Saturday, May 31, 2008

गुबारे (गुब्बारे)


नीले-पीले लाल गुबारे
सपनों की टक्साल गुबारे

भूखे-पेटों को दिखते हैं
रोटी और दाल गुबारे

बस्ता जब पड़ता है ढोना
हो जाते है बेहाल गुबारे

गुड्डू को जब हुआ जुकाम
आये पूछने हाल गुबारे

छुट्टी के दिन आते ही
सब लेते सँभाल गुबारे

निकली हवा पिचक गये
लगते हैं कंगाल गुबारे

आई जवानी भागा बचपन
चलते टेढ़ी चाल गुबारे

बाल रचनाकार-
श्याम सखा 'श्याम'
(संपादक- मसि-कागद)


Friday, May 30, 2008

लुका छिपी

सबसे प्यारा
जग में न्यारा
खेल हमारा
लुका छिपी ।

आँख मिचौली
गिनती बोली
आँखे खोली
लुका छिपी ।

घर में ढ़ूंढ़ा
बाहर ढ़ूंढ़ा
गली में ढ़ूंढ़ा
लुका छिपी ।

इसको खोजा
उसको खोजा
धप्पा खाया
लुका छिपी ।

फेल हुआ फिर
आँख बंद कर
गिनती गिन फिर
लुका छिपी ।

सौ तक गिना
देखे बिना
छुपी सेना
लुका छिपी ।

खोजा सबको
इसको उसको
सब सेना को
लुका छिपी ।

खोजा किसको
पहले जिसको
बारी उसको
लुका छिपी ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 29, 2008

बूझो तो जाने...

प्रिय बच्चों नीचे कुछ पहेलियाँ है 'सोचो समझो और बताओ'
अपने अपने उत्तर टिप्पणियों में लिखिये और उस पर चित्र बनाकर
मम्मी पापा और भाई को दिखाइयेगा.. हो सके तो चित्र हमें भी भेज दें
ई-मेल पता है : raghav.id@gmail.com

1.
नीले सागर की मैं मछ्ली
बादल से बातें करती हूँ
गोते खाती मैं इतराती
लेकिन बारिश से डरती हूँ

2.
हम भाई चालीस एक जुट
मुहुँ हमारे काले हैं
रगडों जो दीवार पर हमको
हम रोशनी करने वाले हैं

3.
एक पैर वाला हूँ लेकिन
हाथ हजार मेरी देह विशाल
मेरी दाढ़ी मेरे पांव तक
इतने लम्बे मेरे बाल

4.
सरदी को मैं दूर भगाती
गरमी में मैं खुद छुप जाती
सबके घर मैं जाऊँ पाई
मेरा नाम बताओ भाई

5.
बचपन हरा जवानी पीला
मैं हूँ राजा बड़ा रसीला
अगर बताओ मेरा नाम
ले जाओ एक बड़ा इनाम

6.
तेज धूप हो या बरसात
रखो जो मुझको अपने साथ
अपने तन पर खाऊँगा
तुमको मगर बचाऊँगा

7.खूब अकल दौड़ाओगे
फिर भी समझ ना पाओगे
मैं खुद में छुपकर रहती हूँ
क्या अब तुम बतलाओगे ?

------~:o:~------


Wednesday, May 28, 2008

मेरे देश की धरती..



तस्वीरें : ग्राम- मदनपुर, दरभंगा, बिहार ।
तस्वीरों के लिए आभार : श्री संजय कुमार


Tuesday, May 27, 2008

गुब्बारे

ले लो ले लो जी गुब्बारे
रंग बिरंगे प्यारे प्यारे

लाल गुलाबी नीले नीले
हरे जामनी पीले पीले

आओ चिंटू सुनो री गुड़िया
लो गुब्बारे बढ़िया बढ़िया
एक रूपये में एक मिलेगा
जो मन भाए वो तुम लेना

दूर दूर तक उड़ते जाते
छुट जाए तो हाथ ना आते
देखो कस के पकड़े रखना
छूट गए तो फिर ना कहना

शहर शहर में जाता हूँ
सबका मन बहलाता हूँ
फिर आऊँगा शहर तुम्हारे
लेकर और नए गुब्बारे
रंग बिरंगे प्यारे प्यारे

सुषमा गर्ग

27.05.2008


दीदी की पाती .....सिक्को के बारे में कुछ रोचक बातें

आज आपको बताऊँगी मैं सिक्को यानी पैसे के बारे में कुछ रोचक बातें ...सारी दुनिया आज कल इस के पीछे पागल है ...:) पर यह कैसे कैसे रूप में आए और दुनिया को अपने इशारों पर नचाया आईये आपको बताते हैं ...

