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चित्र आधारित बाल कविता लेखन प्रतियोगिता
इस चित्र को देखते ही आपका मन कोई कोमल-सी कविता लिखने का नहीं करता! करता है ना? फिर देर किस बात की, जल्दी भेजिए। आखिरी तारीख- 30 मई 2010
मोर
जब छाएँ बादल घनघोर
देखो रँग-बिरँगा मोर
अपने सुन्दर पँख फैलाकर
नाचे यह कैँ-कैँ-कैँ गाकर
लम्बी पूँछ यह जब फैलाए
चाँद सा इक आकार बनाए
पूँछ पे इसकी सुन्दर सितारे
लगते कितने प्यारे-प्यारे
सुन्दर सी कलगी है सिर पर
नाचे जब यह पँख फैलाकर
देख के बच्चे खुश हो जाएँ
आओ मिलकर नाचेँ-गाएँ
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Posted by सीमा सचदेव at 3:53 PM
Labels: baal-kavita, seema sachdev, कलगी, मोर, रँग-बिरँगा, सुन्दर सितारे
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पाठक का कहना है :
आजकल शहरों में मोर दिखते ही कहाँ हैं... :-( आज के बच्चे केवल चित्र और कविता/कहानी के द्वारा ही मोर को समझ सकते हैं...
आपने अच्छे से समझाया सीमा जी.
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