Thursday, October 23, 2008

मुर्गा-मुर्गी



मुर्गा-मुर्गी चले बाज़ार.
वहाँ ख़रीदा एक अनार.
सोचा आधा-आधा खाएं,
तनिक न कम या ज्यादा पायें.
कालू कुत्ता झपटा उन पर.
दोनों भागे नीची दुम कर.
याद नहीं आयी यारी.
भूले कुकडू-कूँ सारी.
गिरा अनार उछलकर दूर.
दाने फैल गए भरपूर.
चौराहे पर फिसल गए.
स्कूटर से कुचल गए.
मुर्गा-मुर्गी पछताए.
क्यों अनार घर न लाये.
बैठ चैन से खा पाते.
गप्प मारते-मस्ताते.

-आचार्य संजीव 'सलिल'


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8 पाठकों का कहना है :

शोभा का कहना है कि -

बहुत सुंदर

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बढ़िया है यह :)

सीमा सचदेव का कहना है कि -

murgaa muragi ki choti si kahaanee amoolay sandesh deti bahut hi pyaari lagi | bahut-bahuut badhaaii....seema sachdev

drdhabhai का कहना है कि -

बहुत सुंदर लिखा आपने पढकर मजा आया

समयचक्र का कहना है कि -

बहुत सुंदर मजा आया..

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मज़ेदार और शिक्षाप्रद

neelam का कहना है कि -

एक सीधी सी बात ,उसमे हास्य और शिक्षा का समावेश ,अद्भुत है |

Anonymous का कहना है कि -

very interesting.
ALOK SINGH "SAHIL"

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