खुद जियो और को भी जीने दो...
अजरबेल और अमरबेल दो भाई थे। अपने स्वभाव के बिलकुल विपरीत होने के बाद भी एक दूसरे से अपने मन की बात कह लिया करते। उस रात चन्दामामा इतनी तेज चमक रहे थे कि दोनों को नींद नहीं आ रही थी। इतने खुले में उगने का हमें कितना नुकसान है, अमरबेल नें अजरबेल से कहा। बहुत सी शाख वाले किसी पेड के नीचे उगे होते तो चंदा मामा अपनी टोर्च जैसी रोशनी से हमारी नींद न खराब करते, बल्कि वहाँ उनकी रोशनी जीरो पावर बल्ब जितनी ही होती। अजरबेल इस बात पर मुस्कुराने लगा, बोला “जरा गौर से देखो, आज चंदामामा कितने हैंडसम लग रहे हैं, आज पूर्णिमा है”। अजरबेल की बात सुन कर अमरबेल नें बुरा सा मुँह बना लिया।
अजरबेल छोटे-छोटे हरे पत्ते वाली बहुत सुन्दर सी लता था। वह पौधों से दोस्ती करने में बहुत माहिर भी था। उसपर उगने वाले पीले-पीले फूल पौधों को अपनी ओर आकर्षित करते और वह भी अपने स्प्रिंग जैसे घुमावदार हाँथों को पौधों की ओर बढा उनका अभिवादन स्वीकार करता। कई कटीले पौधों नें अपनी बदसूरती छुपाने के लिये अजरबेल से कहा था कि वह उन्हे छुपा ले, और खुशी खुशी अजरबेल उनसे लिपट गया। इस तरह उसे सूरज की रोशनी पाने में सुविधा भी हो जाती और पेड-पौधों का प्यार भी मिलता। ठूंठ बाबा तो अजरबेल से बेइंतिहाँ प्यार करते थे। वो जानते थे कि उनका आखिरी समय आ गया है, लेकिन अजरबेल उनसे इस तरह जा लिपटा कि उनका सारा अकेलापन काफुर हो गया।
अमरबेल इतना मिलनसार न था। वह हमेशा गुस्से में रहता। यही कारण था कि सभी पौधे उससे दूर-दूर रहते। ले दे कर एक बीमार पौधे में वह अपने आप को किसी तरह लपेटे चिडचिडाता रहा करता। अजरबेल हमेशा उसे समझाता कि बात बात पर गुस्सा होना अच्छी बात नहीं। मुस्कुराहट तुम्हारा कुछ नहीं लेगी बल्कि तुमपर इतने सुन्दर सुन्दर फूल खिला देगी कि तुम सबके प्यारे हो जाओगे। यह कह कर अजरबेल जब भी मुस्कुराता तो बहुत से पीले-पीले फूल खिल उठते और आस-पास से रंग-बिरंगी तितलिया उसकी ओर दौडी आतीं। यह देख कर अमरबेल हँस पडता, भाई तुमने तो खुद को अजायबघर बना लिया है। जब देखों तुम तितलियों, मधुमक्खियों और परिंदों से घिरे रहते हो, जब इनमें से कोई नहीं होता तो वह बूढा ठूंठ तुम्हें कहानियाँ सुनाता रहता है...मैं आजाद ख्याली हूँ।
