Thursday, December 31, 2009

नया-नया साल है आया

बच्चो,

आज साल 2009 का आखिरी दिन है। खूब मस्ती हो रही है ना!
तुम सबकी दोस्त पाखी ने तुम सबके लिए एक कविता लिखी है।
और जानते हो, नीलम आंटी ने उसे अपनी आवाज़ भी दी है।

नया-नया साल है आया,
ढेर सी खुशियाँ साथ में लाया।
नए साल में ये करना है,
नए साल में वो करना है।
हैं सभी तैयार नववर्ष को,
अपनाने और स्वागत करने को।
हर जगह हो रही है पार्टी,
"हैप्पी न्यू इयर" कहतीं हर आंटी।
नए साल में प्रदूषण को,
करेंगे कोशिश कम करने को।
हिंसा, झूठ और बदले को भूल,
सब जायेंगे खुश होकर स्कूल।
2010, आ गया है भाई,
हम तो खायेंगे ढेर सी मिठाई।
हर जगह बस ख़ुशी बिखर जाये,
नया साल कुछ ऐसा लाए।
ईश्वर से करती प्रार्थना आसमान तले,
दुश्मनी भूलकर लग जाएँ सब गले।

--पाखी मिश्रा।

इस कविता को नीलम आंटी की आवाज़ में नीचे का प्लेयर चला कर सुनो-


Saturday, December 26, 2009

थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते बनते

अमेरिका में अभी क्रिस्मस की रात होगी। इस अवसर पर हम रचना श्रीवास्तव की एक कविता लेकर आये हैं। रचना जी ने जब नैन्सी शेरमैन की कविता पढ़ीं तो उसकी पहली पंक्ति 'आई एम ट्राइड ऑफ बीइंग गुड बिफोर क्रिस्मस' से प्रभावित हुईं और बाल-उद्यान के लिए यह कविता लिख भेजीं।

थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते-बनते
दाल पीते और करेला चखते-चखते
माँ कहती है सेंटा देख रहा है
मेरी हरकतों को तोल रहा है
सब के साथ करो बिहेव नाईस
यही है निर्णय वाइस
बनोगी अच्छी तो
दे जायेगा गिफ्ट वो सूरज ढलते-ढलते
थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते बनते

दूध पूरा पीती हूँ, बहन से प्यार करती हूँ
गोद दे जो स्कूल की कॉपी
तो भी गुस्सा नहीं करती हूँ
प्यारे खिलौने भी संग उस के बाँटा करती हूँ
परेशान हो गई हूँ ऐसा करते-करते
थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते-बनते

शोर करके उधम मचाऊँ ऐसा दिल करता है
खाने में बस नुडल्स खाऊँ ऐसा दिल करता है
यूनिफॉर्म पहन सो जाऊँ ऐसा दिल करता है
चीजें इधर-उधर गुमाऊँ ऐसा दिल करता है
बोर हो गईं हूँ सब कुछ सही जगह रखते-रखते
थक गई हूँ मैं गुड गर्ल बनते-बनते

सेंटा को खुश करने को
होम वर्क बिना गलती के किया
तो टीचर को आश्चर्य हुआ
मिला पूरा नंबर तो माँ का दिल खुश हुआ
इस बात पर मुझको ये अहसास हुआ
अपनों की ख़ुशी से जो संतोष मिलता है
उस का मोल कोई गिफ्ट कहाँ चुका सकता है
कहूँगी सभी से यही चलते-चलते
थकी नहीं हूँ अब मैं गुड गर्ल बनते-बनते


Friday, December 25, 2009

एकता की ताकत

एक बार की बात है,
अब तक हमको याद है.
जंगल में थे हम होते,
पांच शेर देखे सोते.

थोड़ी आहट पर हिलते,
आंख जरा खोल देखते.
धीरे से आंख झपकते,
साथी से कुछ ज्यों कहते.

दूर दिखीं आती काया,
झुरमुट भैंसों का आया.
नन्हा बछड़ा इक उसमें,
आगे सबसे चलने में.

शेर हुए चौकन्ने थे,
घात लगाकर बैठे थे.
पास जरा झुरमुट आया,
खुद को फुर्तीला पाया .

हमला भैंसों पर बोला,
झुरमुट भैंसों का डोला .
उलटे पांव भैंसें भागीं,
सर पर रख कर पांव भागीं .

बछड़ा सबसे आगे था,
अब वो लेकिन पीछे था .
बछड़ा था कुछ फुर्तीला,
थोड़ा वह आगे निकला .

भाग रहीं भैंसें आगे,
उनके पीछे शेर भागे .
बछड़े को कमजोर पाया,
इक शेर ने उसे भगाया .

बछड़ा है आसान पाना,
शेर ने साधा निशाना .
बछड़े पर छलांग लगाई,
मुंह में उसकी टांग दबाई .

दोनों ने पलटी खाई,
टांग उसकी छूट न पाई .
गिरे, पास बहती नदी में
उलट पलट दोनों उसमें .

रुके, बाकी शेर दौड़ते,
हुआ प्रबंध भोज देखते .
शेर लगा बछड़ा खींचने,
पानी से बाहर करने .

बाकी शेर पास आये,
नदी किनारे खींच लाये .
मिल कर खींच रहे बछड़ा,
तभी हुआ नया इक पचड़ा .

घड़ियाल एक नदी में था,
दौड़ा, गंध बछड़े की पा .
दूजी टांग उसने दबाई,
नदी के अंदर की खिंचाई .

शेर नदी के बाहर खींचे,
घड़ियाल पानी अंदर खींचे .
बछड़ा बिलकुल पस्त हुआ,
बेदम और बेहाल हुआ .

खींचातानी लगी रही
घड़ियाल एक, शेर कई .
धीरे धीरे खींच लाए,
शेर नदी के बाहर लाए .

घड़ियाल हिम्मत हार गया,
टांग छोड़ कर भाग गया .
शेर सभी मिल पास आये,
बछड़ा खाने बैठ गये .

तभी हुआ नया तमाशा,
बछड़े को जागी आशा .
भैंसों ने झुंड बनाया,
वापिस लौट वहीं आया .

हिम्मत अपनी मिल जुटाई,
देकर बछड़े की दुहाई .
शेरों को लगे डराने,
भैंसे मिलकर लगे भगाने .

टस से मस शेर न होते,
गीदड़ भभकी से न डरते .
इक भैंसे ने वार किया,
शेर को खूब पछाड़ दिया .

दूसरे ने हिम्मत पाई,
दूजे शेर पे की चढ़ाई .
सींग मार उसे हटाया,
पीछे दौड़ दूर भगाया .

तीसरे ने ताव खाया,
गुर्राता भैंसा आया .
सींगों पर सिंह को डाला,
हवा में किंग को उछाला .

बाकी थे दो शेर बचे,
थोड़े सहमें, थोड़े डरे .
आ आ कर सींग दिखायें,
भैंसे शेरों को डरायें .

भैंसों का झुंड डटा रहा,
बछड़ा लेने अड़ा रहा .
हिम्मत बछड़े में आई,
देख कुटुंब जान आई .

घायल बछड़ा गिरा हुआ,
जैसे तैसे खड़ा हुआ .
झुंड ने उसको बीच लिया,
बचे शेर को परे किया .

शेर शिकार को छोड़ गये,
मोड़ के मुंह वह चले गये .
शेरों ने मुंह की खाई,
भैंसों ने जीत मनाई .

जाग जाये जब जनता,
राजा भी पानी भरता .
छोटा, मोटा तो डरता,
हो बड़ों की हालत खस्ता .

मिलजुल हम रहना सीखें,
न किसी से डरना सीखें .
एकता में ताकत होती,
जीने का संबल देती .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, December 24, 2009

क्रिसमस का त्योहार

पूर्व दिशा में चमका तारा
प्रभु ईसा जन्मा है प्यारा
तीन सयाने दूर से आए,
मरियम को भी शीश नवाए।
बतलहम की एक सराय
थे भेड़ों के जहाँ चरवाहे
यूसुफ संग मंगेतर आया
अद्भुत बेटा उसने पाया।
नाजरथ के उस यीसू की
याद दिलाने आता क्रिसमस
बारह दिन का पर्व अनोखा
धूम मचाता आता क्रिसमस।
छुट्टी का मौसम मस्ती का
बाल-युवा सब कैरोल गाते
फादर क्रिसमस रात को आके
मोजों में चीजें भर जाते।
क्रिसमस केक, पुडिंग, चाकॅलेट,
माँ ढेरों कैंडी मँगाती
दीदी, भैया के संग मिलके
सुंदर क्रिसमस ट्री सजाती।
सजे-धजे सब चर्च में जाके
क्रिसमस कैंडल ज्योति जलाते
दूर कहीं से क्रिसमस बैल सुन
दिल में प्रभु का प्यार जगाते
शुभकामना कार्डस् बाटंते
प्रियजन को उपहार बांटते
करने क्रिसमस शॉपिंग सारे
हफ्तों पहले मॉल भागते
प्रेम बढ़ाने प्रीत सिखाने
हर साल आता है क्रिसमस
जीवन एक उत्सव है मनाएँ
यही बताने आता क्रिसमस।

अनिता निहालानी


Tuesday, December 22, 2009

आंसू से प्यास बुझाता हूँ

चित्र आधारित कविता लेखन प्रतियोगिता की शीर्ष 3 कविताएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ और कविताएँ भी उल्लेखनीय रही। उन्हीं कविताओं में से एक कविता प्रकाशित की जा रही है।

आंसू से प्यास बुझाता हूँ

मम्मी गयी स्कूल पढ़ाने,
पापा गए हैं दफ्तर.
मन की बातें किससे बोलूं,
कोई नहीं है घर पर..

