राज दुलारे
राज दुलारे जग के प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥
किलकारी से जब घर चहके,
हंसी खुशी से तब घर महके,
देख देख उनको दिल बहके,
मुसकाते जब वह रह रह के,
कोमल फूलों से हैं प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥
भोली सूरत जब दिखलाते,
सबके मन में बस हैं जाते,
प्यार से जो भी पास आते,
इनके ही बन कर रह जाते,
हर बुराई से दूर प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥
जब यह अपनी हठ दिखलाते,
बड़े बड़े भी झुक हैं जाते,
लड़ना भिड़ना सब कर जाते,
भूल पलों में लेकिन जाते,
सच्चा प्रेम जगाते प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥
धार प्रेम की यह बरसाते,
घर घर में खुशहाली लाते,
भगवन इनके दिल बस जाते,
पावन निर्मल प्यार जगाते,
सब के मन को भाते प्यारे ।
हंसते और हंसाते न्यारे ॥
कवि कुलवंत सिंह
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7 पाठकों का कहना है :
कुलवंत जी,अच्छा लिखा.खासी प्रभावी.
आलोक सिंह "साहिल"
kavi ji bahut hi pyaari lagi aapki kavita .Pyaare-pyaare nanhe-munne bachche aise hi hote hai....seema
कुलवंत जी ,
आपकी कविता बार -बार यह गुनगुनाने को मजबूर करती हैं
बच्चे मन के सच्चे
सारी जग की आँख के तारे ,
ये वो नन्हें फूल हैं जो भगवान् को लगते प्यारे ,
इनको किसी का बैर नही ,
इनके लिए कोई गैर नही ................
कुलवंत जी ,
आपकी कविता बार -बार यह गुनगुनाने को मजबूर करती हैं
बच्चे मन के सच्चे
सारी जग की आँख के तारे ,
ये वो नन्हें फूल हैं जो भगवान् को लगते प्यारे ,
इनको किसी का बैर नही ,
इनके लिए कोई गैर नही ................
कुलवंत जी,
आपकी बाल-कविताएँ बहुत ही सुंदर और सरल होती हैं। अच्छा लगता है पढ़कर।
Are wah is baar to shailesh ji ne bhi taarif kar di! kya baat hai...
बहुत अच्छी लगी यह कविता कवि जी
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