Monday, August 31, 2009

रस्सी-टप्पा

रस्सी-टप्पा, रस्सी-टप्पा,
आओ कूदें रस्सी-टप्पा एक तरफ से मैंने पकड़ा,
और दूजे से बिमला,
और बीच में कूदे सखियो,
जोर-जोर से कमला
अपनी-अपनी बारी ले कर,
सबने धूम मचाई,
पर सब सखियाँ भागी
घर कोजब मेरी बारी आई ,
रह गई बुलाती सखियों को
मैंलौट के वो न आई,
रह गई अकेली,
किससे खेलुँ,
ये बात समझ न आई

तब चुपके से बोली चिड़िया,
क्यों रोती है गुडिया,
मेरे पास है इस सब का,
इलाज बहुत ही बढ़िया ।

रस्सा ले कर खुद तुम कूदो,
खुद तुम मौज मनाओ,
कर सकती हो काम अकेले,
सखियों को ये दिखलाओ।
कल जब आयें लौट के सखियाँ,
भूल उन्हे जतलाओ,
सबसे पहले अपनी बारी,
कूदने की तुम पाओ
पर नहीं दिखाना उनको,
कर जैसे का तैसा,
बोयेगा जो जैसा पौधा,
फल पायेगा वैसा।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


निरीह चिड़िया



एक बार बहुत ही वर्फीले और ठंडे मौसम में आंधी और तूफ़ान भी चल रहे थे. उसी समय सर्दी से बचने के लिये एक चिड़िया दक्छिण की तरफ उड़ रही थी. आंधी में फंसकर वह जमीन पर एक खेत में आ गिरी और बेहोश हो गयी. उसकी देह ठंड के कारण जम सी गयी. कुछ देर बाद वहां से एक गाय गुजरी और जहाँ चिड़िया पड़ी थी उसपर गोबर कर दिया, और फिर चली गयी.गोबर की गर्मी पाकर चिड़िया धीरे-धीरे होश में आने लगी और उसे महसूस हुआ की उसके शरीर में गर्मी आ रही है. लेकिन वह इस बात से अनजान थी की वह गोबर की ढेरी के अन्दर पड़ी हुई है. गर्मी पाकर वह वहां इतनी खुश महसूस कर रही थी की वहीँ पर वह आराम से पड़ी रही. और फिर अचानक ख़ुशी के मारे गाने लगी. इतने में एक बिल्ली पास से निकली और उसने चिड़िया के गाने की आवाज सुनी तो वह खोजबीन करने लगी और जब गोबर की ढेरी में से आती आवाज़ पर उसे हटा कर देखा तो चिड़िया को उठा कर उसे झट से खा गयी.
अब इस कहानी से तीन बातों की शिक्षा मिलती है:

१. यदि कोई अनजाने में तुम्हें नुकसान पहुंचाए तो वह इंसान तुम्हारा दुश्मन नहीं होता जैसे की गाय ने चिड़िया पर गोबर कर दिया था.
२. और यदि कोई तुम्हे कभी किसी मुसीबत से निकाले तो हर समय उससे अच्छाई की उम्मीद भी न रखो जैसे की बिल्ली ने निकाला तो चिड़िया को गोबर से किन्तु उसके इरादे कुछ और थे क्योंकि ......वह उसे गोबर से निकाल कर खा गयी.
३. और कोई ऐसी मुसीबत की घड़ी हो जहाँ चुप रहने की जरूरत हो तो बच्चों, अपना मुंह बंद रखना चाहिये. यदि चिड़िया ने अपना मुंह बंद रखा होता तो वह बच गयी होती और थोड़ी देर में गोबर में से बाहर आकर उड़ गयी होती.

--शन्नो अग्रवाल


Saturday, August 29, 2009

बूँदा-बाँदी



बूँदा-बाँदी हुई है भारी,
छतरी भी उड़ गई हमारी,
मुन्नु भीगा, चुन्नु भीगा,
कीचड़ से भर गई क्यारी ।

स्कूल भी जाना हुआ है मुश्किल,
खेल भी कैसे खेलेंगें हम,
दोस्त सभी घुसे हैं घर में ,
बोरियत से निकले है दम ।

या तो बारिश नहीं है आती,
या फिर हमको खूब सताती,
उमस बहाये खूब पसीना,
धूप भी हम को नहीं है भाती ।

इन्द्रधनुष है बड़ा न्यारा,
आसमान में प्यारा-प्यारा,
भारी वर्षा बेशक सताये,
पर मौसम है सबको भाये ।

हरे खेत-खलिहान बने हैं ,
फसलों के अंबार खड़े हैं,
बारिश आये, खूब सुहाये,
देश को भी धनवान बनाये।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Friday, August 28, 2009

माँ इसको कहते

जब भारत ने हमें पुकारा,
इक पल भी है नही विचारा,
जान निछावर करने को हम
तत्पर हैं रहते .
माँ इसको कहते .

इस धरती ने हमको पाला,
तन अपना है इसने ढ़ाला,
इसकी पावन संस्कृति में हम
सराबोर रहते .
माँ इसको कहते .