टॉफी बिस्कुट डब्बे में है,
डब्बे रैक के ऊपर..
भूख लगी तो हाथ बढ़ाया,
गिरा मुंह के बल पर..

बंद कमरे में रो रोकर,
और घुट घुट कर मैं जीता हूँ.
प्यास लगी तो ऑंसू से,
अपनी प्यास बुझाता हूँ..

मम्मी-पापा के बिना,
कितना मुश्किल है जीना.
बचपन से तो अच्छा है,
पचपन का हो जाना..

सुजान पंडित,
शंकर विला, कांटा टोली चौक, ओल्ड एच.बी.रोड, रांची-८३४००१ (झारखण्ड)


Sunday, December 20, 2009

बबलू को आ गई रुलाई

चित्र आधारित बाल कविता लेखन प्रतियोगिता में तीसरा स्थान डॉ. अनिल चड्डा का है. डॉ. अनिल चड्डा लम्बे समय से बाल-उद्यान में अपनी रचनाएँ भेज रहे हैं. बाल-उद्यान में अब तक इनकी ३० से भी अधिक कविताएँ प्रकाशित हैं.

सुबह-सवेरे उठते-उठते,
मम्मीजी जब नजर न आईं,
मायूसी में ढूँढते-ढूँढते,
बबलू को आ गई रुलाई।

इधर मिले न, उधर मिले न,
घर के हर कोने में देखा,
कौन रसोई में था लेकिन,
बबलूजी ने नहीं था देखा।

भूख लगी जब दूध की उनको,
और जोर से आई रुलाई,
तभी किचन के कोने में से,
मम्मी की आवाज थी आई।

मत रो बबलू,मत रो राजा,
दूध अभी मैं ले कर आई,
मम्मी की आवाज को सुन कर,
फिर से आ गई रुलाई।

अब तो मुशिकल बहुत बड़ी थी,
बबलू को चुप कौन कराये,
क्यों नहीं मम्मी पास थी उसके,
जिद में वो रोता ही जाये।

मम्मीजी ने गोद में ले कर,
दूध था जब बबलू को पिलाया,
मम्मी की गोदी ने इकदम,
बबलूजी को चुप था कराया।

--डॉ. अनिल चड्डा


Friday, December 18, 2009

चित्र आधारित दूसरी कविता

चित्र आधारित बाल कविता प्रतियोगिता की दूसरी कविता सीमा सचदेव की है। बाल-उद्यान की 25 प्रतिशत से भी अधिक सामग्री सीमा सचदेव ने अकेले तैयार की है। इंटरनेट पर बाल-साहित्य को समृद्ध करने में इनका बहुत योगदान है।

बच्चे प्यारे, कहते सारे
पर हम हैं कितने बेचारे
कर न पाएं कभी स्व मन की
सुनें बात घर के हर जन की
बात हमारी कोई न माने
न ही समझदार कोई जाने
न करने दें कोई शैतानी
पाठ पढ‌़ाती रहती नानी
मानो सदा बड़ों का कहना
शोर न करना, चुप ही रहना
चॉक्लेट आईसक्रीम नहीं खाना
न खेलने बाहर को जाना
टी.वी देखना नहीं है अच्छा
देख अभी तू छोटा बच्चा
सारा दिन बस करो पढ़ाई
मम्मी ढ़ेर किताबें लाई
मांगो जब भी कोई खिलौना
आ जाता है सबको रोना
कर दो पहले घर का काम
खिलौने का फिर लेना नाम
स्वयं कभी न लेकर देते
मांगें हम तो जिद्दी कहते
रो-रोकर जो बात मनवाएं
तो गन्दे बच्चे कहलाएं
कभी जो घर आएं मेहमान
आफ़त में आ जाती जान
स्वयं तो खाते मिलके मिठाई
जीभ हमारी जो ललचाई
आंखों से ही करें इशारा
किसी चीज को हाथ जो मारा
होगी बाद में खूब पिटाई
खा नहीं सकते हम मिठाई
भूखे पेट सुनाओ गाना
मा-पापा की शान बढ़ाना
जो गलती से गए कुछ भूल
चुभ जाती मम्मी को शूल
लगता उनकी शान को धक्का
भूला क्यों जो रटा था पक्का
सवार है ऊपर नम्बरों का भूत
लाओ वरना पड़ेंगे जूते खूब
इक नम्बर भी कम जो आया
सारे किए का हुआ सफ़ाया
हम नन्हे से छोटे बच्चे
कहते सब हम दिल के सच्चे
पर सब अपना हुक्म चलाएं
जाएं वही जहां ले जाएं
उन्हीं की मर्जी से खाएं खाना
चलता नहीं है कोई बहाना
सुनो बात पर मुंह न खोलो
तुम बच्चे हो कुछ न बोलो
जल्दी जगना जल्दी सोना
हमको बस आता है रोना
रो कर खुद ही चुप हो जाएं
बोलो बच्चे किधर को जाएं

--सीमा सचदेव

संपादकीय टिप्पणी- सीमा सचदेव की कविता को हम दूसरे स्थान पर रखेंगे, इन्होने भी बहुत अच्छी कविता लिखी है। बच्चों में संवेदनशीलता उतनी ही होती है, जितनी कि किसी भी व्यस्क व्यक्ति में, इस भाव की वजह से इनकी कविता को दूसरा स्थान दिया गया है।


Thursday, December 17, 2009

चित्र आधारित प्रतियोगिता के परिणाम और पहली कविता

पिछले महीने बाल-उद्यान ने चित्र आधारित बाल-कविता लेखन की प्रतियोगिता आयोजित की थी। इसमें कुल 10 कवियों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में एक तेरह वर्षीय किशोर कवि जॉय चड्डा ने भी भाग लिया। सर्वश्रेष्ठ कविता का निर्णय नीलम मिश्रा और पूजा अनिल किया और भूपेन्द्र राघव की कविता को सर्वश्रेष्ठ स्थान पर रखा। बधाई!

दूसरा स्थान- सीमा सचदेव
तीसरा स्थान- डॉ॰ अनिल चड्डा
अन्य प्रतिभागी- श्याम सखा श्याम, जॉय चड्डा, शन्नो अग्रवाल, सुजान पंडित, देवेन्द्र सिंह चौहान, मंजू गुप्ता, पुरूषोत्तम अब्बी।

हम एक-एक करके सभी कविताएँ प्रकाशित करेंगे। आज प्रस्तुत है, पहली कविता।

चाचू लाये चाल खिलोने
बहुत प्याले बहुत छलोने
दो मैंने लिए, दो लिए भाई
किछी बात की नहीं ललाई
मैंने चुन लिए बस, स्कूतल
भाई ने लिए मोल, कबूतल
भाई मुझको लगा चिढाने
ओल कबूतल को छ्म्झाने
मेले कबूतल उल कल जाना
मीथे मीथे फल तुम लाना
मैं भी छाले फल खा लूंगा
ऑल किछी को एक न दूंगा
इतने में एक बिल्ली आई
झट पीजन पल जम्प लगाई
मैं बोली, लो उल गया कबूतल
खूब मिलेंगे अब मीथे फल
पीजन ले गयी बिल्ली मांछी
भाई की छूलत हुई लुआंछी
भाई पे लह गया एक खिलौना
छुलू हो गया इनका लोना
चीक्स पल बहकल आये आंछू
देखकल मैं भी हुई लुआंछू
गले भाई के लगकल बोली
मेले भैया आई ऍम छौली..
मुझछे ले लो एक खिलौना
बंद कलो बछ अपना लोना
चलो भाई ये दोनों ले लो
बछ मेले छंग मिलकल खेलो
गले भाई ने लगाया कछ्कल
आई ऍम छोली बोले हंछकल
चाल खिलोने लह गए तीन
अन्फोरगेतेबल, व्हात ए छीन |

--भूपेन्द्र राघव

संपादकीय टिप्पणी- राघव की कविता हमें सबसे अच्छी लगी, क्योंकि बच्चों में समाये उन मानवीय मूल्यों को दर्शाती है जो बड़े भी भूल चुके हैं (हालांकि इनकी कविता तोतली बोली में है, फिर भी अपना सन्देश पूर्ण तौर पर संप्रेषित करती है और गेय कविता है)।


Wednesday, December 16, 2009

अगर सभी बादशाह होते

अकबर बीरबल से तरह-तरह के अजीबोगरीब प्रश्न पूछा करते थे। कुछ प्रश्न ऐसे भी होते थे जो वह बीरबल की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए पूछते थे। एक बार बादशाह अकबर बीरबल से बोले- "बीरबल! इस दुनिया में कोई अमीर है, कोई गरीब है, ऐसा क्यों होता है? सब लोग ईश्वर को परमपिता कहते हैं। सभी आदमी उनके पुत्र ही हुए। पिता अपने बच्चों को हमेशा अच्छा और खुशहाल देखना चाहता है। फिर ईश्वर परमपिता होकर क्यों किसी को आराम का पुतला बनाता है और किसी को मुट्ठी भर अनाज के लिए दर-दर भटकाता है? आखिर उसने सभी को समान क्यों नहीं बनाया?"