यह दुनियाँ बहुत खूबसूरत है, यहाँ सूरज है जो रोशनी देता है, चंदा है जो अपनी चाँदनी लुटाते हैं, तारे हैं जो सपने बाँटते हैं, नदियाँ है जो अपना शीतल जल और कलकल का गीत बाँटती हैं..लेकिन अमरबेल केवल लेने में यकीन रखता था। वह सूरज से अपना भोजन बनाने के लिये रोशनी लेता और शरीर के लिये दूसरे आवश्यक तत्व बीमार पेड की आँख चुरा कर उससे ही ले लेता। अमरबेल का इससे पेट तो भर जाता किंतु बीमार पौधा और बीमार होता जा रहा था। एक रोज बीमार पौधे की तबीयत बहुत बिगड गयी। वह केवल आँखे बंद कर लेटा ही था कि उसने देखा कि अमर बेल नें अपनें गोलगोल हाँथ बढा कर चुपके से उसका बनाया खाना चूस लिया। पौधा बहुत दुखी हुआ। उसने अमर बेल से तो कुछ नहीं कहा किंतु यह बात अजरबेल को बता दी।
अजरबेल नें अपनी नाराजगी जाहिर करने में देरी नहीं लगायी।
“यह तुम्हारी ज्यादती है और कामचोरी भी” अजरबेल नें जोर देकर अमरबेल से कहा। “तुम्हे अपना भोजन स्वयं बनाना चाहिये, दूसरों पर निर्भर रहने वाले एक दिन नष्ट हो जाते हैं”।
“क्या तुम दूसरों पर निर्भर नहीं हो?” अमरबेल अपनी खीज छिपा नहीं सका। चोरी पकडे जाने के बाद वह सीनाजोरी पर उतर आया।
“हाँ मैं भी दूसरे पौधों और पेड की शाखाओं पर निर्भर हूँ, लेकिन मैं उनका भोजन नहीं चुराता। बल्कि मेरे फूल उनका आकर्षण बढाते हैं जिसके कारण तितलियाँ और दूसरे दोस्त खिंचे चले आते हैं।” अजरबेल ने कहा। अमरबेल यह सुन कर मुस्कुराने लगा।
बगल में ही बहुत से फूलों से लदा पौधा खडा था, जिसका नाम कनेर था। इस पर खिले पीले-पीले, सुन्दर-सुन्दर फूल बगीचे का सौन्दर्य बढा रहे थे। लेकिन कनेर हमेशा ही दुखी रहा करता। जो भी बाग घूमने आता वह गुलाब की क्यारियों में ही खो जाता। कोई उसकी ओर ध्यान भी नहीं देता था कि उसकी डालियों में गुलाब से ज्यादा फूल होते हैं और सबसे बडी बात कि उसमें काँटे भी नहीं हैं। उसने अजरबेल को डाँट दिया “बगीचे में सब लोग तुम्हें चाहते हैं, इसका मतलब यह नहीं कि तुम कुछ भी कह सकते हो”
अमरबेल इस समय, इस सहानुभूति को पा कर बहुत प्रसन्न हुआ। अजरबेल नें अब चुप रहना ही बेहतर समझा। अब कनेर के पौधे और अमरबेल में गहरी मित्रता हो गयी। एक रोज कनेर ने अमरबेल के लिये अपनी शाखें फैला दीं और खुशी-खुशी अमरबेल उससे लिपट गया। बूढे ठूठ नें अजरबेल से कहा “विनाश काले विपरीत बुद्धि – यानी कि जब विनाश का समय आता है तो बुद्धि काम करना बंद कर देती है”।
इसी तरह समय बीतने लगे। यह फूलों का मौसम था, गुलाब खूब खिले थे और अपनी खुशबू से पूरा बागीचा खुशनुमा किये हुए थे। गुलाब की अपना सबकुछ लुटा देने की विशेषता के लिये ही तो सब उससे प्यार करते हैं। काश मन में द्वेष पालनें की जगह यह बात कनेर पहले समझ पाता। इस मौसम हमेशा फूलों से लदे रहने वाले कनेर में इक्का-दुक्का ही फूल थे। कनेर भी बीमार नजर आ रहा था। अजरबेल नें ढूंठ बाबा से पूछा कि अचानक यह क्या हुआ? क्या कनेर बीमार हो गया है?
