Friday, November 27, 2009

महान नायिकाएँ-1: कल्पना चावला

प्यारे बच्चों ,
आज से हम कुछ महान नायिकाएँ नाम से एक श्रंखला शुरू करने जा रहे हैं ,इसमे हम आपको देंगे छोटी परन्तु रोचक जानकारी ,अगर आप के पास कोई जानकारी है ,या आप किसी नायिका के मिलवाना चाहते हैं तो हमे लिख भेजें baaludyan@hindyugm.com पर ,


कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के शहर करनाल में हुआ था .बचपन से ही उनकी रूचि उड़ान भरने में और पढने में थी .उन्होंने B.S.D.Aero.Eng. प्राप्त की .उसके बाद वह उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिएU.S.A चली गई .कल्पना ने अपना अनुसंधान नेशनल एरोनॉटइक्स एवं स्पेस एडमिनीस्ट्रेशन (N.A.S.A )में 1988 में किया .दिसंबर 1994 में उन्हें एस्ट्रोनॉट तथा तथा 19 नवम्बर ,1997 को मिशन के लिए चुना गया .दुर्भाग्य वश उनका यान दुर्घटना ग्रस्त हो गया जिसमे उनका निधन हो गया .यह एक मध्यम वर्गीय लड़की की विजयगाथा है .


Monday, November 23, 2009

कद्दू की कुछ बातें

आओ बच्चों, आज कुछ कद्दू के बारे में बात करें. इन दिनों सर्दी का मौसम आ रहा है और सब्जी के बाज़ार में कद्दुओं का आगमन भी शुरू हो रहा है. वैस तो कद्दू को सब लोग अधिक पसंद नहीं करते हैं. जैसे की बिचारे चुकंदर की दशा निरीह हो जाती है वैसे ही इसे भी खाने में कुछ लोग संकोच करते हुये नाक-भौं चढ़ाते रहते हैं .....खासतौर से बच्चे. तो आइये आज कुछ इसके बारे में बताऊँ और इसकी अच्छाइयों के बारे में भी तो शायद आप लोग इसके बारे में अपनी राय बदल दें.

कद्दू कई तरह के और कई रंग के होते हैं. छोटे-बड़े, लम्बे, हलके या भारी-भरकम भी. और यह कई रंगों में पाये जाते हैं. इनके रंग नारंगी और लाल ही नहीं बल्कि हरे, पीले और सफ़ेद भी होते हैं. इसकी तुलना घिया या तुरई के स्वाद से की जाती है. और अपने भारत में हर प्रांत में लोग इसे अलग नामों से जानते हैं.....उत्तर प्रदेश में गंगाफल या सीताफल नाम से भी जाना जाता है.

अफ्रीका में कद्दू काफी छोटे और कई प्रकार के होते हैं. सुना जाता है की सबसे पहले कद्दुओं को मध्य अमेरिका में उगाया गया था. अमेरिका में इसको बहुत पसंद करते हैं और तरह-तरह से बना कर खाते हैं. और वहां पर कद्दुओं की पैदावार बहुत होती है. वहां के कुछ क्षेत्रों में कद्दुओं का उत्पादन अत्यधिक होता है. अमेरिका में 90% कद्दू की पैदावार तो वहां पर इलिनोइस नाम की एक जगह है वहां होती है. हर साल वहां कद्दू के सम्मान में तमाम शहरों में बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है और मेला लगता है. और तमाम तरह से इसका खाने में इस्तेमाल किया जाता है. इंग्लैंड, अमेरिका, न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया व कुछ अन्य देशों में भी ' हल्लोवीन ' नाम का दिवस अक्टूबर महीने की आखिरी तारीख को मनाते हैं जिसमें कद्दू को तराश कर उसे कभी लालटेन का आकार देकर उसके अन्दर मोमबत्ती जलाते हैं तो कभी उसे किसी भूत-प्रेत की शकल में तराशते हैं. कद्दू से कई प्रकार के केक, पाई, पुडिंग, सूप, बिस्किट आदि बनाते हैं. फिर वह लोग रिश्तेदारों व मित्रों को निमंत्रित करते हैं खाने पर, या पार्टी देते हैं. जाने-पहचाने लोगों में केक व पुडिंग बना कर भेजते हैं. और हाँ, इंग्लैंड व अमेरिका में कद्दू को पम्पकिन कहते हैं.