१) कागज के नोट संसार में सबसे पहले चीन में १९० इस्वी में चले

२ )सम्वत लिखा सबसे पुराना सिक्का १२३४ इस्वी का डेनमार्क का है

३ )धातु का सबसे भारी सिक्का स्वीडन में १६४४ में निकला था उसका वजन २१ किलोगार्म था और उसकी कीमत होती थी उस वक्त २ गाय

४) याक द्वीप पर कुछ पत्थर के सिक्के भी मिले हैं जो करीब ३.५ ऊँचे और ८० किलो वजन के हैं

५ )सबसे अधिक कीमत वाला नोट सयुंक्त राज्य अमेरिका ने निकला था जो १० हज़ार डॉलर का नोट था सन् १९४४ के बाद वैसे नोट फ़िर कभी नही छापे गए

६ )सबसे छोटा सिक्का सन् १७४० में नेपाल ने जारी किया था जो केवल २ बाय २ का मिलीमीटर का था

७ )सबसे आकार में छोटा नोट चीन में सन् १३६८ इस्वी में छापा था उसका आकार ३३/२३ सेन्टीमीटर था

८)सिक्को से धातु चोरी करना पुरानी जाल साजी है १७ सदी में इसकी रोकथाम के लिए सिक्कों के चारो और खडी हुई धारियाँ बनायी जाने लगी जिसे अगर कोई सिक्के से धातु को काटे तो पता चल जाए


९) भारत में १ रुपये का नोट भारत सरकार तथा २ रुपये का नोट जो अब कम ही दिखता है और उस से बड़े नोट भारतीय रिजर्व बैंक जारी करता है भारतीय नोट पर उसका मूल्य कई भाषा लगभग १५ भाषा में लिखा रहता है

१० )और क्या आप जानते हैं की सिक्के और मुद्रा इक्ट्ठे करने के शौक को न्यूमिजमेटिक्स कहते हैं


तो यह थी कुछ रोचक जानकारी सिक्कों और रुपये के बारे में ..और नई जानकारी ले कर फ़िर आऊँगी अगली पाती में खूब अपनी गर्मी की छुट्टियां मजे से बिताएं और नई नई बातें सीखे ..:) अपना ध्यान रखे

आपकी दीदी

रंजू


Monday, May 26, 2008

चीनू-मीनू

चीनू-मीनू दो सहेली
नहीं रहती थीं कभी अकेली
दोनों ही थीं बड़ी स्यानी
आओ सुनाऊं उनकी कहानी
दोनों पास-पास ही रहती
एक ही कक्षा में थी पढ़ती
चीनू को मिलता एक रुपैया
मीनू को भी एक रुपैया
दोनों ने सोचा कुछ मिलकर
पैसे जोड़ें सबसे छुपकर
दोनों ने इक-इक डिब्बा ढूँढ़ा
सबसे उसे छिपाकर रखा
आठ-आठ आना दोनों बचा के
रख देतीं वो सबसे छुपा के
दोनों ने जोड़े कुछ पैसे
बचा-बचा के जैसे-तैसे
स्कूल में कुछ बच्चे थे ऐसे
जिनके पास नहीं थे पैसे
न कॉपी, पेन्सिल न बसते
घर का काम वे कैसे करते?
टीचर उनको रोज पीटते
पर बच्चे थे, वे क्या करते?
चीनू-मीनू ने घर पे बताया
और पैसों का डिब्बा दिखाया
दोनों बच्चियाँ भोली-भोली
पैसे दे कर ये थी बोली
बच्चों के पास नहीं हैं पैसे
क्यों न उनको ले कर दे दें
कुछ कॉपी, पेन्सिल और बसते
ताकि पढें वो हँसते-हँसते
सबको उनका विचार भा गया
और सारा सामान आ गया
मिल गया बच्चों को सामान
बन गई माँ-बाप की शान
सबको उन पर गर्व हुआ था
उनका ऊँचा नाम हुआ था

-सीमा सचदेव


Saturday, May 24, 2008

कुछ नन्ही-नन्ही कविताएँ (आओ गाएँ)


एक-दो
बम-बम बो
तीन-चार
खोलो द्वार
पाँच-छ:
भारत की जय
सात-आठ
सीखो पाठ
नौ-दस
हो गई बस।

२.
चन्दा मामा आए हैं
तारों को सँग लाए हैं
टिम-टिमाते सुन्दर तारे
लगते मुझको प्यारे-प्यारे

३.
नभ मे छाए बादल काले
उमड़-घुमड़ नाचे मतवाले
खिल-खिल, खिल-खिल
हँस दी कलियाँ
भर-भर गई
बच्चों से गलियाँ

४.
ची-ची ची-ची चिड़ियाँ बोली
आओ बच्चो खेलें होली
रंग-बिरंगे हम रंग डाले
बन जाएँ हम सब हमजोली

५.
काव-काव काव-काव कौआ करता
बच्चों से यह कभी न डरता
झूम-झूम के नाचे मोर
जब छाएँ बादल घनघोर

६.
मीठा-मीठा आम रसीला
दिखने में है पीला-पीला
इसका रस हम सबको भाए
खाएँ खूब जब पापा लाएँ

