बाल कविता ( बन्दर और मगरमच्छ)
बन्दर और मगरमच्छ
शिप्रा नदी के किनारे,
एक वृक्ष था जामुन का,
उसी वृक्ष की डाल पर,
एक घर था बंदर का॥
बंदर वृक्ष पर बैठे-बैठे,
मीठे-मीठे जामुन खाता,
कुछ जामुन मुह में जाते,
कुछ नदी में गिराता॥
उसी नदी के अन्दर,
एक मगरमच्छ रहता था,
बंदर के फ़ेंके जामुन खाकर,
दोस्त उसे वह कहता था॥
एक दिन मगर ने जाकर
कुछ जामुन पत्नी को खिलाये,
खाकर जामुन पत्नी के मुह में,
रह-रह कर पानी आये॥
बोली पत्नी मगरमच्छ से,
अपने दोस्त को घर पर लाओ
दावत है घर पर हमारे,
जाकर तुम उसको बतलाओ॥
मीठे जामुन खाने वाले का,
दिल भी कितना मिठा होगा,
सोचो तो उस दावत का,
आनंद ही कैसा होगा॥
सुनकर पत्नी की बातें,
मगरमच्छ को गुस्सा आया,
बोला खबरदार जो तुमने,
इतना घटिया विचार बनाया॥
बंदर मेरा दोस्त है प्यारा,
उससे जामुन रोज मै लाऊँ
एसा दगाबाज नही मै,
दोस्त का कलेजा खा जाऊँ॥
हार गया मगर भी आखिर,
पत्नी के इस हठ को देख,
सोचा पत्नी का मन रखने,
देनी होगी ये परीक्षा एक॥
पत्नी का संदेशा लेकर,
चला मगर बंदर के घर,
बोला दोस्त निमन्त्रण है,
तुझे दावत का मेरे घर॥
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बोला मगरमच्छ बंदर से,
एक तरीका है मेरे भाई,
बैठ जा पीठ पर मेरे तू,
कह कर पीठ दिखलाई॥
सुनकर बन्दर ने झट से,
पीठ पर छ्लांग लगाई,
और मगर ने उसको,
नदी की सैर कराई॥
मझधार में जा मगर ने सोचा,
दोस्त को सच्ची बात बतादूँ
पत्नी खायेगी कलेजा बताकर,
दोस्ती का हक भी जता दूँ॥
कुछ सोचकर मगरमच्छ बोला,
दोस्त सुनो राज की बात,
तुम्हारा कलेजा खायेगी
मेरी पत्नी आज की रात॥
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जब सुना बंदर ने एसा,
झटका खाया मूर्ख दोस्त पाकर,
फ़िर संयत होकर बोला,
ओह्ह अच्छा किया बताकर॥
पहले कहते तो अच्छा था,
फ़िर भी चलो वापिस मुड़ जाओ,
टंगा हुआ है कलेजा पेड़ पर
जल्दी मुझको पेड़ तक पहुचाओ...
मूर्ख मगरमच्छ चला वापिस,
लेकर बंदर को अपनी पीठपर,
सोचा कितना अच्छा दोस्त है,
दे रहा कलेजा जान बूझकरे॥
पहुँच किनारे बंदर ने,
पेड़ पर छलाँग लगाई,
दो डंडे तोड़ डाल से,
कर दी मगर की पिटाई॥
बच गये मूर्ख दोस्त से,
बोलो राम दुहाई
मूर्ख दोस्त न बनाने की,
बंदर ने कसम उठाई॥
सुनीता(शानू)
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12 पाठकों का कहना है :
बहुत ख़ूब !
बचपन याद आ गया!
चित्र बहुत सुन्दर लगे। :)
बहोत ही अच्छी रचना है , बचपन मे जातक कथाओं मे ये कथा पढने का अवसर मिला था आज उसी कथा का काव्य रुपान्तरण मन को फिर बचपन की और ले जा रहा है |
वाह!
मज़ा आ गया सुनिताजी, चित्रों के प्रयोग से आपने इसे और भी खूबसूरत बना दिया है। जातक कथाओं का इस प्रकार काव्य रूपांतरण निश्चय ही बच्चों को निहित भावों को समझने के साथ-साथ गुनगुनाने में भी बेहद मज़ा आयेगा।
आपका यह प्रयास शानदार लगा, बधाई स्वीकार करें।
वाह वाह सुनीता जी, आपने तो अपनी पोस्ट से बाल-उद्यान को सार्थक कर दिया। बिलकुल बाल-मनोनुकूल शब्द और लय भी। लोकप्रिय कहानियाँ उनके काव्यानुवाद से पुन: प्रचलन में आ सकती हैं।
आपको बहुत बधाई
इस कहानी का कविताकरण बहुत सुन्दर हुआ है।
सुनीता जी
बहुत पहले यह कहानी पढ़ी थी । आज इसका काव्य रूपान्तर पढ़कर अच्छा लगा ।
बच्चों के लिए बहुत ही सुन्दर रचना है । बधाई ।
बाल काव्य का तो अभाव अक्सर ही भाषा में खलता है
उसी दिशा में कथा काव्य में परिवर्तित कर लिखी आपने
यह प्रयास सुन्दर है, इसको अब न बैठने देना थककर
और नये कुछ चित्र बना कर लायें कहानी आप सामने
पंचतन्त्र की इस प्रसिद्ध कथा का काव्य रूप बहुत ही पसन्द आया। साथ ही सुन्दर चित्रों से चार चाँद लग गये हैं।
बहुत ख़ूब !
बचपन याद आ गया!
सुनीता जी प्रयास शानदार लगा, बहुत बधाई:)
वाह सुनीता जी,
मुझे तो बचपन की यादें ताज़ा हो आईं..बाल उद्यान में ऐसी कहानी और कवितायें पढ़कर बचपन के किस्से कहानियाँ याद हो आती हैं.. बड़ा अच्छा लगता है
तपन शर्मा
मैं इसी तरह के बाल-साहित्य की खोज में था। आपकी इस कविता को देखकर लगा कि बाल-उद्यान की विविधता बनी रहेगी।
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