शताब्दियों पहले ग्रीक के लोगों ने कद्दू को ' पेपोन ' नाम दिया जिसका ग्रीक भाषा में मतलब होता है ' बड़ा खरबूजा '. फिर फ्रेंच लोगों ने इसे ' पोम्पोन ' नाम दिया और इंग्लैंड में ' पम्पिओन ' कहा. किन्तु जब ' शेक्सपिअर ' ने अपने उपन्यास ' मेर्री वाइव्स ऑफ़ विंडसर ' में इसका पम्पकिन नाम से जिक्र किया तब से सभी अंग्रेज व अमेरिकन इसे पम्पकिन कहने लगे. और बच्चों आप लोगों ने यदि ' सिन्देरेला ' नाम की कहानी सुनी या पढ़ी है तो याद करिये की उसमें एक बड़े कद्दू की शकल की बग्घी में ही सिन्देरेला बैठ कर डांस-पार्टी में गयी थी. है ना?

अब कद्दू के बारे में कुछ विशेष बातें हैं जानकारी के लिये. जैसे कि:
१. इससे कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बन सकते हैं.
२. इसके बीजों में प्रोटीन और आयरन पाया जाता है और बीजों को भून व छील कर खाते हैं. और खाना बनाते समय भी बीजों का कई तरह से उपयोग किया जा सकता है.
३. इसके अन्दर के गूदे में विटामिन ए व पोटैसियम होता है.
४. इसके फूलों को भी खाया जा सकता है.
५. कद्दू को फलों की श्रेणी में रखा जाता है.
६. इसमें 90 % पानी होता है.

अपने भारत में कुछ लोग तो इसे बहुत प्रेम से खाते हैं. और इन दिनों तो इसका मौसम है तो इसका भरपूर उपयोग किया जाना चाहिये.
उत्तर भारत में तो इसे कुछ खास पर्वों पर जरूर बनाया जाता है. जैसे की होली-दीवाली पर या फिर व्रत-उपवास के समय भी.....सब्जी, हलवा या खीर के रूप में.

तो अब चलती हूँ. जल्दी ही इसके बारे में और भी मजेदार बातें करेंगें.

--शन्नो अग्रवाल


Thursday, November 19, 2009

आम और केले की लड़ाई



एक बार की बात है बच्चो,
आम और केले में थी ठन गई,
केला बोले मैं हूँ मीठा,
आम कहे मैं तुझसे मीठा।

यूँ ही दोनों में तब बच्चो,
बढ़ते-बढ़ते बहस थी बढ़ गई,
कौन है दोनों में से मीठा,
बात यहाँ पर आ कर अड़ गई।

केला बोला चल हट झूठा,
कभी-कभी तू होता खट्टा,
मेरे स्वाद पे लेकिन देखो,
लगता नहीं कभी है बट्टा।

आमजी ने पर घुड़की लगाई,
बोला मैं हूँ फलों का राजा,
जब मेरा मौसम है आता,
सब कहते हैं आम को खाजा।

स्वाद बेशक हो मेरा खट्टा,
फिर भी मिलता अलग जायका,
स्वाद तेरा हो हरदम इक सा,
कभी-कभी तो हो तू फीका।

आम सिर्फ गर्मी में आये,
केला हर मौसम में खायें,
तू तो बस है स्वाद का राजा,
मुझसे लोग फायदे भी पायें।

हुआ नहीं जब कोई फैसला,
बंदरजी इक कूदे आये,
बोले मैं हूँ बड़ा अक्लमंद,
कई फैसले मैंने कराये।