७.
सुबह-सवेरे सूरज उगता
नन्हा-मुन्ना नींद से जगता
हो तैयार स्कूल को जाए
मम्मी-पापा खुश हो जाएँ

८.
बन्दर मामा केला खाता
बच्चों तो खूब चिढ़ाता
डम-डम डमरू बजा के मदारी
बन्दर मामा को खूब नचाता

-सीमा सचदेव


Friday, May 23, 2008

बरखा ऋतु

(सार छंद प्रत्येक चरण में 16, 12 = 28 मात्राएं, चरणांत में 2,2)

नन्ही नन्ही बूँदें लेकर
बरखा ऋतु है आयी ।
उमंग जगाती हर्ष देती
सबके मन को भायी ।

पहली बूँदें जब गिरती हैं
सोंधी गंध भर जाए ।
आनंदमग्न हो जीव जंतु
मनुज धरा खिल जाए ।

गर्मी से छुटकारा पाया
लू को मार भगाया ।
नभ में छायी घटा घनघोर
उल्लास हृदय छाया ।

जग में छायी फिर हरयाली
झूमें नाचें गाएँ ।
नदी ताल सब भरे लबालब
पेड़ लता लहराएँ ।

बच्चे जल में नाच रहे हैं
मेघ गगन हैं छाये ।
इंद्रधनुष का दृष्य मनोरम
नृत्य मोर मन भाये ।

गर्जन जब करती है बिजली
धैर्यवान घबराये ।
काली घटा छाये रात में
अंधकार गहराये ।

वर्षा ऋतु से महके जीवन
खेती भी लहराये ।
अनुप्राणित हो जीवन जागे
प्रकृति सौंदर्य छाये ।

जन्म अष्टमी, रक्षा बंधन
बरखा ऋतु में आयें ।
पींग बढ़ा कर झूला झूलें
मिलकर गाना गायें ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 22, 2008

छुपन-छुपाई...

आओ डोली बहना
अरे आओ गुड्डू भाई
बादलों में छुपकर
हम बादलों में छुपकर
चलो,खेलें छुपन-छुपाई
आओ .........

दस तक गिनती गुड्डू गिनना
तुम चन्दा के पीछे
पर बेईमानी नहीं चलेगी
रखना आँखें मींचे
हाँ, रखना आँखें मींचे
इसी बात पर हुई थी याद है
पिछली बार लड़ाई...
आओ .........

चुपके चुपके ढूँढ सभी को
तुमको धप्पा करना
कोई नहीं मैं हुआ अकेला
सोच के यह मत डरना
हाँ, सोच के यह मत डरना
हम सब बाहर आ जायेंगे
जो एक आवाज लगाई..
आओ .........

लेकिन बच्चो सुनो गौर से
बादल चिकने चिकने
कदम सँभलकर रखना इनपर
लग जाओ ना फिसलने
समझे, लग जाओ ना फिसलने
कपड़े गन्दे हुए अगर तो
होगी खूब पिटाई
आओ .........

बादल भी खुश होकर देखो
चेहरे लगे बनाने
हाथी शेर मगरमछ बनकर
करतब लगे दिखाने
लो,अभी अभी देखी है
सच,अभी अभी देखी है मैने
बन्दर की परछाई...
आओ .........

देखो कितने सारे तारे
प्यारे दोस्त हमारे
आओ इनका हाथ पकड़कर
बानयें गोल धारे..
कुछ तारों ने मिलकर
देखो देखो, मिलकर कितनी
सुन्दर रेल बनाई
आओ .........

प्यारे सूरज चाँद सितारो
अब हम घर जायेंगे
लेकिन पक्का वादा मित्रो
कल फिर हम आयेंगे..
पक्का, कल फिर हम आयेंगे
अभी हमें करनी है थोडी
घर पर पहुँच पढ़ाई....

आओ डोली बहना
अरे आओ गुड्डू भाई
घर जाने का वक्त हुआ
माँ ने आवाज लगाई....


Tuesday, May 20, 2008

उदास धरती


बड़े जोर की गर्मी थी
तपती जगती लगती थी
ताल तलैया सब थे सूखे
ज्वार खड़ी ज्यों सबसे रूठे
अम्बर तक धूल का उठे गुबार
ज्यूँ समुद्र में आ गया ज्वार

बच्चे मचले जाते थे
प्यास प्यास चिल्लाते थे
मेघा मेघा पानी दे
गली गली शोर मचाते थे

बच्चों की ये करूण पुकार
पहुँची वरूण देव के द्वार
नभ में काली बदली छाई
अम्बर से कुछ बूँदें आईं
लगे संदेशा शीतल लाई
झूम झूम फिर वर्षा आई

यूँ धरती का कण कण सरसा
माटी में सोना सा बरसा
खेतों में पानी भर आया
हरिया देख देख मुस्काया

ताल तलैया नाले नदिया
जल से भर गयी आम की बगिया
कोयल पँचम सुर में गाती
दूर हुई धरती की उदासी

सुषमा गर्ग
20.5.08




दीदी की पाती..पुस्तक की आत्मकथा

शुभ प्रभात ..