इसकी गोदी में हम खेले,
गिरे पड़े और फिर संभले,
इसकी गौरव गरिमा का हम
मान सदा करते.
माँ इसको कहते .

देश धर्म क्या हमने जाना,
अपनी संस्कृति को पहचाना,
जाएँ कहीं भी विश्व में हम
याद इसे रखते .
माँ इसको कहते .

मिल जुल कर है हमको रहना,
नहीं किसी से कभी झगड़ना,
मानवता की ज्योत जला हम
प्रेम भाव रखते .
माँ इसको कहते .

कवि कुलवंत सिंह


चील और खरगोश







प्यारे बच्चों,आओ आज तुम्हे कुछ मजेदार छोटी कहानियां सुनती हूँ जिनसे कुछ सबक भी सीखा जा सकता है.
1. चील और खरगोश
एक दिन एक छोटा खरगोश खेतों में बड़ी बेफिक्री से उछलता हुआ जा रहा था की अचानक उसकी निगाह एक पेड़ पर बैठी हुई एक आलसी चील पर पड़ी जो वहां बैठ कर आराम कर रही थी. खरगोश रुक गया और उसने चील से पूछा, ''चील जी, आप वहां बैठी क्या कर रही हैं.'' तो चील ने उत्तर दिया, ''खरगोश भाई, मेरा मन आराम करने को किया तो मैं यहाँ ऊपर बैठ कर आराम कर रही हूँ, उड़ते-उड़ते थक गयी हूँ.'' खरगोश बोला, ''मैं आराम करने के लिए तुम्हारे पास इतने ऊपर नहीं पहुँच सकता किन्तु क्या मैं यहाँ पेड़ के नीचे बैठ कर आराम कर सकता हूँ?'' चील ने कहा, ''हाँ, हाँ क्यों नहीं, मुझे तो ऊपर बैठ कर आराम मिल रहा है पर तुम नीचे ही बैठ कर आराम कर लो.'' भोला-भाला खरगोश वहीँ पेड़ के नीचे आँखें बंद करके लेट गया और जरा सी देर में ही उसे ठंडी हवा में नींद गयी. कुछ देर में एक लोमड़ी उधर से गुजरी और खरगोश को झपट्टा मार कर दबोच लिया और फटाफट खा गयी. बेचारा खरगोश!!
तो बच्चों इस कहानी से क्या मतलब निकाला आपने? चलो मैं ही बता देती हूँ......वह यह की दूसरों की नक़ल करने के लिये उनसे सलाह मांगते समय स्वयं भी अपने बारे में सोचना चाहिए की किसी की नक़ल करने का परिणाम गलत भी हो सकता है। जैसे की चील की सलाह पर खरगोश अपनी जान गँवा बैठा.



प्रेषक



शन्नो अग्रवाल


Thursday, August 27, 2009

ये कम्पयूटर क्या होता है?

ये कम्पयूटर क्या होता है?
क्या टर्र-टर्र करता रहता है?
‘माऊस’ के संग रह कर के,
क्या यूँ ही डरता रहता है ?

ब्रेन है इसका सी पी यू,
पर चलता बिजली से है क्यूँ?
मानीटर इसकी आँख मगर,
बस आँख एक है रखता क्यूँ ?

कुछ काम अगर करना हो तो,
तुम साफ्टवेयर को लोड करो,
चल न पाये साफ्टवेयर,
तो और कोई गठजोड़ करो।

खुद बात नहीं कर सकता है,
गिट-पिट करे की-बोर्ड से है,
साफ्टवेयर ग़र डल जाये,
तो बोले बडे ये रौब से है।

घर बैठे बड़े मजे से ये,
करता काम हमारे है,
की-बोर्ड हो या माऊस हो,
समझता सभी इशारे है।

इंटरनेट के जरिये अब,
सारी तुम घूमो दुनिया,
खेल भी खेलो, पिक्चर, टी वी,
हर चीज का अब है ये जरिया।

जिसने इसे इजाद किया,
हम सब पर है एहसान किया,
तुम सीखो सब कुछ घर बैठे,
खूब है उसने काम किया।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Tuesday, August 25, 2009

अंधेरा दूर भगाओ

चंदा के घर इतने तारे,
एक भी नहीं पास हमारे,
क्या करने हैं इतने तारे,
हमको चंदा ये तो बता रे।

बने हो तुम तारों के राजा,
सब कहते हैं आजा-आजा,
होड़ सभी तारों में लगी है,
हम को भी अपना सखा बना रे।

कहाँ से चाँदनी इतनी लाये,
शीतल सबके मन को भाये,
अंधेरे का डर दूर भगाये,
अंधेरों में हो सबके सखा रे।

खेलो सूरज संग आँख-मिचौली,
तुम छिप जाओ, जब वो आये,
तुम आओ तो वो छिप जाये,
हम को भी ऐसा खेल खिला रे।

चंदा बोला, सुनो रे बच्चो,
ग़र मेरे पास चमकते तारे,
तुम भी अपने देश के तारे,
इन तारों से तुम हो न्यारे।

