हितोपदेश-१७ -किसान और सर्प
एक समय था एक किसान
थी उसकी आत्मा महान
करके एक बार सब काम
खेत में करने लगा आराम
नाग वहां इक देखा काला
किसान ने उसे दूध दे डाला
दूध कटोरा वहीं रख कर
गया किसान अपने घर पर
अगले दिन जब खेत में आया
कंगन सोने का इक पाया
दूध कटोरे में था कंगन
हर्षित था किसान का मन
हर दिन दूध वो रख कर जाता
अगले दिन इक कंगन पाता
मिला किसान को बहुत सा धन
बदल गया अब उसका जीवन
फिर भी उसके उच्च विचार
नहीं छोडा था सद-व्यवहार
पर था एक किसान का जाया
उसका मन तो था ललचाया
समझाता था उसे किसान
लालच करते हैं नादान
उतने अपने पैर फैलाओ
जितनी लम्बी चादर पाओ
पर बेटे को समझ न आए
पिता की बातें झूठ बताए
गया कहीं एक बार किसान
दे गया बेटे को फरमान
जाकर सांप को दूध पिलाना
उल्टे पाँव घर वापिस आना
बेटे को मिल गया बहाना
सोचा लेगा सारा खजाना
खेत में आया करके विचार
देगा अब वो सांप को मार
बिल से सर्प जब बाहर आया
तो बेटे ने लठ चलाया
किया सांप ने भी प्रहार
दिया किसान का बेटा मार
जब किसान घर वापिस आया
मरा हुआ बेटे को पाया
गया सर्प के पास किसान
बोला तुम तो हो महान
एक ही बेटा मेरा धन
बख्श दो तुम उसको जीवन
सुनकर सांप को आई दया
आकर सारा ज़हर पिया
मिल गया बेटे को नव-जीवन
पर अब नहीं मिलेगा धन
बोला सांप अब यहां से जाना
नहीं मिलेगा कोई खज़ाना
यह किसान की थी अच्छाई
जो मेरे मन में दया आई
उसने मुझको दूध पिलाया
कर्ज़ा मैने भी चुकाया
पर बेटे के बुरे विचार
जो मुझ पर ही किया प्रहार
लालच भरा है उसका मन
नहीं मिलेगा अब कोई धन
कह के सांप बिल में समाया
और फिर वापिस कभी न आया
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बच्चो तुम भी रखना ध्यान
न बनना इतने नादान
अपने सारे फर्ज़ निभाना
मन मे लालच कभी न लाना
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चित्रकार:- मनु बेत्खलुस जी
थी उसकी आत्मा महान
करके एक बार सब काम
खेत में करने लगा आराम
नाग वहां इक देखा काला
किसान ने उसे दूध दे डाला
दूध कटोरा वहीं रख कर
गया किसान अपने घर पर
अगले दिन जब खेत में आया
कंगन सोने का इक पाया
दूध कटोरे में था कंगन
हर्षित था किसान का मन
हर दिन दूध वो रख कर जाता
अगले दिन इक कंगन पाता
मिला किसान को बहुत सा धन
बदल गया अब उसका जीवन
फिर भी उसके उच्च विचार
नहीं छोडा था सद-व्यवहार
पर था एक किसान का जाया
उसका मन तो था ललचाया
समझाता था उसे किसान
लालच करते हैं नादान
उतने अपने पैर फैलाओ
जितनी लम्बी चादर पाओ
पर बेटे को समझ न आए
पिता की बातें झूठ बताए
गया कहीं एक बार किसान
दे गया बेटे को फरमान
जाकर सांप को दूध पिलाना
उल्टे पाँव घर वापिस आना
बेटे को मिल गया बहाना
सोचा लेगा सारा खजाना
खेत में आया करके विचार
देगा अब वो सांप को मार
बिल से सर्प जब बाहर आया
तो बेटे ने लठ चलाया
किया सांप ने भी प्रहार
दिया किसान का बेटा मार
जब किसान घर वापिस आया
मरा हुआ बेटे को पाया
गया सर्प के पास किसान
बोला तुम तो हो महान
एक ही बेटा मेरा धन
बख्श दो तुम उसको जीवन
सुनकर सांप को आई दया
आकर सारा ज़हर पिया
मिल गया बेटे को नव-जीवन
पर अब नहीं मिलेगा धन
बोला सांप अब यहां से जाना
नहीं मिलेगा कोई खज़ाना
यह किसान की थी अच्छाई
जो मेरे मन में दया आई
उसने मुझको दूध पिलाया
कर्ज़ा मैने भी चुकाया
पर बेटे के बुरे विचार
जो मुझ पर ही किया प्रहार
लालच भरा है उसका मन
नहीं मिलेगा अब कोई धन
कह के सांप बिल में समाया
और फिर वापिस कभी न आया
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बच्चो तुम भी रखना ध्यान
न बनना इतने नादान
अपने सारे फर्ज़ निभाना
मन मे लालच कभी न लाना
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चित्रकार:- मनु बेत्खलुस जी
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7 पाठकों का कहना है :
'लालच बुरी बला' को सिखाती ... बच्चों के लिए यह अच्छी कविता है।
सीमा जी
आप की कविता के क्या कहने .कहानी को कविता का रूप देना आसन नहीं होता .बच्चों को तो मजा ही आजाता होगा पढ़ के .हाँ चित्र किस ने बनाया है ये न भी बताया जाये तो पता चल जाता है मनु जी ही होंगे .इतना अच्छा चित्र उनके अलावा और कौन बना सकता है .
रचना
प्रेरक कहानी को कविता के रूप में पढकर प्रसन्नता हुई।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
bachchon ही नहीं badon के लिए भी shikshprad रचना...यह path sabhee के लिए upyogee है...
बहुत सजीवता से सीखातीं हैं आप
अपनी कहानी के माध्यम से बच्चों को
(Kind of play way ..love it )
मनु जी आपके चित्रों के सराहना ना करूँ तो टिपण्णी अधूरी सी लगती है
दोनों को बधाई
साधुवाद !!!!
बढ़िया, बहुत बढिया , सुन्दर कथा-काव्य
उपर से मनु जी की कलाकारी...
सोने पर सुहागा
बधाई हो..
seema ji ,
kavita aur chitra donon hi bahut bahut achche ban pade hain ,seema ji ,kabhi tippni n bhi de paaon ,to samajh jaayiyega ki ab hum dono ko to ek doosre ki taarif ki jaroorat to hai nahi ,ek hi dheyy hai apna ,ek hi raah aur manjil bhi ek wo hai ....... baal udyaan
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