ठूंठ बाबा भी दुखी थे लेकिन चाह कर भी कनेर की मदद नहीं कर सकते थे। बोले “अमरबेल नें दोस्ती की पीठ में छुरा भोंक दिया है। कनेर का बनाया भोजन वह चूस लेता है, यही कारण है कि कनेर धीरे धीरे बीमार और पीला होता जा रहा है”
“ यह तो गलत बात है”
“हमेशा अच्छे दोस्त ही बनाने चाहिये। दोस्त जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। अगर आपके दोस्त अच्छे नहीं हुए तो आपकी हालत भी कनेर की तरह हो सकती है”। ठूंठ बाबा नें अजरबेल को समझाते हुए कहा।
“क्या अमर बेल इसी तरह मनमानी करता रहेगा” अजरबेल नें दुखी हो कर पूछा।
“नहीं, बुरे काम का हमेशा बुरा नतीजा होता है” ठूंठ बाबा नें बताया।
और सचमुच यही हुआ। कनेर धीरे धीरे सूखने लगा और एक दिन बिना पत्तियों और फूल का ढाँचा ही रह गया। अमरबेल हरा भरा हो गया था। कनेर के पास अब अमरबेल की आवश्यकताओं जितना भोजन नहीं था। उसे भोजन बनाना भी नहीं आता था। आसपास के पौधों नें भी अपनी शाखायें समेट ली थीं और अब अमर बेल का कोई भी दोस्त नहीं था। अमरबेल धीरे धीरे कमजोर पडने लगा। उसका रंग पीला पडने लगा....उस रोज जब बाग का माली आया तो उसने कनेर के उस पौधे को काट दिया जिस पर अमरबेल लदा हुआ था।
“क्या इस बात से तुमने कुछ सीखा” ठूंठ बाबा नें अजरबेल से पूछा? अजरबेल नें बहुत गहरी साँस ले कर कुछ कहना चाहा कि तितलियों नें टोक दिया। “बाबा आप भी बच्चों को कितना भाषण देते हो, सुनों माली के रेडियो पर कितना सुन्दर गीत बज रहा है....”
बगीचे में गीत गूंज रहा था “खुद जियो, और को भी जीने दो.....”
*** राजीव रंजन प्रसाद
19.09.2007
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9 पाठकों का कहना है :
बहुत अच्छी रचाना है अजर बेल अमर बेल के बहाने जीवन का समाजशाष्त्र आपने बच्चों को सिखा दिया बहुत अच्छा परयोग है.....
राजीव जी,
छोटी छोटी कहानियो और प्राकृतिक उपमाओ द्वारा बच्चों को सीख देने का आपका अंदाज अच्छा है।
जीवन के रहस्यो को आपने काफी असानी से समझा दिया है।
बधाई।
राजीव जी,
बधाई स्वीकारें, एक बहतरीन शिक्षाप्रद कहानी जो अजरबेल, अमरबेल व अन्य वनस्पतिक पात्रों को लेकर आपने रची वास्तव में बच्चों को सुन्दर मार्ग प्रशस्त करेगी..
राजीव जी बहुत ही सुंदर तरीके से आपने इतनी अच्छी सीख दे डाली :)
बहुत ही सुन्दर कहानी है दूसरो के काम आना ही जिन्दगी का सच्चा सुख है ...
बधाई
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सुन्दर सारगर्भित कहानी.. दोस्ती करते समय सोचना जरूरी है कि किस से हाथ मिला रहे हैं..दुनिया में चापलूस और स्वार्थी लोगों की कमी नही. बधाई
राजीव जी,
इसमें अजर और अमर का बहुत कंफ़्यूज़न है, लेकिन आपका प्रयोग मुझे पसंद आया। आजकल इस तरह की शिक्षाप्रद कहानियाँ (नैतिक कहानियाँ) कार्टून नेटवर्कों के कारण गुम होती जा रही हैं। आप मशाल ले लीजिए, बाल-उद्यान जल्द ही सब बदल देगा।
राजीव जी,
रचना बहुत अच्छी है |
शिक्षाप्रद भी.....
बधाई।
बहुत हीं सुंदर बाल-कहानी लिखी है आपने राजीव जी। इसी तरह से बच्चों को प्रोत्साहित करते रहें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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