चमक मेरी सूरज ने दी है,
मैंने फिर वो जग को दी है,
तुम चमको गे अपनी लगन से,
प्रभु ने तुमको वो शक्ति दी है।

तुम भी मुझ जैसे बन जाओ,
जग से अँधेरा दूर भगाओ,
दूजों से तुम ज्ञान को ले कर,
सारे जग में उसे फैलाओ।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Saturday, August 22, 2009

स्वतंत्रता दिवस पर बाल चित्रकारी

बाल-उद्यान की संपादिक नीलम मिश्रा ने तपन शर्मा के सहयोग से 15 अगस्त 2009 को आदर्शकुंज अपार्टमेंट, रोहिणी, दिल्ली में 63वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष में चित्रकला प्रतियोगिता करवाई थी। कुछ उल्लेखनीय चित्र प्रस्तुत हैं-


गगन रायज़दा- प्रथम स्थान


हर्षिता नाँगिया- प्रथम स्थान


नित्या कपूर- प्रथम स्थान



प्राची खत्री- द्वितीय स्थान


खुशी बंसल- द्वितीय स्थान



कुश गौड़- द्वितीय स्थान


मानसी कुमार- द्वितीय स्थान


यश पाण्डेय- तृतीय स्थान


Friday, August 21, 2009

लोरी

लोरी जब भी गाती माँ,
मीठी नींद सुलाती माँ .

कथा कहानी गाती माँ,
प्यारे गीत सुनाती माँ .

माथा जब सहलाती माँ,
डर को दूर भगाती माँ .

गोदी में बहलाती माँ,
स्वर्ग धरा दिखलाती माँ .

थपकियां दे सुलाती माँ,
निंदिया पास बुलाती माँ .

नींद न मुझको आती माँ,
अपने गले लगाती माँ .

प्यार तेरा अनूठा माँ,
नींद में ख्वाब सजाती माँ .

जब भी तुझको देखूँ माँ,
सबसे सुंदर लगती माँ .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, August 20, 2009

शरीर का मूल्य

शरीर का मूल्य

किसी शहर में एक युवक रहता था |वह बहत हष्टपुष्ट तथा बुद्धिमान था लेकिन वह सीमा से अधिक आलसी था| कहीं से अगर कुछ खाने को पा जाता तो मेहनत करने का नाम भी नही लेता था |परिश्रम से मन चुराने के कारण ही उसने भीख मांगना शुरू कर दिया और वह भीख मांग कर मजे उडाने लगा |
एक बार वह किसी साधु के पास जाकर बोला -"मेरे पिता जी अंधे हैं ,इसलिए वह कोई काम धंधा नही कर पाते|मेरा परिवार बहुत गरीब है ,परिवार वालों का गुजारा चलाने के लिए मुझे कोई नौकरी नही मिल रही है ,इसलिए आप कुछ मेरी सहयाता कीजिये|"
साधु ने कहा- " क्या सहायता चाहिए ,तुम्हे ?"
"थोड़े पैसे दे दीजिये जिससे आज का काम चल जाएगा और मै कुछ समय के लिए इस दुःख से मुक्ति पा जाऊँगा "
उस युवक ने कहा |
साधु बोला -"तुम हमेशा के लिए दुःख से छुटकारा पाना चाहते हो या कुछ समय के लिए ?"
साधु की यह बात सुनकर युवक मन ही मन प्रसन्न हुआ |उसने सोचा-भला हमेशा के लिए दुःख सेछुटकारा कौन नही चाहेगा |शायद इस साधु से कोई मोटी रकम मिल जायेगी और सुख से दिन व्यतीत होंगे |
ऐसा सोचकर उसने कहा -"महाराज !मै तो हमेशा के लिए इस दुःख से छुटकारा पाना चाहता हूँ "
साधु ने कहा "ठीक है |तू मुझे अपना दाहिना हाथ दे दे |इसके बदले तुझे पाँच सौ रुपये मिल जायेंगे "|यह सुनकर
युवक निराश हो गया और उदास होकर बोला -मुझे यह पसंद नही क्योंकिपॉँच सौ रुपये से अधिक मूल्यवान मेरा हाथ है "
"तो शहर में एक ऐसा सेठ है जो तेरी दोनों आंखों के बदले पाँच हजार रुपये दे सकता है "साधु ने कहा |
"नही महाराज !मै ऐसा नही कर सकता |मेरी आँखें पाँच हजार से ज्यादा कीमती हैं "
"तो तेरा संकट सदा के लिए टल जाए ,ऐसा कर ,तू अपना सारा शरीर बेच दे इसके बदले तुझे दस हजार रपये मिलेंगे"
"क्या मेरे शरीर की कीमत दस हजार है "नौजवान ने आश्चर्य से कहा |साध ने बड़े धैर्य के साथ कहा -मैंने सब बातें तम्हें बता दी हैं |अब तू क्या बेच सकता है -इसका निश्चय तू कर ले |जैसा माल, वैसी कीमत "
अब उयक को अपने शरीर की कद्र का पता चल गया था ,उसने सोचा जिस शरीर से दस हजार मिल सकते हैं ,उसी से अगर परिश्रम करुँ तो इसका कई गुना कमा सकता है |
उसने साधु से से कहा-" महात्मा जी ! मै शरीर किसी कीमत पर नही बेच सकता |"
साध ने कहा -"तो ठीक है ,तम्हें अपने शरीर का मूल्य मालूम हो गया है |अब तुम औरों से सहायता न मांग कर स्वयं अपने शारीर से सहायता मांगो |तम्हारा शारीर जो तम्हें देगा ,वह सबसे अधिक आनंदमयी होगा |"
साधु की यह बातसुनकर उस दिन से युवक ने आलस्य त्याग दिया |

