राजा की वज़ीर- 1
राजा की वजीर (भाग-1)
एक समय एक राजा था। वो अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। उसके राज्य में धन-धान्य की कोई कमी न थी और कोई भी ऐसा व्यक्ति न था जो बेकार हो, जो भी थोडा-बहुत काम करता राजा उसको खूब धन-माल दे देता ताकि उसके परिवार का अच्छे से पालन-पोषण हो सके। परिणाम स्वरूप लोग आलसी और निट्ठले होने लगे। थोड़ा-बहुत काम करते और आराम से जीवन बिताते। उन्होंने मेहनत करना तो दूर दिमागी कसरत करना भी बन्द कर दिया। लोगों के पास दौलत तो खूब जमा होने लगी लेकिन योग्यता धीरे-धीरे नष्ट होने लगी। राजा को राज्य में भी अयोग्य कर्मचारी ही भरती करने पड़ते, फलस्वरूप राज्य का सारा कार्य-भार अयोग्य और आलसी लोगों के हाथ जाने लगा। अब न तो कोई कार्य समय पर होता और न ही सुचारु रूप से। अब राज्य के कार्यों से आम जनता को भी परेशानी झेलनी पड़ती। कोई भी ऐसा बुद्धिमान नहीं था जो राजा के कार्य में उसकी सहायता कर सके। अकेला राजा तो सब कार्य नहीं संभाल सकता था। राजा की उदारता से अर्थ-व्यवस्था भी डगमगाने लगी।
अब तो राजा अपने राज्य की बिगडती हुई कार्य-प्रणाली और अर्थ-व्यवस्था पर दुखी रहने लगा। वह समझ ही नहीं पाता था कि किस तरह से इस हालात से निपटा जाए। मन ही मन वह सोचता रहता-
"अरे मैने तो प्रजा में बहुत धन बाँटा है, किसी को निराश नहीं होने दिया। राज्य में ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है जो सुखमय जीवन व्यतीत न करता हो। सब को उनके कार्य से कहीं अधिक मेहनताना दिया जाता है फिर भी राज्य व्यवस्था में अनुशासन हीनता है। मुझे और ऐसा क्या करना चाहिए जिससे मेरे राज्य का कार्य सुधर जाए। क्या मेरे इतने बड़े राज्य मे एक भी ऐसा योग्य व्यक्ति नहीं है जो मेरे कार्य में मेरा हाथ बँटा सके?"
यही सोच-सोच कर वह परेशान रहने लगा। एक दिन वह अपना वेश बदलकर घोड़े पर सवार होकर योग्य व्यक्ति की तलाश में राज्य भर का चक्कर लगाने निकल पड़ा।
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॰॰॰शेष आगे

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4 पाठकों का कहना है :
राजा की उदारता के कारण लोग मेहनत नहीं करना चाहते .लक्ष्मी भी वहीं रहती है .जो परिश्रम करता है .
कहानी की शुरुवात अच्छी लगी .अगले भाग का इन्तजार है .
कहानी का पहला भाग अच्छा लगा. दुसरे का इंतज़ार रहेगा.
मुझे भी राजा की कहानी के अगले भाग का अब बेसब्री से इंतज़ार है यह जानने के लिए की राजा की समस्या का समाधान कैसे होगा....
बहुत अच्छी कहानी है,,आगे क्या होगा इंतजार रहेगा?
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