दोनों को तब याद थी आई,
बिल्लियों की मशहूर लड़ाई,
बंदर के जज बनने से पहले,
थोड़ी सी थी अक्ल लगाई।

आखिर हम दोनों ही फल हैं,
बेशक अलग-अलग है जाति,
दूजे के हाथों गर खेलें,
निश्चित हार नजर है आती।

ऐसे ही है देश हमारा,
अलग है भाषा, अलग धर्म है,
मिलजुल के सब रहना बच्चो,
देश के प्रति यही कर्म है।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Wednesday, November 18, 2009

चित्र आधारित बाल-कविता प्रतियोगिता में भाग लीजिए

प्रिय साथियो,

बाल-उद्यान पर हम आज से कविता-प्रतियोगिता शुरू कर रहे हैं। आप इस चित्र पर हमें प्यारी सी मगर छोटी बाल-कविता लिख कर प्रेषित करें। आप कविता baaludyan@hindyugm.com पर भेज सकते हैं। कविता भेजने की अंतिम तिथि- 26 नवम्बर 2009 है।

अधिक से अधिक संख्या में भाग ले कर इस प्रतियोगिता को सफल बनाने में हमारा योगदान करें। कविता पहले से कही भी प्रकाशित न हो, इस बात का ध्यान अवश्य रखें।


Saturday, November 14, 2009

फूल से होते बच्चे प्यारे


फूल से होते बच्चे प्यारे,
भारत वर्ष के न्यारे-न्यारे,
इन में ही तो भविष्य छिपा है,
होंगें देश के वारे-न्यारे।

चाचा नेहरू समझ गये थे,
बच्चे हैं अनमोल सितारे,
तभी तो उनको सबसे ज्यादा,
बच्चे ही लगते थे प्यारे।

बच्चों में भगवान छिपा है,
तभी तो सबसे सच्चे बच्चे,
न कोई छल न कपट भरा है,
तभी सभी को लगते अच्छे।

मस्ती इनमें खूब भरी है,
जिद भी इनकी बहुत बड़ी है,
होते हैं ये समझ के कच्चे,
सिखाने की भी यही घड़ी है।

कोमल सा मन ये रखते हैं,
तन भी कोमल सा है इनका,
इनको मत कोई चोट पहुंचाना,
गलत राह न तुम दिखलाना।

आओ हम संकल्प करें सब,
इनको वो आकाश दिलायें,
जो हम सब ने नहीं है पाया,
जीवन में वो सब ये पायें।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


बाल दिवस -जेल की कोठरी से पिता द्वारा शिक्षा

प्यारे बच्चो,

जैसा कि तुम सब जानते हो, आज बाल दिवस है, और छुट्टी भी मतलब (double masti )दुगना मजा. आजकादिन तो तुम सब को पता है कि चाचा नेहरू के जन्म दिन पर मनाया जाता है, वो बच्चों को बहुत -बहुत प्यारकरतेथे. प्यार तो नीलम आंटी भी आप सब को बहुत करती है इसलिए आज इस ख़ास दिन पर हम लाये हैं, एकचिट्ठीजो चाचा नेहरू ने लिखी थी इंदिरा जी को जेल से उसके कुछ अंश हम आपको पढ़वा रहे हैं जो हम सब केलिएउतनी ही आज भी उपयोगी है

1930 में इंदिरा प्रियदर्शिनी के नाम, उनके तेरहवें जन्मदिन पर -

अपनी सालगिरह के दिन तुम बराबर उपहार ,और शुभकामनाएं पाती रही हो .शुभकामनाएं तो तुम्हे अब भीबहुतसी मिलेंगी ,लेकिन नैनी जेल से मै तुम्हारे लिए कौन सा उपहार भेज सकता हूँ ?मेरे उपहार बहुत वास्तविकयाठोस शक्ल से के नही हो सकते .वे तो हवा के समान सूक्ष्म ही होंगे जिनका मन और आत्मा से सम्बन्ध हो-ऐसाउपहार शायद तुम्हे कोई नेक परी ही दे सके -और जिन्हें जेल कीऊंची दीवारें भी नही रोक सकें