साभार
बाल बोध कथाएं

नीलम मिश्रा


Monday, August 17, 2009

बारिश आई



आओ-आओ बारिश आई,
संग-संग ठंडी हवा भी लाई,
तुम भी भीगो, हम भी भीगें,
हो जाये हम सब की धुलाई ।

कागज की छोटी नाँव बनाएँ,
फिर बहते पानी में बहाएँ,
डूबे न भारी बूँदों से,
हाथों की छतरी आओ बनाएँ।

जहाँ भी थोड़ा पानी देखा,
नाँव ने रूख वहीं का देखा,
बहती जाये, लुढ़कती जाये,
पत्थर-कंकर कर अनदेखा ।

बारिश की बौछार है भारी,
बढ़ती जाये नन्ही सवारी,
देखो कितनी हिम्मत वाली,
छोटी सी ये नाँव हमारी।

आओ कुछ हम सीखें इस से,
कभी रुके न किसी भी डर से,
बढ़ते जायें, कदम उठाये,
छुटे न मंजिल कभी भी हम से।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Saturday, August 15, 2009

लगातार बारिश भी रोक न सकी स्वाधीनता दिवस मनाने का जज्बा

आज दिनांक 15 अगस्त 2009 को बाल-उद्यान के आदर्श कुंज अपार्टमेंट, सेक्टर-13, रोहिणी, नई दिल्ली में 63वाँ स्वतंत्रता दिवस मनाया, जिसमें कॉलोनी के बच्चों और उनके माता-पिता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आज दिल्ली में सुबह से ही बारिश होती रही, जिसके कारण कार्यक्रम के आयोजन में थोड़ी सी दिक्कत हुई। फिर भी बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था, हैरान करने वाली बात यह भी हुई की न केवल बच्चों वरन बड़ों ने भी पूरा सहयोग किया और इस तरह के आयोजन जल्दी-जल्दी करवाने का आग्रह भी किया।

बाल-उद्यान की संपादिका नीलम मिश्रा और हिन्द-युग्मी तपन शर्मा अपने मकसद में कामयाब थे, बच्चों को कुछ अपने देश के बारे में सोचने और देशभक्ति के बारे एक अलख जगाने का काम और सभी के प्रोत्साहन के साथ बारिश का आनंद लेते हुए इन्होंने ने अपना कार्यक्रम जारी रखा।

कार्यक्रम में ध्वजारोहण के अतिरिक्त चित्रकला प्रतियोगिता, कविता पाठ और सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता आयोजित किये गये, जिसमें प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार भी दिये गये।

सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता बच्चों तथा बड़ों दोनों के लिए थी दोनों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। बच्चों और बड़ों में थोडी देर के लिए अंतर मिट ही गया था। सब ने भरपूर आनंद लिया। अंत में एक बार फिर से बाल-उद्यान प्रमुख नीलम मिश्रा ने आदर्श-कुंज के सभी निवासियों का धन्यवाद किया, जिनके सहयोग के बिना कार्यक्रम का सफल होना लगभग नामुमकिन था।

हमने आपके लिए आयोजन की झाँकी का वीडियो बनाया है, ताकि इसी बहाने आप भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बन सकें।


Friday, August 14, 2009

आओ मिल कर शपथ उठायें

आज है आजादी का पर्व,
हमें शहीदों पर है गर्व,
जवानी में जीवन था गँवाया,
तभी आजादी का दिन आया।

बापू, नेहरू, ताँत्या टोपे,
नहीं था संयम अपना खोते,
बिन गोली-बंदूक लड़ाई,
सारी दुनिया को थी भाई।

छाती पर गोली खा कर के,
थी अनमोल आजादी पाई,
तुम सब छोड़ो झगड़े-टंटे,
समझो भाई को भाई।

बड़े यत्न से मिला हमें है,
अपने ही घर का अधिकार,
आपस में लड़ न इसे गँवाना,
करना इक-दूजे से प्यार।

आओ मिल कर शपथ उठायें,
एकता के हम गीत गायें,
शत्रु कभी न अवसर पाये,
मिल-जुल कर हम उसे भगायें।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Thursday, August 13, 2009

