बाल कहानी: उसके बिना (लेखक: जाकिर अली 'रजनीश')
रूकइया ने अपने कमरे का दरवाजा खोला। बार्बी डाल, भौंकने वाला कुत्ता, चाबी वाली ट्रेन, टेडी बियर... और हां, उसकी मनपसंद डांसिंग डॉल ...सारा सामान करीने से सजा हुआ था।
रूकइया हौले से मुस्करा पडी। सहसा उसकी नजर शेरू पर जा पडी। शेरू यानी सेल वाला कुत्ता। वह इतनी जोर से भौंकता है कि बडे बडों की सिट्टी–पिट्टी गुम हो जाए। एक बार रूकइया ने पडोस के सोनू के कान के पास ले जाकर उसका बटन ऑन कर दिया था। शेरू की आवाज से बेचारा ऐसा डरा कि उसकी नेकर ही गीली हो गयी। रूकइया को यह देखकर बडा मजा आया। वह काफी देर तक हंसती रही।
“तुमने आज कहां देर कर दी ? मैं यहां कबसे बोर हो रहा हूं।” रूकइया को लगा शेरू उससे शिकायत कर रहा है।
वह बोली– “सॉरी शेरू। दरअसल आज मैं...”कहते–कहते रूकइया की नजर गुडिया के दाहिने हाथ पर जाकर ठहर गयी। वह कोहनी के पास से टूटा हुआ था।
उसे देखते ही रूकइया की सारी खुशी काफूर हो गयी। उसकी इस दशा के लिए छोटी बहन रानी जिम्मेदार थी। है तो वह अभी दो साल की, लेकिन लगती है पूरी शैतान की नानी। रूकइया के सामान की पक्की दुश्मन ही समझो उसे। अब तक वह रूकइया की दो कॉपियां, एक किताब और सिंगिंग बर्ड शहीद कर चुकी है। छोटी–मोटी जो भी चीज उसे मिल जाए, सीधे उसके मुंह में जाती है। उसके बाद तो उसका भगवान ही मालिक।
रूकइया को गुडिया पर दया आ गयी, “बेचारी, जब अपने हाथ को देखती होगी, तो उसे कितना दु:ख होता होगा?” उसने गुडिया को अपने हाथ में उठा लिया, “मन करता है कि इस रानी की बच्ची को...”तभी उसके विचारों में ब्रेक लग गये। अम्मी उसे खाने के लिए आवाज दे रही थीं। उसने गुडिया को उसकी जगह पर खडा किया, पीठ पर टंगा स्कूल बैग उतारकर मेज पर रखा और ड्रेस बदलने लगी।
खाने की मेज पर अम्मी उसे इंतजार करती हुई मिलीं। वह चुपचाप उनके पास जाकर बैठ गयी। उसने मेज पर नजर मारी– आलू के पराठे। वाह, मजा आ गया। उसने तेजी से प्लेट में झपट्टा मारा।
यह देखकर अम्मी ने उसे डांट दिया, “ये क्या? अब तुम रानी वाली हरकतें करने लगी?”रूकइया झेंप गयी। उसे अपने आप पर शरम आ गयी। उसने ऐसा क्यों किया? ऐसी हरकतें तो रानी करती है। इस समय तो वह नानी के पास होगी। वहां पर उसके खूब मजे...।
आखिर रूकइया से रहा न गया। वह बोली, “अम्मी, रानी कब आएगी?” “क्यों ? तुम्हें कब से रानी की फिकर होने लगी?” अम्मी ने उससे उल्टा सवाल पूछ लिया.. “तुम्हारी तो कभी उससे पटती ही नहीं। हमेशा तुम उसकी शिकायत करती रहती थी। इसीलिए पापा उसे नानी के घर छोड आए हैं।”
रूकइया को पिछली घटना याद आ गयी, जब रानी ने उसकी मैथ और इंग्लिश की कापियां फाडी थीं। उस समय उसे रानी पर बहुत गुस्सा आया था। न जाने कितनी मुश्किल से उसने अपने आप को रोका था। उस दिन अम्मी ने रानी को खूब समझाया। लेकिन रानी ने इस कान से सुना और उस कान से बाहर निकाल दिया।