प्यारी बेटी ,तुम जानती हो कि उपदेश देना और नेक सलाह बाटना मझे कितना नापसंद है .इसलिए मेरा हमेशासेयह विश्वास रहा है कि यह जानने के लिए कि क्या सही है और क्या नहीं ;क्या करना चाहिए और क्या नहीकरनाचाहिए .सबसे अच्छा तरीका यह नही है कि उपदेश दिया जाय बल्कि सही तरीका यह है कि बातचीत औरचर्चा किजाय ,क्योंकि अक्सर ऐसी चर्चाओं में से कुछ - कुछ सच्चाई निकल आती है

"इसलिए अगर मेरी कोई बात तुम्हे उपदेश जैसी जान पड़े तो उसे कड़वी घूँट मत समझना .यही समझना किमानोंहम दोनों सचमच बातचीत कर रहे हैं और मैंने तुम्हारे सामने विचार करने को कोई सुझाव रखा है ..............

भारत में आज हम इतिहास का निर्माण कर रहे हैं .हम तुम बड़े खुशकिस्मत हैं कि ये सब बातें हमारी आंखोंकेसामने हो रही हैं ,और इस महान नाटक में हम भी कुछ हिस्सा ले रहे हैं ............

"मै यह नही कह सकता कि हम लोगों के जिम्मे कौन सा काम आएगा ;लेकिन जो भी काम पड़े ,हमे यादरखनाहै कि हम ऐसा कुछ नही करेंगे ,जिससे हमारे उद्देश्यों पर कलंक लगे और हमारे राष्ट्र कीबदनामी हो .........

सही क्या है और ग़लत क्या है ,यह तय करना आसान काम नही होता .इसलिए जब कभी तुम्हे शक हो तोऐसेसमय के लिए तुम्हे एक छोटी सी कसौटी बताता हूँ .शायद इससे तुम्हे मदद मिलेगी .कोई काम खुफिया तौरपर

मत करो ,और कोई ऐसा कोई काम करो जिसे तुम्हे दूसरों से छिपाने की इच्छा हो ;क्योंकि छिपाने की इच्छाकामतलब है कितुम डरते हो और डरना बुरी बात है और तुम्हारी शान के ख़िलाफ़ है .......

प्यारी नन्ही अब मै तुमसे विदा लेता हूँ ,और कामना करता हूँ कि बड़ी होकर भारत कि सेवा के लिए एकबहादुरसिपाही बनो

तुम्हारा पिता


साभार

"इंदु से प्रधानमन्त्री" पुस्तक से

प्रेषक -नीलम मिश्रा


Friday, November 13, 2009

पुनरावृत्ति -मुहावरों की (आम के आम गुठलियों के दाम )


आज एक नई कक्षा की शुरूआत की जा रही है। आप सब ने मुहावरों को तो पढ़ा ही होगा, तो आज हम सब लोग करेंगे रिविजन और वापस पहुंचेंगे अपने बचपन में। थोड़ी सी मेहनत करनी होगी। पर आप सब को इसमें बहुत आनंद आने वाला है, इसका पूरा आश्व्वाशन हम आपको देते हैं।

नियम कुछ इस प्रकार हैं -

१)आपको कुछ शब्द दिए जायेंगे उन शब्दों से आपको एक मुहावरा बताना है।

सबसे पहले मुहावरा बताने वाले को 1 अंक मिलेगा और उसके वाक्य प्रयोग को 1 अंक यानी कुल 2 अंक

२)एक शब्द से कई दूसरे मुहावरे भी लिखे जा सकते हैं और वाक्य प्रयोग कर सकते हैं।

३)सबसे अच्छे वाक्य को 1 और अतिरिक्त अंक मिलेगा।

४)उसके बाद तो आपको पता ही है, आप सबको मिलेंगे अनूठे खिताब आपकी कक्षा अध्यापिका व मॉनिटर द्वारा (शन्नो जी यह प्रतियोगिता सिर्फ़ आपके लिए नही है आपको अपना काम बखूबी पता है)।