मेरा भारत प्यारा

फूल-फूल पर लिखा मिलेगा
मेरा भारत मुझको प्यारा।

कण-कण को जयघोष सुनाती
खिली हुई है हर फुलवारी।
वीरों की यह पावन धरती
सबके लिए बनी हितकारी
तुम चाहो, सौरभ ले जाओ।।
दे दूँ मैं गुलदस्ता न्यारा।

यहाँ हवाएं घर-आँगन में
दिन भर आती-जाती रहतीं।
आने वाले मेहमानों को
मीठा गीत सुनाती रहतीं।।
जाने वाला कह कर जाता
मैं लौटूंगा फिर दोबारा।

हंसी-ख़ुशी की हरियाली है
अमन-चैन की धूप सुहानी।
हर मौसम में प्यार घुला है,
चिड़ियाँ कहतीं प्रेम की बानी।।
सुनने वालों की आँखों में
झूला झूले गगन हमारा।

सात सुरों के लगते मेले
नित्य यहाँ पर साँझ-सवेरे।
अगला जन्म यहीं प्रभु देना
यदि फिर हों जीवन के फेरे।।
दो मीठे बोलों में बसता
अपना देश-प्रेम का नारा।

-सुधीर सक्सेना 'सुधि'


Wednesday, August 12, 2009

भारत के आकाश बनें

आसमान ने हाथों अपने,
रंग-बिरंगा क्या पकड़ा है?
मास्साब जरा ये बतला दो,
ऊपर ही वो क्यों जकड़ा है ?

इन्द्रधनुष है प्यारे बच्चो,
जो वर्षा में आता है,
आसमान की छवि वो आ कर,
रंग-बिरंगी कर जाता है ।

इतना बड़ा धनुष है लेकिन,
नीचे क्यों नहीं गिर जाता,
हम भी थोडा उससे खेलें
हमको क्यों है तरसाता।

किसी ने नहीं है इसको पकड़ा,
ये खुद आता-जाता है,
बारिश पीछे धूप जो निकले,
उससे ये बन जाता है।

धूप में रंग छुपे हैं सारे,
हमको नहीं कोई दिखता है,
बारिश की बूँदों से लेकिन,
छन के हर रंग निकलता है।

सात रंग हैं, सारे मिल कर,
सूरज के प्रकाश बनें,
आओ बच्चो मिल कर के,
हम भारत के आकाश बनें।

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Tuesday, August 11, 2009

आजादी की कहानी , भारत माता की जुबानी

नमस्कार बच्चो ,
आजकल आप सब बहुत व्यस्त होंगे हमारे राष्ट्रीय त्योहार स्वतंत्रता दिवस को मनाने के लिए । हर तरफ़ देश भक्ति का महौल दिख रहा है । बज़ार तिरंगे झण्डों से सजे दिख रहे हैं । हम सब बहुत खुश हैं क्योंकि १५ अगस्त को हम आज़ादी दिवस मनाने जा रहे हैं यह वो दिन है जिस दिन न जाने कितने वीरो की कुर्बानी के उपरान्त भारत अंग्रेजों की गुलामी से १५ अगस्त १९४७ को आज़ाद हुआ था और तब से लेकर आज तक हम इसे पूरे उत्साह से मनाते आ रहे हैं । इस आजादी के लिए भारतियों को लम्बा संघर्ष करना पडा था । आप भी सुनोगे आजादी की कहानी । तो आओ मेरे साथ और सुनो-

आजादी की कहानी , भारत माता की जुबानी

शुभाशीष बच्चो , मै तुम्हारी माता
मेरा तुम्हारा जन्म जन्म का नाता
मैं वही जिसने इस भू को सजाया
मैं वही जिसने आपको भारतीय बनाया
मैं वही जिसकी गोदि में राम कष्ण बुद्ध आए
रिषी मुनि तपस्वियों ने यग्य रचाए
मै वही जिसने पहना राजमाता का ताज
मं वहीजिसने गाया एकता का साज
मेरे आंचल की छाया में फ़ला-फ़ूला हिन्दुस्तान
जो बना विश्व में महान
मेरी पावन धरती पर गंगा यमुना का बसेरा
जहां सबसे पहले होता है सवेरा
मैने बस प्यार बरसाया , आंचल फ़ैलाया
गैरों को भी गोदि में बैठाया
मैने कभी कोई भेद-भाव न जाना
गैरों को भी अपना ही माना
विचरती रही मै बस ममता के ख्याल में
और फ़ंसती गई गुलामी के जाल में
जिन्हें अपने घर में बसाया
उन्हींने म्झे गुलाम बनाया
मैं रोती रही पुकारती रही
अपनी दासता पर विचारती रही
फ़िर आई मेरी बेटी लक्ष्मी मर्दानी
सुनी तो है आपने उसकी कहानी
जिसने दुश्मन को ललकारा
दे दिया मेरी आजादी का नारा (वन्दे मातरम )
बस फ़िर मेरे बच्चे आते गए
अपना खून बहाते गए
मेरी खातिर जान तली पर धरते रहे
झुके नहीं बस मरते रहे
मेरे ही सामने मिटते रहे मेरे लाल
फ़िर भी उनकेकितने उच्च थे ख्याल
मां को बंधक न रहने देंगे
भले ही हमारे सिर कटेंगे
फ़िर आया अहिंसा का पुजारी
सत्य पथ अपना पलट दी दुनिया सारी
ऐसा उसने चमत्कार कर दिखाया
मुझे गुलामी से आजाद कराया
मैनें फ़िर से गर्व से सिर उठाया
मेरे बच्चों ने मुझे यह ताज पहनाया
आज मैं सुरक्षित हूं
क्योंकि मेरे बच्चों द्वारा रक्षित हूं
मुझे गर्व है मैं हूं आपकी माता
अमरता तक रहेगा अपना नाता
मेरे बच्चो तुम्हीं मेरी जान हो , तुम्हीं मेरी जिंद
एक बार मिलकर बोलो जय हिन्द , जय हिन्द