कल मैंने एक बहुत अजब सा सपना देखा ?..आप सब भी देखते हैं न सपने ..मुझे रात को किताब पढ़ते पढ़ते सोने की आदत है
सो रोज़ की तरह मैं कल भी किताब पढ़ते पढ़ते सो गई ...और तभी मुझे आया यह अजब गजब सपना ..जानते हो मेरे सपने में कौन आया किताब ...हाँ पुस्तक ..बहुत सुंदर सी किताब ..मैंने पूछा कि आप यहाँ कैसे ..मैंने तो आपको अभी पढ़ते पढ़ते साथ मेज पर रख दिया था ..वह कहने लगी कि मैं तुम्हे अपनी कहानी सुनाने आई हूँ .रोज़ मुझे पढ़ती हो क्या जानना नही चाहोगी कि मेरा जन्म कैसे हुआ ..मैंने कहा क्यों नही ..तुम न होती तो मुझे दुनिया की इतनी सारी बातें कैसे पता चलती ..तो उसने मुझे जो कहने सुनाई वह मैं आपको भी सुनाती हूँ ....वह बोली कि मेरा जन्म आज से कई हज़ार साल पहले हुआ और यह तब हुआ जब मनुष्य सारी बातें याद नही रख पाया तो उस को लगा की उसको यह सब बातें कहीं लिख लेनी चाहिए ताकि बाद में आने वाली पीढ़ी और आपके जैसे मेरे जैसे लोग भी उन बातों को पढ़ सके ...अब वह हमेशा तो जिंदा रहेंगे नही उनके विचार उनकी बातें उनकी खोजे आने वाली पीढ़ी भी जान सके ..पहले जमाने में मैं भोज पत्तों पर भी लिख कर कुछ समय तक उसको पुस्तक का रूप दिया गया .संस्कृत के श्लोक इस में लिखे जाते थे ..फ़िर केले के पत्ते पर लिखी जाती थी ....मेरा उपयोग आश्रम में हुआ करता था जहाँ तब गुरु कुल हुआ करते थे और गुरु अपने शिष्यों को जो शिक्षा दिए करते थे वह केले के पत्ते पर लिख लेते थे और फ़िर वहाँ से उसको याद किया करते थे ..उस वक्त भी में एक पुस्तक ही थी .फ़िर इस के बाद मैं पेड़ की छाल से एक काले पत्थर पर लिखी जाने लगी जिसे आज कल स्लेट कहते हैं ....मेरी कुछ [पुत्रियाँ ]कृतियाँ जिन में भारत का इतिहास लिखा था संस्कृत में भारत से ग्रीस गयीं जहाँ पर वह एलिक्जेंडारिया नामक एक पुस्कालय में संगर्हित कर ली गयीं वह पत्थर पर लिखी गई थी और विश्व की बहुत सी पुस्तकों के साथ वहाँ रहने लगी ..फ़िर मुझे बहुत समय तक उनकी कोई ख़बर नही मिली मेरे ही आँचल पर भारत की बड़ी बड़ी एतिहासिक घटनाओं की रचना की गई मैं वक्त के साथ साथ इनको अपने अपने आँचल में समेटे रहीं .मुग़लों के आने पर मेरी बहुत सारी निशानियों को नष्ट कर दिया गया ..मैं चुप चाप यह अन्याय सहती रही वक्त के साथ साथ मेरा रूप भी बदलता चला गया मैं और बेहतर ढंग से लिखी जाने लगी मेरे अन्दर के पन्नों पर ही बहुत से राजकावियों ने कविता लिखी कभी कभी झूठी तारीफ भी लिखी राजा की ..चीन के यात्रीओं ने अपनी भारत यात्रा का वर्णन भी किया जिन्हें बाद में आने वाली कई पीढियों ने पढ़ा ..और बीते युग के बारे में उस वक्त चलने वाले रति रिवाजों एक बारे में उस समय के रहन सहन के बारे में बहुत कुछ जाना ...मेरा रूप दिन बा दिन सुंदर और निखरता गया आज में कागज के रूप आपके सामने हूँ मेरे अन्दर कितनी ही ज्ञान की बातें छिपी हैं मैं अपने में विशाल ज्ञान का सागर समेटे हूँ ..चाहे वह एतेहासिक हो चाहे वह सामजिक हो चाहे वह धार्मिक हो ..सब मेरे अन्दर पन्नों में समाया है मैं आज हर देश हर संस्कृति हर राज्य और हर दिशा में विराज मान हूँ ...तुम भी मुझे रोज़ पढ़ती हो .बच्चो को मैं सुंदर कहानी सुनाती हूँ ...मैं न होती तो तुम कैसे सब यह जान पाती ..मैं हैरानी से सब सुन रही थी की उसने कहा अब चलती हूँ ....कुछ और याद आएगा तो फ़िर से बताने आऊँगी ..मैं तो अभी उस से बहुत कुछ पूछना चाहती थी पर सुबह होने लगी थी और मेरी नींद खुल गई ..मेज पर देखा तो लगा कि पुस्तक जैसे मुझे देख के मुस्करा रही है ...तो यह थी किताब की कहानी एक सपने में किताब की जुबानी ...किसी और को पुस्तक कुछ सपने में बताये तो मुझे जरुर लिखे

