर इस दिमागी कुश्ती का man of the match घोषित किया जाता है D .S chauhan जी हमेशा की तरह लेट लतीफ़ हैं ,शन्नो जी सबसे होशियार छात्रा हैं हमारी कक्षा की इस बात से तो आप सब सहमत ही होंगे हमारी नई प्रतिभागी वंदना जी का भी स्वागत है ,पूजा जी आपने भी सही समय पर आकर जवाब दिए ,आप sab
की उपस्थिति है ,तो हमारी पहेली भी है ,
पहेलियों के सही जवाब इस प्रकार हैं ,
१ खूंटा (खूंटी)
२ अन्धकार
३ निद्रा, नींद
४ देश- विदेश का नक्शा
५ रहट

दूसरी पहेली के काफ़ी नजदीक आकर मनु जी ने हथियार डाल दिए ,अब गोधुली तो किसी की किस्मत में नही होती है ,उसे तो अंधेरे से ही जोड़ते हैं न हम सब ,कुल मिलाकर सभी का सराहनीय प्रयास है मिलते हैं अगले शनिवार को तब तक के लिए खुदा हाफ़िज





Sunday, May 17, 2009

धूर्त साहूकार (नैतिक शिक्षा)

बहुत वर्षों पहले, भारत के किसी छोटे से गाँव में, एक किसान को बदकिस्मती से गाँव के साहूकार से कुछ धन उधार लेना पड़ा। बूढा साहूकार बहुत चालाक और धूर्त था, उसकी नज़र किसान की खूबसूरत बेटी पर थी। अतः उसने किसान से एक सौदा करने का प्रस्ताव रखा। उसने कहा कि अगर किसान उसकी बेटी की शादी साहूकार से कर दे तो वो किसान का सारा कर्ज माफ़ कर देगा। किसान और उसकी बेटी, साहूकार के इस प्रस्ताव से कंपकंपा उठे।

तब साहूकार ने उनसे कहा कि ठीक है, अब ईश्वर को ही यह मामला तय करने देते हैं। उसने कहा कि वो दो पत्थर उठाएगा, एक काला और एक सफ़ेद, और उन्हें एक खाली थैले में डाल देगा। फिर किसान की बेटी को उसमें से एक पत्थर उठाना होगा- १) अगर वो काला पत्थर उठाती है तो वो मेरी पत्नी बन जायेगी और किसान का सारा कर्ज माफ़ हो जाएगा , २) अगर वो सफ़ेद पत्थर उठाती है तो उसे साहूकार से शादी करने की जरूरत नहीं रहेगी और फिर भी किसान का कर्ज माफ़ कर दिया जाएगा, ३) पर अगर वो पत्थर उठाने से मना करती है तो किसान को जेल में डाल दिया जाएगा।

वो लोग किसान के खेत में एक पत्थरों से भरी पगडण्डी पर खड़े थे, जैसे ही वो बात कर रहे थे, साहूकार ने नीचे झुक कर दो पत्थर उठा लिये, जैसे ही उसने पत्थर उठाये, चतुर बेटी ने देख लिया कि उसने दोनों ही काले पत्थर उठाये हैं और उन्हें थैले में डाल दिया।

फिर साहूकार ने किसान की बेटी को थैले में से एक पत्थर उठाने के लिये कहा। अब किसान की बेटी के लिये बड़ी मुश्किल हो गयी, अगर वो मना करती है तो उसके पिता को जेल में डाल दिया जाएगा, और अगर पत्थर उठाती है तो उसे साहूकार से शादी करनी पड़ेगी।

(यहाँ एक मिनट के लिये रुक कर सोचिये कि अगर आप उसकी जगह होते तो क्या करते??? )

किसान की बेटी बहुत समझदार थी, उसने थैले में हाथ डाला और एक पत्थर निकाला, उसे देखे बिना ही घबराहट में पत्थरों से भरी पगडण्डी पर नीचे गिरा दिया, जहां वो गिरते ही अन्य पत्थरों के बीच गुम हो गया।

"हाय, मैं भी कैसी अनाड़ी हूँ", उसने कहा, " किन्तु कोई बात नहीं, अगर आप थैले में दूसरा पत्थर देखेंगे तो पता चल जाएगा कि मैंने कौनसा पत्थर उठाया था।"
क्योंकि थैले में दूसरा पत्थर काला वाला था, तो यही माना गया कि उसने सफ़ेद पत्थर उठाया था और क्योंकि साहूकार अपनी बेईमानी को स्वीकार नहीं कर पाता इसलिए होशियार किसान की बेटी ने असंभव को संभव कर दिखाया।