प्रकृति



सुंदर फूल, शीतल हवा,
पढ़ा था अपनी पुस्तक में पृष्ठ नवाँ,
यह प्यारे फूल और पेड़,
नदियाँ, झरने, पौधे अनेक।

जब पड़ती है धूप प्यारे फूलों पर
खिल जाती हैं कलियाँ, हट जाता है सब उनके मन से डर,
जब सुंदर मोर फैलाता है अपने पंख
तब रंगों की सुन्दरता हमें दिखती है संग

सच में सुहावना होता है यह दृश्य
कुछ ही लोगों को देखने को मिलता है यह दृश्य
क्योंकि सिर्फ़ मेरे ही देश में ही हैं ऐसे दृश्य,
जिन्हें देखकर कह उठती हूँ मैं वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!

पाखी मिश्रा


Monday, August 10, 2009

स्पेन की एक छोटी सी बच्ची का काव्यपाठ

प्यारी नीलम की आवाज़ में सुनें ये कविता और प्रोत्साहित करें। नीलम के पास हिन्दी में बात करने के लिए सिर्फ़ उनकी माँ हैं, क्योंकि वो स्पेन में रहती हैं। हमें इस बात को स्वयं से पूछना चाहिए की हमारे नौनिहाल जब हिन्दी पढ़ना और समझना चाहते हैं, तो फिर हम क्यों न उन्हें पूरा प्रोत्साहन दें और उनका हौसला बढ़ाएँ। इस कविता को खुद नीलम की माँ यानी पूजा अनिल ने लिखा है।



प्यारी तितली

गुड़िया रानी - रंग बिरंगी प्यारी तितली,
नाम अपना बतलाओगी?
मैं हूँ गुड़िया इस बगिया की,
मुझसे हाथ मिलाओगी?

प्यारी तितली - हाँ-हाँ !!!

गुड़िया रानी - छुपा छुपी खेलेंगे हम,
मिलकर प्यारे फूलों के संग,
जब मैं तुमको ढूँढ लूं तितली,
मुझे पकड़ने आओगी?

प्यारी तितली - हाँ-हाँ !!!

गुड़िया रानी - फूल हैं सारे कितने सुन्दर,
पंख तुम्हारे कितने सुन्दर,
थोड़े रंग मुझको भी देकर,
सुन्दर मुझे बनाओगी?

प्यारी तितली - हाँ-हाँ !!!

गुड़िया रानी - मम्मी पापा से मिलवाऊं,
अपनी सखियों से मिलवाऊं,
प्यारी तितली प्यारी तितली,
घर तुम मेरे आओगी?

प्यारी तितली - ना ना !! - ना ना !!
इस बगिया में रोज़ मिलेंगे,
फूलों कलियों संग खेलेंगे,
आओ आओ गुड़िया रानी,
कब तक दूर खड़ी रहोगी?

आओ आ जाओ !!!!
आओ आ जाओ!!!!


Sunday, August 9, 2009

चवन्नी का चाँद

रात भर में बस एक फ़ेरी लगाते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?
कोई तो पुकार तेरी सुनता न होगा,
एक हीं पल में जो गुजर जाते हो।

महंगाई की मार है,
और मालिक बेरोज़गार है,
ऐसी नौकरी तो बेशक बेकार है
और ऊपर से तुम एक रोज़ कम आते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?

कोशों दूर डेरा है,
उन अंधेरों में बसेरा है,
और तो और राहू-केतु ने घेरा है,
तो मजबूरी में मजदूरी का क्या पाते हो,
इस चौकीदारी का कितना कमाते हो?