अपना ध्यान रखे और ढेर सारी किताबे पढे अच्छी अच्छी .गर्मी की छुट्टियों में ही यह मौका आपको मिल सकता है नही तो फ़िर तो आपको अपनी पाठ्य पुस्तक ही पढ़नी है न ..:)

आपकी दीदी
रंजू


Monday, May 19, 2008

अतिथि बाल साहित्यकार- अनन्त कुशवाहा

अनन्त कुशवाहा, मुख्य रूप से एक चित्रकार हैं। वे एक कुशल चित्रकार, व्यंग्यकार, कवि एवं कहानीकार भी हैं। इसके अतिरिक्त वे लम्बे समय तक बच्चों की लोकप्रिय पत्रिका "बालहंस" के संपादक रहे हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक कार्टून स्ट्रिप का भी सृजन किया है। उनके गढे हुए कार्टून "बालहंस" की जान होते थे।" "कवि आहत" और "ठोलाराम" उनके प्रसिद्ध कार्टून पात्र हैं।
श्री कुशवाहा जी की अनुक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा आप अनेकानेक संस्थानों से सम्मानित हैं। प्रस्तुत है उनकी एक बेहद सुंदर रचना-

आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

कुछ कच्चे, कुछ पक्के घर हैं, एक पुराना ताल है।
सड़क बनेगी सुनती हूं, इसका नम्बर इस साल है।

चखते आना टीले ऊपर कई पेड़ हैं बेर के।
आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

खडिया, पाटी, कापी, बस्ते, लिखना-पढ़ना रोज है।
खेलें-कूदें कभी न फिर तो यह सब लगता बोझ है।

कई मुखौटे तुम्हें दिखाऊंगी, मिट्टी के शेर के।
आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

बाबा ने था पेड़ लगाया, बापू ने फल खाए हैं।
भाई कैसे, उसे काटने को रहते ललचाए हैं।

मेरे बचपन में ही आए दिन कैसे अन्धेर के।
आना मेरे गाँव, तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

हंसना-रोना तो लगता ही रहता है हर खेत में।
रूठे, कुट्टी कर लो, लेकिन खिल उठते हैं मेल में।

मगर देखना क्या होता है, मेरी चिट्ठी फेर में।
आना मेरे गाँव तुम्हें मैं दूँगी फूल कनेर के।

प्रस्तुति- जाकिर अली "रजनीश"


रामायण- भाग:2

बाल-उद्यान बालकवि राघव शर्मा द्वारा लिखित रामायण को भाग दर भाग प्रकाशित कर रहा है। पहला भाग आप पढ़ चुके हैं।

रामायण- भाग:2

अयोध्या नरेश को हुए चार बालक,
कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी थी जिनकी पालक
ऋषियों-मुनियों ने मंत्रों का किया उच्च्चरण,
और शुरू हुआ बालको का नाम करण

कौशल्या नंदन का रखा गया नाम राम,
जो बाद में कहलाये मर्यादा पुरूपोत्तम श्री राम
ऋषिवर ने करी भविष्यवाणी,
यह बनेगा एक बहुत ही नेक इंसान
मंथरा को छोड़ सब के चेहरे पर छा गई मुस्कान

सुमित्रा को जन्मे दो बेटे बने प्यारे,
जो बने सबकी आंखो के तारें
ऋषि ने आगे बढाया अपना कथन,
लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे उनके नाम

कैकयी पुत्र का रखा गया भरत नाम,
प्रजा का भरण-पोषण निर्धारित हुआ उनका काम
ऋषि जी बोले, यह बनेंगे विद्वान,
अब मंथरा के चेहरे पर भी छाई मुस्कान

-बालकवि राघव शर्मा


Friday, May 16, 2008

पापा किचन में

पापा ने खाना बनाया
किचन को पूरा बिखराया
दाल को थोड़ा जलाया
तेल का तड़का लगाया ।

फुलके का आकार निराला
कहीं से कच्चा कहीं से काला
धुंआ घर भर में भर डाला
कुकर में दूधा उबाला ।

सब्जी का था बुरा हाल
नीचे काली ऊपर लाल
पापा की हालत बेहाल
माथे पर था एक सवाल ।

हंसी देखकर हमको आई
लेकिन चुपके से दबाई
पापा ने फटकार लगाई
खिसकने में थी भलाई ।

पापा को फोन पकड़ाया
होटल का नंबर घुमाया
खाने का आर्डर दिलवाया
मजे से हम सबने खाया ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 15, 2008

बाल-दोहावली-2

प्यारे बच्चो आज फिर से बाल-दोहावली से कुछ दोहे आपके लिये लाया हूँ, पिछली बार
बाल-दोहावली
में आपने जो सीखा था वो कर रहे हो ना...
आओ कुछ और बातें सीखें इस बाल-दोहावली-2 में..


