तेज आवाज बना सकती है बहरा
आजकल बहुत से बच्चे और युवा तेज आवाज में गाना सुनना पसंद करते हैं। उनका कहना है कि तेज आवाज पर जब फास्ट बीट्स बजती हैं, तो मन झूमने को बेचैन हो उठता है। पर क्या आपको पता है कि तेज म्यूजिक भी एक प्रकार का ध्वनि प्रदूषण Noise Pollution है, जो आपको बहरा भी बना सकता है।
जब पर्यावरण में आवाज का स्तर सामान्य स्तर से बहुत अधिक होता है, तो हम उसे ध्वनि प्रदूषण Noise Pollution कहते हैं। पर्यावरण में अत्यधिक शोर की मात्रा बहुत सी परेशानियों का कारण बनती है। तेज आवाज या ध्वनि अप्राकृतिक होती है और अन्य आवाजों के बाहर जाने में बाधा उत्पन्न करती है।
ध्वनि प्रदूषण से सिर्फ मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी ही नहीं, पेड़ भी प्रभावित होते हैं। जब हम लगातार ध्वनि प्रदूषण के सम्पर्क में रहते हैं, तो हमें बहुत सी परेशानियां होने लगती हैं। जैसे- चिन्ता, बेचैनी, बातचीत करने में समस्या, बोलने में व्यवधान, सुनने में समस्या, उत्पादकता में कमी, सोने के समय व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी आदि।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उच्च स्तर की ध्वनि उपद्रव, चोट, शारीरिक आघात, मस्तिष्क में आन्तरिक खून का रिसाव, अंगों में बड़े बुलबुले और यहां तक कि समुद्री जानवरों मुख्यतः व्हेल और डॉलफिन आदि की मृत्यु का कारण भी बनती है। इसका मुख्य हारण यह है कि व्हेल और डॉलफिन जैसी मछलियां भोजन की खोज करने, अपने आपको बचाने और पानी में जीवन जीने के लिये अपने सुनने की क्षमता का ही प्रयोग करती हैं। लेकिन शोर बढने पर वे इसमें अस्मर्थ हो जाती हैं और नतीजतन उनके अस्तित्व पर संकट आ जाता है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि ध्वनि प्रदूषण से कैसे बचा जाए। इसके लिए एक्सपर्ट साउंड प्रूफ कमरों के प्रयोग और कल-कारखाने से दूर रहने का सुझाव देते हैं। इसके अलावा अगर हम स्वयं अपने दैनिक जीवन में ऐसी चीजों का प्रयोग कम से कम करें, जो शोर उत्पन्न करती हैं, म्यूजिक सिस्टम, टीवी कम साउंड पर बजाएं और अपने आसपास ढ़ेर सारे पेड़ लगाएं, तो ध्वनि प्रदूषण के खतरे को काफी कम कर सकते हैं।
जब पर्यावरण में आवाज का स्तर सामान्य स्तर से बहुत अधिक होता है, तो हम उसे ध्वनि प्रदूषण Noise Pollution कहते हैं। पर्यावरण में अत्यधिक शोर की मात्रा बहुत सी परेशानियों का कारण बनती है। तेज आवाज या ध्वनि अप्राकृतिक होती है और अन्य आवाजों के बाहर जाने में बाधा उत्पन्न करती है।
ध्वनि प्रदूषण से सिर्फ मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी ही नहीं, पेड़ भी प्रभावित होते हैं। जब हम लगातार ध्वनि प्रदूषण के सम्पर्क में रहते हैं, तो हमें बहुत सी परेशानियां होने लगती हैं। जैसे- चिन्ता, बेचैनी, बातचीत करने में समस्या, बोलने में व्यवधान, सुनने में समस्या, उत्पादकता में कमी, सोने के समय व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी आदि।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उच्च स्तर की ध्वनि उपद्रव, चोट, शारीरिक आघात, मस्तिष्क में आन्तरिक खून का रिसाव, अंगों में बड़े बुलबुले और यहां तक कि समुद्री जानवरों मुख्यतः व्हेल और डॉलफिन आदि की मृत्यु का कारण भी बनती है। इसका मुख्य हारण यह है कि व्हेल और डॉलफिन जैसी मछलियां भोजन की खोज करने, अपने आपको बचाने और पानी में जीवन जीने के लिये अपने सुनने की क्षमता का ही प्रयोग करती हैं। लेकिन शोर बढने पर वे इसमें अस्मर्थ हो जाती हैं और नतीजतन उनके अस्तित्व पर संकट आ जाता है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि ध्वनि प्रदूषण से कैसे बचा जाए। इसके लिए एक्सपर्ट साउंड प्रूफ कमरों के प्रयोग और कल-कारखाने से दूर रहने का सुझाव देते हैं। इसके अलावा अगर हम स्वयं अपने दैनिक जीवन में ऐसी चीजों का प्रयोग कम से कम करें, जो शोर उत्पन्न करती हैं, म्यूजिक सिस्टम, टीवी कम साउंड पर बजाएं और अपने आसपास ढ़ेर सारे पेड़ लगाएं, तो ध्वनि प्रदूषण के खतरे को काफी कम कर सकते हैं।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
टिप्पणी देने वाले प्रथम पाठक बनें
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)