बाल दिवस -जेल की कोठरी से पिता द्वारा शिक्षा
प्यारे बच्चो,
जैसा कि तुम सब जानते हो, आज बाल दिवस है, और छुट्टी भी मतलब (double masti )दुगना मजा. आजकादिन तो तुम सब को पता है कि चाचा नेहरू के जन्म दिन पर मनाया जाता है, वो बच्चों को बहुत -बहुत प्यारकरतेथे. प्यार तो नीलम आंटी भी आप सब को बहुत करती है इसलिए आज इस ख़ास दिन पर हम लाये हैं, एकचिट्ठीजो चाचा नेहरू ने लिखी थी इंदिरा जी को जेल से उसके कुछ अंश हम आपको पढ़वा रहे हैं जो हम सब केलिएउतनी ही आज भी उपयोगी है ।
1930 में इंदिरा प्रियदर्शिनी के नाम, उनके तेरहवें जन्मदिन पर -
अपनी सालगिरह के दिन तुम बराबर उपहार ,और शुभकामनाएं पाती रही हो .शुभकामनाएं तो तुम्हे अब भीबहुतसी मिलेंगी ,लेकिन नैनी जेल से मै तुम्हारे लिए कौन सा उपहार भेज सकता हूँ ?मेरे उपहार बहुत वास्तविकयाठोस शक्ल से के नही हो सकते .वे तो हवा के समान सूक्ष्म ही होंगे जिनका मन और आत्मा से सम्बन्ध हो-ऐसाउपहार शायद तुम्हे कोई नेक परी ही दे सके -और जिन्हें जेल कीऊंची दीवारें भी नही रोक सकें ।
प्यारी बेटी ,तुम जानती हो कि उपदेश देना और नेक सलाह बाटना मझे कितना नापसंद है .इसलिए मेरा हमेशासेयह विश्वास रहा है कि यह जानने के लिए कि क्या सही है और क्या नहीं ;क्या करना चाहिए और क्या नहीकरनाचाहिए .सबसे अच्छा तरीका यह नही है कि उपदेश दिया जाय बल्कि सही तरीका यह है कि बातचीत औरचर्चा किजाय ,क्योंकि अक्सर ऐसी चर्चाओं में से कुछ -न कुछ सच्चाई निकल आती है ।
"इसलिए अगर मेरी कोई बात तुम्हे उपदेश जैसी जान पड़े तो उसे कड़वी घूँट मत समझना .यही समझना किमानोंहम दोनों सचमच बातचीत कर रहे हैं और मैंने तुम्हारे सामने विचार करने को कोई सुझाव रखा है ..............
भारत में आज हम इतिहास का निर्माण कर रहे हैं .हम तुम बड़े खुशकिस्मत हैं कि ये सब बातें हमारी आंखोंकेसामने हो रही हैं ,और इस महान नाटक में हम भी कुछ हिस्सा ले रहे हैं ............
"मै यह नही कह सकता कि हम लोगों के जिम्मे कौन सा काम आएगा ;लेकिन जो भी काम आ पड़े ,हमे यादरखनाहै कि हम ऐसा कुछ नही करेंगे ,जिससे हमारे उद्देश्यों पर कलंक लगे और हमारे राष्ट्र कीबदनामी हो .........
सही क्या है और ग़लत क्या है ,यह तय करना आसान काम नही होता .इसलिए जब कभी तुम्हे शक हो तोऐसेसमय के लिए तुम्हे एक छोटी सी कसौटी बताता हूँ .शायद इससे तुम्हे मदद मिलेगी .कोई काम खुफिया तौरपर
मत करो ,और न कोई ऐसा कोई काम करो जिसे तुम्हे दूसरों से छिपाने की इच्छा हो ;क्योंकि छिपाने की इच्छाकामतलब है कितुम डरते हो और डरना बुरी बात है और तुम्हारी शान के ख़िलाफ़ है .......
प्यारी नन्ही अब मै तुमसे विदा लेता हूँ ,और कामना करता हूँ कि बड़ी होकर भारत कि सेवा के लिए एकबहादुरसिपाही बनो ।
तुम्हारा पिता
साभार
"इंदु से प्रधानमन्त्री" पुस्तक से
प्रेषक -नीलम मिश्रा
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2 पाठकों का कहना है :
bahut hi acchi prastuti !! yeh sach mein dard dene waali baat hai ki ek beti ka b' day hai aur uske papa uske saath nahi .....
नीलम जी,
बचपन में हमारे पापा को करीब दो साल तक हमसे दूर रहना पढ़ा था, तब वे भी हमें इसी तरह के पत्र लिखकर जीवन राह पर चलना सिखाया करते थे. और इसी बात को और गहराई से समझाने के लिये, उन्होंने हमारे लिये नेहरु जी द्वारा उनकी पुत्री प्रियदर्शिनी (इंदिरा गाँधी) को लिखे पत्रों का संकलन "पिता के पत्र पुत्री के नाम" (पुस्तक), उपहार भेजा था, जिसे हमने आज भी संभाल कर रखा है. :) . आज आपके इस आलेख से वो सारी यादें ताज़ा हो गयी. शुक्रिया.
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