बाल-दोहावली - 2
***************


ताजी हवा में प्रातः ही सैर करे भरपूर ।
दिनभर रहती ताजगी, आलस भागे दूर ॥

अगर लगी हो चोट तो, राखो नहीं छुपाय ।
घर में जो भी हो बड़ा फौरन देओ बताय ॥

लावारिश कुछ देखकर, हाट पेंठ बाजार ।
मत होना किसी भाँति भी छूने को तैयार ॥

सोना गर हो वक्त पर, हल्का खाना खाय ।
'राघव' पाचन चुस्त हो,निंदिया मीठी आय ॥

'राघव' राहें हो अगर, अनदेखी अनजान ।
कदम रखे से पूर्व ही सोचो कहत सुजान ॥

तेज धूप से धूल से आखों में क्षति जाय ।
नेत्र बड़े अनमोल हैं, 'राघव' रखो बचाय ॥

सड़कें,पार्क,पडोस, या घर,दफतर,स्कूल ।
कचड़ा दे बीमारियाँ, हो ना ऐसी भूल ॥

15-05-2008


Tuesday, May 13, 2008

गाय



गाय बड़ी उपकारी है
सब जीवों से न्यारी है
इसकी तुलना नहीं किसी से
सब पर ममता वारी है


ये देवों की भी माता है
हम सबकी जीवन दाता है
रोगों को ये दूर भगाये
बच्चों को बलवान बनाये
हम सब इसके आभारी हैं


तन भी अर्पण दूध भी अर्पण
लाल भी अर्पण श्रम भी अर्पण
रोम रोम सृष्टि को अर्पण
इसकी पूजा सबसे बढ़कर
कहती दुनिया सारी है


खाती सूखा घास पात ये
दूध दही के भंडार भरे
माँ समान स्नेह लुटाये
सब जग का कल्याण करे
गिनती उपकारों की भारी है
गाय बड़ी उपकारी है


सुषमा गर्ग
13.5.2008


दीदी की पाती आओ सीखे जादू का मजेदार खेल


नमस्ते ..

अपनी पिछली पाती में मैंने जादू की दुनिया के बारे में बताया था .. मैंने लिखा था कि मैं एक जादू का खेल की जानकारी आपको अपनी अगली पाती में दूंगी ..सो हाज़िर हूँ इस पाती में एक जादू का खेल ले के ..यह जादू गणित से जुडा है और बहुत ही मजेदार है ..यदि आप सब ने इसको ध्यान से सीख लिया तो सब आपके दिमाग का लोहा मान जायेंगे :) अक्सर कई जादूगर कहते हैं कि तुम मुझे अपने जन्म दिन बताओ मैं तुम्हे बता दूंगा कि उस दिन कौन सा दिन था क्यूंकि मेरे दिमाग में कंप्यूटर लगा है और जब मैं कहूँ इसको तो यह आपके जन्मदिन का वर्ष माह और दिन की सूचना दे देता है ..अब यह सुन के कोई भी दर्शक उसको अपने जन्मदिन की सारी जानकारी देता है और जादूगर उसको एक कागज़ पर लिख कर अपने सिर के ऊपर रख लेता है फ़िर वह देखने वालों से कहता है कि सारी जानकारी उसके दिमाग में जो क्प्म्पुटर है उस में फीड हो रही है अभी कुछ देर में आपके जन्मदिन का वार पता चल जायेगा . और कुछ मन्त्र बुदबुदाता है ..कुछ कुछ वैसा ही जैसा मैंने पिछली बार बताया था ..याद आया आपको हाँ एबरा का देब्रा:) और फ़िर वह आपको आपके जन्मदिन के वार यानी दिन के बारे में बता देता है ..है न गजब .पर इस में कुछ गजब नही है ...मैं आपको बताती हूँ कैसे करना है आपको यह अपने दोस्तों के सामने ..

रहस्य यह इस में कि ..मान लो किसी ने आपको अपनी जन्म दिन की तारिख २९-६१९५४ बताई अब आपको यह करना है कि

१) वर्ष की अन्तिम दो संख्या लिखे ..५४

२) अब इसको ४ से भाग कर दे शेष बचे को भूल जाए -१३

३ ) अब जो यह संख्या आपक मिली भगा करने से इस में जन्मवर्ष जोड़े ..-५४+१३ =६७

४) अब इस संख्या को उसने अपने जन्मदिन का महीना मई बताया है यानी कि ५ तो

अब ६७ में ५ को जोड़े यानी कि ६७+५= ७२

अब इस नें जन्मदिन का दिन जोड़े यानी कि २९ -७२ +२९ =१०१

अब इसको ७ से भाग कर दे
यानी की १०१ को ७ से भाग कर उत्तर आया १४ और शेष बचा ३

अब ३ दिन सप्ताह का बनता है मंगलवार

इसका मतलब २९-५ १९५४ को मंगलवार था

है न आसान ...इस तरह आप सबको हैरान कर सकते हैं ..चलो अभी चलती हूँ ..फ़िर मिलंगे और नई बातो के साथ

