बन्दर मामा और चुनाव
बन्दर मामा पहन पजामा, लड़ने चले चुनाव.
कुरता जाकेट टोपी जूता, पहना पड़े प्रभाव.
चेले-चमचे चंद जुटाए, पर्चे भी बँटवाये,
चौराहों पर बैनर बांधे, भाषण खूब सुनाये.
'मैं सब के सुख-दुःख का साथी, सब का सच्चा मीत.
भारी बहुमत से जितवायें सही बनायें रीत.'
भालू बोला- 'तूने बगिया से फल खूब चुराए.'
हिरनी पूछे- 'शेर देख क्यों भागे पूंछ दबाये?'
पत्रकार थी बाया, कैमरा लिए खींचती चित्र.
मुंह बाए मामा जागते थे जोकर बहुत विचित्र.
चिंकी चुहिया चीं-चीं करती आयी, फिर चिल्लाई.
'दांत तुम्हारे पीले-गंदे, करते क्यों न सफाई?'
उल्लू था बन्दर का साथी, बोला- 'चुप हो सुनिए.
इस समाजसेवी को अपना नेता सब मिल चुनिए.
स्वर्ग बनेगा हिंद युग्म यदि इनको आप चुनेंगे.'
हाथी बोला हमें न जाना स्वर्ग, न आप मरेंगे.
मैना चीखी- ''लूट खायेगा सबको बन्दर राम.
ठाठ गधों का होगा, बाकी सबका काम तमाम.'
'सलिल' निकट से शेर दहाड़ा, भागे बन्दर मामा.
चढ़े झाड़ पर लपक, फट गया, खिसका-खुला पजामा.
--आचार्य संजीव 'सलिल'
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4 पाठकों का कहना है :
मनोरंजक कविता।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बंदर मामा की कविताएं तो मुझे आज भी बहुत प्रिय हैं | ऐसी ही एक कविता याद आ रही है .........
1.बंदर मामा पहन पजामा , दावत खाने आए
ढीला कुर्ता टोपी जूता , पहन बहुत इतराए
रसगुल्ले पर जी ललचाया , मुँह मे रखा गप से
नरम नरम था गरम गरम था , जीभ जल गई लप से
बंदर मामा रोते रोते , वापस घर को आए
फैंकी टोपी फैंका जूता , रोएं और पछताएं
अरे यह लो एक और कविता याद आ गई , वो भी सुना ही देती हूँ
2.बंदर मामा पहन पजामा निकले बडी शान से
हाथ मे ड्ण्डा सिर पर हण्डा , गाना गाते तान से
बींच सडक पर ऐसे चलते , सब देखें हैरान से
छूटा ड्ण्डा गिर ह्ण्डा , मामा गिरे धडाम से
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मजेदार कविता | आपकी पहले भी एक कविता आई थी बाल-उद्यान पर मुर्गा-मुर्गी की कविता |
अभी तक वो दिमाग मे घूम रही है | कृपया ऐसी कविताएं जलदी-जलदी भेजा कीजिए |
इस तरह की कविताएँ बच्चों को खूब भाती हैं। सीमा जी की तरह मैं भी फरमाइश कर देता हूँ।
अरे बाप रे! यहाँ तो बन्दर मामा पार्टी ही बन गयी...न जाने कितनी सीटें जीत ले अगले चुनाव में...
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