दो पहेलियाँ
१
शेर की है ये मौसी,
पर उससे खूब छोटी,
चुपके से घर पर आये
सारा दूध झट पी जाये,
चूहे इससे डरकर भागे,
क्योकी ये उनको खा ले,
बूझो करु मैं बात किसकी ?
बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी |
२
दिन मे छूप जाये कहीं,
ढूंढो तो दिखता ही नहीं,
रोज़ रात को वो आता ,
साथ अपने सितारे लाता ,
कभी नज़र आये आधा ,
कभी पूरा गोल हो जाता,
कौन है वो जरा नाम बताना ?
नहीं मालूम ? चंदा मामा |
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7 पाठकों का कहना है :
:) मजेदार हैं यह पहेलियाँ कुछ और होती तो ज्यादा मज़ा आता ..शुभकामनाये
ऋषिकेश जी,
पहेली से अनूठी विधायें कम ही हैं। पहेली लिखना कविता भी है और बच्चों की ज्ञिज्ञासा को सकारात्मक और कल्पना की उडान देने का अप्रतिम माध्यम भी। आज पहेलियाँ कम ही लिखी जा रही हैं। आपकी दोनो ही पहेलियाँ प्रसंशनीय है।
*** राजीव रंजन प्रसाद
बहुत अच्छी हैं पहेलियाँ ।
कृपया 'खुब' को ठीक कर 'खूब' कर लें ।
- सीमा कुमार
bachpan lout aaya hai sachi main maja aa gaya padh kar
rishikesh ji aapka ye rang bhaut achha laga
वाह ऋषिकेश जी
आप तो बाल जगत में भृपूर आनन्द उठा रहे हैं ।
बच्चों की दुनिया होती ही कुछ ऐसी है । सस्नेह
पाठको से मिल रही प्रतिक्रिया पढ कर अच्छा लग रहा है , बाल उधान के समस्त सहयोगी कवियो से प्रतिक्रिया की आशा कर रहा हूं
ऋषिकेश जी,
अच्छा लिखा है, हमे पसंद आया।
कॄपया ऐसे ही लिखते रहें।
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