Tuesday, November 27, 2007

दीदी की पाती कड़ी 6

बच्चो आई दीदी की पाती
नई नवेली बात सुनाती
इस दुनिया की इतनी बातें
दीदी तुमको आज कविता में सुनाती



दिन बीते फ़िर आए दिन नवेला
कहाँ घबरा के भाग जाए अँधेरा
कैसे यह चक्कर चलता जाता
देख के हर कोई चक्कर में पड़ जाता





कैसा है यह अजब तमाश
घड़ी में तोला घड़ी में माशा
समझ ना पाया नन्हा दीपू
जान ना पाई छोटी आशा ,

अभी यहीं था कुछ घंटो पहले
छाया चारों और अंधेरा
आँख लगी बस ज़रा देर तो
आ पहुँचा चमक के सवेरा


कैसे धरती रंग बदलती
जीवन का हर ढंग बदलती
पहनी झिलमिल साड़ी
चल पड़ती दिन की गाड़ी

पापा की बस दफ़्तर जाती
मम्मी की रोटी पक जाती
कापी और किताबों के संग
दीदी की कक्षा लग जाती



फिर धीरे से धरती माँ का
रूप बदल जाता कैसे ?
चाँदी जैसे रंग के उपर
काला रंग चढ़ता है कैसे ?

ना तो कोई अजब तमाशा
ना जादू की यह बात
आशा दीपू सुनो ध्यान से
कैसे होते हैं दिन रात ?

घूम रही अपनी कीली पर
जैसे लट्टू माँ हो धरती
चोबीस घंटे मेहनत करके
एक चक्र है पूरा करती

नाच नाच अपनी कीली पर
आगे आगे बढ़ती जाती
घूम घूम सूरज दादा की
फेरी यही लगाती है

अगर जला के एक टॉर्च तुम
रखो गेंद एक आगे उसके
जिधर पढ़े टॉर्च की रोशनी
उसकी चमक से वह है दमके

गेंद घुमाई जब हमने तो
चमक दूसरी और पड़ी
हुआ अंधेरा वहाँ जहाँ पर
अब तक थी रोशनी बड़ी

इसी तरह जब धरती रानी
सूरज के आगे नाचे
जिस हिस्से पर पड़े रोशनी
बजे वहाँ दिन के बाजे

जो हिस्सा पीछे जाता है
पड़ता वहाँ ना सूर्य का प्रकाश
तब सोता घने रात की
चादर ओढे यह आकाश

भारत में जब रात हुई
अमरीका में तब दिन आ जाता
सूरज चमके जब भारत में
अमरीका तब हैं धुंधला है जाता

इसी तरह दिन और रात का
चक्र हमेशा चलता जाता
आधी धरती पर रात और
आधी पर सूरज चमक जाता !!


[शिशु गीत के सोजन्य से ]


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11 पाठकों का कहना है :

Mohinder56 का कहना है कि -

वाह जी वाह,
दिन रात कैसे होते है इस रहस्य से परदा हटाना कविता के रूप में .. चित्रों के माध्यम से.. बहुत अच्छा लगा.

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

कैसे होता है दिन बच्चो कैसे होती रात..
दीदी की पाती पढने से आई समझ में बात..
आई समझ में बात रखो अब इसे ध्यान में..
पारंगत हो जाओगे निश्चय विज्ञान में..
सीखोगे हर पाती में तुम बातें गिन-गिन
होती कैसे रात और कैसे होता दिन..

रंजू जी.. बच्चों कि तरफ से बहुत बहुत धन्यवाद
और अपुन की तरफ से बोले तो शुभकामनायें
अगली पाती का मजबून बनायें..
इंतजार है..

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

रंजना जी,

सबसे प्रसंशनीय बात है बच्चों के लिये जटिल इस प्रश्न का इतना सहज प्रस्तुतिकरण। मेरा हमेशा से मानना है कविता ज्यादा सहजता से बच्चों को सिखा सकती है। बहुत बधाई आपको।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शोभा का कहना है कि -

रंजना जी
बहुत बढ़िया लिखा है । आपकी इस निष्ठा को मैं प्रणाम करती हूँ ।

Atul Chauhan का कहना है कि -

"कैसे धरती रंग बदलती
जीवन का हर ढंग बदलती
पहनी झिलमिल साड़ी
चल पड़ती दिन की गाड़ी"
बच्चों को जीवन के समय चक्र से रूबरू कराती आपकी ज्ञानवर्धक कविता वाकई बहुत सुन्दर है। निश्चय ही बच्चों की जुबान पर आसानी से चढ जायेगी।

Dr. Zakir Ali Rajnish का कहना है कि -

कविता के रूप में पाती देखकर अच्छा लगा। बहुत बहुत बधाई।
कविता पर राघव जी की टिप्पणी भी बहुत ही लाजवाब है। उन्होंने घनाक्षरी छन्द में टिप्पणी कर कविता का महत्व और ज्यादा बढा दिया है। राघव जी को भी इस सुन्दर टिप्पणी के लिए बधाई।

Unknown का कहना है कि -

रंजना जी

बच्चों की पाती, हम बडों को भी बहुत ही अच्छी लगती हैं. आप इतने पते की बातें लाने की लिए निस्म्देह बहुत ही श्रम करती हैं. इस सबके साथ साथ जानकारी भी बहुत ही सरल तरीके से चित्रों के बाद अब कविता के साथ भी....! सारे बच्चो के साथ मैं भी आभारी हूँ

और हाँ राघव भाई बोले तो अपुन आपका भी बहुत ही वो क्या बोलता है भारी आभारी है. वो रजनीश भाई क्या बोले .... घनी कविता के लिए

Sajeev का कहना है कि -

waah kya baat hai ranju ji aap to har kala men mahir hain, kamal hai, maza aa gaya,

विश्व दीपक का कहना है कि -

रंजू जी,
मेरा भी मानना है कि बच्चों को अगर कविता के माध्यम से कोई बात बताई जाए तो वह जल्द हीं समझ आती है। इस लिहाज से आपने बड़ा हीं उम्दा काम किया है। मेहनत नज़र आती है। बधाई स्वीकारें।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

जानकारी देने का आपका यह तरीका भी पसंद आया।

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

रंजू जी ...दिन- रात का चक्र लगता है कविता एवं चित्रों को साथ लेकर परिक्रमा का रहे हैं इतने सुंदर ढंग से आप ने बच्चों तक अपनी बात पहुँचा दी ...बधाई हो
सुनीता यादव

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