"आलमपनाह, अगर ईश्वर ऐसा न करे तो दुनिया की गाड़ी चल ही नहीं सकती। वैसे तो दुनिया में पाँच पिता कहे गए हैं। इस नाते आप भी अपनी प्रजा के पिता हैं। फिर आप किसी को हजार, किसी को पाँच सौ, किसी को पचास, तो किसी को सिर्फ़ पाँच-सात रुपये ही वेतन देते हैं। जबकि एक महीने तक आप सभी से सख्ती से पूरा काम लेते हैं। ऐसा क्यों? सभी को एक ही नजर से क्यों नही देखते? और फिर, अगर ईश्वर सभी को बादशाह बना देता तो सेवकों का काम कौन करता? बीरबल कौन बनता?"

बादशाह कोई भी जवाब नहीं दे सके, उलटे सोच में पड़ गए।


Monday, December 14, 2009

सात एकम सात



सात एकम सात,
सात दूनी चौदह,
संयम तुम अपना,
कभी नहीं खोना।

सात तीए इक्कीस,
सात चौके अट्ठाईस,
रखना तुम हमेशा,
फर्स्ट आने की ख्वाहिश।

सात पंजे पैंतीस,
सात छेके ब्यालीस,
करना न चमचागिरी,
और न ही मालिश।

सात सत्ते उनचास,
सात अट्ठे छप्पन,
करना सेवा देश की ,
तोड़ के सारे बंधन।

सात नामे त्रेसठ,
सात दस्से सत्तर,
हिंदू,सिख, इसाई, मुस्लिम,
सारे ही हैं ब्रदर।

--डॉ॰ अनिल चड्डा

दो एकम दोतीन एकम तीनचार एकम चारपाँच एकम् पाँचछ: एकम छ:


Thursday, December 10, 2009

कामयाबी का ताबीज

कामयाबी का ताबीज

सेठ धनीमानी का व्यापार धूमधाम से चलता था ,सेठ के एक ही लड़का था .उसका नाम था धनीराम .वह व्यापार के झंझटों से अलग ही रहता था

एक दिन सेठ संसार से चल बसा .उसका सारा कारोबार धनीराम के कन्धों पर पड़ा .दुकानों का काम अच्छा चलता रहा .लेकिन अंत में कुछ बचत नही हुई .नया सेठ समझ नही पाया कि लाभ क्यों नही हुआ .उसने सोचा कि उस पर किसी ग्रह की दशा है

धनीराम खोटे ग्रह से छुटकारा पाने के लिए एक सिद्ध महात्मा के पास गया .महात्मा ने उसे एक ताबीज दिया .उसने धनीराम से कहा , " बेटा इसे हाथ में बाँध लो ,इसे बाँध कर तुम जहाँ -जहाँ जाओगे वहाँ लाभ होगा .एक वर्ष बाद इस ताबीज को मुझे वापस दे देना "

धनीराम को मुंहमांगा वरदान मिल गया .ताबीज बांधकर सबसे पहले वह रसोईघर में गया .वहाँ उसने देखा कि रसोइये चीनी और दूध खा -पी रहे थे .नौकर आटा - दाल चुरा कर रख रहे थे

धनीराम ने वहाँ का प्रबंध ठीक किया

इसके बाद दुकान गया .उसने देखा कि बहुत सा माल गोदाम में पड़ा सड़ रहा था ।कुछ नौकर चोरी से माल बेचते पकड़े गए .धनीराम को विश्वास हो गया कि सब ताबीज का ही प्रभाव है .अब वह इधर- उधर घूमकर सारा कारोबार
ख़ुद देखने लगा .इस साल उसे काफी मुनाफा हुआ .लेकिन उसे यह चिंता भी हुई कि ताबीज अब वापस करना होगा।
धनीराम महात्मा के पास गया .उसे ताबीज का चमत्कार बताया .उसने महात्मा से प्रार्थना की ,कि वह उसे एक वर्ष के लिए यह ताबीज और दे दें .महात्मा ने हँस कर कहा ,"इसमे तो कुछ भी शक्ति नही है। इसे खोल कर तो देखो "
धनीराम ने ताबीज खोलकर देखा .उसके भीतर एक छोटे से कागज़ पर लिखा था "यदि सफलता चाहते हो ,तो छोटी से छोटी बात की देखभाल ख़ुद करो "
महात्मा ने धनीराम को कामयाबी का राज समझाया .उसने कहा ,"लाभ ताबीज के कारण नही हुआ है, तुमने अपने हर काम की देखभाल ख़ुद की है .इसीलिए तम्हें कामयाबी मिली है .अब इस ताबीज को तुम फेक दो .जाओ ,बुद्धि का ताबीज पहन कर सिद्धि प्राप्त करो ."


Saturday, December 5, 2009

जागरण गीत

जागरण गीत ,

अब न गहरी नींद में तुम सो सकोगे ,
गीत गाकर मै जगाने आ रहा हूँ
अतल अस्ताचल तुम्हे जाने न दूंगा ,
अरुण उदयाचल सजाने आ रहा हूँ


कल्पना में आज तक उड़ते रहे तुम
साधना में सिहरकर मुड़ते रहे तुम ,
अब तुम्हे आकाश में उड़ने न दूंगा ,
आज धरती पर बसाने आ रहा हूँ


सुख नहीं यह ,नीद में सपने संजोना ,
दुःख नहीं यह शीश पर गुरु भार ढोना
शूल तुम जिसको समझते थे अभी तक ,
फूल मै उसको बनाने आ रहा हूँ

देख कर मंझधार को घबरा न जाना ,
हाथ ले पतवार को घबरा न जाना ,
मै किनारे पर तुम्हे थकने न दूंगा ,
पार मै तुमको लगाने आ रहा हूँ


तोड़ दो मन में कसी सब श्रंखलाएँ
तोड़ दो मन में बसी सब संकीर्णताएँ
बिंदु बनकर मै तुम्हे ढलने न दूंगा ,
सिन्धु बन तुमको उठाने आ रहा हूँ



तुम उठो ,धरती उठे ,नभ शिर उठाये ,
तुम चलो गति में नई गति झनझनाए
विपथ होकर मै तुम्हे मुड़ने न दूँगा
प्रगति के पथ पर बढाने आ रहा हूँ


सोहन लाल द्विवेदी


“जगहों के नाम पहचानें”

प्यारे बच्चो,
निम्नलिखित वाक्यों में अलग-अलग जगहों के नाम छुपे हुए हैं ।
कोशिश करके इनमें से उन नामों को ढ़ूँढ निकालो ।
1 मेरी आभा, रतजगा कर रही है ।
2 रमेश जा, पान लेकर आ ।
3 मेरा पुत्र अमृत, सरदार हो गया है ।
4 शीश के भाई ने रो-रो (कर) ममता को परेशान कर दिया ।
5 पर्वत की चढ़ाई, राक से भरी है ।
6 नन्ही मुन्नी बेला, रूस कर बैठी है ।
7 मेरे पुत्र प्रिय, मन लगा कर देश की सेवा कीजिए ।
8 पौधे की अवस्था जर-जर, मनी प्लांट सी हो गई है ।
9 सुशीला का पुत्र राज, स्थानांतरित हो लखनऊ आ गया है ।
10मैं भी काश, मीरपुर जा सकती ।
सौजन्य : डा0 शारदा वर्मा


Thursday, December 3, 2009

पहला झूठ

पहला झूठ

खेलते खेलते बच्चे ने मेरी जेब से पेन निकाला .वह पेन की निब फर्श पर मारने को हुआ ,तो मैंने पेन छीन लिया .वह रोने लगा .उसे चुप करने के लिए पेन देना पड़ा .वह फिरनिब को फर्श पर मारनेलगा ।

पेन कीमती था .मै नही चाहता था ,कि बच्चा उसे बेकार कर दे ।

मैंने बच्चे का ध्यान फिराया .पेन उससे छीन कर छिपा लिया .पर की ओर इशारा करते हुए मैंने कहा ,"पेन ....चिड़िया ।" पेन चिड़िया ले गई .इस बार वह रोया नही .आसमान की ओर नजर उठा कर देखने लगा ।
एक दिन वह बर्फी खा रहा था .मैंने कहा "बिट्टू ,बर्फी मुझे दे दो ।"
उसने बर्फी पीठ के पीछे छिपाई और बोला ,"बफ्फी .......चिया ......."





Friday, November 27, 2009

महान नायिकाएँ-1: कल्पना चावला

प्यारे बच्चों ,
आज से हम कुछ महान नायिकाएँ नाम से एक श्रंखला शुरू करने जा रहे हैं ,इसमे हम आपको देंगे छोटी परन्तु रोचक जानकारी ,अगर आप के पास कोई जानकारी है ,या आप किसी नायिका के मिलवाना चाहते हैं तो हमे लिख भेजें baaludyan@hindyugm.com पर ,


कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के शहर करनाल में हुआ था .बचपन से ही उनकी रूचि उड़ान भरने में और पढने में थी .उन्होंने B.S.D.Aero.Eng. प्राप्त की .उसके बाद वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिएU.S.A चली गई .कल्पना ने अपना अनुसंधान नेशनल एरोनॉटइक्स एवं स्पेस एडमिनीस्ट्रेशन (N.A.S.A )में 1988 में किया .दिसंबर 1994 में उन्हें एस्ट्रोनॉट तथा तथा 19 नवम्बर ,1997 को मिशन के लिए चुना गया .दुर्भाग्य वश उनका यान दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमे उनका निधन हो गया .यह एक मध्यम वर्गीय लड़की की विजयगाथा है .