चलो मैं हीं कुछ देता हूँ,
तेरे दु:ख-दर्द लेता हूँ,
यूँ तो मैं बच्चा हूँ,
जेब से कच्चा हूँ,
लेकिन मेरे जो पापा हैं,
बंद लिफ़ाफ़ा हैं,
कब कैसा लेटर हो
और कब कैसा नेचर हो
अल्लाह हीं जाने!
कल की जो माने
तो मैं दौड में जीता था
और पापा की नज़रों में
मैं एक चीता था।
उन्होंने मुझको गले से लगाया
और यह बताया
कि मैंने उनका रूतबा बढाया है
उनकी इज़्ज़त में
चार चाँद लगाया है,
बड़ा खुश हो
उन्होंने मुझको दुलारा,
शुभ शुभ हो सब
दिए रूपए ग्यारह।

भैया ने दस की
आइसक्रीम ला दी
और बाकी की चार
चवन्नी लौटा दी।
मेरे जेब में अब
चवन्नी तो हैं चार
लेकिन मुझे है
चार चाँद की दरकार।
अब अकेले हो तुम
तो एक चवन्नी हीं दूँगा
और अब से तुम्हें
चवन्नी का चाँद कहूँगा।

-विश्व दीपक ’तन्हा’


Saturday, August 8, 2009

मेरा हाथी

हाथी इतना बड़ा क्यों बोलो
पूँछ है छोटी-सी
छोटी-छोटी आँखें इसकी
सूँड़ है मोटी-सी
बड़े-बड़े से दाँत नुकीले
टाँग है मोटी-सी
झप-झप से वो कान झुलाये
मक्खियों को उनसे वो भगाये
धप-धप चाल चले मस्तानी
लगे किसी राजा की निशानी
खाना बहुत है खाता
पर है भारी काम कराता
गुस्से से जब वो चिंघाड़े
शेर भी जंगल छोड़ के भागे
पर जो प्यार से उसे बुलाता
सेवक उसका वो बन जाता
सूँड़ से अपनी पीठ बिठाता
तुम भी सूँड उसकी सहलाओ
झट से बैठ पीठ पर जाओ
घूम-घूम कर मौज मनाओ

--डॉ॰ अनिल चड्डा


Friday, August 7, 2009

सीखो

सीखो
सुबह सवेरे उठना सीखो,
रवि से पहले जगना सीखो .

कसरत थोड़ी करना सीखो,
तन को सुडौल रखना सीखो .

प्रेम सभी से करना सीखो,
मीठी वाणी कहना सीखो .

दीन दुखी पर करुणा सीखो,
सत्य न्याय पर मरना सीखो .

दूर अहम से रहना सीखो,
नेह सभी से रखना सीखो .

समय बड़ा अमूल्य है सीखो,
करना इसकी कद्र है सीखो .

ज्ञान जगत में बिखरा सीखो,
प्रकृति नियम पर चलना सीखो .

सादा जीवन जीना सीखो,
रखना उच्च विचार सीखो .

नव विज्ञान ढ़ेर सा सीखो,
बनना है महान यह सीखो .

तन बुद्धि शुद्ध रखना सीखो,
खान पान में संयम सीखो .

मान बड़ों को देना सीखो,
आशीष उनसे लेना सीखो .

जीवन है वरदान सीखो,
जीवन हस हस जीना सीखो .

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, August 6, 2009

साढ़े चार वर्षीय कवयित्री का काव्यपाठ

साढ़े चार वर्षीय मन मिश्रा बहुत प्रतिभावान हैं। ये कविताओं का प्रभावी पाठ करती हैं। बाल-उद्यान पर अब तक प्रकाशित उनकी दोनों कविताओं का उन्हीं की आवाज़ में पाठ लेकर हम उपस्थित हैं। यद्यपि ये हिन्दी अक्षरों को पहचान भी नहीं सकती, लेकिन फिर भी मातृभाषा हिन्दी होने की वज़ह से कविता की रचना करती रहती हैं। कविता पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।

चूहा


रैबिट बहुत प्यारे होते हैं


Wednesday, August 5, 2009

आओ राखी मनायें

छोटी सी बहना थी एक
और था प्यारा सा इक भाई
बड़े प्यार से दोनों ने,
इस वर्ष भी देखो राखी मनाई ।

सुबह-सुबह उठ कर बहना ने,
प्यार से भैय्या को था जगाया,
रूठे हुए भैय्या को ,
बड़े जतन से उसने मनाया।

हौले-हौले थपकी दे कर,
आलस से उसको था उठाया,
फिर जबरन बहना ने उसको,
नहा कर आने को था मनाया।

बड़ी शान से भैय्या जी फिर,
नहा-धो कर थे निकले बाहर,
अच्छे-अच्छे कपड़े पहने,
इत्र लगा कर किया शृंगार,
बहना ने भैय्या की खातिर,
आरती का था थाल सजाया।

चावल-रोली थाल में रख कर,
मौली को था राखी बनाया,
भूल कर सारे झगड़े उसने,
तिलक था माथे पर लगवाया।

बहना ने फिर राखी बाँधी,
बाद में उसकी आरती उतारी,
ईश्वर से हूँ कामना करती,
लम्बी हो बस ये उमर तुम्हारी।

भैय्या ने भी बहना को फिर,
दिया प्यारा सा उपहार,
बहना बोली कुछ न चाहूँ,
माँगती हूँ बस तेरा प्यार।

तुम भी मिल कर राखी मनाओ,
झगड़े-टंटे सब बिसराओ,
प्यार से भाई-बहना मिल कर,
सारी उम्र खुशी से बिताओ ।