अपना ध्यान रखे

आपकी दीदी

रंजू


Sunday, May 11, 2008

मुन्ना और माँ

बच्चो,

आज मदर्ड डे है। वादा करो कि तुम सभी अपनी-अपनी माँ से खूब सारा प्यार करोगे, कभी उनका दिल नहीं दुखाओगे। हम इस अवसर पर आप सबके लिए आपके छोटे साथी राघव की एक कविता और हम सभी कि प्रिय सीमा सचदेव की एक कविता लाये हैं। पढ़ो और तुम भी माँ का अपने जीवन में महत्व समझो।

बच्चे की सेवा में जो पसीना बहाती हैं,
बच्चे की खुशी के लिए जो अपना खून सुखाती हैं
अपने आँख के तारे को जो पलकों पर सजाती हैं
वह सम्मान पाती हैं, वह महान कहलाती हैं

अपने दिल के टुकड़े के हर घाँव जो भरती हैं
अपने न्यारे-प्यारे के हर दुःख जो हरती हैं
अपने लाडले को संकट से बचने को, पूरे समाज से लड़ती हैं
वह खाव भरता हैं, वह हर दुःख हरता हैं

जिसने रात को उसे लोरी खूब सुनाई हैं
ख़ुद गीले में रह कर उसे सूखे में सुलाई हैं
ख़ुद जाग कर झूले उसे झुलाई हैं
हम बच्चों के मन में इज्जत और मान उसी ने पाई हैं
और वो महान देवी एक माँ कहलाई हैं

-राघव शर्मा



मम्मी और मुन्ना

इक दिन माँ से मुन्ना बोला
छोटा सा पर बड़ा मुँह खोला
आओ माँ टी.वी पे देखो
वैसा घोला(घोड़ा)मुझे भी ले दो
मै भी घोले पे बैठूँगा
फिर न कभी भी मै रोऊँगा
मुन्ने ने ऐसी जिद्द मारी
चाहिए अभी घोड़े की सवारी

माँ ने मुन्ने को समझाया
तरह तरह से भी ललचाया
ले लो चाहे कोई खिलौना
पर घोड़े के लिए न रोना
घोड़ा जो लातों से मारे
तो दिख जाएँ दिन मे तारे
तुम घोड़े को कहाँ बाँधोगे ?
भूखा होगा तो क्या करोगे ?

पर नन्हा सा मुन्ना प्यारा
दिखाया गुस्सा सारा का सारा
जब तक घोला नहीं मिलेगा
तब तक कुछ भी न खाऊँगा
न तो किसी से बात कलूँगा(करूँगा)
न ही खिलौनो संग खेलूँगा
करती क्या अब माँ बेचारी ?
घोड़े की तो कीमत भारी
कैसे मुन्ने को समझाए ?
और घोड़े की जिद्द हटाए


आया माँ को एक ख्याल
चली समझदारी की चाल
ले गई एक खिलौना घर
जहाँ पे बच्चे खेलते अकसर
भरा खिलौनों से वो घर
एक से बढ़कर एक थे सुन्दर

वहाँ पे था लकड़ी का घोड़ा
चलता था जो थोड़ा-थोड़ा
उस पर मुन्ने को बिठाया
और फिर घोड़े को घुमाया
पकड़ लिया मुन्ने ने घोड़ा
घोड़ा दुम दबा के दौड़ा

इतने मे मुन्ना खुश हो गया
मम्मी का मसला हल हो गया
माँ बेटा दोनो खुश हो गए
हँसते-हँसते वो घर को गए
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मातृ- दिवस की सभी माताओ और बच्चो को हार्दिक बधाई.......सीमा सचदेव
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सभी चित्रः द्वारा- सीमा सचदेव