Monday, November 23, 2009

कद्दू की कुछ बातें

आओ बच्चों, आज कुछ कद्दू के बारे में बात करें. इन दिनों सर्दी का मौसम आ रहा है और सब्जी के बाज़ार में कद्दुओं का आगमन भी शुरू हो रहा है. वैस तो कद्दू को सब लोग अधिक पसंद नहीं करते हैं. जैसे की बिचारे चुकंदर की दशा निरीह हो जाती है वैसे ही इसे भी खाने में कुछ लोग संकोच करते हुये नाक-भौं चढ़ाते रहते हैं .....खासतौर से बच्चे. तो आइये आज कुछ इसके बारे में बताऊँ और इसकी अच्छाइयों के बारे में भी तो शायद आप लोग इसके बारे में अपनी राय बदल दें.

कद्दू कई तरह के और कई रंग के होते हैं. छोटे-बड़े, लम्बे, हलके या भारी-भरकम भी. और यह कई रंगों में पाये जाते हैं. इनके रंग नारंगी और लाल ही नहीं बल्कि हरे, पीले और सफ़ेद भी होते हैं. इसकी तुलना घिया या तुरई के स्वाद से की जाती है. और अपने भारत में हर प्रांत में लोग इसे अलग नामों से जानते हैं.....उत्तर प्रदेश में गंगाफल या सीताफल नाम से भी जाना जाता है.

अफ्रीका में कद्दू काफी छोटे और कई प्रकार के होते हैं. सुना जाता है की सबसे पहले कद्दुओं को मध्य अमेरिका में उगाया गया था. अमेरिका में इसको बहुत पसंद करते हैं और तरह-तरह से बना कर खाते हैं. और वहां पर कद्दुओं की पैदावार बहुत होती है. वहां के कुछ क्षेत्रों में कद्दुओं का उत्पादन अत्यधिक होता है. अमेरिका में 90% कद्दू की पैदावार तो वहां पर इलिनोइस नाम की एक जगह है वहां होती है. हर साल वहां कद्दू के सम्मान में तमाम शहरों में बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है और मेला लगता है. और तमाम तरह से इसका खाने में इस्तेमाल किया जाता है. इंग्लैंड, अमेरिका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया व कुछ अन्य देशों में भी ' हल्लोवीन ' नाम का दिवस अक्टूबर महीने की आखिरी तारीख को मनाते हैं जिसमें कद्दू को तराश कर उसे कभी लालटेन का आकार देकर उसके अन्दर मोमबत्ती जलाते हैं तो कभी उसे किसी भूत-प्रेत की शकल में तराशते हैं. कद्दू से कई प्रकार के केक, पाई, पुडिंग, सूप, बिस्किट आदि बनाते हैं. फिर वह लोग रिश्तेदारों व मित्रों को निमंत्रित करते हैं खाने पर, या पार्टी देते हैं. जाने-पहचाने लोगों में केक व पुडिंग बना कर भेजते हैं. और हाँ, इंग्लैंड व अमेरिका में कद्दू को पम्पकिन कहते हैं.

शताब्दियों पहले ग्रीक के लोगों ने कद्दू को ' पेपोन ' नाम दिया जिसका ग्रीक भाषा में मतलब होता है ' बड़ा खरबूजा '. फिर फ्रेंच लोगों ने इसे ' पोम्पोन ' नाम दिया और इंग्लैंड में ' पम्पिओन ' कहा. किन्तु जब ' शेक्सपिअर ' ने अपने उपन्यास ' मेर्री वाइव्स ऑफ़ विंडसर ' में इसका पम्पकिन नाम से जिक्र किया तब से सभी अंग्रेज व अमेरिकन इसे पम्पकिन कहने लगे. और बच्चों आप लोगों ने यदि ' सिन्देरेला ' नाम की कहानी सुनी या पढ़ी है तो याद करिये की उसमें एक बड़े कद्दू की शकल की बग्घी में ही सिन्देरेला बैठ कर डांस-पार्टी में गयी थी. है ना?

अब कद्दू के बारे में कुछ विशेष बातें हैं जानकारी के लिये. जैसे कि:
१. इससे कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बन सकते हैं.
२. इसके बीजों में प्रोटीन और आयरन पाया जाता है और बीजों को भून व छील कर खाते हैं. और खाना बनाते समय भी बीजों का कई तरह से उपयोग किया जा सकता है.
३. इसके अन्दर के गूदे में विटामिन ए व पोटैसियम होता है.
४. इसके फूलों को भी खाया जा सकता है.
५. कद्दू को फलों की श्रेणी में रखा जाता है.
६. इसमें 90 % पानी होता है.

अपने भारत में कुछ लोग तो इसे बहुत प्रेम से खाते हैं. और इन दिनों तो इसका मौसम है तो इसका भरपूर उपयोग किया जाना चाहिये.
उत्तर भारत में तो इसे कुछ खास पर्वों पर जरूर बनाया जाता है. जैसे की होली-दीवाली पर या फिर व्रत-उपवास के समय भी.....सब्जी, हलवा या खीर के रूप में.

तो अब चलती हूँ. जल्दी ही इसके बारे में और भी मजेदार बातें करेंगें.

--शन्नो अग्रवाल


Thursday, November 19, 2009

आम और केले की लड़ाई



एक बार की बात है बच्चो,
आम और केले में थी ठन गई,
केला बोले मैं हूँ मीठा,
आम कहे मैं तुझसे मीठा।

यूँ ही दोनों में तब बच्चो,
बढ़ते-बढ़ते बहस थी बढ़ गई,
कौन है दोनों में से मीठा,
बात यहाँ पर आ कर अड़ गई।

केला बोला चल हट झूठा,
कभी-कभी तू होता खट्टा,
मेरे स्वाद पे लेकिन देखो,
लगता नहीं कभी है बट्टा।

आमजी ने पर घुड़की लगाई,
बोला मैं हूँ फलों का राजा,
जब मेरा मौसम है आता,
सब कहते हैं आम को खाजा।

स्वाद बेशक हो मेरा खट्टा,
फिर भी मिलता अलग जायका,
स्वाद तेरा हो हरदम इक सा,
कभी-कभी तो हो तू फीका।

आम सिर्फ गर्मी में आये,
केला हर मौसम में खायें,
तू तो बस है स्वाद का राजा,
मुझसे लोग फायदे भी पायें।

हुआ नहीं जब कोई फैसला,
बंदरजी इक कूदे आये,
बोले मैं हूँ बड़ा अक्लमंद,
कई फैसले मैंने कराये।

दोनों को तब याद थी आई,
बिल्लियों की मशहूर लड़ाई,
बंदर के जज बनने से पहले,
थोड़ी सी थी अक्ल लगाई।

आखिर हम दोनों ही फल हैं,
बेशक अलग-अलग है जाति,
दूजे के हाथों गर खेलें,
निश्चित हार नजर है आती।

ऐसे ही है देश हमारा,
अलग है भाषा, अलग धर्म है,
मिलजुल के सब रहना बच्चो,
देश के प्रति यही कर्म है।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Wednesday, November 18, 2009

चित्र आधारित बाल-कविता प्रतियोगिता में भाग लीजिए

प्रिय साथियो,

बाल-उद्यान पर हम आज से कविता-प्रतियोगिता शुरू कर रहे हैं। आप इस चित्र पर हमें प्यारी सी मगर छोटी बाल-कविता लिख कर प्रेषित करें। आप कविता baaludyan@hindyugm.com पर भेज सकते हैं। कविता भेजने की अंतिम तिथि- 26 नवम्बर 2009 है।

अधिक से अधिक संख्या में भाग ले कर इस प्रतियोगिता को सफल बनाने में हमारा योगदान करें। कविता पहले से कही भी प्रकाशित न हो, इस बात का ध्यान अवश्य रखें।


Saturday, November 14, 2009

फूल से होते बच्चे प्यारे


फूल से होते बच्चे प्यारे,
भारत वर्ष के न्यारे-न्यारे,
इन में ही तो भविष्य छिपा है,
होंगें देश के वारे-न्यारे।

चाचा नेहरू समझ गये थे,
बच्चे हैं अनमोल सितारे,
तभी तो उनको सबसे ज्यादा,
बच्चे ही लगते थे प्यारे।

बच्चों में भगवान छिपा है,
तभी तो सबसे सच्चे बच्चे,
न कोई छल न कपट भरा है,
तभी सभी को लगते अच्छे।

मस्ती इनमें खूब भरी है,
जिद भी इनकी बहुत बड़ी है,
होते हैं ये समझ के कच्चे,
सिखाने की भी यही घड़ी है।

कोमल सा मन ये रखते हैं,
तन भी कोमल सा है इनका,
इनको मत कोई चोट पहुंचाना,
गलत राह न तुम दिखलाना।

आओ हम संकल्प करें सब,
इनको वो आकाश दिलायें,
जो हम सब ने नहीं है पाया,
जीवन में वो सब ये पायें।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


बाल दिवस -जेल की कोठरी से पिता द्वारा शिक्षा

प्यारे बच्चो,

जैसा कि तुम सब जानते हो, आज बाल दिवस है, और छुट्टी भी मतलब (double masti )दुगना मजा. आजकादिन तो तुम सब को पता है कि चाचा नेहरू के जन्म दिन पर मनाया जाता है, वो बच्चों को बहुत -बहुत प्यारकरतेथे. प्यार तो नीलम आंटी भी आप सब को बहुत करती है इसलिए आज इस ख़ास दिन पर हम लाये हैं, एकचिट्ठीजो चाचा नेहरू ने लिखी थी इंदिरा जी को जेल से उसके कुछ अंश हम आपको पढ़वा रहे हैं जो हम सब केलिएउतनी ही आज भी उपयोगी है

