दीदी की पाती..पुस्तक की आत्मकथा
शुभ प्रभात ..
कल मैंने एक बहुत अजब सा सपना देखा ?..आप सब भी देखते हैं न सपने ..मुझे रात को किताब पढ़ते पढ़ते सोने की आदत है
सो रोज़ की तरह मैं कल भी किताब पढ़ते पढ़ते सो गई ...और तभी मुझे आया यह अजब गजब सपना ..जानते हो मेरे सपने में कौन आया किताब ...हाँ पुस्तक ..बहुत सुंदर सी किताब ..मैंने पूछा कि आप यहाँ कैसे ..मैंने तो आपको अभी पढ़ते पढ़ते साथ मेज पर रख दिया था ..वह कहने लगी कि मैं तुम्हे अपनी कहानी सुनाने आई हूँ .रोज़ मुझे पढ़ती हो क्या जानना नही चाहोगी कि मेरा जन्म कैसे हुआ ..मैंने कहा क्यों नही ..तुम न होती तो मुझे दुनिया की इतनी सारी बातें कैसे पता चलती ..तो उसने मुझे जो कहने सुनाई वह मैं आपको भी सुनाती हूँ ....वह बोली कि मेरा जन्म आज से कई हज़ार साल पहले हुआ और यह तब हुआ जब मनुष्य सारी बातें याद नही रख पाया तो उस को लगा की उसको यह सब बातें कहीं लिख लेनी चाहिए ताकि बाद में आने वाली पीढ़ी और आपके जैसे मेरे जैसे लोग भी उन बातों को पढ़ सके ...अब वह हमेशा तो जिंदा रहेंगे नही उनके विचार उनकी बातें उनकी खोजे आने वाली पीढ़ी भी जान सके ..पहले जमाने में मैं भोज पत्तों पर भी लिख कर कुछ समय तक उसको पुस्तक का रूप दिया गया .संस्कृत के श्लोक इस में लिखे जाते थे ..फ़िर केले के पत्ते पर लिखी जाती थी ....मेरा उपयोग आश्रम में हुआ करता था जहाँ तब गुरु कुल हुआ करते थे और गुरु अपने शिष्यों को जो शिक्षा दिए करते थे वह केले के पत्ते पर लिख लेते थे और फ़िर वहाँ से उसको याद किया करते थे ..उस वक्त भी में एक पुस्तक ही थी .फ़िर इस के बाद मैं पेड़ की छाल से एक काले पत्थर पर लिखी जाने लगी जिसे आज कल स्लेट कहते हैं ....मेरी कुछ [पुत्रियाँ ]कृतियाँ जिन में भारत का इतिहास लिखा था संस्कृत में भारत से ग्रीस गयीं जहाँ पर वह एलिक्जेंडारिया नामक एक पुस्कालय में संगर्हित कर ली गयीं वह पत्थर पर लिखी गई थी और विश्व की बहुत सी पुस्तकों के साथ वहाँ रहने लगी ..फ़िर मुझे बहुत समय तक उनकी कोई ख़बर नही मिली मेरे ही आँचल पर भारत की बड़ी बड़ी एतिहासिक घटनाओं की रचना की गई मैं वक्त के साथ साथ इनको अपने अपने आँचल में समेटे रहीं .मुग़लों के आने पर मेरी बहुत सारी निशानियों को नष्ट कर दिया गया ..मैं चुप चाप यह अन्याय सहती रही वक्त के साथ साथ मेरा रूप भी बदलता चला गया मैं और बेहतर ढंग से लिखी जाने लगी मेरे अन्दर के पन्नों पर ही बहुत से राजकावियों ने कविता लिखी कभी कभी झूठी तारीफ भी लिखी राजा की ..चीन के यात्रीओं ने अपनी भारत यात्रा का वर्णन भी किया जिन्हें बाद में आने वाली कई पीढियों ने पढ़ा ..और बीते युग के बारे में उस वक्त चलने वाले रति रिवाजों एक बारे में उस समय के रहन सहन के बारे में बहुत कुछ जाना ...मेरा रूप दिन बा दिन सुंदर और निखरता गया आज में कागज के रूप आपके सामने हूँ मेरे अन्दर कितनी ही ज्ञान की बातें छिपी हैं मैं अपने में विशाल ज्ञान का सागर समेटे हूँ ..चाहे वह एतेहासिक हो चाहे वह सामजिक हो चाहे वह धार्मिक हो ..सब मेरे अन्दर पन्नों में समाया है मैं आज हर देश हर संस्कृति हर राज्य और हर दिशा में विराज मान हूँ ...तुम भी मुझे रोज़ पढ़ती हो .बच्चो को मैं सुंदर कहानी सुनाती हूँ ...मैं न होती तो तुम कैसे सब यह जान पाती ..मैं हैरानी से सब सुन रही थी की उसने कहा अब चलती हूँ ....कुछ और याद आएगा तो फ़िर से बताने आऊँगी ..मैं तो अभी उस से बहुत कुछ पूछना चाहती थी पर सुबह होने लगी थी और मेरी नींद खुल गई ..मेज पर देखा तो लगा कि पुस्तक जैसे मुझे देख के मुस्करा रही है ...तो यह थी किताब की कहानी एक सपने में किताब की जुबानी ...किसी और को पुस्तक कुछ सपने में बताये तो मुझे जरुर लिखे
अपना ध्यान रखे और ढेर सारी किताबे पढे अच्छी अच्छी .गर्मी की छुट्टियों में ही यह मौका आपको मिल सकता है नही तो फ़िर तो आपको अपनी पाठ्य पुस्तक ही पढ़नी है न ..:)
आपकी दीदी
रंजू
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
8 पाठकों का कहना है :
बस मुस्करा दिया हूँ.....
Ranju ji aapki paati adbhut hoti hai ,bahut hi achchi lagi pustak ki aatamkatha .
रंजना जी,
बाल उद्यान में दीदी की पाती सफलतम स्तंभ है। बेहद उपयोगी जानकारी उतनी ही रोचकता से प्रस्तुत की गयी है..
***राजीव रंजन प्रसाद
रंजू जी
आपको बड़ा प्रभावी सपना आया और हम सबका भी कल्याण कर गया। इतनी उपयोगी जानकारी देने के लिए बहुत-बहुत बधाई।
हूँ.... तो सपनों में भी किताब... अब पता चला कहाँ कहाँ से लाती हो इन्नी मज़ेदार मज़ेदार पाती...
रंजू जी,
आज आपकी पाती की सफलता का राज पता चला, जब आपके सपने तक इतने जानकारी भरे हो सकते हैं तो आपकी पातियों को तो ज्ञान का भंडार होना ही है. बहुत रोचक लगी आपकी पाती.
बधाई.
बधाई..
रंजू जी ,
पुस्तक के जन्म से लेकर अब तक की कहानी हम सब के साथ बांटने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
आपके सपने वाकई बड़े रोचक हैं और उतनी ही रोचक है दीदी की पाती. अगली पाती का इंतज़ार रहेगा .
^^पूजा अनिल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)