आज की प्रतियोगिता के शब्द हैं-

सिर

आँख

कान

कन्धा

घुटना

तो है न मजेदार बस दिमाग को थोडी कुश्ती करानी होगी (हा हा हा हा हा)


Wednesday, November 11, 2009

गाजर के करिश्मे

मैं उगती हूँ जमीन के अन्दर
सब कहते गाजर है मेरा नाम
लाल, नारंगी और पीला सा रंग
और करती हूँ बढ़िया से काम।

जो कोई सुनता गुणों को मेरे
रह जाता है वह बहुत ही दंग
अपने मुँह से तारीफ़ कर रही
पर बच्चे होते हैं मुझसे तंग।

जो भी मुझे पसंद नहीं करते
वह रह जाते मुझसे अनजान
समझदार तो खा लेते मुझको
पर कुछ बच जाते हैं नादान।

मुझे छील-काट कर देखो तो
अन्दर-बाहर पाओ रंग एक से
सबके स्वास्थ्य की हूँ हितकारी
भरी पोटैसियम व विटामिन से।

पर क्यों दूर रहते बच्चे मुझसे
यह बात समझ नहीं आती है
उनकी मम्मी बनाकर मुझको
अक्सर क्यों नहीं खिलाती है।

हर प्रकार से स्वस्थ्य रहोगे
चाहें कच्चा ही मुझको खाओ
हलवा-खीर बनाओ मुझसे
और मुरब्बे को भी आजमाओ।

गोभी, मटर-आलू संग सब्जी
और गोभी संग डालो दाल में
सूप बने प्याज-धनिया संग
और टमाटर भी उस हाल में।

मुझे पकाओ यदि मटर के संग
दो जीरा, नमक-मिर्च का बघार
बटर और ब्रेड के संग भी खा लो
जल्दी से सब्जी हो जाती तैयार।

बंदगोभी, मटर और सेम संग
कभी सादा सा लो मुझे उबाल
या जल्दी से सब चावल में डालो
नहीं होगा कुछ अधिक बवाल।

कभी केक में डालो मुझे घिसकर
मूली, शलजम संग बनता है अचार
ककड़ी, मूली और हरी मिर्च संग
मैं हर सलाद में भरती नयी बहार।

-शन्नो अग्रवाल


Monday, November 9, 2009

सूरज की ज़िद

ज़िद कर बैठा सूरज एक दिन,
अब नही करूँगा सेवा
चाहे धरती अम्बर मिलकर
जितना भी दे मुझे मेवा


मेरे कारण दिन होते है
मेरे कारण राते
मैं गर्मी में तपता रहता
फिर चाहे कितनी हो बरसातें

सुन लो देवी और देवताओ
और धरती के पुत्रो....
इस गर्मी ने छीन लिया है
मेरा सुख और चैना


मेरा हाल नही अच्छा है
और मैं क्या बतलाऊँ
सोंच रहा हूँ इस गर्मी में
हिल स्टेशन हो आऊँ

--प्रिया चित्रांशी


Saturday, November 7, 2009

शेर और बिल्ली

एक बार जंगल का शेर
भूखा बैठा कितनी देर
नही फँसा था कोई शिकार
हो गया शेर बहुत लाचार
कैसे अपनी भूख मिटाए
कैसे वह कोई जानवर खाए
देखी उसने बिल्ली एक
खाए थे चूहे जिसने अनेक


शेर के मुँह मे भर गया पानी
सोची उसने एक शैतानी
शेर ने अपने मन में विचारा
खाए बिना अब नहीं गुजारा
किसी तरह से भूख मिटाए
क्यों न वह बिल्ली को खाए
बिल्ली जो बैठी वृक्ष की डाली
नहीं पास वो आने वाली