नैतिक शिक्षा- बड़ी से बड़ी समस्या का भी हल होता है, बस हम उसे हल करने का कदम नहीं उठाते

इस कहानी को आप सुन भी सकते हैं। मैं अपनी ही आवाज़ में यह कहानी आपको सुनाने आयी हूँ-


प्रस्तुति- पूजा अनिल


Saturday, May 16, 2009

8 से80 साल के बच्चों तथा बूढे बच्चों के लिए मनोरंजन ही मनोरंजन

यानी की पहेलियाँ ही पहेलियाँ

१)उसके सिर को ठोंका जाय ,
आधी देह धरती में समाय |


२)दुनिया में सब देखते ,
सूर्य चन्द्र नहीदेख |
किस्मत ऐसी बन गई ,
कभी मिटे न लेख

३)नयन द्वार से रात में आती ,
न आऊं तो बदन थकाती|


४)नदी बहुत है पर नही पानी
दिखे नगर,पर दिखे न प्रानी
कालिख से ये बनी है काया ,
कागज़ पर स्थान है पाया |


५)सिर पर सोहे निर्मल जल ,
मुंडमाल गल माहि |
वाहन वाको बैल है ,
शिव कहिये कभी नाहि

थोड़ा सा दिमाग को स्थिर करिए और फिर इनके जवाबों को सोचिये ,सभी सही हल देने वाले को एक और पहेली बूझने का पुरूस्कार दिया जा सकता है |अधिक से अधिक संख्या में प्रतिभागियों के आने पर ही हमारा हौसला बढ़ता है ,पहेली में शायद कुछ संकेत की जरूरत न पड़े ,अगर पड़ेगी तो हम मदद करने के लिए तैयार हैं ,
शन्नो ,तुम कक्षा का ध्यान रखना ,चुनावी गिनतियाँ प्रारंभ हो गई हैं ,सबका ध्यान अगली सरकार की तरफ़ है,पर पहेली से ध्यान किसी का न हटे ये तुम्हारी जिम्मेदारी है , और जो प्रतिभागी अभी तक औन्धे (उल्टे )मुहँ पड़े हैं उनका भी हाल चाल ले ही लेना |
मिलते है सोमवार को पहेलियों के सही उत्तर और सबकी गतिविधियों को आपके सामने लेकर ,तब तक के लिए खुदा हाफ़िज








महीनों के नाम

जनवरी, फ़रवरी , मार्च , अप्रैल , मई ,जून और जुलाई आशा है आप सबने इन सभी महीनों के नाम अच्छे से याद कर लिए होंगे । अब आगे के पांच महीनों के नाम और संक्षिप्त जानकारी दे रही हूं ।

अब आया है मास अगस्त
कुदरत भी अब हो गई मस्त
नभ मे छा गए बादल काले
उमड-घुमड घूमे मतवाले

आ गया अब लो मास सितम्बर
भर-भर गया बादल से अम्बर
वर्षा आई,खुशिया लाई
धरा पे अब हरियाली छाई


अक्तूबर का आया मास
क्यो रहे फिर कोई उदास
आए द्शहरा और दीवाली
सबके हाथ मिठाई की थाली

आया बच्चो मास नवम्बर
नही बैठना कोई घर पर
लगाओ पूरा पढने मे मन
आगे है सर्दी का मौसम


दिसम्बर साल का आखिरी मास
पर न होना कोई उदास
इसके बाद नया साल आए
चलो हम भी कुछ नियम बनाएँ

आशा है आप सब लोग अच्छे से याद कर लेंगे ।
आपकी
सीमा सचदेव


Friday, May 15, 2009

जहाँ चाह वहीं राह

जहाँ चाह वहीं राह

जहाँ चाह है वहीं राह है
इसे न जाना भूल .
जो न करता प्रयत्न कभी भी
उसको मिलता शूल .

कांटे बिछे हर राह अनेक
हिम्मत कभी न हार .
जब पहुँचोगे तुम मंजिल पर
मिलें खुशी के हार .

अवसर कभी न खोना यूँ हीं
छोटा न कोई काम .
चढ़ते चढ़्ते चढ़ जाता नर
पर्वत पर हो धाम .

इक इक अणु जब वाष्पित होता
बनकर छाये मेघ .
इक इक बूंद से भरता घड़ा
मिलकर बाँटो नेह .

कण कण से ही बनता मधुरस
कण कण से संसार .
कण कण से ही बना हुआ है
अखिल विश्व अपार .

