अनिकेत चौधरी को जवाब चाहिये
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बाल रचनाओं में आज पढ़िये, औरंगाबाद (महाराष्ट्र) के एस.बी.ओ.ए. पब्लिक स्कूल के एक छात्र अनिकेत चौधरी की रचना -
हिन्दी का नाम सुनते ही मुझे विभाजन की याद आती है, जब हम दोस्त हिन्दी और संस्कृत के नाम पर एक-दूसरे से बिछड़ गये थे। दोनों बहनों ने हमें बड़ा सताया। हम एक-दूसरे से जब भी मिलते थे, आपबीती सुनाते थे। संस्कृत कक्षा में बैठे साथी भी संस्कृत को बंद कमरे की घुटन कहकर हमसे हिन्दी में बात तो करते थे पर हमें भी अफ़सोस था कि हम संस्कृत में उनसे बात नहीं कर पाते थे। एक दिन मैं सो गया था। अचानक हिन्दी ने दस्तक दी... "उठो! उठो! आँखें खोलो!"
आँखें मलते-मलते मैं बैठ गया। पूछा क्या बात है? क्यों शौर मचा रही हो?
कहने लगी अगर हर कोई अपनी गलती खुद पकड़ ले तो कितना अच्छा! मैने कहा, मैं नहीं समझा तो कहने लगी -
"जल-प्रदूषण, ध्वनी-प्रदूषण, वायू-प्रदूषण की तरह हिन्दी-प्रदूषण भी फैल रहा है... शुद्धता रही नहीं "
मैने पूछा – "वो कैसे?"
उसने कहा – "जिम्मेदार है संविधान, नेता, फिल्म निर्माता, गैर-जिम्मेदार नागरिक"... मैंने कहा बस-बस...चुप...कोई सुन लेगा...तेरी जगह अंग्रेजी ले लेगी...बड़ी ही दुखी थी...वही राग अलापने लगी...है तो सौतन...घर छूटा पर उसने छोड़ी नहीं अपनी जमीन...शायद महसूसती है वह घर से बेघर होने की पीड़ा...और आदमी? यही तो फर्क है उसमें और यहाँ के लोगों में...
कुछ समझ न पाया, उसकी व्यथा सुनते-सुनते थक गया और विश्व सम्मेलन में भी सुनाना चाहा पर...पहले आपको सुना दूँ गर जवाब मिल जाये तो रात में उसे भी संतुष्ट करूँगा। वो सचमुच दुखी है... उसे क्या कहूँ?
- अनिकेत चौधरी
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11 पाठकों का कहना है :
बहुत खूब अनिकेत। इतनी कम उम्र में तुम्हें हिन्दी की पीड़ा समझ आई , यह काबिल-तारीफ है। हिन्दी को उसका सम्मान लौटाने के लिए हीं तो हम, तन-मन-धन से जुटे हैं। आज तुम भी हमारे सहभागी बन गए।
बधाई स्वीकारो।
अनिकेत,
तुम्हारी प्रतिभा देख कर मन प्रसन्न हो गया। आज का समय, आपकी उम्र और इतना उत्कृष्ट लेखन यह संगम कम ही देखने को मिलता है। माँ सरस्वति का आषीश आपपर बना रहे, इसी अपेक्षा के साथ।
*** राजीव रंजन प्रसाद
अनिकेत.....बहुत ख़ूब ...हिंदी प्रदूषित हो रही है...अच्छी सोच है...हिंदी के प्रति श्रद्धा बनाएँ रखें ...
हिंदी की सेवा करें...इसी आशा के साथ ....बधाइयाँ....सुनीता यादव
सबसे पहले तो बहुत अच्छा लिखा अनिकेत, बहुत गहरी सोच है । बधाई ।
जैसे किसी भी प्रदूषण को रोकने के लिए सबसे पहले तो उस प्रदूषण के प्रति जागरूक होना पड़ता है, और फिर उसकी सुधार के लिए कदम उठाना पड़ता है, वैसे ही 'हिन्दी-प्रदूषण' के लिए भी करना होगा । जब तुम्हारी उम्र के बच्चे जागरूक हो जए हैं तो प्रदूषण दूर करने के तरीके भी निकल आएँगे :) ।
शुभकामनाएँ ।
- सीमा कुमार
प्रिय अनिकेत जी,
आप हिन्दी के दर्द को समझ सकते हैं आपकी ये सम्वेदनशीलता देख मन प्रसन्न हुआ...
कमाल की क्षमता है आपमें, लिखते रहियेगा..
हमरी शुभकामनायें सदैव आपके साथ
अनिकेत,
इतनी छोटी उम्र मे इतनी गहरी सोच....।
बहुत बहुत बधाई।
हम तो हिन्दी को उसका सम्मान लौटाने तो जुटे हैं ही पर तुम जैसे और नया खुन भी हमारे साथ जुड जाये तो वो दिन दूर नही जब हमारी प्रयासो की जरूरत ही न पडे और हिन्दी बहुत सबल हो जाये।
अनिकेत
विचार व प्रतिभा किसी उम्र की मोहताज नहीं होती ये आपके लेख को पढ कर आसानी से समझा जा सकता है.. इस लेकनी को विराम न दें और इसी तरह लिखते रहें
बधाई
बहुत सुंदर अनिकेत छोटी सी उम्र में बहुत ही गहरी सोच है आपकी
यूं ही लिखते रहे बहुत बहुत शुभकामना और ढेर सारा प्यार
रंजना
अपने तरह की सोच वालों को एक साथ कीजिए और इस प्रदूषण को खत्म करने की कोशिश कीजिए
शुभकामनाएँ
अनिकेत ,
छोटी उम्र ,
गहरी सोच .
बहुत खूब ....
आपमें क्षमता है
लिखते रहिये.. ..
शुभकामनाएँ
बधाई
very good Aniket.keep it up.
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