दीदी! कैसी गिफ़्ट रहेगी?
दीदी प्यारी,सुनो हमारी
राखी लाना,सबसे न्यारी
चाकलेट उसमे लगवाना
टौफ़ी की झूमर बँधवाना
आज मुझे बिल्कुल न डाँटो
जो कुछ मैं बोलूँ, वो मानो
चक दे चक दे खूब करेंगे
हम दोनो फिर बहुत हँसेंगे
अरे! आपका गिफ़्ट?
अच्छा!
'सुनीता दी'* से बात करूँगा
मन के सब हालात कहूँगा
जहाँ गयीं वो लास्ट महीने
चाँद-तारों में रहीं महीने
एक वहीं का टिकट दिला दो
दीदी को भी वहाँ घुमा दो
दीदी! कैसी गिफ़्ट रहेगी?
बहना मेरी खूब हँसेगी
खूब हँसेगी
खूब हँसेगी
बोलो ना--
दीदी! कैसी गिफ़्ट रहेगी?
(*सुनीता विलियम्स)
---प्रवीण पंडित
नोट- यद्यपि यह कविता कल ही प्रकाशित होनी चाहिए थी, प्रवीण जी ने समय से भेज भी दिया था, मगर इंटरनेट की समस्या के कारण इसे कल प्रकाशित नहीं किया जा सका। हमें खेद है।

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9 पाठकों का कहना है :
इस सुंदर सी कविता के बहुत बहुत बधाई।
प्रवीण जी,
बाल उद्यान पर आपका हार्दिक अभिनंदन। रक्षाबंधन पर्व के अनुकूल बहुत ही प्रेरक कविता है। जल्दी ही अपनी बिटिया की आवाज में रिकार्ड कर इसे बाल-उद्यान पर पोडकास्ट करूंगा।
बच्चों को सुन्दर सपना दिया है आपनें - कलाम साहब के शब्दों में सपने बडे ही देखे जाने चाहिये।
आभार।
*** राजीव रंजन प्रसाद
सुंदर कविता कुहू की आवाज़ में सुनने का इंतज़ार रहेगा
इस सुंदर सी कविता के बहुत बहुत बधाई।
प्रवीण जी!
हिन्द-युग्म पर आपका स्वागत और सुंदर कविता के लिये बधाई! कुहू की आवाज़ में इस प्यारी सी कविता को सुनने का सचमुच इंतज़ार रहेगा.
प्रवीण जी
एक प्यारी सी रचना भेजी है आपने । बच्चों के साथ-साथ बड़े भी आनन्द उठा रहे हैं ।
बहुत सुंदर,
प्रेरक कविता ...
बडे सपने
बच्चों को.....
आभार।
हार्दिक
बधाई।
बड़ी हीं मनोरम रचना लिखी है आपने। बालपन को फिर से जी लिया मैने।
बधाई स्वीकारें।
इस कविता में आज के सपने हैं। आज के बच्चों के मन की कविता है यह।
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