1930 में इंदिरा प्रियदर्शिनी के नाम, उनके तेरहवें जन्मदिन पर -

अपनी सालगिरह के दिन तुम बराबर उपहार ,और शुभकामनाएं पाती रही हो .शुभकामनाएं तो तुम्हे अब भीबहुतसी मिलेंगी ,लेकिन नैनी जेल से मै तुम्हारे लिए कौन सा उपहार भेज सकता हूँ ?मेरे उपहार बहुत वास्तविकयाठोस शक्ल से के नही हो सकते .वे तो हवा के समान सूक्ष्म ही होंगे जिनका मन और आत्मा से सम्बन्ध हो-ऐसाउपहार शायद तुम्हे कोई नेक परी ही दे सके -और जिन्हें जेल कीऊंची दीवारें भी नही रोक सकें

प्यारी बेटी ,तुम जानती हो कि उपदेश देना और नेक सलाह बाटना मझे कितना नापसंद है .इसलिए मेरा हमेशासेयह विश्वास रहा है कि यह जानने के लिए कि क्या सही है और क्या नहीं ;क्या करना चाहिए और क्या नहीकरनाचाहिए .सबसे अच्छा तरीका यह नही है कि उपदेश दिया जाय बल्कि सही तरीका यह है कि बातचीत औरचर्चा किजाय ,क्योंकि अक्सर ऐसी चर्चाओं में से कुछ - कुछ सच्चाई निकल आती है

"इसलिए अगर मेरी कोई बात तुम्हे उपदेश जैसी जान पड़े तो उसे कड़वी घूँट मत समझना .यही समझना किमानोंहम दोनों सचमच बातचीत कर रहे हैं और मैंने तुम्हारे सामने विचार करने को कोई सुझाव रखा है ..............

भारत में आज हम इतिहास का निर्माण कर रहे हैं .हम तुम बड़े खुशकिस्मत हैं कि ये सब बातें हमारी आंखोंकेसामने हो रही हैं ,और इस महान नाटक में हम भी कुछ हिस्सा ले रहे हैं ............

"मै यह नही कह सकता कि हम लोगों के जिम्मे कौन सा काम आएगा ;लेकिन जो भी काम पड़े ,हमे यादरखनाहै कि हम ऐसा कुछ नही करेंगे ,जिससे हमारे उद्देश्यों पर कलंक लगे और हमारे राष्ट्र कीबदनामी हो .........

सही क्या है और ग़लत क्या है ,यह तय करना आसान काम नही होता .इसलिए जब कभी तुम्हे शक हो तोऐसेसमय के लिए तुम्हे एक छोटी सी कसौटी बताता हूँ .शायद इससे तुम्हे मदद मिलेगी .कोई काम खुफिया तौरपर

मत करो ,और कोई ऐसा कोई काम करो जिसे तुम्हे दूसरों से छिपाने की इच्छा हो ;क्योंकि छिपाने की इच्छाकामतलब है कितुम डरते हो और डरना बुरी बात है और तुम्हारी शान के ख़िलाफ़ है .......

प्यारी नन्ही अब मै तुमसे विदा लेता हूँ ,और कामना करता हूँ कि बड़ी होकर भारत कि सेवा के लिए एकबहादुरसिपाही बनो

तुम्हारा पिता


साभार

"इंदु से प्रधानमन्त्री" पुस्तक से

प्रेषक -नीलम मिश्रा


Friday, November 13, 2009

पुनरावृत्ति -मुहावरों की (आम के आम गुठलियों के दाम )


आज एक नई कक्षा की शुरूआत की जा रही है। आप सब ने मुहावरों को तो पढ़ा ही होगा, तो आज हम सब लोग करेंगे रिविजन और वापस पहुंचेंगे अपने बचपन में। थोड़ी सी मेहनत करनी होगी। पर आप सब को इसमें बहुत आनंद आने वाला है, इसका पूरा आश्व्वाशन हम आपको देते हैं।

नियम कुछ इस प्रकार हैं -

१)आपको कुछ शब्द दिए जायेंगे उन शब्दों से आपको एक मुहावरा बताना है।

सबसे पहले मुहावरा बताने वाले को 1 अंक मिलेगा और उसके वाक्य प्रयोग को 1 अंक यानी कुल 2 अंक

२)एक शब्द से कई दूसरे मुहावरे भी लिखे जा सकते हैं और वाक्य प्रयोग कर सकते हैं।

३)सबसे अच्छे वाक्य को 1 और अतिरिक्त अंक मिलेगा।

४)उसके बाद तो आपको पता ही है, आप सबको मिलेंगे अनूठे खिताब आपकी कक्षा अध्यापिका व मॉनिटर द्वारा (शन्नो जी यह प्रतियोगिता सिर्फ़ आपके लिए नही है आपको अपना काम बखूबी पता है)।

आज की प्रतियोगिता के शब्द हैं-

सिर

आँख

कान

कन्धा

घुटना

तो है न मजेदार बस दिमाग को थोडी कुश्ती करानी होगी (हा हा हा हा हा)


Wednesday, November 11, 2009

गाजर के करिश्मे

मैं उगती हूँ जमीन के अन्दर
सब कहते गाजर है मेरा नाम
लाल, नारंगी और पीला सा रंग
और करती हूँ बढ़िया से काम।

जो कोई सुनता गुणों को मेरे
रह जाता है वह बहुत ही दंग
अपने मुँह से तारीफ़ कर रही
पर बच्चे होते हैं मुझसे तंग।

जो भी मुझे पसंद नहीं करते
वह रह जाते मुझसे अनजान
समझदार तो खा लेते मुझको
पर कुछ बच जाते हैं नादान।

मुझे छील-काट कर देखो तो
अन्दर-बाहर पाओ रंग एक से
सबके स्वास्थ्य की हूँ हितकारी
भरी पोटैसियम व विटामिन से।

पर क्यों दूर रहते बच्चे मुझसे
यह बात समझ नहीं आती है
उनकी मम्मी बनाकर मुझको
अक्सर क्यों नहीं खिलाती है।

हर प्रकार से स्वस्थ्य रहोगे
चाहें कच्चा ही मुझको खाओ
हलवा-खीर बनाओ मुझसे
और मुरब्बे को भी आजमाओ।

गोभी, मटर-आलू संग सब्जी
और गोभी संग डालो दाल में
सूप बने प्याज-धनिया संग
और टमाटर भी उस हाल में।

मुझे पकाओ यदि मटर के संग
दो जीरा, नमक-मिर्च का बघार
बटर और ब्रेड के संग भी खा लो
जल्दी से सब्जी हो जाती तैयार।

बंदगोभी, मटर और सेम संग
कभी सादा सा लो मुझे उबाल
या जल्दी से सब चावल में डालो
नहीं होगा कुछ अधिक बवाल।

कभी केक में डालो मुझे घिसकर
मूली, शलजम संग बनता है अचार
ककड़ी, मूली और हरी मिर्च संग
मैं हर सलाद में भरती नयी बहार।

-शन्नो अग्रवाल


Monday, November 9, 2009

सूरज की ज़िद

ज़िद कर बैठा सूरज एक दिन,
अब नही करूँगा सेवा
चाहे धरती अम्बर मिलकर
जितना भी दे मुझे मेवा


मेरे कारण दिन होते है
मेरे कारण राते
मैं गर्मी में तपता रहता
फिर चाहे कितनी हो बरसातें

सुन लो देवी और देवताओ
और धरती के पुत्रो....
इस गर्मी ने छीन लिया है
मेरा सुख और चैना


मेरा हाल नही अच्छा है
और मैं क्या बतलाऊँ
सोंच रहा हूँ इस गर्मी में
हिल स्टेशन हो आऊँ

--प्रिया चित्रांशी


Saturday, November 7, 2009

शेर और बिल्ली

एक बार जंगल का शेर
भूखा बैठा कितनी देर
नही फँसा था कोई शिकार
हो गया शेर बहुत लाचार
कैसे अपनी भूख मिटाए
कैसे वह कोई जानवर खाए
देखी उसने बिल्ली एक
खाए थे चूहे जिसने अनेक


शेर के मुँह मे भर गया पानी
सोची उसने एक शैतानी
शेर ने अपने मन में विचारा
खाए बिना अब नहीं गुजारा
किसी तरह से भूख मिटाए
क्यों न वह बिल्ली को खाए
बिल्ली जो बैठी वृक्ष की डाली
नहीं पास वो आने वाली

किसी तरह बिल्ली को बुलाए
चालाकी से उसको खाए
सोच के गया बिल्ली के पास
बोला! मौसी मुझको आस(उम्मीद)
तुम तो कितनी समझदार हो
और सब में से होशियार हो
मुझ पर भी कर दो अहसान
मुझे भी अपना शिष्य जान
मुझे भी अपना ज्ञान सिखा दो
होशियारी का राज बता दो
कहना तेरा हर मानूँगा
सारी उम्र तक सेवा करूँगा
मौसी होती दूसरी माता
बना लो गुरु-शिष्य का नाता
बड़ी चालाक थी बिल्ली रानी
समझ गई वो सारी कहानी

