तीन घोड़े
नमस्कार प्यारे बच्चो ,
कैसे है आप सब लोग ? आज मै फिर से आई हूँ आपके लिए एक
नई कथा-काव्य के साथ |पढना और बताना जरूर ,कैसी लगी यह कहानी आपको |
तीन घोडे
इक मालिक के तीन थे घोडे
मोटे ,तगडे,लम्बे चौडे
स्फेद्,भूरा और एक था काला
तीनो का ही एक तबेला
पर तीनो नही मिलकर रहते
बुरा एक दूजे को कहते
राम , शाम,कालु थे नाम
मालिक ने दी थी पहचान
सफेद राम और भूरा शाम
कालु काले की पहचान
राम तो स्वयम को समझे सुन्दर
उन दोनो को बोले बन्दर
तुम दोनो भद्दे दिखते हो
और मुझसे समता करते हो
शाम तो गुस्से से भर जाता
पर कालु उसको समझाता
केवल दिखने मे वह सुन्दर
पर दिल काला उसके अन्दर
राम का गर्व तो बढता जाता
दोनो को गाली भी सुनाता
इक दिन गाँव मे लगा था मेला
मेले मे गया सारा तबेला
होनी थी घुडदौड वहाँ पर
मेले मे पहुँचे वे जहाँ पर
मालिक ने तीनो को बुलाया
और दौडने का हुक्म सुनाया
दौडे तीनो जोर लगाकर
गिरा राम कुछ दूर ही जाकर
कालु,शाम तो ऐसे भागे
पहुँच गए वो सबसे आगे
राम का टूट गया अहँकार
हुआ उसका दूसरा अवतार
उन दोनो से कर ली यारी
छोडी अहम की बाते सारी
तुम भी भेद भाव नही करना
छोटा नही किसी को समझना
जाति-पाति न कोई रँग भेद
दोसती मे न करना छेद
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5 पाठकों का कहना है :
सीमा जी ,
थोड़ा जल्दी आया करें ,आप की कविताओं का अब हमे भी इन्तजार रहता है ,|
सीमा जी,
सबसे बढ़िया बात यह है कि आपकी हर कविता बहुत सरल तरीके से कहानी कहने के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी दे जाती है। इस बार भी आपने खूब लिखा। बधाई।
shailesh ji ki bat bilkul sahi hai.shayad yahi aapki sabse badi khasiyat bhi hai.
ALOK SINGH "SAHIL"
kitne naye rango ke saath wapis lauti hain..bahut khoob!
सफेद भूरा और काला घोड़ा
तीर धनुष से एक और छोड़ा
सीमा जी का अक्षय तरकश
बच्चो सुनते जाओ तुम बस
कभी खतम ना हो पायेगा
नयी नयी कहानी ले आयेगा
सीमा जी बहुत बहुत बधाई...
छुट्टी पर मत जाया करियेगा...
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