बरखा ऋतु
(सार छंद प्रत्येक चरण में 16, 12 = 28 मात्राएं, चरणांत में 2,2)
नन्ही नन्ही बूँदें लेकर
बरखा ऋतु है आयी ।
उमंग जगाती हर्ष देती
सबके मन को भायी ।
पहली बूँदें जब गिरती हैं
सोंधी गंध भर जाए ।
आनंदमग्न हो जीव जंतु
मनुज धरा खिल जाए ।
गर्मी से छुटकारा पाया
लू को मार भगाया ।
नभ में छायी घटा घनघोर
उल्लास हृदय छाया ।
जग में छायी फिर हरयाली
झूमें नाचें गाएँ ।
नदी ताल सब भरे लबालब
पेड़ लता लहराएँ ।
बच्चे जल में नाच रहे हैं
मेघ गगन हैं छाये ।
इंद्रधनुष का दृष्य मनोरम
नृत्य मोर मन भाये ।
गर्जन जब करती है बिजली
धैर्यवान घबराये ।
काली घटा छाये रात में
अंधकार गहराये ।
वर्षा ऋतु से महके जीवन
खेती भी लहराये ।
अनुप्राणित हो जीवन जागे
प्रकृति सौंदर्य छाये ।
जन्म अष्टमी, रक्षा बंधन
बरखा ऋतु में आयें ।
पींग बढ़ा कर झूला झूलें
मिलकर गाना गायें ।
कवि कुलवंत सिंह
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12 पाठकों का कहना है :
Hi. Iam Brazil, i like you blog.
Congratulations!!!
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मुम्बई मे अभी बरखा नही आयी है लेकिन आपके मन मे संदेशा आ गया है |
रचना संतुलित लगी | बधाई |
--अवनीश तिवारी
kavi ji ,
varsha ritu ka sundar chitran kiya hai aapne
कवि कुलवंत जी ,
हमारे पास मैड्रिड में बरसात हो रही है, काली घटाएं भी छाई हुई हैं, पर भारत में बरखा ऋतु की बात ही निराली है, आपकी कविता ने सचमुच ह्रदय में आनंद भर दिया, अपनी धरती पर गिरती बूंदों से उठी सौंधी महक की याद दिला दी ,(यहाँ पर मिटटी की खुशबू नहीं आती) बहुत बहुत धन्यवाद .
^^पूजा अनिल
कुलवंत जी,
बरखा पर सुन्दर मात्रिक छन्द दिये पढने को..
बहुत बहुत धन्यवाद
हार्दिक बधाई
कुलवन्त जी
सुन्दर कविता लिखी है।
aap sabhi kaa hardik dhanyavaad
kulwant ji aap ki kavita bahut achchee lagi---
bacchon ko bhi jarur pasand aayegi.
[aap ki kavita 'papa kitchen mein'mere bete ne school ki 'kavita paath pratiyogita'[poem recitation] mein aaj sunayee thi aur khushi ki baat hai ki us ko 'dwitiya sthan'ka Inaam prapt hua hai..
aap ki is kavita ke liye main aap ko dhnywaad aur abhar prakat karti hun.
sadar,
alpana verma
बारिश का मौसम और उस पर आपकी कविता पढने में बहुत अच्छी लगी ..रोचक है मात्रिक छन्द
सीमा जी आपने अल्पना जी का कमेंट पढ़ा होगा ! मुझे लगता है आप कुछ जरूर कहना चाहेंगी..
kavi ji maine Alpana ji ka comment padha hai aur padh kar bahut khushi hui ki unke bete ko divitay purskaar bhi mila ,nanhe munne ke liye dher saari shubh-kaamnaayen aur vo safalta ki seediyaan chadata jaaye yahi dua hai ,saath me dukh bhi hua ki aapko meri tippani se thes pahunchi ,aapko thes pahunchaana to mera abhipraay nahi tha ,maine vahi kaha jo uchit laga,aur maine vahi par hi apane vichaar rakh diye the ,ab bhi mere vichaar vahi hai jo pahale the . agar aap keval achcha hi sunana chaahate hai to aage se ham us rachana par tippani nahi karenge ,jo hame nahi bhaayegi.
कुलवंत जी,
छंदबद्ध कविता का आपका प्रयास बहुत ही रोचक लगा. बहुत ही सुंदर, हर्ष जगाती और वर्षा ऋतु के हर सौंदर्य को आयाम देती आपकी कविता बहुत पसंद आई.
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