बोली सब कुछ सिखलाऊँगी
आरम्भ से सब बतलाऊँगी
सीखो तुम पंजे को चलाना
जाल मे अपने शिकार फँसाना
और फिर मुँह में उसको दबाना
मार के उसको मजे से खाना
बिल्ली ने शेर को सब बतलाया
पर न वृक्ष पे चढ़ना सिखाया
शेर का मन जो नहीं था साफ
नहीं करेगा बिल्ली को माफ
वो तो बिल्ली को खाएगा
भोजन उसको ही बनाएगा
सीख लिया उसने गुर सारा
अब तो शेर ने मन में विचारा
बहुत हुआ बिल्ली का भाषण
अब तो चाहिए मुझको भोजन

समझ गई बिल्ली भी चाल
आया उसको एक ख्याल
जब तक झपटा बिल्ली पे शेर
तब तक हो गई बहुत ही देर
चढ़ गई बिल्ली वृक्ष के ऊपर
पहले से बैठी थी जिसपर
बैठ के ऊपर बोली! बच्चे
तुम तो अभी हो अकल के कच्चे
मुझ संग चल रहे थे चालाकी
पूरी न होगी शिक्षा बाकी
जो मैंने तुमको बतलाया
वो तो बस ऐसे भरमाया
असली राज न तुम्हें बताया
न तुम्हें वृक्ष पे चढ़ना आया
हिम्मत है तो चढ़ के दिखाओ
और मुझे अपना भोज बनाओ

तुमने यह सोचा भी कैसे
तेरी बातों में फसूँगी ऐसे
दुश्मन पर एतबार करूँगी
और मैं तेरे हाथों मरूँगी
यह तो कभी नहीं हो सकता
शेर न कभी दोस्त बन सकता
अब तो शेर को समझ में आया
अपनी गलती पर पछताया
मन मसोस के शेर रह गया
और जाते-जाते यह कह गया
.....................
शिक्षा तो सच्चे मन से लो
बुरे विचार न मन में पालो
.....................
बच्चो तुम भी बात समझना
बुरे भाव न मन में रखना
रखना तुम सदा सच्चा मन
जिससे होगा सुखमय जीवन
दुश्मन पे एतबार न करना
धोखे से कभी वार न करना
*******************


Friday, November 6, 2009

6 नवम्बर 2009- क्या आप जानते हैं ?

जाड़ों में मुहँ से भाप क्यों निकलती है?


हमारे शरीर में 60 से 80 भाग तक पानी है। जब हम साँस लेते हैं तो यह पानी भाप द्बारा निकलता रहता है।

गर्मियों में क्योंकि हवा गर्म होती है, इसलिए साँस द्वारा निकलने वाली भाप गर्मी पाकर सूख जाती है। हम उसे देख नहीं पाते। लेकिन सर्दियों में हवा ठंडी रहती है, इस कारण जैसे ही हमारे मुँह से भाप निकलती है, वह बाहर की ठंडक पाकर घनी हो जाती है और हम उसे भाप के रूप में साफ-साफ देख सकते हैं।


Wednesday, November 4, 2009

छ: एकम छ:



छ: एकम छ:,
छ: दूनी बारह,
किसी भी गल्ती को,
करना न दोबारा।

छ: तीए अट्ठारह,
छ: चौके चौबीस,
सवाल हल न हो,
तो करते रहना कोशिश।

छ: पंजे तीस,
छ: छेके छत्तीस,
थोड़े से बादाम,
साथ में खाना किशमिश।

छ: सत्ते बयालीस,
छ: अट्ठे अड़तालीस,
प्यार पौधों से करो,
रखना न लावारिस।

छ: नामे चौव्वन,
छ: दसे साठ,
मेहनत करने के लिये,
करना इक दिन-रात।

--डॉ॰ अनिल चड्डा

दो एकम दोतीन एकम तीनचार एकम चारपाँच एकम् पाँच


Tuesday, November 3, 2009

मैं गोरी-गोरी मूली



सुंदर हूँ मैं और हूँ गोरी-गोरी
बहुत तरह के होते हैं आकार
मोती-पतली, छोटी-लम्बी
मैं सलाद में बनती सदा बहार.

अन्दर-बाहर से एक रंग की
नाम करण से मूली कहलाई
बदन सलोना सा और लचकता
पैदा होते ही सबके मन को भाई.

पत्ते भी सबके मन को भाते हैं
उन्हें धो-काटकर बनता साग
उनके ताजे रस का पान करें यदि
तो फिर पेट के रोग जाते हैं भाग.

यदि सब्जी का हो भरा टोकरा
मैं पत्तों संग उसकी शोभा बनती
गाजर की कहलाऊँ मैं हमजोली
जोड़ी हमदोनो की अच्छी लगती.

हर मौसम में मैं मिल जाती
गर्मी हो या हो कितनी ही सर्दी
रंग-रूप जो भी निहारता मेरा
ना मुझसे दिखलाता है बेदर्दी.

खाना खाने जब सब बैठें तो
' अरे भई, मूली भी ले आओ '
सुनकर मैं भी कुप्पा हो जाती
नीबू-गाजर संग भी खा जाओ.

चाहें नमक संग टुकड़े खाओ
या फिर नीबू-सिरके में डालो
और ना सूझे अधिक तो मेरी
आलू संग सब्जी ही पकवा लो.

धनिया, मिर्च, टमाटर संग तो
हर घर में जमती है मेरी धाक
पर जब भी काटो छीलो मुझको
महक से बचने को रखना ढाक.

घिसकर मुझे मिला लो आटे में
धनिया भी और कुछ चाट-मसाला
गरम-गरम परांठे बना के खाओ
मुझसे स्वाद लगेगा बहुत निराला.

शलजम, गाजर, मिर्च, प्याज़ संग
मिलकर बन जाता रंगीन सलाद
मिर्च, धनिया और नीबू भी डालो
फिर मुझको खाकर कहना धन्यबाद.

--शन्नो अग्रवाल


Monday, November 2, 2009

आओ घूमें इंडिया गेट



आओ घूमें इंडिया गेट
मौज मनायेंगें भर-पेट
तुम भी संग हमारे आओ,
धमाचौकड़ी खूब मचाओ,
हरी घास पर कूदें-गायें,
चाट-पकौड़ी भी हम खायें,
गोल चक्र में घूमें गाड़ियाँ,
पों-पों करती रहें गाड़ियाँ,
शोर ये हैं भरपूर मचायें,
खेल में अपने विघ्न पहुँचाये,
आइसक्रीम है ठंडी-ठंडी,
लग जायेगी हमको ठंडी,
लाल गुबारे वाला भी तो,
खूब हमारा मन ललचाये,
मम्मी हमको मना है करती,
नहीं बच्चों का मन समझती,
पैसे तुम न यूं खर्चाओ,
कुछ पैसों की कुछ कद्र मनाओ,
पापा दिन भर मेहनत कर के,
महीने पीछे लाते हैं पैसे,
तुम क्यों अपनी जिद में बच्चो,
उल्टा-सीधा खर्च कराते,
वो बच्चे होते हैं अच्छे,
जो हैं घर के पैसे बचाते।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Saturday, October 31, 2009

हथेली पर बाल

एक बार अकबर भरे दरबार में बैठे थे। अकबर के मन में अचानक एक विचार आया और उन्होंने दरबारियों से एक सवाल पूछा -"क्या आप बता सकते हैं कि मेरी हथेली पर बाल क्यूँ नही हैं?"

"जहाँपनाह! हथेली पर बाल होते ही नहीं हैं" सभी दरबारियों ने एक स्वर में कहा और गर्व से फूल गए कि उन्होंने बादशाह को आज इस सवाल का तरंत उत्तर दे दिया।

मगर अकबर बादशाह को आज इस सीधे-सादे उत्तर से क्या संतोष होना था, उन्होंने फिर पूछा -"क्यूँ नहीं होते?"

सब दरबारी चुप। क्या जवाब दें। जब हथेली पर बाल नहीं होते, तो नहीं होते। ये तो कुदरती बात है।

उन्हें चुप देखकर बादशाह ने बीरबल की तरफ़, "बीरबल तुम्हारा क्या खयाल है?"

बीरबल ने कहा,"जहाँपनाह! आप रोज-रोज अनेक गरीबों को दान देते हैं। जिससे आपकी हथेली लगातार घिसती रहती है। इसलिए इस पर बाल नहीं उग पाते।"

बीरबल का जवाब सुनकर बादशाह खुश हो गए।

मगर तुंरत ही ही उन्होंने पूछा, "माना कि दान देते रहने से हमारी हथेली में बाल नहीं उग पाते लेकिन तुम्हारी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं?"

"जहाँपनाह! आप रोज-रोज मुझे ढेरों उपहार देते रहते हैं। उन उपहारों को लेते-लेते मेरी हथेली भी तो घिसती है!इसलिए मेरे हथेली में भी बाल नहीं उगे।"

अकबर ने सोचा, "बीरबल तो बहुत चतुर निकला, लेकिन आज वह बीरबल की पूरी परीक्षा लेना चाहते थे।

इसलिए फिर पूछा, "तुम्हारी और मेरी हथेलियाँ तो घिसती रहती हैं, लेकिन हमारे अन्य दरबारियों की हथेलियों में भी बाल नहीं उगे, इसका क्या कारण है?"

बीरबल ने हँसते हुए कहा, "यह तो बिल्कुल सरल बात है, आलमपनाह! आप मुझे प्रतिदिन उपहार देते हैं, इससे दरबारियों को भारी जलन होती है और ये हमेशा हाथ मलते रहते हैं। यदि हथेलियाँ लगातार घिसती रहें तो उन पर बाल कैसे उगेंगे?"

