Tuesday, June 30, 2009

बंदर की दुकान (बाल-उपन्यास पद्य/गद्य शैली में)- 14

तेरहवें भाग से आगे....

14. आ दुकान पर गरजा शेर
बोला लाओ न जरा भी देर
जंगल में चुनाव का मौसम
डर लगता है मुझको हर दम
दe दो जो मुझको तुम वोट
बदले में ले लेना नोट
जीतूँगा जंगल का राज
सजेगा मेरे सिर पर ताज
तब तुम मेरे पास में आना
खोलूँगा जंगल का खजाना
जितना चाहो धन ले आना
मजे से अपनी दुकान चलाना
दुविधा में बंदर अब आया
खोल दुकान बड़ा पछताया।

14. शेर बंदर की दुकान पर आकर गरजने लगा और बोला:- जंगल में चुनाव का मौसम है, मुझे हर पल हार जाने का डर लगा रहता है। जो तुम मुझे वोट मोल दे दो तो मैं जीत जाऊँगा और जंगल का राजा बन जाऊँगा। फिर तुम मेरे पास आना तो मैं जंगल का सारा खजाना तुम्हारे लिए खोल दूँगा, तुम जितना चाहो धन ले लेना और मजे से अपनी दुकानदारी चलाना।
अब तो बंदर दुविधा में फँस गया। क्या करे क्या न करे? बेचारा बंदर दुकान खोल कर पछताने लगा।

पंद्रहवाँ (अंतिम) भाग


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4 पाठकों का कहना है :

Shamikh Faraz का कहना है कि -

बधाई.

Shamikh Faraz का कहना है कि -

आ दुकान पर गरजा शेर
बोला लाओ न जरा भी देर
जंगल में चुनाव का मौसम
डर लगता है मुझको हर दम
दe दो जो मुझको तुम वोट
बदले में ले लेना नोट
जीतूँगा जंगल का राज
सजेगा मेरे सिर पर ताज
तब तुम मेरे पास में आना
खोलूँगा जंगल का खजाना
जितना चाहो धन ले आना
मजे से अपनी दुकान चलाना
दुविधा में बंदर अब आया
खोल दुकान बड़ा पछताया।

सीमा जी बाल उपन्यास के 14 वें भाग के लिए बधाई.

Manju Gupta का कहना है कि -

Kahani ka saspens barkarar hai
Badhayi.

manu का कहना है कि -

कुछ न कुछ जुगाड़ निकाल ही लेंगे बंदर महाशय..

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