हाथी राजा
हाथी राजा बहुत बड़े
सूँड हिलाते चलते हो
बड़े सूरमा बनते हो
पर चींटी से डरते हो
सूँड हिलाते चलते हो
बड़े सूरमा बनते हो
पर चींटी से डरते हो
ऊँची सी है पीठ तुम्हारी
उस पर होती शाही सवारी
पँखों जैसे कान तुम्हारे
तलवारों से दो दाँत तुम्हारे
उस पर होती शाही सवारी
पँखों जैसे कान तुम्हारे
तलवारों से दो दाँत तुम्हारे
गोटी जैसी आँख तुम्हारी
छोटी सी है पूँछ तुम्हारी
सूँड तुम्हारी बड़ी अनोखी
बड़े बड़े करतब कर देती
छोटी सी है पूँछ तुम्हारी
सूँड तुम्हारी बड़ी अनोखी
बड़े बड़े करतब कर देती
जब सर्कस में आते हो
सबके मन को भाते हो
खेल निराले दिखा दिखा कर
सबका मन बहलाते हो
सबके मन को भाते हो
खेल निराले दिखा दिखा कर
सबका मन बहलाते हो
सुषमा गर्ग
06.05.2008
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4 पाठकों का कहना है :
bachcho ke liye rochak kavita ....badhaaii.....seema
सुषमा जी
सुन्दर बाल कविता।
हा हा हा बढिया कविता.. बच्चों को हाथी पर निबन्ध लिखने के बहुत काम आयेगी
सचित्र बखान ...
बधाई..
सुषमा जी,
छोटे बच्चों के लिए बहुत ही सुंदर कविता है , इसे गाते हुए पढने में बच्चों को बड़ा मज़ा आएगा ,
शुभकामनाएँ
^^पूजा अनिल
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