Tuesday, May 6, 2008

हाथी राजा


हाथी राजा बहुत बड़े
सूँड हिलाते चलते हो
बड़े सूरमा बनते हो
पर चींटी से डरते हो

ऊँची सी है पीठ तुम्हारी
उस पर होती शाही सवारी
पँखों जैसे कान तुम्हारे
तलवारों से दो दाँत तुम्हारे

गोटी जैसी आँख तुम्हारी
छोटी सी है पूँछ तुम्हारी
सूँड तुम्हारी बड़ी अनोखी
बड़े बड़े करतब कर देती

जब सर्कस में आते हो
सबके मन को भाते हो
खेल निराले दिखा दिखा कर
सबका मन बहलाते हो

सुषमा गर्ग

06.05.2008


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4 पाठकों का कहना है :

सीमा सचदेव का कहना है कि -

bachcho ke liye rochak kavita ....badhaaii.....seema

शोभा का कहना है कि -

सुषमा जी
सुन्दर बाल कविता।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

हा हा हा बढिया कविता.. बच्चों को हाथी पर निबन्ध लिखने के बहुत काम आयेगी
सचित्र बखान ...

बधाई..

Pooja Anil का कहना है कि -

सुषमा जी,

छोटे बच्चों के लिए बहुत ही सुंदर कविता है , इसे गाते हुए पढने में बच्चों को बड़ा मज़ा आएगा ,
शुभकामनाएँ

^^पूजा अनिल

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