यह सुनकर अकबर खिलखिलाकर हँस पड़े। बीरबल से जलने वाले दरबारी और अधिक जल उठे ।

संकलन- नीलम मिश्रा


Friday, October 30, 2009

माता पिता में सकल जहान

नमस्कार बच्चो ,
आप सब अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते हैं न ।
माता-पिता से बढकर दुनिया में कुछ नहीं होता । उन्हीं के चरणों में सम्पूर्ण विश्व समाया है , माता-पिता के आगे स्म्पूर्ण ब्रह्माण्ड भी तुच्छ है । श्री गणेश जी नें भी हमें यही संदेश दिया है । आओ मैं आपको उनकी एक काव्य-कथा सुनाती हूं , जिसमें उन्होंने माता-पिता को सम्पूर्ण संसार बता कर अपने बलशाली भाई कार्तिकेय को भी पराजित कर दिया था ।


पार्वती नन्दन गणेश
पूजा है जिनकी अति विशेष
सर्व-प्रथम जिनका वन्दन
वो गणपति बप्पा जगनन्दन
है जन-जन पर जिसकी दष्टि
उसे माता पिता ही सकल सष्टि
सुन लो एक बार की बात
खेल रहे भाई के साथ
दोनों खेल-खेल के बहाने
लगे जोर अपना आजमाने
कार्तिकेय बोले हे गणेश
ताकत है मुझमें विशेष
तुम तो बस खाते ही रहते
या आसन पर बैठे रहते
न तुम कभी करो व्यायाम
हर पल बस पढने का काम
बिन ताकत के थोथा ग्यान
लो ताकत से जीत जहान
देखो मैं कितना बलशाली
कर सकता जग की रखवाली
खडे दूरी पर नारदमुनि
कार्तिकेय की बात सुनी
सुनकर उनके पास में आए
बोले अपना शीश झुकाए
प्रतियोगिता से होगा निर्णय
देखो मिलेगी किसे विजय
दोनों भाई हुए तैयार
नापेंगे सकल संसार
विश्व घूम पहले जो आए
वही तो बलशाली कहलाए
कार्तिकेय खुश मन ही मन
जीत नहीं सकता गजानन
प्रथम तो बस मैं ही आऊंगा
बलशाली मैं कहलाऊंगा
घूमने निकल पडे संसार
गणपति गए बस घर के द्वार
एक विचार यूं मन में जन्मा
शिव-गौरी की ली परिक्रमा
बैठ गए आ मां की गोद
लगे वो करने हास-विनोद
बोले नारद हे गजानन
लांघा नहीं घर का आंगन
मिलेगी कैसे तुम्हें विजय
जीतेगा बस कार्तिकेय
चेहरे पर लाकर मुस्कान
बोले कार्तिकेय नादान
माता-पिता में विश्व समाया
न जाने वो क्यों भरमाया
कर लिया पूरा मैने काम
मां की गोदि में करूं आराम
जब उनसे यह बात सुनी
गिरे चरणों में नारद मुनि
बात समझ में उनके आई
माता-पिता में सष्टि समाई
घूम के जब कार्तिकेय आया
नारद जी ने यह समझाया
माता-पिता से करे जो प्यार
पूजता है उनको संसार
माता-पिता ही जग में महान
खुल गए कार्तिकेय के कान
खेल खेल में दिया संदेश
माता पिता ब्रह्म विष्णु महेश
माता पिता का करे जो वंदन
कट जाते उसके सब बंधन


तितली



रंग बिरंगी तितली
उड़ती फिरती तितली
इस फूल से उस फूल
संग हवा के झूमती.

कितना निर्मल जीवन
कितना पावन जीवन
खुशियों की ले सौगात
महका बहका जीवन.

जीवन हर्षित करती
स्वर्ग बने यह धरती
बाग में जैसे तितली
उन्मुक्त हवा में उड़ती.

विकार रहें सब दूर
चित्त निर्मल भरपूर
दुख गम से अनजान
चेहरे पर छाये नूर.

कुलवंत सिंह


Thursday, October 29, 2009

मैं ककड़ी पर नहीं कड़ी



नाजुक बदन रंग है धानी
मैं बनती सलाद की रानी
दुबली-पतली और लचीली
कभी-कभी पड़ जाती पीली
सबकी हूँ जानी-पहचानी
मुझमे होता बहुत ही पानी
गर्मी में होती है भरमार
हर सलाद में मेरा शुमार
करते सब हैं तारीफें मेरी
खीरे की मैं बहन चचेरी
हर कोई लगता मेरा दीवाना
हो गरीब या धनी घराना
खाने में करो न सोच-बिचार
हल्का-फुल्का सा हूँ आहार
विटामिन ए, सी और पोटैसियम
सब रहते हैं मुझमें हरदम
मौसम के हूँ मैं अनुकूल
आँखें हो जातीं मुझसे कूल
अंग्रेजी में कहें कुकम्बर
खाते हैं सब बिन आडम्बर
ब्यूटीपार्लर जो लोग हैं जाते
पलकों पर हैं मुझे बिठाते
मुखड़े करती मलकर सुंदर
दूर करुँ विकार जो अन्दर
स्ट्राबेरी संग प्याज़, पोदीना
मुझमें मिलकर लगे सलोना
बटर, चीज़ संग टमाटर
मुझे भी रखो सैंडविच के अंदर
कभी अकेले खाई जाती
कभी प्याज-गाज़र संग भाती
अगर रायता मुझे बनाओ
उंगली चाट-चाट कर खाओ
यदि करते हो मुझको कद्दूकस
तो नहीं फेंकना मेरा रस
गोल-गोल या लम्बा काटो
खुद खाओ या फिर बांटो
सिरके में भी मुझको डालो
देर करो ना झट से खा लो
और भी सोचो अकल लगाकर
सब्जी भी खाओ मुझे बनाकर.

--शन्नो अग्रवाल


Wednesday, October 28, 2009

फिर से सर्दी आई रे



फिर से सर्दी आई रे,
धीरे-धीरे आई रे।

सुबह-सुबह उठना न भाये,
ठंडे पानी से कौन नहाये,
सोच कंपकपी आई रे।
फिर से सर्दी आई रे।

होमवर्क करने न पाऊँ,
हाथ कहें, क्यों साथ निभाऊँ,
हमें रजाई भाई रे।
फिर से सर्दी आई रे।

मम्मी की है गोद न्यारी,
गर्मी दे है प्यारी-प्यारी,
नींद सुहानी आई रे।
फिर से सर्दी आई रे।

गर्म-गर्म पिलाओ चाय,
रोटी भी हम सब गर्म ही खायें,
हलवे की बारी आई रे।
फिर से सर्दी आई रे।

काजू-किशमिश खूब चबायें,
मूँगफली के मजे उडायें,
सबने मौज मनाई रे।
फिर से सर्दी आई रे।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Tuesday, October 27, 2009

27 अक्टूबर 2009- क्या आप जानते हैं?


लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों???????????????????


लिख भेजिए अपने रोचक जवाब, सबसे सही और रोचक प्रस्तुति को हमारे बाल-उद्यान की मॉनिटर शन्नो जी की शाबाशी मिलेगी एक अनूठे अंदाज में, जल्दी कीजिये समय सीमा सिर्फ आज और आज ही।

आपके जवाबों की प्रतीक्षा में-

बाल उद्यान परिवार के साथ
(नीलम व शन्नो)


Monday, October 26, 2009

मेरा नाम चुकंदर बाबू



मुझे देख कर ना डर जाना
दिखने में नहीं इतना सुन्दर
पर मेरा नाम नहीं अनजाना
सब कहते हैं मुझे चुकंदर।

कुछ तो देख इतना डर जाते
कहने लगते ' बाप-रे-बाप '
लगता तब कुछ ऐसा मुझको
उनको सूंघ गया हो सांप।

शलजम, गाजर, मूली, आलू
यह सब लगते मेरे रिश्तेदार
एक सी मिटटी के अन्दर रह
हम सबकी होती है पैदावार।

अगर कभी कोई मुझे खरीदे
घर में सब बच्चे देखें घूर-घूर
जैसे ही मेरा रस आता बाहर
खड़े हो जाते वह मुझसे दूर।

लाल-बैंगनी सा रंग बदन का
नहीं टपकता है मुझसे नूर
पर कभी न कोई मुझपर हँसना
गुणों से हूँ मैं बहुत भरपूर.।

कैल्शियम, आयरन, फाइबर
और भरे हैं विटामिन-मिनेरल
अब नहीं मुझे देख घबराना
कार्बोहाइड्रेट भी है मेरे अन्दर।

अगली बार मार्केट जाओ तो
मम्मी के संग तुम भी जाना
मुझे ढूंढ-खरीद कर घर लाओ
फिर मम्मी से कुछ बनवाना।

घबराने की कोई बात नहीं है
छूकर देखो, मुझे हाथ लगाओ
मुझे उबालो, छीलो-काटो और
तरह-तरह से फिर आजमाओ।

कई प्रकार के तरीकों से तुम
खाने को कुछ रंगत दे डालो
अगली बार को सलाद बनाओ
गाजर-मूली संग घिस डालो।

मोटी खाल को छीलो पहले
लम्बी-पतली फांकें फिर काट
उबला आलू और दही मिलाकर
चाट-मसाला संग बनती चाट।

बैंगन, गोभी, प्याज़ के टुकड़े
धनिया, मिर्च नमक और बेसन
पानी संग मिला कर मुझको
तलना गरम पकौड़े छन-छन।

मिक्सी में बने जूस चीनी संग
फिर जब भी जाओ तुम स्कूल
थर्मस में भर इसको ले जाना
साथ में पीने को कुछ कूल-कूल।

गाजर, प्याज़, मशरूम डालकर
चावल संग सकते हो मुझे पका
सबके संग मिल जुल कर खाओ
तो खाने में बढ़ जाये जायका।

हर मौसम में यदि खाना हो तो
बोतल के सिरके में मुझको रखो
जब अचानक मूड बने खाने का
जल्दी निकाल कर मुझको चखो।

अब ना मुझे ऐसे घूर-घूर कर देखो
अपने मन पर सब रखना काबू
मेरी बातों पर सदैव ध्यान देना
मैं हूँ अब सबका दोस्त चुकंदर बाबू।


--शन्नो अग्रवाल


Sunday, October 25, 2009

दो एकम् दो, दो दुनी चार, जल्दी से आ जाता फिर से सोमवार

सुनिए नीलम मिश्रा की आवाज में अनिल चड्डा की सीख इन पहाडों के माध्यम से और दीजिये अपनी बहुमूल्य
पर सच्ची टिप्पणी कि आपको यह छोटा सा प्रयास कैसा लगा?