हिम्म्त कर बस चलना सीखो
मन में हो उत्साह .
हार जीत तो मन से होती
करो न कुछ परवाह .

तुम भी जग में चलना सीखो
पाओगे हर राह .
जग में जो भी फिर चाहोगे
पूरी होगी चाह .

कवि कुलवंत सिंह


महीनों के नाम-2

पिछली बार आपने सीखे जनवरी, फ़रवरी और मार्च महीनों के नाम। आज अगले चार महीनों के नाम और उनसे संबंधित जानकारी है, यह :-

अप्रैल का आया जो महीना
मिला हो जैसे कोई नगीना
आ गए सब परीक्षा परिणाम
अब तो बस खेलने से काम

मई महीना आया जब
अन्दर घुस के बैठे सब
कडी धूप गर्मी का मौसम
पन्खे चलते रहते हरदम

जून मे जो गर्मी सताए
तो कोई बाहर न जाए
स्कूल भी सारे हो गए बन्द
छुट्टियो मे तो खूब आनन्द

जून के बाद जो आया जुलाई
गर्मी से कुछ राहत पाई
छुट्टियों में तो मस्ती मनाई
अब सब करना खूब पढाई
कल फ़िर मिलेंगे, अगले महीनों की जानकारी के साथ। तब तक बाय-बाय
आपकी
सीमा सचदेव


Thursday, May 14, 2009

माँ का चित्र पहचानो

पिछले रविवार को एक ख़ास दिन था, माँ को याद करने का एक विशेष दिन, छुट्टी का दिन था तो इन तीन बच्चों ने अपनी माँ के ऊपर ही पेंटिंग बना दी।
आपको इनके प्रयास को सराहना है और साथ में यह भी बताना है की इसमें से कौन किस बच्चे की मम्मी है, है न आज के लिए एकदम आसान सवाल!
हमारे नन्हे चित्रकार हैं- पाखी, हर्षिता और अदिति।
आपको एकदम सही तुक्के लगाने हैं और जरा सा प्रयास करने पर आप आसानी से कर सकते हैं, आपको पहले की चित्र प्रतियोगिता अगर याद है तो ठीक वरना आप चित्र प्रतियोगिता के आधार पर देख कर आसानी से बता सकते हैं।

चित्र-1


चित्र-2


चित्र-3


प्रस्तुति- नीलम मिश्रा


Wednesday, May 13, 2009

नंदन कानन की सैर

बच्चो, पिछले दिनों ही आपने सीमा दीदी के साथ सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की। आइये इस बार आपको लेकर चलते हैं नंदनकानन की सैर पर।

नंदनकानन उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से जज़दीक एक चिड़ियाघर भी है और अभयारण्य भी। ये सबसे बड़े चिड़ियाघरों में से एक है। यहाँ आप सभी तरह के पशु-पक्षियों से मिल सकते हैं। इस चिड़ियाघर की खास बात यह है कि यहाँ पर काफी जंगली जानवर ऐसे हैं जिन्हें पिंजरों में नहीं रखा गया बल्कि लोगों से उनके रहने की जगह थोड़ी दूर कर दी गई है।

हम लोग सबसे पहले सफ़ारी पर गये। बस में हमें केवल दस मिनट के लिये घुमाया और हमने अपने कैमरे में कैद कर लिया एक बाघ। और कोई ऐसा-वैसा बाघ नहीं...ये था सफ़ेद बाघ!!! ये बंगाल में पाया जाता है।



उसके बाद हमने चिड़िया घर की सैर की।

सबसे पहले हमें मिले तोते...


उसके बाद हमें मिले ये पक्षी..



काला हिरन


यहाँ पर एक झील भी है। यहाँ ट्रॉली में बैठ कर आप झील का आनंद ले सकते हैं और बोटिंग भी कर सकते हैं।


और ये रहा गैंडा..बिना पिंजरे के हमारे नज़दीक। इसकी खाल बहुत मोटी होती है।


सोते हुए घड़ियाल..


घड़ियाल और मगरमच्छ में अंतर होता। कईं बार हमसे उन्हें पहचानने में भूल हो जाती है। नीचे मगरमच्छ देखिये..


ज़्यादा नज़दीक से देखना चाहते हैं?


साँप.. और भी थे, पर शीशे के अंदर थे इसलिये तस्वीरें साफ़ नहीं आईं। यहाँ आपको सभी तरह के साँपों की प्रजातियाँ देखने को मिलेंगी।


बड़ी छिपकली


रंग-बिरंगे चूहे


जाना पहचाना हाथी...


