भारत की दो महान विभूतियां
नमस्कार बच्चो ,
आज हम फिर उपस्थित है आपके सम्मुख एक नई जानकारी के साथ। आज कौन सा दिन है?-१९ नवम्बर और आज है भारत की दो महान विभूतियों (महिलाओं ) का जन्म-दिवस ,जिनको देवी दुर्गा की उपाधि से सम्मानित किया जाता है जो अपने निश्चय मे दृढ तो थी ही ,बहादुर और देश की खातिर अपने आपको समर्पित कर देने वाली थीं जी वो दो नारियां थी- प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी रानीलक्ष्मी बाई और भारत की पहली महिला प्रधान-मंत्री इन्दिरा गाँधी जी इन्दिरा गाँधी जी के जीवन के बारे मे मैने आपको संक्षेप मे कुछ दिन पूर्व ही बताया था अब थोडी जानकारी रानी लक्ष्मी बाई के बारे मे :-
बुन्देले हरबोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लडी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की ये पंक्तियां हर किसी को गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है। आपने भी अवश्य यह कविता पढ़ी/सुनी होगी-
रानी लक्ष्मी बाई का जन्म १९ नवम्बर१८३५ को मोरोपंत ताम्बे तथा माँ भागीरथी देवी के घर ब्राह्मण परिवार मे कांशी मे हुआ इनका बचपन का नाम था -मनु पेशवा बाजीराव के परिवार से निकटता होने की कारण बचपन मे ही इनमे वीरोचित गुण आ गए थे इन्होने मराठी ,हिन्दी ,संस्कृत भाषाओं का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया १८४२ मे केवल ७ साल की आयु मे इनका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव के साथ हुआ तथा ये रानी लक्ष्मी बाई के नाम से जाने लगी १८५१ ई. मे रानीलक्ष्मी बाई ने एक पुत्र को जन्म दिया लेकिन वह तीन माह की आयु मे ही चल बसा १८५३ मे इन्होने आनन्द राव नामक बच्चे को गोद लिया जो उस समय पाँच साल का था २१ नवम्बर १८५३ को राजा गंगाधर की मृत्यु हो गई और रानी लक्ष्मी बाई ने सारा राज-काज संभाला। राजा की मृत्यु के उपरान्त अंग्रेजो ने गोद लिए पुत्र दामोदर राव के उत्तराधिकार को अवैध घोषित कर दिया और झाँसी को अंग्रेजी राज मे मिलाने की कोशिशे तेज कर दी और झाँसी मे गवर्नर जनरल नियुक्त कर झाँसी को अंग्रेजी राज्य मे मिला लिया गया । रानी ने इसके लिए अपील की किन्तु उनकी एक बात न सुनी गई। जब सन १८५७ ई. मे पूरे देश मे स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला भभक उठी तोरानी के जीवन मे नया मोड़ आया। इस स्वतंत्रता संग्राम मे कई अंग्रेज सैनिक मारे गए और झाँसी एक बार फिर रानी के कब्जे मे आ गई यह देख कर अंग्रेज भडक उठे और रानी को को किला खाली करने का हुक्म सुना दिया। तांत्या टोपे रानी की सहायता हेतु आए लेकिन कुछ गद्दारो द्वारा रानी की सारी योजना अंग्रेजो तक पहुँचा दी गई जिससे अंग्रेजो ने रानी का पीछा किया तब तक रानी कालपी आ गई थी और पेशवा जी के साथ मिलकर अंग्रेजो का विरोध करने का फैसला किया लक्ष्मी बाई ने साथियो के साथ मिलकर ग्वालियर का किला जीत लिया। इस जीत के जश्न मे रानी के साथी राजा डूब गए। अंग्रेजो ने बिना मौका खोए फिर से हमला कर दिया और रानी को पीछे हटना पड़ा। कुछ विश्वासघातियो ने यहां ही रानी के साथ दगा किया और एक गोली लगने से रानी घायल हो गई । उसका घोडा मारा गया। घायलावस्था मे भी रानी दूसरे घोड़े पर सवार थी। रास्ते मे एक बड़ा नालापड़ा जिसे घोड़ा पार न कर पाया और अंग्रेजो ने उन्हे घेर लिया। घमासान युद्ध हुआ। रानी को अपना अंत निकट दिखाई दे रहा था। ऐसे मे उन्होने अपने एक विश्वासपात्र सरदार रामचन्द्र को संकेत किया जो उन्हे वहाँ से निकाल कर एक साधु की कुटिया मे ले गया। रानी ने अंतिम शब्द कहे कि अपवित्र अंग्रेज इस शरीर को छूने न पाएँ और प्राण त्याग दिए । साधु ने अपनी कुटी मे ही आग लगाकर उनकी अंतिम क्रिया सम्पन्न की और इस तरह केवल २३ वर्ष की आयु मे १८ जून १८५८ को स्वाभिमानी रानी लक्ष्मी बाई इस संसार से विदा हो गई
भारत की इन दो विभूतियो का नाम भारत के इतिहास मे सदैव अमर रहेगा
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4 पाठकों का कहना है :
सीमा जी,
बहुत अच्छी औृ उपयोगी जानकारी दी है।
मुझे नही पता था की रानी लक्ष्मी बाई का जन्म दिन भी आज ही होता है .पढ़ा तो पता चला
धन्यवाद
\सादर
रचना
रानी लक्ष्मी बाई के स्वाभिमान उनकी वीरता और जीवन के पहलुओं को उजागर किया..
आपका हार्दिक धन्यवाद..
इतने शब्दों ने ही हममें जोश भर दिया फिर से। बहुत खूब सीमा जी।
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