- डा॰ अनिल चड्डा


Sunday, August 2, 2009

मुझसे दोस्ती करोगे

एक रिश्ता दोस्ती का/सलामत रहे दोस्ताना

ईश्वर ने हमें कई अनमोल तोहफे दिये हैं, उनमें से एक तोहफा है दोस्ती का। दोस्ती रिश्तों की भीड़ में एक ऐसा रिश्ता है जिसे चुनने की आजादी हमारे पास है। जन्म के साथ हमें कई रिश्ते मिलते है, लेकिन वो बंधन ईश्वर ने आप के साथ बाँधे हैं। उनमें चुनाव की गुंजाईश ही नहीं है, क्योंकि वो सब रिश्ते हमारे अपने हैं। अपने और परायों की बीच दोस्ती का रिश्ता एक कड़ी की तरह उभरता है तथा हमारे जीवन में रिश्तों की अहमियत को बढ़ा देता है।

दोस्ती का अनमोल रिश्ता धर्म-जाति, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी की सीमाओं से परे है। यह एक ऐसा नाता है जो किसी दायरे में नहीं सिमटता, बल्कि इस एक रिश्ते में सारे रिश्ते समा जाते हैं। आजकल ज्यादातर लोग जीविका के लिये अपने परिवारों से दूर देश-विदेशों में बस गये हैं। ऐसे में हमारे जीवन में परिवार की कमी को दोस्त ही पूरा करते हैं और आपके अच्छे-बुरे वक्त में साथ खड़े नजर आते हैं।

आधुनिकता के दौड़ में जिस तरह से रिश्तों में खटास आयी है वो सभी जानते हैं। आज भाई-भाई का दुश्मन है। खून के रिश्ते सिर्फ नाम के रह गये हैं. लेकिन दोस्ती की मिसालें आज भी दी जाती हैं। यह भी कहना गलत न होगा कि दोस्ती का रिश्ता भी बुराइयों से अछूता नहीं है. इसलिये जरूरी है कि हम दोस्तों का चुनाव करते समय बहुत सावधानी बरतें। कहते हैं कि "संगत का असर" बहुत ज्यादा होता है। अगर आपको सच्चे और अच्छे दोस्त मिल गये तो आपकी जिन्दगी बन जाती है और कहीं बुरे मिले तो आपको बुराई के दलदल में फँसते देर नहीं लगती। यहाँ यह भी जानना जरूरी है कि सच्चाई-अच्छाई की परिभाषा क्या है? मेरे विचार से एक सच्चा दोस्त वही है जो आपको गलत राह पर जाने से रोके, सही-गलत का फर्क बताये, सुख-दुख में आपके साथ खड़ा रहे, आपकी गल्तियों पर पर्दा न डाले, अगर दूसरों से आपकी कमियों को छुपाए भी तो आपको यह एहसास जरुर कराये की आप में यह कमियाँ हैं और उन्हें सुधारने में मदद करे।

सच्चे मित्र की पहचान बुरे वक़्त में हो जाती है। हमारी जिन्दगी में दोस्तों का प्रभाव और महत्व दोनों ही बहुत अधिक होते हैं। कई बार जो बातें हम अपने माता-पिता व भाई-बहिन से नहीं कह पाते वो हम अपने दोस्तों से बाँट सकते हैं। उनसे सलाह ले सकते हैं। इसी तरह माता-पिता भी अपनी बातों को बच्चों तक पहुँचाने के लिये दोस्तों का सहारा लेते हैं। इससे साफ जाहिर होता है कि दोस्ती का रिश्ता कितना अहम है। इसलिए माता-पिता के लिये भी यह आवश्यक है कि वे अपने बच्चों को सही दोस्त चुनने में मदद करें। साथ ही ध्यान रखें कि बच्चों के दोस्त कौन हैं, क्या हैं तथा कैसे है? दोस्तों से तथा उनके परिवार वालों से सम्पर्क बनाए रखें।

चलते-चलते यही कहूँगी कि दोस्ती एक ऐसा पवित्र रिश्ता है जो हमारे जीवन में बहुत मायने रखता है। अत: हमें बहुत सावधानी पूर्वक इसका चुनाव करना चाहिये। अपने सच्चे मित्रों को अपने से दूर न होने दें। ऐसा नहीं है कि दुनिया में सच्चे और अच्छे लोग नहीं हैं। पहले स्वयं सच्चे मित्र बनें फिर देखिये लोग खुद कहेंगे कि "मुझसे दोस्ती करोगे"।

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'


Saturday, August 1, 2009

रैबिट प्यारे होते हैं

जब वो घर नहीं जाते हैं,
उनकी मम्मी रोने लगती हैं।

जब वो खाना नहीं खाते हैं,
उनकी मम्मी रोने लगती हैं।

जब वो खाना खा लेते हैं
उनकी मम्मी हँसने लगती है।

जब वो घर चले जाते हैं,
उनकी मम्मी पूरे दिन तक हँसने लगती हैं।

रैबिट (खरगोश) प्यारे होते हैं

मन मिश्रा (आयु- 4॰5 वर्ष)
उपनाम (शैतान महादेवी वर्मा)