गुरु परिचय
प्यारे बच्चों,
आज आप सभी को भूपेन्द्र राघवजी अपने गुरूओं से मिलवा रहे हैं, आईये मिलते हैं गुरूओं से -
आओ मिलो मेरे गुरुओं से
तुमको आज मिलाऊँ
सीखा तो अन-गिनत है फिर भी
कोशिश करूँ, गिनाऊँ
ये जो प्यारे से लम्बे से
गणित इन्हीं से सीखा..
जोड़ घटा क्या गुणा भाग ?
क्या प्रतिशत माप तरीका
कौन बडा है किससे कितना,
कौन कहाँ पर शामिल
सचमुच मुझे गर्व है
मेरे गुरु-जन इतने काबिल
और जरा इन पर भी अब तुम
डालो अपनी दृष्टी..
कहाँ पर मौसम गर्म रहेगा
कहाँ है ओला वृष्टी..
किस सागर से किस पठार तक
जाती विषवत रेखा..
पारंगत भूगोल शास्त्री
ऐसा और न देखा
ये जो गोर वर्ण बैठी हैं
मस्तक पर है बिन्दी..
आज इन्हीं कि कृपा से हम
लिख पाते हैं हिन्दी
आदिकाल क्या रीतिकाल
क्या दोहा क्या चौपाई
उपमा रूपक उत्प्रेक्षा से
जान-पहचान कराई..
किस लेखक कि क्या क्या कृति
किस कवि क्या रचा है
मेरे ख्याल से हिन्दी का कुछ
इनसे नहीं बचा है..
आओ आपका परिचय अब मैं
इनसे और करा दूँ
क्या क्या पाया हमने इनसे
ये भी जरा बता दूँ
इनकी क्षत्र छाया में हमने
किये बहुत प्रयोग..
क्या होगा?जो HCL से हो
सल्फ्यूरिक का योग
न्यूटन, आइंस्टीन से पाया
क्या कुछ कैसे हमने..
कितना ताप हो इस बीकर का
पानी लगे जो जमने
जो भी तथ्य हमें बतलाते
सबके सब प्रमाणिक..
मेरे ये विज्ञान गुरू जी
सचमुच के वैज्ञानिक
ये प्यारी प्यारी सी मैडम
नैतिक-शिक्षा वालीं
हमें तराशा ज्यों कुम्हार
चकले पे तराशे प्याली
बडों को आदर,प्यार सभी को,
बैर नहीं, सिखलाया
वक्त से सोना वक़्त से उठना
सब कुछ ही बतलाया
कभी कभी जो हुई शरारत
हमसे कोई गलती से,
मुर्गा हमें बनाया लेकिन
छोड़ दिया जल्दी से..
कर्जा है या वो धन-दौलत
जो इन सब से पाया है..
"राघव"गर्व करें हम गुरु पर
सब गुरु की माया है..
इनके ऋण से इस जीवन
उऋण होना मुश्किल है..
नतमस्तक हूँ कोटि कोटि
जिन पर ऐसा गुरु दिल है..
जिन पर ऐसा गुरु दिल है...
जिन पर ऐसा गुरु दिल है....
- राघव
05-09-2007

आपको ककड़ी-खाना पसंद है ना! पढ़िए शन्नो आंटी की कविता
सर्दी का मौसम शुरू होने वाला है। इस मौसम में हम क्या भूत भी ठिठुरने लगते हैं।
क्या आपने कभी सरिस्का राष्ट्रीय उद्यान की सैर की है? क्या कहा?- नहीं?
कोई बात नहीं, चलिए हम लेकर चलते हैं।
क्या आप जानते हैं- लिखने से आँखें जल्दी नहीं थकती, पढ़ने से थक जाती हैं क्यों?
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम के बारे में रोचक बातें जानना चाहेंगे? बहुत आसान है। क्लिक कीजिए।
तस्वीरों में देखिए कि रोहिणी, नई दिल्ली के बच्चों ने गणतंत्र दिवस कैसे मनाया।
आपने बंदर और मगरमच्छ की कहानी सुनी होगी? क्या बोला! आपकी मम्मी ने नहीं सुनाई। कोई प्रॉब्लम नहीं। सीमा आंटी सुना रही हैं, वो भी कविता के रूप में।
एक बार क्या हुआ कि जंगल में एक बंदर ने दुकान खोली। क्या सोच रहे हैं? यही ना कि बंदर ने क्या-क्या बेचा होगा, कैसे-कैसे ग्राहक आये होंगे! हम भी यही सोच रहे हैं।
पहेलियों के साथ दिमागी कसरत करने का मन है? अरे वाह! आप तो बहुत बहुत बहादुर बच्चे निकले। ठीक है फिर बूझिए हमारी पहेलियाँ।
बच्चो,
मातृ दिवस (मदर्स डे) के अवसर हम आपके लिए लेकर आये हैं एक पिटारा, जिसमें माँ से जुड़ी कहानियाँ हैं, कविताएँ हैं, पेंटिंग हैं, और बहुत कुछ-
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14 पाठकों का कहना है :
aap ki kavita mein guruon se parichay hamen bhee hamare guruon ki yaad karaaa gaya----dhnyawaad raghav ji
भूपेन्द्र राघव जी..
