रोज नया इक पेड़ लगा रे

आओ मिल कर पेड़ लगायें,
हरे-भरे मैदान बनायें,
रंग-बिरंगे फूल खिलायें,
धरती माँ को खूब सजायें।
शांति बहुत पेड़ हैं देते,
मूक हैं, फिर भी बात हैं करते,
प्रदूषण को ये दूर भगाते,
वायु को हैं स्वच्छ बनाते।
पेड़ हमें हैं भोजन देते,
लकड़ी, कपड़ा, कागज देते,
और दवा के काम भी आते,
छाया से हैं सुख पहुँचाते।
पेड़ों से है वर्षा आती,
और बाढ़ भी है रुक जाती,
मिट्टी को उपजाऊ बनाते,
पत्थर खा ये फल हैं खिलाते।
पेड़ों की तुम रक्षा करना,
अच्छा नहीं है इनका कटना,
दोस्त हमारे पेड़ हैं सारे,
रोज नया इक पेड़ लगा रे।
--डॉ॰ अनिल चड्डा

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4 पाठकों का कहना है :
सर्वोत्कृष्ट ,संदेशयुक्त ,बाल-जन उपयोगी बाल कविता है .उस पर चित्र लाजवाब है .
सच में ऐसा लगा कि प्रदुषणमुक्त संसार बन गया .वाह !!!!!!!!!!!!!!!!
रोज एक ब्लॉग तो बना सकते हैं
उस पर रोज एक पोस्ट तो लगा सकते हैं
पेड़ लगाने की मत कहो
उस पर लगे हुए फल अवश्य तोड़ सकते हैं
तोड़ने के लिए भीड़ अवश्य जोड़ सकते हैं
पर पेड़ लगाना .......
आजकल किसको भाता है
बिना स्वार्थ के कौन लगाता है
लगा भी दिया तो रोजाना
पानी कौन पिलाता है।
बहुत सुंदर गीत है !!
अविनाश जी ,
इस दनिया में कुछ भी असंभव नहीं है ,सिर्फ बाते करने वाले या ब्लॉग बनाने वाले लोग नहीं ,बहुत कुछ करने वाले लोग भी हैं यहाँ पर,
हमारे परिचित मित्र हैं ,जिन्होंने तीन महीने में लगभग साढ़े आठ हजार पेड़ लगाए हैं ,एक संस्था नमन फाउंडेशन बनाकर ,.बात सिर्फ विचारों को मूर्त रूप देने की है ,बिगाड़ने तथा बनाने वाला दोनों ही मनुष्य है |
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