उसके कुछ ही समय बाद रानी ने एक दिन गुडिया का हाथ तोड दिया। उस दिन रूकइया का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। वह अपने आप को रोक नहीं पायी.. और उसने रानी के गाल पर दो चाटे जड दिये।
अम्मी को जब यह बात पता चली, तो उन्होंने रूकइया को खूब डांटा। उसके बाद रूकइया दिन भर अम्मी से रूठी रही। भला ये कौन सी बात हुई? रानी ने उसकी मनपसंद गुडिया का हाथ तोडा था। क्या वह उसकी इस गल्ती के लिए उसे दो चाटे भी नहीं मार सकती? पापा को जब रूकइया की नाराजगी का पता चला, तो उन्होंने झूठमूठ अम्मी को डांटा और रूकइया को उसकी मनपसंद चाकलेट भी दिलाई। तब कहीं जाकर शान्त हुआ था उसका गुस्सा।
बीती घटना याद आने से रूकइया का मन अशान्त हो गया। उसने रानी की कुर्सी पर नजर डाली। आज वह खाली थी। उसे मन के किसी कोने में खाली–खाली सा महसूस हुआ।
“क्या हुआ रूकइया ? तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो?” अम्मी ने उसे टोका। रूकइया के सामने उसकी मनपसंद डिश थी, फिरभी उसका खाने का मन न हुआ। जैसे–तैसे उसने दो–चार निवाले खाए और फिर पानी पीकर उठ गयी।
“क्या हुआ रूकइया ? तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो?” अम्मी ने उसे टोका। रूकइया के सामने उसकी मनपसंद डिश थी, फिरभी उसका खाने का मन न हुआ। जैसे–तैसे उसने दो–चार निवाले खाए और फिर पानी पीकर उठ गयी।
रूकइया सीधे अपने कमरे में पहुंची। कमरे में घुसते ही उसकी नजर रानी के झूले पर पडी। झूला खाली थी। उसे लगा रानी झूले में छिप गयी है। वह उसके पास पहुंची। पर झूला वास्तव में खाली था। रूकइया ने अपना बैग निकाला और होमवर्क करने बैठ गयी। मैम ने सवाल हल करने के लिए कहा था। उसने कॉपी खोली और सवाल पढने लगी– एक चॉकलेट पांच रूपये की मिलती है, तो बताओ पांच चॉकलेट कितने की मिलेंगी?
चॉकलेट का ध्यान आते ही रूकइया का ध्यान भंग हो गया। अभी दो दिन पहले की ही तो बात है। शाम का समय था। वह टीवी पर कार्टून फिल्म देख रही थी। अचानक उसे चॉकलेट की महक आई। उसने पलट कर देखा। रानी उसके बैग के पास खडी चॉकलेट खा रही थी। यह देखकर उसका पारा गर्म हो गया। उसने रानी को एक चांटा लगाया और चॉकलेट छीनने लगी।
लेकिन रानी भी कहां कम थी। उसने जब देखा कि चॉकलेट उसके हाथ से निकलने वाली है, तो उसने रूकइया के दाहिने हाथ में दांत गडा दिये। रूकइया दर्द से बिलबिला उठी और रोने लगी।
रूकइया को रोते देखकर रानी भी सुबुकने लगी। तभी अम्मी भी वहां आ गयीं। उन्होंने रानी को गोद में उठा लिया और डपट कर पूछा, “रूकइया, ये सब क्या हो रहा है?”