जंगल का राजा शेर...


हमारे सामने बैठा एक और सफ़ेद बाघ


भालू


जानते हैं हममें और जानवर में क्या अंतर है? मनुष्य को भगवान ने बुद्धि दी है। हमें चाहिये हम प्रकृति को बचायें.. जानवरों, पक्षियों व पेड़-पौधों की रक्षा करें। इसलिये जाते-जाते एक पते की बात...


--तपन शर्मा



Tuesday, May 12, 2009

महीनों के नाम

नमस्कार बच्चो ,
कैसे हैं आप सब लोग? आपको मालूम है न कि एक साल में बारह महीने होते हैं। पर क्या आप उनके नाम और भिन्न-भिन्न महीनों के साथ जुड़े त्योहार या मौसम के बारे में जानते हैं। नहीं न! तो चलो आज से मैं आपको सिखाऊंगी बारहों महीनों के नाम और उनसे जुड़ी संक्षिप्त जानकारी भी दूंगी। आज के काम में पहले तीन महीने - जनवरी, फ़रवरी और मार्च। तो अब सीखें:-
महीनों के नाम
साल में होते बारह मास
सारे इक दूजे से खास
आओ बच्चो तुम्हें बताऊं
बारहों मास के नाम सिखाऊं

जनवरी साल का पहला महीना
पड़ता है ठण्डी में जीना
आता लोहड़ी का त्योहार
मिलते हमें खूब उपहार

फरवरी आई ,सर्दी भगाई
बसन्त ऋतु हरियाली लाई
बच्चों को कुछ चिन्ता सताए
अगले माह परीक्षा जो आए

मार्च का महीना आया
होली का त्योहार भी लाया
ऊपर से आ गए एग्जाम
खेलने का नहीं लेना नाम

*****************************

देखो, अपना घर का काम पूरी इमानदारी से करना। कल तक आपका यही गृह-कार्य है, अगले महीनों की जानकारी अगली कक्षा में दी जाएगी ।

तब तक बाय-बाय
आपकी
सीमा सचदेव


Monday, May 11, 2009

स्वप्नदर्शी जी को आख़िर पटक ही दिया

स्वप्नदर्शी जी को आख़िर पटक ही दिया अंत में आकर अपने पुराने खिलाडी मनु जी ने ,स्वप्नदर्शी जी एक एक करके सबको पीछे छोड़कर आगे निकलते जा रहे थे ,तभी मनु जी ने बजरंगबली का नाम लेकर आख़िर में धोबी पटका दे ही दिया ,पहेली सुलझाने में वो आगे ही आगे थे कल से और साथ में हमे और शन्नो जी को समझा भी रहे थे कि सब लोग पहाडों की सैर करने चले गए हैं ,पर हम लोग कब उनकी बातों में आने वाले थे नही माने ,और आख़िर में मिल ही गया
w.w.f का वो पहलवान जिसे आप मनु कहे या खली ,उसने एक पहेली बता कर इन स्वप्नदर्शी जी को चारों खाने
चित्त
कर दिया ,d .s chauhan जी हम सब लोग आपसे बेहद नाराज हैं ,आप के ही कहने पर हर शनिवार को पहेलीका आयोजन किया जाता है और आप हैं कि ........खैर जाने दीजिये अगली बार से जल्दी आने का प्रयास करियेगा

शन्नो बेटा ,
तुम बखूबी अपने काम को अंजाम दे रही हो,ऐसे ही अपना काम करती रहो तुम्हारी तरक्की होने वाली है ,किसी को बताना मत |

१. जूता-चप्पल
२. प्राण
३. होंठ
४. पैबंद
५. कहानी


Sunday, May 10, 2009

सुनिए मातृ दिवस पर एक कहानी

बच्चो,

आज दुनिया के कई हिस्सों में मातृ-दिवस यानी मदर्स-डे मनाया जा रहा है। आप सभी को इस पर्व की ढेरों बधाइयाँ। भारत में माँ को समर्पित यह त्योहार मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। आपकी मीनू आन्टी आप सबके के लिए, आप जैसे अपनी-अपनी माँ से बहुत प्यार करने वाले बच्चों के लिए रचना श्रीवास्तव की लिखी कहानी 'मेरी माँ सिर्फ अच्छी है, लेकिन सबसे अच्छी नहीं' अपनी आवाज़ में रिकॉर्ड करके लाई हैं। सुनिए-


