आम और केले की लड़ाई
एक बार की बात है बच्चो,
आम और केले में थी ठन गई,
केला बोले मैं हूँ मीठा,
आम कहे मैं तुझसे मीठा।
यूँ ही दोनों में तब बच्चो,
बढ़ते-बढ़ते बहस थी बढ़ गई,
कौन है दोनों में से मीठा,
बात यहाँ पर आ कर अड़ गई।
केला बोला चल हट झूठा,
कभी-कभी तू होता खट्टा,
मेरे स्वाद पे लेकिन देखो,
लगता नहीं कभी है बट्टा।
आमजी ने पर घुड़की लगाई,
बोला मैं हूँ फलों का राजा,
जब मेरा मौसम है आता,
सब कहते हैं आम को खाजा।
स्वाद बेशक हो मेरा खट्टा,
फिर भी मिलता अलग जायका,
स्वाद तेरा हो हरदम इक सा,
कभी-कभी तो हो तू फीका।
आम सिर्फ गर्मी में आये,
केला हर मौसम में खायें,
तू तो बस है स्वाद का राजा,
मुझसे लोग फायदे भी पायें।
हुआ नहीं जब कोई फैसला,
बंदरजी इक कूदे आये,
बोले मैं हूँ बड़ा अक्लमंद,
कई फैसले मैंने कराये।
दोनों को तब याद थी आई,
बिल्लियों की मशहूर लड़ाई,
बंदर के जज बनने से पहले,
थोड़ी सी थी अक्ल लगाई।
आखिर हम दोनों ही फल हैं,
बेशक अलग-अलग है जाति,
दूजे के हाथों गर खेलें,
निश्चित हार नजर है आती।
ऐसे ही है देश हमारा,
अलग है भाषा, अलग धर्म है,
मिलजुल के सब रहना बच्चो,
देश के प्रति यही कर्म है।
--डॉ॰ अनिल चड्डा
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8 पाठकों का कहना है :
फलों के बहाने से सुंदर संदेश देती है ये रचना .. सुंदर रचना के लिए आपको बहुत बधाई !!
बहुत सुंदर रचना।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
ladai padhte huye maja aya aur ant padh ke to bahut hi aanand aaya .
sunder soch
saader
rachana
केला बेशक बजाए बाजा
आम रहेगा फ़लों का राजा
bhai baah ,maja aa gaya ladaai me bhi ,bandar ki entry me bhi ,aur falon ki samajhdaari me bhi ,aur sabse jaroori baat aapki shiksha me bhi .aisi hi kavitaayen saarthak karti hain baal-udyaan ke manch ko .
आप सब को कविता पसन्द आई, अच्छा लगा । प्रोत्साहन के लिये आभार ।
बहुत सुन्दर कविता है Dr. चड्ढा,
हार्दिक बधाई!
bahut khoob..
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