“इसने दांत से काटा है।” रूकइया सुबक पडी।
“तुमने इसे छेडा होगा?” अम्मी ने उल्टा उसे ही डांटा, “मैंने पचास बार कहा है कि तुम इसके पास मत जाया करो।”
“मैं इसके पास कहां गयी थी,” रूकइया बिफर पडी, “इसने मेरी चाकलेट खाई। मैंने तो इसे कुछ कहा भी नहीं, ये ही मेरे सामान के पीछे पडी रहती है।”
“ठीक है, मैं इसे नानी के पास भेज देती हूं। उसके बाद तुम आराम से रहना।” कहती हुई अम्मी रानी को लेकर वहां से चली गयीं।
रूकइया को झटका सा लगा। वह वर्तमान में लौट आई। उसने हाथ पर नजर मारी। अनचाहे ही उसका बायां हाथ उस जगह पर चला गया, जहां पर रानी ने दांत गडाये थे। वह उस जगह को सहलाने लगी। उसे अपना स्पर्श बडा अच्छा लगा। उसे रानी का मासूम सा चेहरा याद आ गया। चौडा सा माथा, बडी–बडी आंखें, तोते के टोंट जैसी नाक, मोती जैसे दांत और गोल–मटोल चेहरा। जैसे...जैसे गुलाबी रंग के दो बडे से सेब।
रूकइया के मन में ढेर सारा प्यार उमड आया। उसका मन हुआ कि वह रानी को अपनी गोद में लेकर उसे ढेर सारा प्यार करे। लेकिन, रानी तो.....।उसने खीझ और लाचारी में अपनी आंखें मींच लीं। उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा। क्यों उसने अम्मी से उसकी शिकायत की? न वह शिकायत करती, और न ही वह...।
रूकइया का मन भारी हो गया। उसने कापी किताबें एक ओर खिसकायीं और बेड पर लेट गयी। वह काफी देर तक पिछली बातों को याद करती रही और फिर न जाने कब उसे नींद ने आ घेरा।
हार्न की आवाज सुनकर रूकइया की नींद खुली। वह जल्दी से उठी और बाहर को भागी। गेट के पास पापा अपनी गाडी खडी कर रहे थे। उनके हाथ में एक बडा सा गिफ्ट पैक था। उसे देखकर वह हैरान होती हुई बोली, “पापा, ये क्या है?”
“मेरी रानी बिटिया का गिफ्ट। आज तुम्हारा जन्मदिन है न।”
रूकइया की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अरे, आज तो उसका बर्थ–डे है। ...और उसे बिलकुल याद ही नहीं रहा। उसने पापा के हाथ से पैकेट ले लिया और अपने कमरे की ओर भाग गयी।
रात के आठ बजे घर में जन्मदिन पार्टी का आयोजन था। रूकइया ने नई–नई ड्रेस पहनी। फिर उसने मोमबत्ती को फूंक मारकर बुझाया और केक काटा। सब लोगों ने तालियां बजायीं और ‘हैप्पी बर्थ डे’ वाला गाना गाया। उसके बाद सभी लोगों ने रूकइया को गिफ्ट दिये। ढेर सारे तोहफे देखकर रूकइया का मन खुशी से फूला नहीं समाया।
उसके बाद सभी लोग खाने–पीने में व्यस्त हो गये। पापा ने रूकइया के कमरे में सारे गिफ्ट रखवा दिये। रूकइया उन्हें देखने के लिए लालायित हो रही थी। वह चुपके से अपने कमरे में जा पहुंची और पैकेट खोल कर देखने लगी।
पहले पैकेट में एक सुंदर सी कार थी। वह उसे देखते ही चहक पडी, “हम तुम इसे साथ–साथ चलाएंगे रानी।” रूकइया इतनी खुश थी कि उसे यह याद ही नहीं रहा कि रानी वहां नहीं है। वह बडबडायी, “रानी, तुम इसे चलाओगी?”
