यीशु का जन्म
आज से दो हजार वर्ष पूर्व येरुसलम के बेथे गांव में यह यीशु का जन्म हुआ यीशु जब बड़े हुए तो उन्होंने कई दुखी असहाय लोगों की मदद की ..वह जो शिक्षाएं देते ,जो बातें कहते वह बहुत कम लोग समझ पाते पर उनकी बातें सुन कर हैरान बहुत होते ..वह उन्हें उस वक्त तक मसीहा नही समझते थे ..कई लोग उनसे जलते थे और उनको मारने का हर वक्त कोई न कोई प्लान बनाते रहते किंतु यीशु उनके हाथ न आते ..पर उनके ही के शिष्य ने सिर्फ़ तीस चांदी के सिक्के ले कर यीशु को पकडवा दिया ..यीशु इस बात को जानते थे .फ़िर भी चुप रहे ..उन्हें तब के राजा हेरोवेश और फिलातुल के दरबार में बंदी बना कर पेश किया गया ..
छानबीन में कुछ साबित नहीं हुआ .फ़िर भी लोग नही माने ....उनको क्रूस पर चढा दिया गया और उनके शरीर पर बड़ी बड़ी [मेखे] कीले थोक दी गयीं ..तीन घंटो तक उन्हें इसी तरह से लटकाए रखा ..और जब उनके प्राण निकले तो प्रकति भी जैसे रो पड़ी कहते हैं ,तब चारों तरफ़ अँधेरा छा गया चट्टानें टूट कर गिरने लगीं .. भूकंप आए ...यीशु को दफना दिया गया .उन पर भारी पत्थर रखे गए ..राजा ने उनकी कब्र पर पहरा भी लगवा दिया ..क्यों की यीशू ने तीन दिन बाद अपने जिन्दा होने की भविष्यवाणी पहले ही कर रखी थी ...
कहते हैं तीसरे दिन यीशू जी उठे और सुबह होते ही पत्थर एक और गिर पड़े वह कब्र से बाहर निकल गए ..जब माँ मरियम अपने बेटे की देह पर सुंगधित द्रव्य डालने आयीं तो वह देख कर हैरान रह गयीं ....तभी स्वर्ग से दूतों ने कहा कि --"माता तेरा पुत्र यीशू मसीह अपने वहां के अनुसार जीवित हो कर जा चुका है .".वह रविवार का दिन था .यीशू के अनुयाइयों ने मोमबत्ती जला कर खुशियाँ मनाई ...
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पाठक का कहना है :
बहुत अच्छी कहानी सुनायी आपने बच्चों को।
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