किसी तरह बिल्ली को बुलाए
चालाकी से उसको खाए
सोच के गया बिल्ली के पास
बोला! मौसी मुझको आस(उम्मीद)
तुम तो कितनी समझदार हो
और सब में से होशियार हो
मुझ पर भी कर दो अहसान
मुझे भी अपना शिष्य जान
मुझे भी अपना ज्ञान सिखा दो
होशियारी का राज बता दो
कहना तेरा हर मानूँगा
सारी उम्र तक सेवा करूँगा
मौसी होती दूसरी माता
बना लो गुरु-शिष्य का नाता
बड़ी चालाक थी बिल्ली रानी
समझ गई वो सारी कहानी

बोली सब कुछ सिखलाऊँगी
आरम्भ से सब बतलाऊँगी
सीखो तुम पंजे को चलाना
जाल मे अपने शिकार फँसाना
और फिर मुँह में उसको दबाना
मार के उसको मजे से खाना
बिल्ली ने शेर को सब बतलाया
पर न वृक्ष पे चढ़ना सिखाया
शेर का मन जो नहीं था साफ
नहीं करेगा बिल्ली को माफ
वो तो बिल्ली को खाएगा
भोजन उसको ही बनाएगा
सीख लिया उसने गुर सारा
अब तो शेर ने मन में विचारा
बहुत हुआ बिल्ली का भाषण
अब तो चाहिए मुझको भोजन

समझ गई बिल्ली भी चाल
आया उसको एक ख्याल
जब तक झपटा बिल्ली पे शेर
तब तक हो गई बहुत ही देर
चढ़ गई बिल्ली वृक्ष के ऊपर
पहले से बैठी थी जिसपर
बैठ के ऊपर बोली! बच्चे
तुम तो अभी हो अकल के कच्चे
मुझ संग चल रहे थे चालाकी
पूरी न होगी शिक्षा बाकी
जो मैंने तुमको बतलाया
वो तो बस ऐसे भरमाया
असली राज न तुम्हें बताया
न तुम्हें वृक्ष पे चढ़ना आया
हिम्मत है तो चढ़ के दिखाओ
और मुझे अपना भोज बनाओ

तुमने यह सोचा भी कैसे
तेरी बातों में फसूँगी ऐसे
दुश्मन पर एतबार करूँगी
और मैं तेरे हाथों मरूँगी
यह तो कभी नहीं हो सकता
शेर न कभी दोस्त बन सकता
अब तो शेर को समझ में आया
अपनी गलती पर पछताया
मन मसोस के शेर रह गया
और जाते-जाते यह कह गया
.....................
शिक्षा तो सच्चे मन से लो
बुरे विचार न मन में पालो
.....................
बच्चो तुम भी बात समझना
बुरे भाव न मन में रखना
रखना तुम सदा सच्चा मन
जिससे होगा सुखमय जीवन
दुश्मन पे एतबार न करना
धोखे से कभी वार न करना
*******************


Friday, November 6, 2009

6 नवम्बर 2009- क्या आप जानते हैं ?

जाड़ों में मुहँ से भाप क्यों निकलती है?


हमारे शरीर में 60 से 80 भाग तक पानी है। जब हम साँस लेते हैं तो यह पानी भाप द्बारा निकलता रहता है।

गर्मियों में क्योंकि हवा गर्म होती है, इसलिए साँस द्वारा निकलने वाली भाप गर्मी पाकर सूख जाती है। हम उसे देख नहीं पाते। लेकिन सर्दियों में हवा ठंडी रहती है, इस कारण जैसे ही हमारे मुँह से भाप निकलती है, वह बाहर की ठंडक पाकर घनी हो जाती है और हम उसे भाप के रूप में साफ-साफ देख सकते हैं।


Wednesday, November 4, 2009

छ: एकम छ:



छ: एकम छ:,
छ: दूनी बारह,
किसी भी गल्ती को,
करना न दोबारा।

छ: तीए अट्ठारह,
छ: चौके चौबीस,
सवाल हल न हो,
तो करते रहना कोशिश।

छ: पंजे तीस,
छ: छेके छत्तीस,
थोड़े से बादाम,
साथ में खाना किशमिश।

छ: सत्ते बयालीस,
छ: अट्ठे अड़तालीस,
प्यार पौधों से करो,
रखना न लावारिस।

छ: नामे चौव्वन,
छ: दसे साठ,
मेहनत करने के लिये,
करना इक दिन-रात।

--डॉ॰ अनिल चड्डा

दो एकम दोतीन एकम तीनचार एकम चारपाँच एकम् पाँच


Tuesday, November 3, 2009

मैं गोरी-गोरी मूली



सुंदर हूँ मैं और हूँ गोरी-गोरी
बहुत तरह के होते हैं आकार
मोती-पतली, छोटी-लम्बी
मैं सलाद में बनती सदा बहार.

अन्दर-बाहर से एक रंग की
नाम करण से मूली कहलाई
बदन सलोना सा और लचकता
पैदा होते ही सबके मन को भाई.

पत्ते भी सबके मन को भाते हैं
उन्हें धो-काटकर बनता साग
उनके ताजे रस का पान करें यदि
तो फिर पेट के रोग जाते हैं भाग.

यदि सब्जी का हो भरा टोकरा
मैं पत्तों संग उसकी शोभा बनती
गाजर की कहलाऊँ मैं हमजोली
जोड़ी हमदोनो की अच्छी लगती.

हर मौसम में मैं मिल जाती
गर्मी हो या हो कितनी ही सर्दी
रंग-रूप जो भी निहारता मेरा
ना मुझसे दिखलाता है बेदर्दी.

खाना खाने जब सब बैठें तो
' अरे भई, मूली भी ले आओ '
सुनकर मैं भी कुप्पा हो जाती
नीबू-गाजर संग भी खा जाओ.

चाहें नमक संग टुकड़े खाओ
या फिर नीबू-सिरके में डालो
और ना सूझे अधिक तो मेरी
आलू संग सब्जी ही पकवा लो.

धनिया, मिर्च, टमाटर संग तो
हर घर में जमती है मेरी धाक
पर जब भी काटो छीलो मुझको
महक से बचने को रखना ढाक.

घिसकर मुझे मिला लो आटे में
धनिया भी और कुछ चाट-मसाला
गरम-गरम परांठे बना के खाओ
मुझसे स्वाद लगेगा बहुत निराला.

शलजम, गाजर, मिर्च, प्याज़ संग
मिलकर बन जाता रंगीन सलाद
मिर्च, धनिया और नीबू भी डालो
फिर मुझको खाकर कहना धन्यबाद.

--शन्नो अग्रवाल


Monday, November 2, 2009

आओ घूमें इंडिया गेट



आओ घूमें इंडिया गेट
मौज मनायेंगें भर-पेट
तुम भी संग हमारे आओ,
धमाचौकड़ी खूब मचाओ,
हरी घास पर कूदें-गायें,
चाट-पकौड़ी भी हम खायें,
गोल चक्र में घूमें गाड़ियाँ,
पों-पों करती रहें गाड़ियाँ,
शोर ये हैं भरपूर मचायें,
खेल में अपने विघ्न पहुँचाये,
आइसक्रीम है ठंडी-ठंडी,
लग जायेगी हमको ठंडी,
लाल गुबारे वाला भी तो,
खूब हमारा मन ललचाये,
मम्मी हमको मना है करती,
नहीं बच्चों का मन समझती,
पैसे तुम न यूं खर्चाओ,
कुछ पैसों की कुछ कद्र मनाओ,
पापा दिन भर मेहनत कर के,
महीने पीछे लाते हैं पैसे,
तुम क्यों अपनी जिद में बच्चो,
उल्टा-सीधा खर्च कराते,
वो बच्चे होते हैं अच्छे,
जो हैं घर के पैसे बचाते।

--डॉ॰ अनिल चड्डा