Friday, November 7, 2008

हितोपदेश-3.ब्राह्मण और तीन दुष्ट

3.ब्राह्मण और तीन दुष्ट

एक बार था एक ब्राह्मण
मिला उसे इक भेड़ का मेमन
लेकर उसको कंधों पर
जा रहा था वह मार्ग पर
तीन दुष्टों ने उसको देखा
और मिलकर सबने यह सोचा
किसी तरह से ले ले मेमन
बेच के उसको मिलेगा धन
तीनों ने तरकीब लगाई
मिलकर इक योजना बनाई
थोड़ी-थोड़ी दूरी पर
खडे हो गए मार्ग पर
जब मार्ग पर ब्राह्मण आया
पहले दुष्ट को सामने पाया
हाथ जोड़कर बोला दुष्ट
ब्राह्मण देवता क्यो हो रुष्ट ?
कुत्ते को कंधे पर उठाया
किसने तुमको है भरमाया?
कहने लगा वो सुनकर ब्राह्मण
यह तो है भेड़ों का मेमन
तुमने इसको नहीं पहचाना
इसलिए इसको कुत्ता माना
चल दिया ब्राह्मण यह कह कर
दूसरा दुष्ट था मार्ग पर
आकर ब्राह्मण को बुलाया
हाथ जोड़कर शीश नवाया
बोला कुत्ते को उठाए
इस मार्ग पर कैसे आए?
ब्राह्मण झिझक गया सुनकर
कुत्ता मेरे कंधे पर
नहीं, नहीं यह तो है मेमन
पर थोड़ा सा फिसला मन
मेमन नहीं कुत्ते का बच्चा
थोड़ी सी हुई मन में शंका
फिर उसने खुद को समझाया
आगे का मार्ग अपनाया
कुछ ही दूरी पर जब पहुँचा
तीसरे दुष्ट को मिल गया मौका
आया आगे वह बढ़कर
हाथ जोड़कर झुकाया सर
बोला दुष्ट हे ब्राह्मण देवा
करना चाहता हूँ कुछ सेवा
कुत्ता दो मेरे कंधों पर
पहुँचा दूँगा तेरे घर
कुत्ता सुनकर तो वह ब्राह्मण
खिन्न हो गया मन ही मन
मैंने समझा भेड़ का बच्चा
पर यह तो निकला है कुत्ता
केवल मैं ही हूँ भरमाया
कुत्ते के बच्चे को उठाया
कर दिया मैंने खुद को भ्रष्ट
खुश हो गए मन में दुष्ट
छोड़ के उसको भागा ब्राह्मण
बस बातों से खोया मेमन
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बच्चो तुम सबने यह जाना
किसी की बातों में न आना
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4 पाठकों का कहना है :

रंजू भाटिया का कहना है कि -

किसी की बातो मे न आना

बढ़िया संदेश देती कहानी लगी यह सीमा जी

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बढिया सन्देशप्रद काव्य-कहानी..

कथा का काव्य रूपांतर करने में महारथ है आपकी
बहुत बहुत बधाई

Anonymous का कहना है कि -

behatarin,sandeshprad kahani.
ALOK SINGH "SAHIL"

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

हमने तो बस इतना है जाना
हरदम ही 'हितोपदेश' पढ़ने है आना।

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