प्रकृति
प्रकृति हमारी माता है
जीवन का इससे नाता है
प्राणों की यह दाता है ।
प्रकृति हमारा पोषण करती
प्रकृति हमारी रक्षा करती
प्रकृति हमे है सब कुछ देती ।
तरह तरह के रंग दिखाती
उषा किरण जादू बिखराती
इंद्रधनुषी आभा सुहाती ।
नित नया है दृष्य सुहाना
ऋतुओं का है आना जाना
रूप प्रकृति के मन को भाना ।
जेठ दोपहरी गरम पसीना,
पूष रात्रि में बदन कांपना
बरखा में बूंदॊं का गिरना ।
ऋतु बसंत में ठूंठ भी फलना
फल फूल से कुंज महकना
प्रकृति के हैं अनमोल गहना ।
नदियां करतीं कल कल नाद
झरनॊं से झरता निनाद
पक्षियों का कलरव उन्माद ।
हवा सुनाती सुमधुर गीत
टहनी पत्तों से मधुर प्रीत
बहता सन सन लय संगीत ।
स्वार्थ हेतु कर प्रकृति विनाश
प्रदूषित कर जल वायु आकाश
देते माता को हम त्रास ।
वन जीवों का कर विलोप
प्रकृति का हम सह रहे कोप
बाढ़ सूखे का विकराल प्रकोप ।
आज प्रकृति है पुकार रही
संरक्षण है मांग रही
संवर्धन है मांग रही ।
कवि कुलवंत सिंह
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5 पाठकों का कहना है :
कवि कुलवंत जी ,
सही कहा आपने
स्वार्थ हेतु कर प्रकृति विनाश
प्रदूषित कर जल वायु आकाश
देते माता को हम त्रास ।
प्रकृति को आज सचमुच संरक्षण की आवश्यकता है, और इस बात को अगर बचपन में ही बच्चों को समझा दिया जाए तो बड़े होकर वे अवश्य प्रकृति की महत्ता समझेंगे और इसका विनाश नहीं करेंगे .
शुभकामनाएँ
^^पूजा अनिल
सुंदर लगी यह कविता भी कवि जी
सुन्दर प्रकृति बखान ..
बहुत बहुत बधाई श्रीमान...
Thank you vefry much dear friends!
समय की आवाज को बुलंद कर रही है आपकी कविता. एक ही कविता में प्रकृति के विविध रूपों का बखान और इसके बचाव व बढ़ाव की माँग, बहुत बढ़िया.
बधाई.
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