लुका छिपी
सबसे प्यारा
जग में न्यारा
खेल हमारा
लुका छिपी ।
आँख मिचौली
गिनती बोली
आँखे खोली
लुका छिपी ।
घर में ढ़ूंढ़ा
बाहर ढ़ूंढ़ा
गली में ढ़ूंढ़ा
लुका छिपी ।
इसको खोजा
उसको खोजा
धप्पा खाया
लुका छिपी ।
फेल हुआ फिर
आँख बंद कर
गिनती गिन फिर
लुका छिपी ।
सौ तक गिना
देखे बिना
छुपी सेना
लुका छिपी ।
खोजा सबको
इसको उसको
सब सेना को
लुका छिपी ।
खोजा किसको
पहले जिसको
बारी उसको
लुका छिपी ।
कवि कुलवंत सिंह
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
4 पाठकों का कहना है :
aapaki kavita bahut pyaari hai. mauka milte hi ise bachho ke liye apani avaaz dena chaungi...
मज़ा आया
सबको पढाया
खेल खिलाया
लुका छिपी
छुपन छुपाई
अक्ल दौडाई
ढूंढ के लाई
लुका छिपी
बहुत अच्छे कवि जी |छोटे छोटे शब्दों मे बच्चो के लिए कितनी प्यारी कविता कह दी आपने ,खेलने को मन कर रहा है, याद आ गया
लुक छुप जाना
मकई का दाना
राजे की बेटी आई जे
चलो खेले .....लुका छिपी....:) :) सीमा सचदेव
कवि कुलवंत जी ,
लुका छिपी बहुत प्यारी कविता लिखी है , बधाई.
^^पूजा अनिल
लुक छुप लुक छुप जाओ ना...
आओ मेले नन्हें मुन्ने प्याले प्याले राजा
आओ मेले गले लग जाओ ना.. अले आओ ना..
बढिया लुका-छिपी कुलवंत जी..
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)