Wednesday, April 1, 2009

राष्ट्रीय फूल

इक बार फूलो मे हुई लड़ाई
सबने मिलकर सभा बुलाई
गेंदा, गुलाब, कनेर के फूल
बैठे इक तालाब के कूल
सदाबहार और रात की रानी
सबने अपनी बात बखानी
हर कोई खुद को समझे सुन्दर
जल रहे अन्दर ही अन्दर
देखो मेरा सुन्दर रूप
बोला गेंदा मैं हूँ भूप
मैं अपनी खुशबू फैलाऊँ
जहाँ पे चाहो फल-फुल जाऊँ
दिया मुझे कुदरत ने रंग
देख के मोहित हो अनन्ग
तुम क्या मैं तो हूँ लाजवाब
बीच में बोलने लगा गुलाब
मैं राजाओं का भी राजा
रहता कितना ताज़ा-ताज़ा
हर कोई चाहे मुझसा रूप
खिला रहूँ चाहे हो धूप
चुप रही थी बहुत सी देर
पर अब बोलने लगी कनेर
देखो मेरे पुष्प प्यारे
घर का द्वार तो यही सँवारे
चढ़ जाऊँ ऊपर दीवार
ला दूँ फूलों की बहार
चार चाँद घर को लगा दूँ
मैं सुन्दर हूँ सबको बता दूँ
सदाबहार की आई बारी
कहदी उसने बाते सारी
हर मौसम में खिला रहता हूँ
गर्मी-सर्दी को सहता हूँ
देता हूँ फिर भी बहार
जाने न कोई मेरा उपकार
बोली अब यूँ रात की रानी
मैं तो हूँ तुम सबसे स्यानी
रात को अपना रूप दिखाऊँ
देखने वालों को रिझाऊँ
मन्द-मन्द खुशबू देती हूँ
सबके मन को हर लेती हूँ
अब फिर से गुलाब यूँ बोला
गुस्से से अपना मुँह खोला
जब हम है सारे गुणवान
तो क्यों कमल बना धनवान
कीचड़ में फलता-फुलता है
गन्दे पानी में रहता है
फिर भी बना है राष्ट्रीय फूल
हमसे हुई कौन सी भूल
क्यों मिला उसको सम्मान
हो रहा हम सब का अपमान
सुनकर यह सब भँवरा आया
आकर फूलों को समझाया
बेशक तुम सारे हो सुन्दर
पर न भ्रम कोई पालो अन्दर
मन में जरा सा करो विचार
कमल ही है असली हकदार
बेशक कीचड़ में रहता है
गन्दगी को हरदम सहता है
पर न उस पर हो प्रभाव
गन्दगी में भी हो न खराब
अपना रूप सँवारे रहता
नहीं किसी को बुरा वो कहता
कीचड़ में रहता है ऐसे
जीभ रहे दाँतो में जैसे
क्यों न उसको मिले सम्मान
वो तो है गुणों की खान
अब तो सबकी समझ में आया
हँस कर कमल को भी अपनाया

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बच्चों, जिस तरह कमल कीचड़ में रहकर भी साफ-स्वच्छ रहता है, उसी तरह हमें भी अपने जीवन में सदगुणों का पालन करना होगा


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3 पाठकों का कहना है :

manu का कहना है कि -

अप्रैल फूल पर ,,,
कमल के फूल की सुंदर कविता,,,,
बहुत मजेदार,,,,,इसके अलावा,,,जो चित्र आपने लगाया है,,,,
एकदम कमाल है,,,,
काफी देर तक पहले इसका आनद उठाया,,,,फिर मजे से कविता पढ़ी,,,

:::)))

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

सीमा जी,

आपकी हर प्रस्तुति एक से बढ़कर एक होती है।

Divya Narmada का कहना है कि -

कविता और दृश्य दोनों एक से बढ़कर एक हैं...अंक बेचारी परेशां है. किसे देखे...किसे छोड.

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