अगले ही पल उसे अपनी गल्ती का एहसास हुआ। रानी तो वहां थी ही नहीं। यह देखकर उसका मन उचट गया। उसने अपने खिलौनों पर एक नजर मारी और कमरे से बाहर निकल गयी।
रूकइया सीधे अम्मी के पास पहुंची। वे किचन में चाय बना रही थीं। वह उनका हाथ हिलाती हुई बोली, “अम्मीजान, आपने तो हमें गिफ्ट दिया ही नहीं।”
“बेटे, पापा लाए तो हैं।” उन्होंने उसे टालना चाहा।
“लेकिन वो तो पापा का है। मुझे आपसे भी गिफ्ट चाहिए।”
“अचछा?” अम्मी ने प्यार से उसकी ओर देखा, “बोलो क्या चाहिए ?”
“पहले प्रॉमिस करिए कि आप मना नहीं करेंगी।” रूकइया ने शर्त रखी।
“अच्छा बाबा, प्रॉमिस । अब बोलो, क्या चाहिए ?”
“आप रानी को ले आइए, मुझे उसके बिना...।”
“आप रानी को ले आइए, मुझे उसके बिना...।”
रूकइया की बाकी बातें उसके मुंह में ही रह गयीं। अम्मी ने उसे उठाकर अपने सीने से लगा लिया। उन्हें अपनी बेटी पर ढेर सारा प्यार आ रहा था।
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13 पाठकों का कहना है :
रजनीश जी,
पूरी कहानी पढते हुए डूब गया था और अंत नें आँख नम कर दी। मर्मस्पर्शी और प्रेरक..
*** राजीव रंजन प्रसाद
रजनीश जी,
बहुत बढ़िया कहानी है। इसे पढ़कर बच्चों को ही नहीं बड़ों को भी रोना आ जायेगा।
रजनीश जी सीधी सरल और दिल को छू लेने वाली रचना ।आपका स्वागत है ।
बहुत ही सुंदर मर्मस्पर्शी कहानी हैं रजनीश जी ..
रजनीश जी
बहुत सुन्दर कहानी लाये हैं आप... बहूत अच्छी लगी।
रजनीश जी!
बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी है. दो दिनों में दो बेहतरीन रचनायें! बहुत बहुत धन्यवाद!
रजनीश जी
बहुत अच्छी कहानी है । बच्चे इतने ही भोले होते हैं । पल में लड़ते हैं और पल में
दोस्त बन जाते हैं । बाल स्वभाव का इतना सुन्दर वर्णन करने के लिए बधाई ।
काश ये सरलता बड़ों में भी आ जाए ।
रजनीश जी
सुंदर ...
प्रेरक और
मर्मस्पर्शी कहानी है...
धन्यवाद!
रजनीश जी,
आपको पढ़ने पर अपने बचपन के वे दिन याद आते हैं, जब छुट्टियों के दिन में मैं दिनभर बालहंस, नंदन और सुमन-सौरभ पढ़ा करता था।
और यह कहानी तो बड़ों के लिए भी उतनी ही रुचिकर और मार्मिक है। मैं कहानी पढ़ते-2 आपकी रुकइया के साथ जुड़ गया। आप एक सफल कहानीकार हैं।
बाल-उद्यान आपके मार्गदर्शन में शिखर तक जल्दी ही पहुंचेगा।
आपकी कहानी में बच्चों की स्वाभाविक ईर्ष्या तो है ही, उस ईर्ष्या के भीतर के प्रेम को आपने खूब उकेरा है।
कहानी बालमन पर आपके अधिकार की सूचना देती है , बचपन याद आ गया । शैलेश जी से मैं सहमत हूँ ।
रजनीश जी!
आपने बच्चों की दुनिया मे लेजाकर मुझे छोड़ दिया.उस अनुभूति को जीकर बड़े होने का दर्द भूल रहा हूं .
बधाई
सस्नेह
प्रवीण पंडित
BAALMAN KE MARMAGYA RACHANAAKAAR HAIN ZAKIR.ACHHI KAHAANI HAI.
ARVIND
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