दो का पहाड़ा


तीन का पहाड़ा


चार का पहाड़ा


Saturday, October 24, 2009

चाणक्य- निंदक नियरे राखिये

उस समय की बात है, जब चाणक्य और चन्द्रगुप्त मिलकर भारतवर्ष में मौर्य साम्राज्य की स्थापना कर रहे थे। सारा देश छोटे-छोटे राज्यों में बँटा था। बिखरी हुई शक्तियों को समेटकर एक राष्ट्र का निर्माण करना सहज काम नहीं था। चाणक्य और चन्द्रगुप्त एक सेना इकट्ठी करके देश के भीतरी राज्यों को जीतने में लगे थे। उनके सामने सबसे बड़ी यह समस्या थी की ज्यों ही वे एक राज्य या प्रांत को जीतकर दूसरे पर आक्रमण करते, त्योंही शत्रु लोग जीते हुए देश पर पुनः अधिकार कर लेते थे। इस प्रकार उनका किया कराया चौपट हो जाता था।

चाणक्य और चन्द्रगुप्त बड़ी विकट परिस्थिति में थे। उनके चारों ओर शत्रुओं का दल प्रबल होता जा रहा था। वे उनको दबाने में असमर्थ थे। धीरे-धीरे उनके साधन समाप्त हो गए और वे मारे-मारे फिरने लगे।

एक दिन चाणक्य और चन्द्रगुप्त वेष बदलकर घूम रहे थे। घूमते-घूमते एक गाँव में उन्होंने यह दृश्य देखा- एक छोटा बालक अपने घर के सामने हाथ में रोटी लिए बैठा था। वह उस रोटी को बीच से नोचता था, इसीलिए इसके किनारे झूलकर गिर पड़ते थे। इसीपर उसकी माँ उसे डाँटती हुई बोली- अरे छोकरे! तू भी चाणक्य जैसा ही मूर्ख जान पड़ता है, रोटी को किनारे से तोड़कर खा।

स्त्री के मुख से अपनी निंदा सुनकर चाणक्य चौंक पड़े। उसने तुंरत पास खड़े होकर पूछा- श्रीमती जी, चाणक्य को तो लोग बड़ा चतुर बताते हैं; आपने किस बात से उसको मूर्ख मान लिया है?

स्त्री ने हँसकर कहा- भले आदमी, इतना भी नही जानते! उस मूर्ख ने देश के बाहरी प्रान्तों को छोड़कर पहले भीतरी भाग को जीतने का प्रयत्न किया। फल यह हुआ कि यह वह शत्रुओं से घिर गया और उसके हाथ कुछ भी नहीं लगा। घर के भीतर का धन चोरों से तभी बचता है, जब बाहर की किवाडें मजबूत और बंद हों।

अक्लमंद को एक इशारा ही काफी होता है। इस खरी आलोचना से चाणक्य को अपनी भूल का पता चल गया। उन्होंने चन्द्रगुप्त को लेकर दुबारा एक नई सेना संगठित की। उसकी सहायता से उन्होंने पहले उन राज्यों को जीतना आरम्भ किया जो देश की चारों सीमाओं पर थे। सीमा प्रान्तों को मुट्ठी में करके उन्होंने भीतरी राज्यों को बाहर से घेर लिया। उनके विरोधियों को न तो बाहर से सहायता मिलने की कोई आसा रही और न जान बचाकर भागने की। वे लोग तो एक प्रकार से बंदीगृह में पड़ गए। चाणक्य और चंद्रगुप्त ने उन्हें सहज ही जीत लिया।

चाणक्य ने जो अपनी निंदा सुनी थी, वह कटु होकर भी उनके बड़े काम की साबित हुई। इसीलिए कबीर ने कहा है -

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय।
बिनु साबुन पानी बिनु, निर्मल करे सुभाय।।


Thursday, October 22, 2009

पाँच एकम पाँच



पाँच एकम पाँच,
पाँच दूनी दस,
अपनी बातों में सदा,
घोल के रखना रस।

पाँच तीए पंद्रह,
पाँच चौके बीस,
रखना अच्छी आदतें ,
लेना अच्छी सीख।

पाँच पंजे पच्चीस,
पाँच छेके तीस,
लालच तुम करना नहीं,
रखो दूर बुरी चीज।

पाँच सत्ते पैंतीस,
पाँच अट्ठे चालीस,
राहों में बोना नहीं,
काँटों के तुम बीज।

पाँच नामें पैंतालीस,
पाँच दस्से पचास,
करना काम लगन से
खोना मत विश्वास।

--डॉ॰ अनिल चड्डा

दो एकम दोतीन एकम तीनचार एकम चार


Wednesday, October 21, 2009

कुछ इधर-उधर की बातें



आओ बच्चों करें आज कुछ इधर-उधर की बातें
घर में क्या हो रहा है और कुछ मौसम की भी बातें।

दादा जी के खर्राटों की आवाजें सुन बिल्ली आ जाती
दरवाजे के बाहर बैठी म्याऊँ-म्याऊँ कर शोर मचाती।

होमवर्क करने को तो गुड्डू अक्सर जाता है टाल
पर नहीं ऊबता देखकर दिनभर टीवी पर फुटबाल।

अचानक बारिश रुक जाती बादलों के चले जाने पर
घास पर अटकी झिलमिल करती बूँदें जाती हैं झर।

पतझर आने पर जब पेड़ों से सारे पत्ते जाते हैं झर
ले जाती है तब गिलहरी गिरे सेवों को कुतर-कुतर।

पतझर आने पर सबसे पहले तो आती है दीवाली
लक्ष्मी पूजन की सजाते हम-सब मिलकर थाली।

फिर कुछ दिन बाद मनायेंगे मिलकर सब क्रिसमस
ढेरों से उपहार मिलेंगे और गले मिलेंगे सब हँस-हँस।

आओ सबसे पहले दीवाली का पूजन कर दिये जलायें
झिलमिल-झिलमिल करे रोशनी सब बच्चे नाचें-गायें।

जी भर के आज उड़ाओ मस्ती खाओ खूब सभी पकवान
लेकिन जब भी फोड़ो पटाखे रहना तुम बहुत ही सावधान।

तुम सबका भविष्य हो उज्जवल जगमग हो दीप जैसा
अपने घर के तुम सभी दीप हो भारत चमके तारों जैसा।

--शन्नो अग्रवाल


Tuesday, October 20, 2009

आलू-गोभी का वार्तालाप



आलू बोला गोभी से,
मुझसे तू न टकराना,
मैं हूँ सब्जियों का राजा,
मेरे रस्ते से हट जाना।

बोली गोभी आलू से,
मैं हूँ सब्जियों की रानी,
ग़र आयेगा मेरे रस्ते,
याद तुझे आयेगी नानी।

आलू बोला चल बड़बोली,
मुझसे बनें बहुत पकवान,
तुझसे बस सब्जी या पराठे,
मुझ बिन नहीं तेरी पहचान।

गोभी बोली मेरे पराठे,
स्वाद भरे हों सबसे करारे,
तेरे पराठे ढीले-ढाले,
बड़े यत्न से मुँह में डालें।

आलू बोला सुन ऐ गोभी,
मुझको चाहे किचन की रानी,
हर पल मुझको साथ में रखते,
मम्मी, बेटी या हो नानी।

उबले आलू, सूखे आलू,
आलू-टमाटर, मटर संग आलू,
दम आलू या मेथी-आलू,
व्रत में भी तुम खालो आलू।

गर्मी में आलू, सर्दी में आलू,
हर कोई चाहे आलू पा लूँ,
हर सब्जी संग स्वाद नया है,
हर सब्जी संग चले है आलू।

गोभी बोली जो तुझे खाये,
पीछे खाने के पछताए,
इसमें इतना स्टार्च भरा है,
झटपट सबकी शुगर बढ़ाये।

गोभी से बोला फिर आलू,
पोल तेरी कुछ मैं भी खोलूँ,
जो तुझको ज्यादा खा जाये,
रोये, दर्द मैं कैसे झेलूँ ।

गोभी-आलू की ये लड़ाई,
खत्म नहीं होने को आई,
चाकू मम्मी जी ने उठाया,
काट के दोनों सब्जी बनाई।

आलू गोभी की सब्जी ने,
हमको था ये सबक सिखाया,
आपस में लड़ने से बच्चो,
दूजे ने था फायदा उठाया।


--डॉ॰ अनिल चड्डा