जब बिना टिकट के नेहरू जी को एक स्वयं सेविका ने प्रदर्शनी में नही जाने दिया .

यह बात तब की है जब नेहरू जी एक खादी की प्रदशनी देखने गए ..यह घटना काकीनाडा के कांग्रेस अधिवेशन की है ..बहुत बड़े बड़े नेता इस प्रदशनी को देखने के लिए पहुंचे ..
वहां गेट पर एक लड़की खड़ी थी ..वह हर आने जाने वाले का टिकट चेक कर रही थी ..
जब नेहरू जी आए तो उसने नेहरू जी से भी टिकट माँगा
नेहरू जी ने कहा की मेरे पास तो टिकट नही हैं ..और न ही पैसे अब क्या करूँ ?
"तो आप यह प्रदर्शनी नही देख सकते हैं "..लड़की ने कहा ...
तभी वहां अन्य एक बड़े नेता आ गए ..उन्होंने लड़की से कहा अरे ! तुमने इन्हें पहचाना नही है क्या ? यह तो पंडित नेहरू जी हैं इन्हे जाने दो अन्दर .
लड़की ने कहा- श्री मान यह संभव नही हैं ...मैं गेट कीपर हूँ और मुझे आदेश है कि टिकट के किसी को अन्दर न जाने दिया जाए ..मैं जानती हूँ कि पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को रोक रही हूँ ...किंतु क्या करूँ आदेश ही ऐसे हैं ..
नेहरू जी यह सुन कर बहुत प्रभावित हुए और बोले- बेटी बहुत अच्छा है यह ..आज हमें इस तरह की स्वयं सेविकाओं की ही जरुरत है ...हर व्यक्ति को अनुशासित और अपने कर्तव्य का पालन करना आना चाहिए ...यह कह कर नेहरू जी ने उस लड़की का उत्साह बढाया ..
सन १९२२ में के इस अधिवेशन में एक सज्जन नेहरू जी के लिए टिकट ले कर आए तब नेहरू जी अन्दर गए ..इस घटना को न कभी नेहरू जी भूल पाये ..और हमें भी यह हमेशा याद रखनी चाहिए ....
रंजू भाटिया

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5 पाठकों का कहना है :
बहुत अच्छी घटना याद दिलाई है रंजू जी। ऐसे ही राष्ट्रीय चरित्र की आज हम सब को महती आवश्यकता है।
आज के नेता होते तो लड़की का कोर्टमार्शल हो जाता।
मजेदार वाकया !
काश ये अनुशासन सभी भारतीय नागरिक मे देखने को मिलता |
उम्मीद है एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब हम सभी अनुशासित
होकर देश हित के लिए काम करेंगे |
आप की किताब साया पढ़ी, मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला |
बहुत बहुत शुभकामनए आपको आगे के नये रचनाओ के लिए |
अच्छी जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
शोभा जी व tapashwani जी के बातों से मैं सहमत हूँ. पर आज लोग कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार कैसे बने हमें इसपर विचार करना आवश्यक है. लोग कर्तव्य व ईमानदार बने व इस देश से भ्रष्टाचार समाप्त हो इसके लिए जरुरी है कि बच्चों के छोटी उम्र से ही उनमें ईमानदारिता की भावना भरी जाय.
http://popularindia.blogspot.com/2008/09/blog-post_23.html
आपका
महेश
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