मेरी माँ


मुझे प्यारी मेरी माँ
दुनिया से है न्यारी माँ

प्यार से सुबह जगाती है
मीठा दूध पिलाती है

पहना के मुझे सुन्दर कपडे
स्कूल छोड के आती है

अच्छे अच्छे खाने बनाती
अपने हाथ से मुझे खिलाती

रोज खेलती मेरे साथ
चलती मेरा पकड के हाथ

प्यार से मुझको गले लगाए
मीठी-मीठी लोरी सुनाए

पापा को जब गुस्सा आए
तो माँ आकर मुझे बचाए

कभी -कभी माँ जब छुप जाए
तो मुझे रोना आता है

माँ का इक पल भी न दिखना
मुझको जरा न भाता है

अच्छी टीचर मेरी माँ
मेरी दोस्त मेरी माँ
प्यारी प्यारी मेरी माँ
दुनिया से है न्यारी माँ
*************************************

इस कविता को आप सबकी प्यारी मीनू आन्टी ने आवाज़ भी दी है। उसे भी सुनिए और अपनी-अपनी माँ को भी सुनाइए-


Saturday, May 9, 2009

शन्नो स्वपनदर्शी से नाराज हैं इसी ख़बर के साथ आज की पहेलियाँ ,

शन्नो जी ने मांग की है की इस स्वपनदर्शी को बड़ा घमंड हो गया है अपने ऊपर ,वो बार उन्हें याद करती रहती हैं ,पर वो हैं की कोई जवाब ही नही दे रहे हैं ,इसे कक्षा के बाहर ही खड़ा रहने दिया जाय ,जब तक यह व्यक्ति ,या मंगल ग्रह का प्राणी शन्नो जी से मुआफी नही मांग लेता है |

अब आप लोग निर्धारित करिए ,कि इसे कैसे निपटाया जाय


फिलहाल आज की पहेलियाँ हाजिर हैं

१)मुंह में भर मानुष का पैर ,
करुँ पीठ के बल सैर

२)मै ही हूँ जीवन का सार ,
नही रहूँ ,तो देह बेकार

३)लाख कहूं लागत नहीं,
बरजत(वर्जित) लागे धाय (तुंरत )
कही पहेली एक यही ,
दीजो चतुर बताय |

४)लग जाए तो लाज लगे ,
ना लगे तो और लजाय|
वे जन भाग्य के ,
जिन्हें न ये लग पाये


5
) )सर काटे तो लाभ न होवे ,
कनी बना धड़ हीन ,
पैर काटते कहा मानते ,
अक्षर केवल तीन

शन्नो बेटा ,तुम बहुत होनहार छात्रा हो अपना काम तो पूरा करती ही हो ,साथ में कक्षा को भी बखूबी संभालती हो

ग्रीष्मावकाश होने वाला है इसलिए बच्चे कुछ सुस्त हैं कुछ सो ही जाते है ,और इस कक्षा में आते भी नही हैं ,सबकी
लिस्ट बनाकर हमे दो ,फिर देखते हैं कि गैर -मौजूद लोगों के साथ क्या करना है ,हम भी थोड़ा विश्राम करते हैं ,
फिर मिलते हैं ,आपकी प्रतिक्रियाओं के इन्तजार में ,

