Monday, June 9, 2008

रामायण- भाग:4

रानियाँ नही करना चाहती थीं ऋषि वचनों का अपमान
पर पुत्रों में ही तो बसते हैं हर माता के प्राण

ऋषि से हाथ जोड़ करने लगीं विनती मातें
क्यों ना वह शिक्षा देने महल में हे आते ||

ऋषि जी ने था समझाया,
महल में न रहने का कारण था बतलाया,

"यह नही हैं मेरा धरम,
मुझे निभाने को अपना करम,

इन्हे गुरुकुल ही ले कर जाना हैं
अपना ब्रह्मण होने का फर्ज निभाना हैं"

भारी मन से माताओं ने मानी गुरु की बात,
और कुमारों को विदा किया उनके साथ,

हर पल दुःख में था बीता पुत्र सबसे प्यारे,
दुनिया में सबसे न्यारे आज दूर हो गए वो आँखों के तारे।

बालकवि राघव शर्मा

रामायण- भाग:1रामायण- भाग:2रामायण- भाग:3


आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

3 पाठकों का कहना है :

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बढिया भाई... सुन्दर...

खूब मेरा नाम कर रहे हो :)

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

राघव,

तुम कभी -कभी प्रवाह वाला छंद लिखते हो, लेकिन कभी-कभी चूक जाते हो। थोड़ी मेहनत करो

Anonymous का कहना है कि -

alokjun88वाह शर्मा जी वाह...बहुत अच्छे
आलोक सिंह "साहिल"

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)