Friday, May 9, 2008

प्रकृति

प्रकृति हमारी माता है
जीवन का इससे नाता है
प्राणों की यह दाता है ।

प्रकृति हमारा पोषण करती
प्रकृति हमारी रक्षा करती
प्रकृति हमे है सब कुछ देती ।

तरह तरह के रंग दिखाती
उषा किरण जादू बिखराती
इंद्रधनुषी आभा सुहाती ।

नित नया है दृष्य सुहाना
ऋतुओं का है आना जाना
रूप प्रकृति के मन को भाना ।

जेठ दोपहरी गरम पसीना,
पूष रात्रि में बदन कांपना
बरखा में बूंदॊं का गिरना ।

ऋतु बसंत में ठूंठ भी फलना
फल फूल से कुंज महकना
प्रकृति के हैं अनमोल गहना ।

नदियां करतीं कल कल नाद
झरनॊं से झरता निनाद
पक्षियों का कलरव उन्माद ।

हवा सुनाती सुमधुर गीत
टहनी पत्तों से मधुर प्रीत
बहता सन सन लय संगीत ।

स्वार्थ हेतु कर प्रकृति विनाश
प्रदूषित कर जल वायु आकाश
देते माता को हम त्रास ।

वन जीवों का कर विलोप
प्रकृति का हम सह रहे कोप
बाढ़ सूखे का विकराल प्रकोप ।

आज प्रकृति है पुकार रही
संरक्षण है मांग रही
संवर्धन है मांग रही ।

कवि कुलवंत सिंह


Thursday, May 8, 2008

बाल-उद्यान ने किया स्मृति लेखन और चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन





जैसे ही ग्रमियाँ शुरू होती हैं पूरी दुनिया में बच्चों के लिए समर-कैम्प शुरू हो जाते हैं। समर कैम्प में अलग-अलग स्कूल के विद्यार्थी भाग लेते हैं। समर कैम्प में बच्चों को मनोरंजन के माध्यम से शिक्षा दी जाती है जिसके अंतर्गत कम्प्यूटर, ड्रॉइंग, डान्स, सिरेमिक/ग्लास पेंटिंग, योग, क्रियेटिव आर्ट्स, पिकनिक, क्विज़, मेंहदी, स्केटिंग, तैराकी तथा विभिन्न प्रकार के इनडोर/आऊटडोर खेल आदि सिखाए जाते हैं। प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। तो मैंने यानी सुनीता यादव ने सोचा कि क्यों ना बाल-उद्यान की तरफ से भी कुछ मनोरंजन हो जाय। 21 अप्रैल को निकल पड़ी प्रतियोगिता आयोजित करने। 21 तारीख और 22 तारीख को जा पहुँची 'किड्स इट्स वर्ल्ड', शावलिन अकेडमी एवम् रवि जयसवाल जी के द्वारा आयोजित अलग-अलग समर कैम्प में।

शावलिन अकेडमी ग्रुप:-


अदिती वदजे



शिवम कौशिक



शैयद साना आबेद



सलोनी धपाटे



वैष्णवी



अदिति



शौनक






KIDS I . T . WORLD EDUCATION GROUP :-





21 तारीख को पहुँची KIDS I . T . WORLD EDUCATION GROUP में और मिली निदेशक और आयोजक श्री इरफ़ान रौफ से जिन्होंने पिछले 7 सालों से समर कैम्प बड़ी सफलतापूर्वक आयोजित करते आये हैं और ये उनका आठवाँ साल है। जब बाल-उद्यान के बारे में उन्हें बताया गया, वे सहर्ष तैयार हो गये। मैं बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे अमूल्य समय देकर अनुग्रहित किया। बच्चों के साथ मैंने अच्छा समय बिताया। जैसे गिनती के खेल में बड़ा मज़ा आया। जैसे 1,2 गाय, 4, 5 बैल, 7,8,9,10, 11, 12, ........1 गाय,.......1 बैल.....2 गाय, 24, 25, 2 बैल....गाय शून्य, गाय 1, गाय 2,,,,गाय बैल... हा, हा! सच में बहुत मज़ा आया। जो भूल रहा था वो आऊट, ये तो खेल रही थी पर नन्हे बच्चों के आदेश का पालन तुरंत कैसे किया जाय, इस पर प्रतियोगिता आयोजित किया स्मृति शक्ति की जाँच के लिए, और वे बहुत ही आनंदित और मगन होकर खेल रहे थे। बड़े बच्चों के लिए ड्रॉयिंग प्रतियोगिता रखा जिसमें मैंने और राजीव ने मिलकर कुछ पंक्तियाँ बनाये थे उम्र-वर्ग के हिसाब से, उन्हें दे दी गईं, वे उसपर चित्र बनाये और उन्हें पुरस्कार स्वरूप बाल-उद्यान (हिन्द-युग्म) की तरफ से कैमल ऑयल पेस्टल्स, 24ड्स स्केचपेन और नन्हे-मुन्नों के लिए 12 शेड्स स्केच पेन दिये गये। उन्हें बाल-उद्यान के बारे में जानकारी दी गई। और इरफान सर ने भी बहुत प्रोत्साहित किया। आदेश पालन समृति खेल में प्रथम, द्वितीय और तृतीय पर आने वाले बच्चों के नाम हैं-


शौनक वाघ



श्रेयस पाटिल



आदित्य मूले



काव्य-पंक्तियों को पढ़कर चित्र बनाने वालों में-


समृद्धि शिटोले



नेहाल दंडगे


इन्हीं बच्चों द्वारा पेंटिंगें-







कुछ झलकियाँ और-

शावलिन अकेडमी ग्रुप :-






KIDS I . T . WORLD EDUCATION GROUP :-





प्रस्तुतकर्ता- सुनीता यादव