नीलम मिश्रा





Friday, May 8, 2009

फ़ूड प्वॉयजन

नमस्कार बच्चो,
कैसे हैं आप सब लोग? आज मैं आपको सुनाऊँगी एक कहानी- फ़ूड प्वॉयजन
एक लडका था, जिसका नाम था विशाल। विशाल बहुत ही प्यारा बच्चा था। अपने मम्मी-पापा से खूब प्यार करता। उसके मम्मी-पापा भी उससे खूब प्यार करते। विशाल के मम्मी-पापा दोनों नौकरी पेशा थे। इसलिए विशाल को स्कूल के बाद शाम तक डे-केयर में ही रहना पड़ता। विशाल सारा दिन डे-केयर में बिताता और शाम को जब मम्मी-पापा घर आ जाते तो घर में खूब मस्ती करता। कभी-कभी विशाल को बुरा लगता लेकिन फिर भी वह मम्मी-पापा की मजबूरी समझता था, इसलिए कभी शिकायत न करता। मम्मी सुबह-सुबह खाना बनाकर दिन भर के लिए विशाल को खाने का सामान दे देती। एक दिन मम्मी की तबीयत ढीली हो गई और वह विशाल के लिए खाना नहीं बना पाई। मम्मी ने विशाल को पैसे दिए कि वह स्कूल की कैण्टीन से कुछ खा लेगा। विशाल ने उस दिन कैण्टीन से समोसा-पूरी मजे से खाए, बस फिर क्या था, उसे घर का खाना फ़ीका लगने लगा। अब तो वह हर रोज माँ से पैसे माँगता ताकि वह बाहर से चटपटा खाना खा सके। माँ के लिए भी आसान हो गया, वह भी सुबह-सुबह खाना बनाने के झंझट से मुक्त हो गई। एक दिन विशाल ने स्कूल के बाहर खडे फल वाले से फल खाए जो उसने न जाने कितनी देर पहले से ही काट कर रखे थे। विशाल अपने हाथ धोना भी भूल गया। चटपटे मसालेदार फलों की चाट खाकर विशाल को खूब मजा आया। लेकिन थोड़ी ही देर में उसके पेट में दर्द होने लगा और उल्टियां भी करने लगा। बार-बार उल्टी करने से विशाल की हालत बहुत नाजुक हो गई। पेट दर्द से वो कराह रहा था। जल्दी से उसे अस्पताल पहुँचाया गया। जहाँ पर उसे कितने सारे इंजैक्शन लगे और दवाईयां भी लेनी पड़ी। डाक्टर अंकल ने बताया कि विशाल की यह हालत गंदी चीजें खाने से हुई है। बहुत देर पहले से कटे हुए फल या फिर ऐसा खाना जिस पर मक्खी-मच्छर बैठे हों या फिर बिना हाथ धोए खाने से फ़ूड प्वॉयजन हो जाता है। जहरीले कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं जो खतरनाक साबित हो सकता है और समय पर इलाज न हो तो जान भी जा सकती है। यह सारी बातें सुनकर मम्मी को अपनी गलती का अहसास हुआ। दो-तीन दिन में विशाल की तबीयत कुछ सुधरने लगी। अगले कुछ दिन तक वह स्कूल नहीं जा पाया और मम्मी-पापा को भी छुट्टियां लेकर घर में रहना पड़ा। इस सब से विशाल भी अपने आप को दोषी मानने लगा और आगे से मम्मी को गंदा खाना न खाने का वचन दिया।
1. आपने भी समझा न कि गंदा खाना खाने का परिणाम क्या होता है?
2. बहुत देर पहले कटे हुए फल कभी नहीं खाने चाहिएं।
3. बाहर से कुछ खाने से पहले सफ़ाई और स्वच्छता को अच्छी तरह जाँचना चहिए।
4. कुछ भी खाने से पहले हाथ जरूर धोने चाहिएं।
5. हो सके तो केवल घर में बना हुआ साफ़-सुथरा, सादा भोजन करना चाहिए।
6. कभी चटपटा खाने का मन भी करे तो ताजा ही खाना चाहिए, बासी नहीं।
7. और हाँ, अभी खूब गर्मीं पड़ रही है न तो बाहर जाते हुए अपना पानी और छाता अपने साथ रखना कभी मत भूलना, फिर देखना तुम कभी बीमार नहीं पड़ोगे


अपनी गर्मी की छुट्टियों में खूब मस्ती करना।
बाय-बाय
आपकी
सीमा सचदेव


कदम बढ़ाकर

कदम बढ़ाकर

कभी नही घबराना
कदम बढ़ाकर चलते जाना
मंजिल तुमको पाना.

चलते रहना जिसने सीखा
मंजिल है वह पाता
जीवन से जो कभी न हारे
वीर वही कहलाता.
साहस शौर्य जिसने दिखलाया
जग ने उसको माना.

मानवता का पहनो चोला
दीनों का दुख हरने
पर पीड़ा को अनुभव करने
घाव दुखों का भरने
खुशियां भले ही बांट न पाओ
दुख न कभी पहुंचाना.

घोर निराशा कितनी छाए
धीरज कभी न खोना
सौ बार भले ही हारो तुम
हार पे तुम न रोना
समय की कीमत तुम पहचानो
समय कभी न गंवाना.

हर ओर तुम्हारे छल खल हो
फिर भी हंसते जाना
चीर तिमिर को, सत्य, न्याय औ
प्रेम लुटाते जाना
कदम बढ़ाकर चलते जान
कोशिश करते जाना.

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 7, 2009

क्या आप जानते हैं?

ओस क्यों पड़ती है?

