Tuesday, November 3, 2009

मैं गोरी-गोरी मूली



सुंदर हूँ मैं और हूँ गोरी-गोरी
बहुत तरह के होते हैं आकार
मोती-पतली, छोटी-लम्बी
मैं सलाद में बनती सदा बहार.

अन्दर-बाहर से एक रंग की
नाम करण से मूली कहलाई
बदन सलोना सा और लचकता
पैदा होते ही सबके मन को भाई.

पत्ते भी सबके मन को भाते हैं
उन्हें धो-काटकर बनता साग
उनके ताजे रस का पान करें यदि
तो फिर पेट के रोग जाते हैं भाग.

यदि सब्जी का हो भरा टोकरा
मैं पत्तों संग उसकी शोभा बनती
गाजर की कहलाऊँ मैं हमजोली
जोड़ी हमदोनो की अच्छी लगती.

हर मौसम में मैं मिल जाती
गर्मी हो या हो कितनी ही सर्दी
रंग-रूप जो भी निहारता मेरा
ना मुझसे दिखलाता है बेदर्दी.

खाना खाने जब सब बैठें तो
' अरे भई, मूली भी ले आओ '
सुनकर मैं भी कुप्पा हो जाती
नीबू-गाजर संग भी खा जाओ.

चाहें नमक संग टुकड़े खाओ
या फिर नीबू-सिरके में डालो
और ना सूझे अधिक तो मेरी
आलू संग सब्जी ही पकवा लो.

धनिया, मिर्च, टमाटर संग तो
हर घर में जमती है मेरी धाक
पर जब भी काटो छीलो मुझको
महक से बचने को रखना ढाक.

घिसकर मुझे मिला लो आटे में
धनिया भी और कुछ चाट-मसाला
गरम-गरम परांठे बना के खाओ
मुझसे स्वाद लगेगा बहुत निराला.

शलजम, गाजर, मिर्च, प्याज़ संग
मिलकर बन जाता रंगीन सलाद
मिर्च, धनिया और नीबू भी डालो
फिर मुझको खाकर कहना धन्यबाद.

--शन्नो अग्रवाल


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5 पाठकों का कहना है :

रश्मि प्रभा... का कहना है कि -

शन्नो जी, मूली की कितनी प्यारी विशेषताएं,कितना प्यारा स्वाद......मूली के पराठे ,
मुंह में पानी आ गया

neelam का कहना है कि -

गोरी मूली की इतनी विशेषताएँ इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत करने पर आपको धन्यवाद

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

रश्मि जी, नीलम जी,
मेरी कविता को सराहने के लिये अति धन्यबाद. इस तरह की राय से उत्साह मिलता है तो मन हर्षित होकर फिर कुछ लिख देता है. आप लोगों की कृपा से ही बाल-उद्यान फल-फूल रहा है. आगे भी अपने प्यार से सींचते रहिये.

rachana का कहना है कि -

सच मानिये कविता पढ़ते पढ़ते भूख बढ़ गई मूली पर इतने अच्छे तरीके से लिखा जा सकता है कभी सोचा न था
मजा आया पढ़ कर
सादर
रचना

Shanno Aggarwal का कहना है कि -

रचना जी,
आपने मेरी कविता की प्यार से तारीफ़ की और मन मेरा लहक गया. बहुत शुक्रिया.

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