यह सत्य है कि गुरु से बडा आज कोई भी नहीं। किंतु व्यावसायिकता नें गुरु, ज्ञान और शिष्य तीनों के बीच एक खाई खोद दी है। शिक्षक दिवस के अवसर पर गुरुवंदना से बेहरत प्रस्तुति बाल उद्यान पर क्या होती चूंकि आने वाली पीढी गुरु शब्द का अर्थ शायद डिक्शनरी में ही ढूंढेगी।
***राजीव रंजन प्रसाद्
भूपेन्द्र जी
बहुत अच्छी कविता।
मुझे अपने स्कूल की याद आ गई और अपने गुरुओ की भी।
बच्चो को काफी अच्छी सीख देने के लिये धन्यवाद
आपने अपनी कविता के माध्यम से गुरू की महत्ता पर अच्छा प्रकाश डाला है। इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। कविता यदि थोडी छोटी होती, तो और अच्छा रहता।
राघव जी अति उत्तम रचना…।सीधी सरल पर सीधे दिल तक पहुँचती
राघव जी!
आपकी कविता ने बच्चों को गुरु की महत्ता बताने के साथ-साथ हमें भी अपने गुरुओं की याद दिला दी. धन्यवाद!
राघव जी
बहुत ही सरल शब्दों में आपने गुरू के प्रति आभार व्यक्त किया है । ये संस्कार हमको ही
देने हैं तभी बच्चे गुरू के उपकार को जान पाएँगें । सु संस्कार देने के लिए बधाई ।
भूपेन्द्रजी,
निश्चय ही गुरू हमेशा ही व्यवसाहिकता से ऊपर होता है ऐसे में व्यवसाहिक वर्तमान दौर में भी आपने गुरूज़न के प्रति जो सम्मान अपनी इस कविता में पिरोया है वो निश्चय बच्चों को संस्कारित करेगी।
आप धन्यवाद के पात्र है, स्वीकार करें!!!
बहुत अच्छी कविता है भूपेन्द्र जी..बधाई ।
हिय मेरा गद-गद हुआ पाकर इतना प्यार..
किन शब्दों में व्यक्त करूँ मैं आखिर आभार..
मैं आखिर आभार सदा ऐसे ही रहना..
अंतर्मन की बात नि:संकोच ही कहना...
टिप्पणियां मिलती रहें बस, हर गीत गज़ल पद..
पाकर इतना प्यार आज मेरा ह्र्दय गद-गद.
बस एक बात ये बतलाईये सब टीचर एक जैसे क्यों नही होते सब बच्चों को प्यार क्यों नही करते
ये प्यारी प्यारी सी मैडम
नैतिक-शिक्षा वालीं
हमें तराशा ज्यों कुम्हार
चकले पे तराशे प्याली
बडों को आदर,प्यार सभी को,
बैर नहीं, सिखलाया
वक्त से सोना वक़्त से उठना
सब कुछ ही बतलाया
कभी कभी जो हुई शरारत
हमसे कोई गलती से,
मुर्गा हमें बनाया लेकिन
छोड़ दिया जल्दी से..
मेरी क्लास टीचर भी एसी ही है भैया
प्रिय भाई,
देखो, टीचर सब अच्छे होते हैं जो वास्तव में एक शिक्षक के उद्देशय को जानते हैं
पता है क्या..उनके डांटने में भी कहीं ना कहीं बच्चों का हित छुपा हुआ होता है..
कुम्भ शिश्य गुरू कुम्भार है, गढि गढि काटे खोट..
अंतर हाथ सम्भार दे, बाहर बाहे चोट..
जैसे कुम्भकार (मिट्टी के बरतन बनाने वाला) अन्दर से हाथ से सहारा देते हुए और बाहर से थपकी से धीरे धीरे चोट मारता हुआ एक प्यरा सा घडा बना देता है ना वैसे ही टीचर होता है..
ढेर सारे स्नेह के साथ
-राघव्
भूपेन्द्र जी,
आपने गुरु की महिमा का बखान खूब किया है। अच्छी बात यह है कि इसमें आपने हर तरह का विषय ज्ञान भी शामिल किया है।
सुन्दर भाव भरी रचना है .. बधायी...
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