गुबारे (गुब्बारे)
नीले-पीले लाल गुबारे
सपनों की टक्साल गुबारे
भूखे-पेटों को दिखते हैं
रोटी और दाल गुबारे
बस्ता जब पड़ता है ढोना
हो जाते है बेहाल गुबारे
गुड्डू को जब हुआ जुकाम
आये पूछने हाल गुबारे
छुट्टी के दिन आते ही
सब लेते सँभाल गुबारे
निकली हवा पिचक गये
लगते हैं कंगाल गुबारे
आई जवानी भागा बचपन
चलते टेढ़ी चाल गुबारे
बाल रचनाकार-
श्याम सखा 'श्याम'
(संपादक- मसि-कागद)
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
3 पाठकों का कहना है :
गजल के फार्मेट में गुब्बारों पर रोचक कविता है।
देखो कितने प्यारे प्यारे
'श्याम' सखा लाये गुब्बारे
लाल बैंगनी नीले पीले
कितने कोमल और चमकीले
श्याम जी,
बहुत बढ़िया कोशिश
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)