प्यारे बच्चो,

जैसाकि तुम्हें पता है कि सूरज की गर्मी से तालाब, नदी और झीलों का पानी भाप बनकर उड़ता है और
हवा में मिल जाता है। इससे हवा में पानी के भाप की मात्रा बढ़ जाती है। सूरज छिपने पर पृथ्वी दिन भर की ली हुई
गर्मी खोने लगती है और ठंडी होने लगती है। पृथ्वी से लगी होने के कारण हवा भी ठंडी होने लगती है और अंत में इतनी ठंडी हो जाती है कि वह सब भाप को नहीं रख सकती, पानी की बूंदों की शक्ल में बदल जाती है और पत्तों पर, घास पर और खुली हुई जगहों पर जम जाती है। यही ओस कहलाती है।
बच्चो, तुमने देखा होगा कि जिस दिन आसमान में खूब बादल छाए होते हैं उस दिन ओस नहीं गिरती।
इसका कारण जानते हो? बादलों के छाए होने के कारण धरती की गर्मी आकाश में ऊंचे नहीं जा पाती और बादलों
के नीचे-नीचे रहती है। इससे हवा ठंडी नहीं हो पाती और ओस नहीं पड़ती।


Wednesday, May 6, 2009

सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर

सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं । आओ आज हम सरिस्का की सैर करते है

सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान अरावली पहाडियों के बीच, राजस्थान के अलवर जिला में स्थित है जंगल से भरी घाटी को उजाड़ पर्वतमालाओं ने घेर रखा है। यह उद्यान जयपुर से मात्र 110 किमी और दिल्ली से 200 किमी की दूरी पर है।

यहाँ विभिन्न किस्म के प्राणी और पशु-पक्षी पाए जाते हैं जैसे कि बाघ, तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, साही, साँभर, चिंकारा, नीलगाय और चार सींगों वाले बारहसिंगे।








इस पार्क में बहुत से मंदिरों के अवशेष भी हैं।


हरे भरे जंगल और पशु - पक्षियों के सुंदर नज़ारे सरिस्का की सैर को अत्यंत मनमोहक बना देते हैं

- सीमा कुमार


Monday, May 4, 2009

स्वप्न दर्शी जी फिर सबसे अच्छे प्रतिभागी घोषित किए गए हैं | आपकी चिर प्रतीक्षित पहेलियों के सही उत्तर

आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद जो आप हमारी कक्षा में पधारे ,कुछ प्रतिभागी नियमित रूप से हमारी कक्षा में
आते हैं ,शिकायत उन लोगों से है जो अच्छे -अच्छे पद पाकर चुप - चाप कहीं व्यस्त हो गएँ हैं ,अब अगर आप लोग ही ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करेंगे तो बाकी की जनता जनार्दन का क्या होगा
आप को पहेली कठिन लग रही है तो ,
आप के पास समयाभाव है तो ,
आप को किसी का व्यवहार नही पसंद आ रहा हो तो ,
किसी के साथ कोई पक्षपात हो रहा हो तो ,
कोई सहपाठी किसी दूसरे सहपाठी को तंग कर रहा हो तो ,
शन्नो जी तथा हमे (नीलम )को अवश्य बताये ,
हमारा वादा है की सभी के साथ पूरा -पूरा न्याय किया जाएगा

बड़े ही खेद के साथ बताना पड़ रहा है कि पहली पहेली का उत्तर कोई नही बता पाया है
१)सुपारी
२)भुट्टा 3
3)मिर्च
4 कछुआ
5 ईंट

मनु जी के लिए दी गई पहेली का उत्तर है वही जो हमेशा होता है टो ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ पी।
रचना ,सुमित ,शन्नो सभी को शाबाशी दी जाती है ,शन्नो बेटा आचार्य जी को पहेली का जवाब न देने पर उनसे उट्ठक-baithak (sit-ups ) lagwaao ya phir murga bana do ,yahaan par wo tumhaare guru nahi hain

,हहहहहाहहहहहहहह्हाह
इहिहिहिहीह्हिहिहिहिहिहिहीह्हिहिहिहिही
हुहुहुहुहुहुहुहुहुह्हूहुहुहुह
कृपया हिंदी में हसिये , इसी क्रम में हसिये
लय और ताल भी बनाईये
सबसे अच्छी लय और ताल बनाने वाले को एक और हसी का इनाम मिलेगा

आप सभी का शुक्रिया



Sunday, May 3, 2009

सुनिए मैथिलीशरण गुप्त की कविता- माँ कह एक कहनी

बच्चो,

हमने इस बार एक अलग प्रयोग किया है। आपके लिए मैथिली शरण गुप्त की मशहूर बाल कविता 'माँ कह एक कहानी' का पॉडकास्ट दो आवाज़ों में लेकर आये हैं।

