Monday, November 2, 2009

आओ घूमें इंडिया गेट



आओ घूमें इंडिया गेट
मौज मनायेंगें भर-पेट
तुम भी संग हमारे आओ,
धमाचौकड़ी खूब मचाओ,
हरी घास पर कूदें-गायें,
चाट-पकौड़ी भी हम खायें,
गोल चक्र में घूमें गाड़ियाँ,
पों-पों करती रहें गाड़ियाँ,
शोर ये हैं भरपूर मचायें,
खेल में अपने विघ्न पहुँचाये,
आइसक्रीम है ठंडी-ठंडी,
लग जायेगी हमको ठंडी,
लाल गुबारे वाला भी तो,
खूब हमारा मन ललचाये,
मम्मी हमको मना है करती,
नहीं बच्चों का मन समझती,
पैसे तुम न यूं खर्चाओ,
कुछ पैसों की कुछ कद्र मनाओ,
पापा दिन भर मेहनत कर के,
महीने पीछे लाते हैं पैसे,
तुम क्यों अपनी जिद में बच्चो,
उल्टा-सीधा खर्च कराते,
वो बच्चे होते हैं अच्छे,
जो हैं घर के पैसे बचाते।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


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5 पाठकों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

तुम क्यों अपनी जिद में बच्चो,
उल्टा-सीधा खर्च कराते,
वो बच्चे होते हैं अच्छे,
जो हैं घर के पैसे बचाते।
आपकी कविता का शीर्षक देख कर तो मजा आया पर कविता पढ़कर उतना नहीं ,मसलन अगर वहाँ शोर है तो आप वहाँ बच्चों को लेकर घुमाने क्यों गए और जाते ही बच्चोको न तो गुब्ब्बारे दिलवाए और ऊपर से पैसे बचाने की नसीहत ,हम अगर बच्चे होते तो नियंत्रक महोदय से कहकर आपकी कविता यहाँ से उतरवा ही देते और सबसे कहते अनिल अंकल के संग कभी न जाना इंडिया गेट,
चाहे भरी हो उनकी जेब ,देंगे नहीं एक भी ढेल (ढेला-पैसा )
भगवान् बचाए ऐसे भ्रमण से वो भी अनिल अंकल के संग तो ,तौबा ही कर लो जी सब bachcha लोग

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

नीलमजी,

इस कविता के पीछे उद्देश्य बच्चों को सैर कराने का है । और ये जरूरी नहीं कि सैर करते वक्त नाजायज पैसे खर्च करवायें जायें । सभी हमारे एवं आपके जैसे तो नहीं जो बच्चों की हरेक इच्छा पूरी कर सकें । खैर लगता है आपको कविता पसन्द नहीं आई । तभी इतने दिनों बाद कमेंट आया । जो पसन्द करे उसका भी शुक्रिया और जो न करे उसका भी शुक्रिया । मेरे बाल-गीत का क्या हुआ ?

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

प्यारी नीलम जी,
क्षमा चाहती हूँ इस तरह अचानक टपकने के लिये किन्तु आदतन मजबूर हूँ....घबराइये नहीं ऐसी कोई सीरिअस बात नहीं कहने जा रही हूँ पर......पैसे को...
ढेला नहीं.....धेला कहिये. ढेला का मतलब होता है मिटटी का ढेला.

मजे का ना लगता है मेला
जब तक खर्च करो ना धेला.
सही कहा ना?

neelam का कहना है कि -

शन्नो जी धन्यवाद ,
anil ji ,
aapki kavita niyantrak ji ko de di hai .

डॉ० अनिल चड्डा का कहना है कि -

धन्यवाद, नीलमजी !

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