कविता में बच्चे वाले भाग को आवाज़ दी है पाखी मिश्रा ने और शेष कहानी कह रही हैं हमेशा की की तरह नीलम मिश्रा।
सुनें-



कविता पढ़ना चाहें तो ये रही-

"माँ कह एक कहानी।"
बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"
"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी
कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?
माँ कह एक कहानी।"

"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभी मनमानी।"
"जहाँ सुरभी मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,
हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"
"लहराता था पानी, हाँ हाँ यही कहानी।"

"गाते थे खग कल कल स्वर से, सहसा एक हँस ऊपर से,
गिरा बिद्ध होकर खर शर से, हुई पक्षी की हानी।"
"हुई पक्षी की हानी? करुणा भरी कहानी!"

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,
इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"
"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"

"माँगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,
तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"
"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"

हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,
गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सब ने जानी।"
"सुनी सब ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?"
"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।
कोई निरपराध को मारे तो क्यों न उसे उबारे?
रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"
"न्याय दया का दानी! तूने गुणी कहानी।"


Saturday, May 2, 2009

आपकी चिर प्रतीक्षित पहेलियाँ

पहेलियों की कक्षा में आप सभी का स्वागत है ,जल्दी से जवाब दीजिये और बन जाईये पहलवान (दिमागी कुश्ती के )पहेलियाँ हमेशा की ही तरह सरल ही हैं ,बस थोड़ा सा अपने दिमाग को कसरत करवाईये और कूद जाईये ,पहेलियों के इस अखाडे में और देखे अबकी बार कौन सा महारथी सारे हल देता है ,पहेली से पहले जरा उन लोगों को याद करना चाहूंगी ,जो सबसे होनहार विद्यार्थी रह्चुके हैं ,मगर आजकल नजर नही आते ,आप लोगों से गुजारिश है कि अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते रहें ,ताकि कक्षा का स्तर बना रहे


१)वन फरे,वनगुल्ला फरे ,
फरे पच्चीसों डाल
चील -कौआ नाहिं चखे ,
मानुष मुंह में डाल

२) बाल नुचे ,कपडे फटे ,
मोती को लिया उतार
यह विपदा जो देत है ,
सजा न पाए यार


३)मखमल की थैली में ,
हाय -हाय के बीज


४)बच्चो मै हूँ ऐसा नर ,
मेरे धड में मेरा सर


५)बिन पानी रूप न ले ,
पानी से गल जाए ,
आग लगाकर फूंक दे ,
अजर -अमर हो जाय


शन्नो बेटा एक पहेली सिर्फ तुम्हारे मनमौजी प्रतिभागी के लिए है ,उससे कहो की उसे सिर्फ एक पहेली का उत्तर देना और उसके बाद शांत बैठना है ,अब वो हल्ला न मचाये इसकी जिम्मेदारी तुम्हारे नाजुक कन्धों पर ही है ,संभालो तुम

पीटो-पीटो चिल्लाओ ,
जब उलट देत हैं मुझको
सर चढी बनी रहूँ
धूप से बचाऊँ तुझको

हहहहहाहहहहहहहह्हाह

इहिहिहिहीह्हिहिहिहिहिहिहीह्हिहिहिहिही

हुहुहुहुहुहुहुहुहुह्हूहुहुहुह

कृपया हिंदी में हसिये , इसी क्रम में हसिये

लय और ताल भी बनाईये

सबसे अच्छी लय और ताल बनाने वाले को एक और हसी का इनाम मिलेगा

आप सभी का साप्ताहांत अच्छा हो ,इसी दुआ के साथ हम विदा लेते है ,फिर मिलेंगे सोमवार को तब तक ,

खुदा हाफिज





Friday, May 1, 2009

सुनो सुनो

सब आओ
बात सुनो
होठों पर
प्रीत गुनो

यह मेरा
वह तेरा
यह पचड़ा
छोड़ जरा

भूलो दुख
बांटो सुख
दीन से न
मोड़ो मुख

तूँ छोटा
मैं खोटा
बिन पेंदी
सब लोटा

अंतर्मन
झांको तुम
सत्य प्रेम
बांटो तुम

न यह बड़ा
न वह बड़ा
इस जग में
काल बड़ा

फूल खिला
हाथ मिला
हर मुख पर
हंसी सजा

गले लगा
प्यार जगा
सबके दुख
दूर भगा

सुनो सुनो
बात सुनो
प्रीत प्रेम
सभी चुनो

कवि कुलवंत सिंह